हिमाचल की वादियों से आने वाले युवा कवि गणेश गनी की कविताओं के विषय
में यह कहना गलत नही होगा कि वह एक सुलझे हुए कवि मन के कवि हैं। वह अपनी कविताओं में
भावभाषा के टेढ़े मेढ़े रास्तों के बजाय सीधी सरल व् स्वाभाविक राह बनाते हुए नज़र आते
हैं। उनकी कविताओं के बिम्ब उलझे हुए नही लगते वे सीधे सीधे अपनी प्रकृति व परिवेश
से उठाते हैं, लेकिन
पूरी सावधानी और नवीनता के साथ। उनकी कविता में आपको पहाड़ और पहाड़ी पगडंडियां अक्सर
दिख जायेंगीं। भाषा के स्तर पर भी वह काव्यनिकषों पर खरे उतरते हैं। अपनी कविताओं
को उन्होंने यथासंभव दुरूह होने से बचाया है जिससे वे आसानी से पाठक तक संप्रेषित हो
जातीं हैं। ये कवितायेँ पाठक को दोनों भाव तथा विचार के स्तर पर छूती हैं। ‘स्पर्श’
पर इस हफ्ते पेश हैं उनकी कुछ नयी कविताएँ :
गूगल पर खोजबीन
कई दिनों से
बच्चों ने चन्दा मामा नहीँ कहा
पिता कविता सुनाना भूल गए
और माँ लोरी गाना ।
बच्चों ने चन्दा मामा नहीँ कहा
पिता कविता सुनाना भूल गए
और माँ लोरी गाना ।
कई दिनों से
देवता के प्रवक्ता ने
कोई घोषणा नहीँ की
लोग डरना भूल गए
और गूगल पर खोजबीन बढ़ गई ।
देवता के प्रवक्ता ने
कोई घोषणा नहीँ की
लोग डरना भूल गए
और गूगल पर खोजबीन बढ़ गई ।
कई दिनों से
बहुरूपिया इधर से नहीँ गुजरा
भूल गए दोस्त
मुखौटों की पड़ताल करना ।
बहुरूपिया इधर से नहीँ गुजरा
भूल गए दोस्त
मुखौटों की पड़ताल करना ।
कई दिनों से
काली और सफेद टोपी वाले बेचैन हैं
धरना बन गए प्रार्थना सभाएं
और नारे प्रार्थनाएँ लगने लगी हैं ।
काली और सफेद टोपी वाले बेचैन हैं
धरना बन गए प्रार्थना सभाएं
और नारे प्रार्थनाएँ लगने लगी हैं ।
कई दिनों से
पुजारी परेशान है
मंदिर के चौखट पर कोई मेमना नहीँ रोया
शहद चोरी होने पर भी
मधुमक्खी ने नहीँ की आत्महत्या ।
पुजारी परेशान है
मंदिर के चौखट पर कोई मेमना नहीँ रोया
शहद चोरी होने पर भी
मधुमक्खी ने नहीँ की आत्महत्या ।
कई दिनों से
सपनें आते हैं मगर
बाढ़ और भूकम्प की खबर के साथ
जन्म और मृत्यु का डंका बजाते हुए
जागते रहो की बुलंद बांग के साथ ।
सपनें आते हैं मगर
बाढ़ और भूकम्प की खबर के साथ
जन्म और मृत्यु का डंका बजाते हुए
जागते रहो की बुलंद बांग के साथ ।
कई दिनों से
यह भी हो रहा है कि
बादलों के मश्क छलछला रहे हैं
बीज पेड़ बनने का सपना देख रहा है
कोयल से रही है अंडे
अपने ही घोंसले में
कई दिनों से
एक कवि जाग रहा है रातों में ।
यह भी हो रहा है कि
बादलों के मश्क छलछला रहे हैं
बीज पेड़ बनने का सपना देख रहा है
कोयल से रही है अंडे
अपने ही घोंसले में
कई दिनों से
एक कवि जाग रहा है रातों में ।
मैं याद करना चाहता हूँ
याद करना चाहता हूँ
उन अँधेरी रातों को जब छत पर सोते बेसुध
और टिमटिमाता तारा सुनाता परी कथा
याद करना चाहता हूँ
उन पगडंडियों की महक को
जब भेड़ें लादे पीठ पर अपनी
नमक और कणक लाती
याद करना चाहता हूँ
जब माँ सूरज देख
समय बताया करती
मैं याद करना चाहता हूँ
उन सुनहरे सवेरों को
जब काम पर केवल
पुहाल निकलते थे
या फिर किसान
याद करना चाहता हूँ
उन सांवली शामों को भी
जब हर आदमी
शाम ढलने से पहले घर लौट आता
याद करना चाहता हूँ
उन बच्चों को जी भर
जो पाठशाला गए बगैर भी
ज्यादा सभ्य लगते
याद करना चाहता हूँ
उस अजीब लड़की को
जो मुझे कभी पसंद न करती
याद करना चाहता हूँ
उस जंगल को जिसका मृत पेड़
मेरे घर को सुरक्षा देता
याद करना चाहता हूँ
कि कुछ बातें कतई न भूलूँ
मसलन खेतों में टहलना
पौधों को रोज पानी पिलाना
नदी को बहलाना
पहाड़ के कंधे चढ़
गाँव की शाम को निहारना
बर्फ पर डक बैक पहन दबे पाँव चलना
झूला पुल लाँघ चनाब के उस पार
अखरोट और थांगी के जंगल में उतरना
और अगर ये सब नहीँ भी रहा याद
तो कम से कम न भूलूं कविता लिखना ।
उन अँधेरी रातों को जब छत पर सोते बेसुध
और टिमटिमाता तारा सुनाता परी कथा
याद करना चाहता हूँ
उन पगडंडियों की महक को
जब भेड़ें लादे पीठ पर अपनी
नमक और कणक लाती
याद करना चाहता हूँ
जब माँ सूरज देख
समय बताया करती
मैं याद करना चाहता हूँ
उन सुनहरे सवेरों को
जब काम पर केवल
पुहाल निकलते थे
या फिर किसान
याद करना चाहता हूँ
उन सांवली शामों को भी
जब हर आदमी
शाम ढलने से पहले घर लौट आता
याद करना चाहता हूँ
उन बच्चों को जी भर
जो पाठशाला गए बगैर भी
ज्यादा सभ्य लगते
याद करना चाहता हूँ
उस अजीब लड़की को
जो मुझे कभी पसंद न करती
याद करना चाहता हूँ
उस जंगल को जिसका मृत पेड़
मेरे घर को सुरक्षा देता
याद करना चाहता हूँ
कि कुछ बातें कतई न भूलूँ
मसलन खेतों में टहलना
पौधों को रोज पानी पिलाना
नदी को बहलाना
पहाड़ के कंधे चढ़
गाँव की शाम को निहारना
बर्फ पर डक बैक पहन दबे पाँव चलना
झूला पुल लाँघ चनाब के उस पार
अखरोट और थांगी के जंगल में उतरना
और अगर ये सब नहीँ भी रहा याद
तो कम से कम न भूलूं कविता लिखना ।
आप समझते हैं
आप समझते हैं
कि लालकिले के परकोटे से
अपने सम्बोधन में
मात्र मित्रों कहने भर से
सदभावना का हो जाता है संचार
सम्पूर्ण पृथ्वी पर ।
कि लालकिले के परकोटे से
अपने सम्बोधन में
मात्र मित्रों कहने भर से
सदभावना का हो जाता है संचार
सम्पूर्ण पृथ्वी पर ।
आपके तेज तेज चलने से ही
देश का विकास रफ़्तार पकड़ लेता है !
देश का विकास रफ़्तार पकड़ लेता है !
आप समझते हैं
कि जहाज के दरवाजे पर खड़े हो कर
दाहिना हाथ ऊपर उठाकर
जोर जोर से हिलाने भर से
दरिद्रता के बादल छंट जाते हैं ।
कि जहाज के दरवाजे पर खड़े हो कर
दाहिना हाथ ऊपर उठाकर
जोर जोर से हिलाने भर से
दरिद्रता के बादल छंट जाते हैं ।
सरकारी रेडियो स्टेशन से
आपके मन की बात कर देती है
सबके मन का बोझ हल्का !
आपके मन की बात कर देती है
सबके मन का बोझ हल्का !
आप जानते हैं यह भी
कि जनता सब जानती है
दिल्ली के तख़्त का
शहंशाह नहीं चौकीदार बनाकर
जनता ने आपका सपना पूरा किया है
आप याद नहीं करना चाहते
543 आदर्श गांव बनाने का वादा ।
कि जनता सब जानती है
दिल्ली के तख़्त का
शहंशाह नहीं चौकीदार बनाकर
जनता ने आपका सपना पूरा किया है
आप याद नहीं करना चाहते
543 आदर्श गांव बनाने का वादा ।
आपको मालूम है
अच्छे दिन आएँगे
ऐसा सौ बार कहने मात्र से
लोग मान लेंगे सच !
अच्छे दिन आएँगे
ऐसा सौ बार कहने मात्र से
लोग मान लेंगे सच !
आपको मालूम है
कि जीभ ही तो है यह
इससे स्नेह का शहद टपका लो
चाहे प्रत्यंचा बना कर
जहर बुझे बाण बरसा लो ।
कि जीभ ही तो है यह
इससे स्नेह का शहद टपका लो
चाहे प्रत्यंचा बना कर
जहर बुझे बाण बरसा लो ।
रिक्त स्थान
कितनी आसानी से
भर देते हैं रिक्त स्थान बच्चे
चुनकर सही विकल्प ।
भर देते हैं रिक्त स्थान बच्चे
चुनकर सही विकल्प ।
हम कितनी ही बार
चुनते हैं गलत विकल्प
और भर देते हैं
जीवन में रिक्त स्थानों को
जो फिर खाली हो जाते हैं
फिर भरे जाते हैं
फिर खाली हो जाते हैं
और हम फिर भरते हैं ।
चुनते हैं गलत विकल्प
और भर देते हैं
जीवन में रिक्त स्थानों को
जो फिर खाली हो जाते हैं
फिर भरे जाते हैं
फिर खाली हो जाते हैं
और हम फिर भरते हैं ।
विडम्बना यह भी है कि
सही सही भरे गए रिक्त स्थान भी
हमारी ही गलतियों से
अक्सर हो जाते हैं खाली ।
सही सही भरे गए रिक्त स्थान भी
हमारी ही गलतियों से
अक्सर हो जाते हैं खाली ।
और फिर त्रासदी देखो कि
हम ही गलत विकल्प चुन लेते हैं
उन रिक्तियों को भरने के लिए ।
हम ही गलत विकल्प चुन लेते हैं
उन रिक्तियों को भरने के लिए ।
अगर जीवन पाठशाला है अनुभवों की
तो अब आप ही बताएं कि
कैसे चुन पाते हैं बच्चे
रिक्त स्थानों के लिए सही विकल्प ।
तो अब आप ही बताएं कि
कैसे चुन पाते हैं बच्चे
रिक्त स्थानों के लिए सही विकल्प ।
- गणेश गनी
कुल्लू में एक छोटे से निजी स्कूल का संचालन.
मूल रूप में पांगी घाटी से सम्बद्ध.
कविता वसुधा, बया, सदानीरा, आकंठ, सेतु, अकार, हिमतरु, विपाशा आदि में
प्रकाशित.
वाह गनी जी... बहुत सुन्दर कविताएं है... बहुत दिनों बाद ऐसी बढिया कविताएं पढ़ने को मिली... दुनियावी हकीकत को कसे कसे आसान शब्दों में पेश करती हुई... बधाई गनी जी...
ReplyDeleteवाह गनी जी... बहुत सुन्दर कविताएं है... बहुत दिनों बाद ऐसी बढिया कविताएं पढ़ने को मिली... दुनियावी हकीकत को कसे कसे आसान शब्दों में पेश करती हुई... बधाई गनी जी...
ReplyDeleteआभार पवन भाई ।
Deleteगनी की कवितायेँ देने के पहले एक अग्र टिप्पणी दी गई है. उसमें लिखा है-"...वह अपनी कविताओं में भावभाषा के टेढ़े मेढ़े रास्तों के बजाय सीधी सरल व् स्वाभाविक राह बनाते हुए नज़र आते हैं।..." आलोचक कविता में एक थीम का होना आवश्यक मानते हैं. थीम ही को भाव-वस्तु कहते हैं. भाव के रास्ते का टेढ़ा या सीधा होने की बात समझ में नहीं आई. भाषा का टेढ़ा या सीधा होना समझ में आता है. किन्तु कविता में भाषा का टेढ़ा होना ही उसमें सौन्दर्य पैदा करता है. कविता में भाषा कम या अधिक टेढ़ी हो सकती है पर उसे टेढ़ी होनी ही पड़ेगी अन्यथा उसमें अभिधात्मक दोष आ जाएगा या कविता कविता न होकर गद्य हो जायेगी. बिम्ब भाषा में टेढ़ापन आने से अधिक सुन्दर और संप्रेषणी बनता है.
ReplyDeleteगनी की कवितायेँ देने के पहले एक अग्र टिप्पणी दी गई है. उसमें लिखा है-"...वह अपनी कविताओं में भावभाषा के टेढ़े मेढ़े रास्तों के बजाय सीधी सरल व् स्वाभाविक राह बनाते हुए नज़र आते हैं।..." आलोचक कविता में एक थीम का होना आवश्यक मानते हैं. थीम ही को भाव-वस्तु कहते हैं. भाव के रास्ते का टेढ़ा या सीधा होने की बात समझ में नहीं आई. भाषा का टेढ़ा या सीधा होना समझ में आता है. किन्तु कविता में भाषा का टेढ़ा होना ही उसमें सौन्दर्य पैदा करता है. कविता में भाषा कम या अधिक टेढ़ी हो सकती है पर उसे टेढ़ी होनी ही पड़ेगी अन्यथा उसमें अभिधात्मक दोष आ जाएगा या कविता कविता न होकर गद्य हो जायेगी. बिम्ब भाषा में टेढ़ापन आने से अधिक सुन्दर और संप्रेषणी बनता है.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 30 दिसंबर 2017 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
आदरणीय गणेश जी -- पहली बार आपकी सार्थक रचनाएँ पढ़ी | बहुत अच्छी लगी -- अच्छा लिख रहे हैं आप | सादर शुभकामनाएं |
ReplyDeleteबहुत आभार।
Deleteबहुत आभार
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