Sunday 1 July 2018

कटाक्ष / सुशील सिद्धार्थ के दो व्यंग्य


चौराहा,बस और तीर्थयात्री


  बस किसी तीर्थ से लौट रही थी।तीर्थ पर लोगों ने अपने अपने पाप वगैरह बहा दिए थे,इसलिए एक हल्के अहंकार के साथ तीर्थयात्री हल्की सी नींद में पुण्य का सपना देख रहे थे।विनती,प्रार्थना, विनम्रता का अभिनय करते करते वे थक भी गये थे।
अचानक बस कांपकर रुक गई तो ड्राइवर ने गर्व से चारों ओर देखा।गाड़ी ठीक से चलती रहे तो लोग ड्राइवर को भूल जाते हैं।कहा भी है '--दुख में सुमिरन सब करैं ।'दुख आ गया। बस चीं चीं कर रुक गई।मुसाफ़िर समझ गये कि हमेशा की तरह खराब हो गई है।उन्होंने उचक उचक कर ड्राइवर को देखना शुरू किया। अपने धर्म का पालन करते हुए ड्राइवर ने बताया कि बस ख़राब हो गई है।कहने लगा, सरकार और बस का कोई भरोसा नहीं।कब क्लच टूट जाए,कब ब्रेक फेल हो जाए।मगर हर ख़राब बात में कोई अच्छी बात भी होती है।इसमें अच्छी बात यह है कि हमारी बस चौराहे से कुछ ही दूर पर रुकी है। यात्रियों को कोई तकलीफ नहीं होगी।खाना, पीना, तफरीह वगैरह की यहां कोई कमी नहीं है।मशीनरी भी करुणावान होती है,यह साबित हुआ।अब आप लोग जाइए।कम्मसकम दो घंटा लग जाएगा।
लोग उतरने लगे।वे दोनों भी उतरे।वे दोनों, यानी कमल और विमल। दोनों पक्के दोस्त थे।कमल कृषि मंत्रालय में काम करता था।विमल टीचर था ।
बाकी जो लोग उतरे उनमें जो पुरुष थे वे निस्संकोच ऐसी ओट की जगहों की ओर चले जहां से वे दिख सकें।पुरुष कहीं भी कुछ भी कर सकता है।अलबत्ता स्त्रियों ने चौराहे का रुख़ किया।
बस तीर्थ से लौट रही थी इसका प्रमाण विरक्त जी को देखकर लगता था।शहर के लोगों की कोशिश रहती थी कि जहां कहीं तीर्थ यात्रा के लिए निकलें विरक्त जी को साथ ले लें।वे ऐसी यात्राओं के पोस्टर ब्वाय थे।...और विरक्त जी भी अपने सात बच्चों को घरपर छोड़कर निकल पड़ते थे।पत्नी से उन्हें कोई ख़ास लगाव न था।बल्कि उनके गुरु का कहना था कि पत्नी पुरुष की प्रयोगशाला है।छोड़ने धिक्कारने लानत भेजने के धार्मिक प्रयोग किसी भी पति को यहीं करने चाहिए। विरक्त जी को देखकर वैराग्य जाग जाता है ।जागने के बाद देर तक कुलबुलाता रहता है।जीवन को समझने का अपना अपना तरीका है।किसी समय एक शव को देखकर राजकुमार सिद्धार्थ को वैराग्य हो गया था।वे बुद्ध हो गये थे।लोग जब विरक्त जी को देखते हैं तो उनसे वैराग्य  लिपट जाता है।उनकी रही सही बुद्धि भी वनवास पर निकल लेती है।
विरक्त जी सधी चाल आते हैं ।सधे तरीके से बैठते हैं। सधी आवाज़ में बोलते हैं ।सधी सधी बातें करते हैं ।वे एक सधे मानव हैं ।उनका जीवन एक सरकस है ।अपने सरकस के वे जानवर और ट्रेनर दोनों हैं ।उनको देखकर भरोसा होने लगता है कि यदि कोई शवासन का लगातार इस्तेमाल करे तो वह शवतुल्य योग्यता प्राप्त कर सकता है।
विरक्त इस शहर के आदर्श पुरुष हैं।आदर्श की परिभाषा भी विरक्त ही बताते हैं।उनका कहना है कि आदर्श वह हो सकता है ,जिसका कोई आदर्श न हो।...विरक्त जी उतरे और उतर कर आस पास से गुजरती या आसपास सामान बेचती महिलाओं पर सत्य के प्रयोग शुरू किए।
कमल विमल ने देखा चौराहे पर भांति भांति की दुकानें थीं।वे दोनों गांव में पैदा हुए थे।मगर शहर में रहते रहते अब गांव उनके लिए अजूबा था।चारों ओर गंवई माहौल था।
वे आगे बढ़े।एक बुढ़िया खीरे बेच रही थी।कमल ने नजदीक जाकर कहा ,'अम्मा,कैसे दिए।' बुढ़िया ने जवाब दिया।रेट शहर से काफी कम था।फिर भी विमल ने गांववाला बनते हुए इसरार किया कि क्या कुछ भी कम नहीं करोगी।बुढ़िया मुस्कुराते हुए बोली कि शहर में भी तो ख़रीदते होगे।तुमको भाव नहीं मालूम।सीधे अपने खेत से लाए हैं।क्या बचता है छोटी सी खेती किसानी में।...ख़ैर दोनों ने दो दो खीरे लिए।और वे नोट दिए जो जेब में रखे रखे बस फटने ही वाले थे।
एक किनारे आकर कमल बोला,' बहुत शातिर होते हैं ये लोग।देखो,अम्मा कहकर पुकारा ।तब भी दाम कम नहीं किए।इंसानियत नहीं है इसलिए भूखों मरते हैं।' विमल ने कहा,'अब धीरे धीरे हमारी ग्रामीण संस्कृति का सत्यानाश हो रहा है।आह,वे दिन कहां गये।' दोनो आहें भरते हुए खीरा खाने लगे।
यात्रियों को अपना अपना समय बिताओ अभियान मिल गया था कि तभी सामने हो हल्ला मचा।लोग लपक लिए।सीन बने तो दर्शक भी होने चाहिए।एक फलवाले के ठेले के पास कुछ हुआ था।एक जवान तारसप्तक में ठेलेवाले को मां बहन की गालियां दे रहा था।गालियां सुर और ताल के अनुसार थीं और भारतीय लोकसंगीत की गरिमा बढ़ा रही थीं।कुछ ही देर में पता चला कि जवान का नाम लल्लन है।कहा जाता है कि उसने स्थानीय नेता की आज्ञा का पालन करते हुए बहुत से लोगों के दिमाग दुरुस्त किए हैं।कोई फुसफुसाए जा रहा था कि देखो कैसा तेज है लल्लन के चेहरे पर।आदमी बत्तमीज हो जाए तो उसकी शोभा बढ़ जाती है।बहरहाल,लल्लन ने उपस्थित भीड़ को हाज़िर नाज़िर जानकर फलवाले से कहा कि कहीं जाना नहीं,मैं लौटकर आता हूं।और तुम्हें यहीं लुढ़काता हूं।ज्योतिषी ने भी परसों कहा था कि इस चुनाव से पहले एक मर्डर कर दूंगा तो हमारे नेताजी जीत जाएंगे।मातारानी तेरी बलि मांग रही हैं।
फलवाले ने एक ओर थूक दिया।बोला,अबे हट।अबे फूट।एक लप्पड़ में मुंह पीछे चला जाएगा।जा और लौट के आ।मुझे कहीं नहीं जाना।और अपने नेता से कह देना,चार किलो सेब के दाम बकाया हैं।इससे पहले कि तुम मेरा मर्डर करो मेरे पैसे तो मुझे मिल जाएं।
यह कहकर फलवाला हंसा।कमल विमल कांप गये।सात्विक और तमाम तीर्थयात्रियों को ईश्वर की याद आ गई।लल्लन गुस्से से तमतमाया और तेजी से एक ओर निकल लिया।अब वह लौटकर सीधे हत्या ही करेगा।ऐसा उसे देखकर लग रहा था।
चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई।लहर दौड़ दौड़कर थक गई तो कुछ लोग फलवाले से सहानुभूति की क्रीड़ा करने लगे।
इतना सुख कमल विमल को अब तक जीवन में नहीं मिला था।इसी ख़ुशी में उन्होंने पास की दुकान पर पकौड़ियों का ऑर्डर कर दिया।सोचा चाय तब मंगाएंगे जब लल्लन लौटकर आएगा।और बाकायदा हत्या शुरू होगी।
कमल बोला,'यार,टीवी शीवी पर शायद कभी खून शून हत्या शत्या देखा हो।मगर आज तक लाइव मर्डर नहीं देखा।' विमल आह भरकर बोला,'टीवी पर भी कहाँ यार दिखाते हैं।जब एक्साइटमेंट गर्म होता है तो तस्वीरों को धुंधला कर देते हैं।यह है मीडिया का हाल।' कमल ने प्रतिरोध किया,' यार हमें टाइम ही कहां।ज़िंदगी से थ्रिल तो थल्ले थल्ले हो गया है।अब पहले से पता चल जाए तो जाके देख ही लें।देखो आज मौका मिले न मिले ।'विमल ने श्रद्धा से आंखें बंद कीं।श्रद्धा में अक्सर आंखें बंद हो जाती हैं।विमल ने हांथ जोड़े ,माथे से लगाए।सिर ऊपर करके करुणा भरे स्वर में बोला ,'शुभ शुभ बोलो यार।ईश्वर की कृपा होगी तो आज लाइव मर्डर देखने को मिल जाएगा।बाकी ऊपर वाले की मर्जी।' अब कमल भी भावुक हो गया,' हां यार,जिसने आंखें दी हैं वह लाइव मर्डर भी देगा।'
...फलवाला बेपरवाह अपनी दुकानदारी में लगा था।उसकी जगह मौक़े की थी।लोग जब फलवाले से कभी इस बात का ज़िक्र करते तो वह बेपरवाही से कहता कि जगह का भी मुकद्दर होता है।बेपरवाही उसका स्वभाव था।जैसे अभी वह सोच रहा होगा कि आने दो लौंडे को।मरना होगा तो मर लिया जाएगा।
कुछ दूर पर खड़ा सिपाही संत भाव में जा चुका था।उसे बातों में कोई रुचि न थी।वह आचरण पर भरोसा करता था।उसका मानना था कि कर्म करो और फल की इच्छा पुलिस पर छोड़ दो।लल्लन ने सिपाही को भी एकाध बार हूल दी थी।सिपाही ख़ुश था कि आज बहीखाता दुरुस्त कर लिया जाएगा।
एक तरफ एक धार्मिक युवक बता रहा था कि आपलोग हैरान परेशान न हो। सब पहले से तय होता है।जैसे यह तय था कि यहीं बस खराब होगी,यहीं चौराहा होगा,यहीं फलवाले से लल्लन का झगड़ा होगा। युवक का यह भी कहना था कि मौका न चूकना।अपने साथ मौका ए वारदात की फोटो ज़रूर ले लेना।बच्चों को यह समझाने में आसानी होगी कि सब पहले से तय होता है।...युवक ने देखा कि कुछ लोगों के चेहरों पर अविश्वास का भाव है।उसने मुस्कुरा कर कहा कि अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए मैं एक प्राचीन कथा सुनाता हूं।छविपुराण का चौथा अध्याय है।सुनो।युवक ने शुरू की कथा।...आज फिर यमराज चकित थे।सावित्री उनके भैंसे के पीछे पीछे बदहवास लुटी पिटी भागती आ रही थी।उनका हृदय करुणानिधान हो गया।अहा! आज कलियुग में भी इतनी पतिव्रता स्त्री! भारतभूमि तू महान है।
यमराज ने भैंसे को न्यूट्रल गियर में डालकर ब्रेक लगाया।सावित्री पास आ गयी।यमराज बोले,'बेटी सावित्री,  मैं तुम्हारी..।' सावित्री ने हांफते हुए टोका ,'ऐसा है, मुझे सैवी कहकर बुलाइए।सावित्री डाउनमार्केट नाम है।' यमराज मुस्कुराए,' हे सैवी,तुम क्यों मेरा पीछा कर रही हो।क्या सत्यवान के प्राण चाहिए।मैं ख़ुश हूं।जो मांगना हो मांग लो ।बोलो।' सावित्री बोली,'अंकल यम्मू, प्राण पी रखे थे इस सत्तू ने मेरे।मेरा इसका ब्रेकअप तो वैसे भी होने वाला था।' यमराज असमंजस में पड़ गये,' तो तुम मेरे पीछे पीछे क्यों दौड़ रही हो।' सैवी ने मोबाइल आगे करते हुए कहा ,' यम्मू अंकल ,मुझे आपके क्यूट भैंसे के साथ एक सेल्फ़ी लेनी है।बस।फिर आप सत्तू के प्राण चाहे जहां ले जाइए।' भैंसा कंघी निकालकर अपने बाल ठीक करने लगा।
इस पौराणिक कथा से यह नैतिक शिक्षा मिलती है कि शरीर नश्वर है।सेल्फ़ी ही सत्य है।आज लल्लन जो हत्या करेगा वह नश्वर है।हमारे तमाम फोटो इसे शाश्वत बनाएंगे।


लोगों ने सोचा कि नाश्ता वाश्ता कर लें।भूखे पेट मर्डर का मज़ा नहीं आएगा।...सब निपट गया।अब प्रतीक्षा असह्य हो चली।लोगों का अगाध विश्वास था कि लल्लन लौटकर आएगा।कुछेक स्थानीय लोग उसके गुणों का स्मरण कर रहे थे।एक कह रहा था कि साहब,यह जो कहता है कर गुजरता है।थोड़ी देर तक गुणगान होता रहा।लल्लन का दूर दूर तक अतापता नहीं।
अब कुछ स्थानीय और कुछ तीर्थयात्री मिलकर कहने लगे। कि अरे अब कोई अपनी जबान का पक्का नहीं रहा।सब जबानकबड्डी खेलते हैं।अरे जब कहा था कि अभी आकर सिर नहीं फोड़ा...तुम्हारा खून नहीं बहाया तो मेरा नाम लल्लन नहीं।तो आकर यही सब करना था।फिर यही लोग कहेंगे कि सरकार में आने से पहले फलां पार्टी ने जो वायदे किए थे वे पूरे नहीं किए।अरे तुमसे अपना वादा तो पूरा होता नहीं।....चारों ओर अफ़सोस था।लोग हताश थे।निराश तो पहले से हो रहे थे।
...ड्राइवर चिल्ला रहा था।बस चलने वाली थी।सात्विक जी,धार्मिक युवक और बाकी लोग धर्मयात्रा का फल न मिल पाने के दुख से भर गये थे।
फलवाले के पास से एक महिला अपनी बेटी के साथ निकल रही थी।कमल विमल दोनों उसकी बेटी को देखने लगे।हालांकि उम्र में वह इन दोनों की बेटियों के बराबर ही होगी।पर बेटी किसी दूसरे की हो तो एकाध बार आंखों को सेंक लेने में नुकसान क्या है।
बस चल पड़ी तो कमल ने मुस्कुराकर विमल से कहा,' वाह।क्या छोटे छोटे सेब थे यार।' बस में किसी ने जैकारा लगाया।फिर भजन गाने लगा।वे दोनों अब साथ साथ  भजन गा रहे थे।


बूड़ा बंस कबीर का 


कबीर बाजार से कई बार वापस आ चुके थे।बाज़ार और उनका पुराना रिश्ता था।मगर आज उनके मन में अजब सा ख़ौफ़ था ।पहले इसी बाज़ार में वे लुकाठी लेकर आए थे।इसी बाज़ार में उन्होंने सबकी ख़ैर मांगी थी।यह भी कहा था कि ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।एक बार तो ताव में आकर कह दिया था कि जो घर फूंकै आपना चलै हमारे साथ।तब लोगों ने समझ भी लिया था ।
लगता है वह वक्त कहीं चला गया।क्योंकि पिछले दिनों इसी बात ने उनको लगभग तबाह ही कर डाला था।कबीर ने आदत के अनुसार घर फूंकने वाली बात बाज़ार में दोहराई थी।फिर कबीर वापस घर पहुंचे।तो दो नौजवान उनकी झोपड़ी फूंकने की तैयारी कर रहे थे।उन्होंने हैरत से पूछा कि भाई यह क्या गोरखधंधा है।नौजवान बोले थे कि आपके घर को हम अपना ही घर मानते हैं।और यही मानकर इसे फूंकने आए हैं।इसके बाद आपके साथ चलेंगे,जहां चलिए।
कबीर समझ गये कि अपना घर फुंकने की नौबत आ जाए तो माया के महत्व को मान लेना चाहिए।कबीर ने उस दिन समझा बुझा कर किसी तरह अपना झोपड़ा बचाया था।
बाद में कमाल की अम्मी से दुखड़ा रोया तो उसने लठ्मलठ्ठा शुरू कर दिया।सूत कपास तो पहले से ही घर में बहुत था।उसने कहा,जितना औरतों के खिलाफ तुमने बोला है उसे देखते हुए मैं तुमको कब का छोड़ गयी होती।नारी की झाईं परत अंधा होत भुजंग,कबिरा तिन की कौन गति नित नारी के संग।बताओ,कोई बात है भला।
कबीर खीझ उठे।अरे इसका कोई ख़ास मतलब है भागवान।यह एकदम सीधा सादा मामला नहीं है।अब क्या समझाऊं तुमको।
कबीर उदास हो उठे।कैसा समय है यह ! अचानक उनको याद आया कि अब तक कमाल बाज़ार से वापस नहीं आया है।कहां रह गया।बहुत मुश्किल से तो तैयार किया कि अच्छा काम है।अपने पिता की परंपरा आगे बढ़ाओ।कुछ दोहे अपने रटवा दिये थे।ख़ुशी की बात है कि अब ख़ुद भी कुछ कह लेता है।
अब कमाल बाज़ार जाता है।बाजार में वही सब दोहराता है जो पिता कहते आए बरसों से।परसों कह रहा था कबीर से।कि जो तुमने सिखा पढ़ा के मुझे तैयार किया वह एक दिन मेरी जान लेके रहेगा।...आज भी बाज़ार गया था।अभी लौटा नहीं है।कबीर परेशान हैं।मन बहलाने के लिए दोहा पद बनाने में मशगूल होना चाहते हैं।मन भटकता है ।
जब सच्ची विपदा सामने हो तो सारा चिंतन धरा रह जाता है।कबीर से ज़्यादा कौन जानेगा कि दुनिया सेमल का फूल है।रहिना नहीं देस बिराना है।मगर कबीर यह भी जानते हैं कि ज़माना बदल गया है।अब लोग सुनते नहीं।हंसने और डसने पर उतर आते हैं।कहीं कमाल को कुछ हो न गया हो! कबीर कांप जाते हैं।यह कुंडलिनी जागरण का कंपन नहीं है।यह समाज के सोते चले जाने की बात सोचकर उपजा कंपन है।
...अचानक कुछ आहट हुई।कमाल लहूलुहान था। झोपड़ी में आ गिरा था।साथ में उसका दोस्त साहिब भी था।कबीर को भरोसा नहीं हुआ।दौड़कर बेटे को थाम लिया।क्या हुआ! फिर किसी ने कुछ कहा। किसी से मारपीट कर दी क्या! 
दर्द में भी कमाल मुस्कुराया।मैं क्या कहके और क्या खाके मारपीट करूंगा।जब मैं कहता था दुनियादारी सीख लूं तो मेरे ऊपर वचन बनाते थे कि बूड़ा बंस कबीर का उपजा पूत कमाल।मैंने तुम्हारी बातें सीखीं।उनको लोगों तक पहुंचाया।और लोग आए दिन मुझे पीट रहे हैं।तुम्हारे वचन कोई नहीं समझ रहा।।ऐसा ही रहा तो एक दिन लोग मुझे मार डालेंगे और तुम्हारा वचन सच हो जाएगा।तुम्हारा वंश डूब जाएगा।
हुआ क्या! पूछा कबीर ने।
यह हुआ,बता रहा है कमाल।तुम कहते हो ना कि अरे इन दोउन राह न पाई।दोनों ने राह पा ली है।बल्कि दोनों की राह एक हो गयी है।दोनों  मिल गये हैं।सियासत में दोनों  का एक ही मक़सद हो गया है।जो लोग नुमाइंदगी कर रहे हैं वे लोग यह कहते हुए डरते हैं।तुम नहीं डरे।मुझसे भी कहा कि मत डरो।मैं नहीं डरा।आज बाज़ार में दोनों तबके के लोगों को समझा रहा था।घर की चकिया वाला सुनाया।फिर ता चढ़ि मुल्ला बांग दे वाला सुनाया।दोनों तबकों ने बराबर कथा सुनी।फिर एक पंडित और एक मुल्ला की सदारत में दोनों ने बराबर बराबर दक्षिणा दी।साहिब ने बचा लिया।बच के भागा वरना इतनी दक्षिणा मिलती कि जीवन की झोली फट जाती।चलो यहां से भाग चलते हैं।तुमने जो सिक्के मुझे दिए हैं वे दुनिया में चलते ही नहीं।तुम्हारी बुनी चादरों में माल लपेट कर लोग भागे जा रहे हैं।
कमाल की तीमारदारी करते हुए कबीर ने साहिब से कहा कि बेटा,तो क्या अब मेरी ज़रूरत किसी को नहीं।क्या मेरे सपनों का कोई मतलब नहीं।मैंने सुना कि किसी बड़े आदमी ने सपने देखने की हिमायत की थी। कहा था कि सपने वे होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।इसीलिए तो मैंने कहा कि सबको बदलने के लिए सपना देखना चाहिए।
साहिब ने कमाल के माथे पर हाथ रखा।चचा, आप बहुत भोले थे।वक्त बदलता है तो सब बदलता है।सपने भी।ज़िंदगी भी।सपने क्या होते हैं मुझसे सुनिए।आज की हकीकत सुनिए।
सपने वे होते हैं जिनको पूरा करने के लिए आप पूरे मुल्क को चैन से सोने नहीं देते।बस एक बार सपना आ जाए कि सबको पछाड़ कर आगे निकलना है।फिर ऐसा धोबीपछाड़ कि शराफत के कपड़े तार तार।कोई शरीफ आगे निकल भी नहीं सकता।शरीफ को शरीफा मानकर कोई भी गपक लेता है।
सबसे पहले लंगड़ी मारकर कुछ लोगों को लंगड़ा बनाना।फिर उनको  मंडल या कमंडल थमा देना।खुद अपार शब्दों के भंडार की चाभी थाम लेना ।क्योंकि बातें हैं बातों का क्या।हमारे लोग बातपसंद हैं।बातें अच्छी करने वाले लोग जेब काट ले जाते हैं।बल्कि बातों पर रीझकर अगला ख़ुद कह उठता है कि भाई ये लो कैंची और कतर लो।
चचा,जेब काटने वाला महात्मा ही मुल्क की आत्मा पहचानता है।कुछ ऐसा घट रहा है कि भयानक दलदल में धंस रहा आदमी भी किनारे पर हो रहे तमाशे का मज़ा ले रहा है।
कबीर परेशान हुए।तो क्या,हमारे जैसे लोगों के समझाने बुझाने का कोई असर नहीं हो रहा?साहिब हंसा।रोना हर समय इसी का है।कि यह किताब पढ़ो,यह सीखो,वह जानो।मगर फैसला जाति बिरादरी पर ही होता है ।तो खेल शुरू।जाति धरम,मजहब इलाका  सबको बेचना शुरू।जिसका माल नहीं बिका वो ईमानदार।बिक गया तो सब बेचने का हुनर आ गया ।सबसे बिकाऊ माल है धरम ...इन्सानियत।आदमी मर जाए... मिट जाए मगर धरम न  मिटे।मजहब रहना चाहिए ।भले ही मदरसों में घुसकर फूल जैसे मासूमों को लोथड़ों में बदल दिया जाए ।यही सिखाया है हमें मिटाने वालों ने।
कबीर की आंखें भर आईं।मजहब तो ख़िदमत के लिए है।अब कमाल हंस पड़ा।अब्बा,ख़ूब ख़िदमत हो रही है।बिक रही है।बिके कैसे! यह सवाल है।लिहाजा वह मजहबी पागलपन की डलिया में सजाई जाती है।फिर बाज़ार दरबार में पेश  की जाती है।
कबीर ने पूछा,कमाल बेटा यह मजहबी पागलपन क्या है?कमाल की आंखों में दर्द दिखा।तो सुनो वह है चुपके चुपक आग लगाने का मंतर।वह है सामने वाले को नाली के कीड़े की तरह देखने की सलाहियत ।ऐसा कुछ दानिशमंद लोगों ने बताया।...ख़िदमत की बिक्री ठीक हो जाए तो पैसा भी इज़्ज़त भी।
कबीर बुदबुदाए।धरम और मज़हब ये सब कर रहे हैं तो हमारे रहनुमा क्या कर रहे हैं! 
चचा,वे ख़्वाबों की खेती कर रहे हैं।सपनों का सोना दिखाकर अवाम को ललचा रहे हैं।वे
एक एक कर होशियारी की पेटी से निकालते हैं सपने।वायदों की बीन पर झुमाते हैं ।अवाम  का मन डोल रहा है।तन डोल रहा है।मन की बात वाली धुन बीन पर बज रही है।तन डोलने के लायक बचा है अभी।आगे का पता नहीं।बचेगा कि नहीं।कुछ लोग तन कर खड़े हैं।उनके लिए सियासत और मजहब मिलकर इंतेज़ाम कर रहे हैं।कुछ दिक्कत तो होगी।सबसे ज़्यादा ज़रूरी है शरम लिहाज का खत्म होना।आंख का पानी मरते मरते मरता है।उन लोगों का कहना है कि हमने एक ऐसी करिश्माई  दवा मंगाई है कि बच्चों के पैदा होते ही,या सियासत में दाखिल होते ही या मजहब और धरम की दुकान खोलते ही उनकी आंखों को पिला दी जाएगी।फिर कैसे सपने आएंगे,इसका तसव्वुर किया जा सकता है।आप ही बताओ।
...कबीर कहीं दूर देखने लगे।तब तो ऐसे सपने निकल के आएंगे कि आदमी रात रात भर पानी पी पी कर जागेगा। कुछ दिन बाद लोग सपने देखने से डरने लगेंगे।सियासत और मजहब के लिए यह एक आरामदेह बात होगी।फिर धीरे सपने इतना अच्छा बना देंगे कि दुख और सुख में अंतर न रह जाएगा।
कमाल और साहिब कबीर की ओर देख रहे थे।कबीर बुदबुदा रहे थे कि मेरे वंश का बूड़ना तो तय है कमाल। धीरे से कमाल हंसा,मगर मैं तो ज़िंदा हूं अभी।...कबीर रोने की तरह हंसे,मेरे बच्चो! अच्छी बातें मिट जाएं तो सबकुछ डूब जाता है।फिर मैं बचूं तुम बचो,इससे क्या मतलब।मैंने पूरी ज़िंदगी कमाल को जो सिखाया...दुनिया को लेकर जो सपने देखे वह सब ख़त्म हो गया तो कबीर का वंश तो बूड़ ही गया ना!
....अब झोपड़ी में इतनी ख़ामोशी थी कि अगर चींटी के पग में नूपुर बजता तो भी साहिब सुन लेता।यह साहिब नहीं।कोई और साहिब।यह साहिब तो कमाल से लिपट कर सिसक रहा था।और कबीर चरखे से लिपट कर रो रहे थे।

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...