Wednesday 9 October 2013

अकेलेपन का आनंद

केले होकर स्वयं का सामना करना भयावह और दुखदाई हैऔर प्रत्येक को इसका कष्ट भोगना पड़ता है। इससे बचने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिएमन को वहां से हटाने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए और इससे बचने के लिए भी कुछ नहीं करना चाहिए। हर एक को इस पीड़ा को भोगना होगा और इससे गुजरना होगा। यह कष्ट और यह पीड़ा एक अच्छा संकेत है कि तुम एक नये जन्म के नजदीक होक्योंकि हर जन्म के पूर्व पीड़ा अवश्यंभावी है। इससे बचा नहीं जा सकता और इससे बचने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तुम्हारे विकास का एक आवश्यक अंग है। लेकिन यह पीड़ा क्यों होती है?इसे समझ लेना चाहिए क्योंकि समझ इससे गुजरने में मददगार होगीऔर यदि तुम इसे जानते हुए इससे गुज़र सके तब तुम अधिक आसानी से और अधिक शीघ्रता से इसके बाहर आ सकते हो।
जब तुम अकेले होते हो तो पीड़ा क्यों होती हैपहली बात यह है कि तुम्हारा अहंकार बीमार हो जाता है। तुम्हारा अहंकार तभी रह सकता है जब तक दूसरे हैं। यह संबंधों में विकसित हुआ हैयह अकेले में जी नहीं सकता। इसलिए यदि ऐसी स्थिति आ जाए जिसमें यह जी ही नहीं सकतातो यह घुटन महसूस करने लगता हैउसे लगता है कि यह मृत्यु के कगार पर है। यह सबसे गहरी पीड़ा है। तुम ऐसा महसूस करते हो जैसे तुम मर रहे हो। लेकिन यह तुम नहीं हो जो मर रहे होयह केवल तुम्हारा अहंकार हैजिसे तुमने स्वयं होना मान लिया हैजिसके साथ तुम्हारा तादात्म्य हो गया है। यह जिंदा नहीं रह सकता क्योंकि यह तुम्हें दूसरों के द्वारा दिया हुआ है। यह एक योगदान है। जब तुम दूसरों को छोड़ देते हो तब तुम इसे ढो नहीं सकते।
 
इसलिए अकेलेपन मेंतुम जो भी अपने बारे में जानते होसब गिर जाएगाधीरे-धीरे वह विदा हो जाएगा। तुम अपने अहंकार को कुछ समय के लिए लम्बा खींच सकते हो -- और वह भी केवल तुम्हें अपनी कल्पना द्वारा करना होगा -- लेकिन तुम इसे बहुत लम्बे समय तक नहीं खींच  सकते। समाज के बिना तुम्हारी जड़ें उखड़ जाती हैंजमीन नहीं मिलती जहां से जड़ों को भोजन मिल सके। यही मूल पीड़ा है।
 
तुम्हें यह भी निश्चित नहीं रहता कि तुम कौन हो: तुम एक फैलते हुए व्यक्तित्व मात्र रह गए हो,एक पिघलते हुए व्यक्तित्व। लेकिन यह अच्छा हैक्योंकि जब तक तुम्हार झूठा  व्यक्तित्व समाप्त नहीं होतावास्तविक प्रकट नहीं हो सकता। जब तक तुम फिर से पूरी तरह धुल नहीं जाते और स्वच्छ नहीं हो जातेवास्तविकता प्रकट नहीं हो सकती।
इस झूठ ने सिंघासन पर कब्जा जमा लिया है। इसे वहां से हटाना होगा। एकांत में रहने सेजो भी झूठ है सब समाप्त हो जाता है। और जो भी समाज द्वारा दिया गया हैसब झूठ है। वास्तव में,जो भी दिया गया हैसब झूठ हैऔर जो भी जन्म के साथ आया हैसत्य है। जो भी तुम स्वयं अपने तईं जो हो,  जो किसी दूसरे द्वारा दिया नहीं गया हैवास्तविक हैप्रामाणिक है। लेकिन झूठ को जाना चाहिए और झूठ में तुम्हारा बहुत अधिक निवेश है। इसमें तुमने इतना अधिक निवेश कर रखा हैतुम इसकी इतनी देख-भाल करते हो: तुम्हारी सारी आशाएं इसी पर टगीं हैं इसलिए जब यह घुलने लगता हैतुम भयभीत हो जाते होडर जाते हो और कांपने लगते हो: "तुम स्वयं के साथ क्या कर रहे होतुम अपना सारा जीवनसारे जीवन का ढाचा नष्ट कर रहे हो।'भय लगेगा। लेकिन तुम्हें इस भय से गुजरना होगा: तभी तुम निडर हो सकते हो। मैं नही कहता कि तुम बहादुर हो जाओगेनहींमैं कहता हूं तुम निडर हो जाओगे।
बहादुरी भी भय का ही एक हिस्सा है। तुम कितने ही बहादुर होभय पीछे छिपा ही रहता है। मैं कहता हूं, "निडर'। तुम बहादुर नहीं हो जातेजब भय न होबहादुर होने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। बहादुरी और भय दोनों अप्रसांगिक हो जाते हैं। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए तुम्हारे बहादुर आदमी सिवाय इसके कि तुम सिर के बल खड़े हो और कुछ नहीं हैं। तुम्हारी बहादुरी तुम्हारे भीतर छिपी है और तुम्हारा भय सतह पर हैउनका भय भीतर छिपा हुआ है और उनकी बहादुरी सतह पर है। इसलिए जब तुम अकेले होते होतुम बहुत बहादुर होते हो। जब तुम किसी चीज के विषय में सोचते रहते होतुम बहुत बहादुर होते होपरंतु जब वास्तविक स्थिति आती हैतुम भयभीत हो जाते हो।
 
कोई निडर केवल तभी हो सकता है जब सभी गहरे भयों से गुजर चुका हो -- अहंकार को विसर्जित कर चुका होअपनी छवि को विसर्जित कर चुका होअपना व्यक्तित्व विसर्जित कर चुका हो। यह मृत्यु है क्योंकि तुम नहीं जानते कि इससे कोई नया जीवन उभरने वाला है। इस प्रक्रिया के दौरान तो तुम्हें केवल मृत्यु का अनुभव होगा। वह तो तुम जैसे हो--एक झूठे व्यक्तित्व की तरहमर जाओगेकेवल तभी जान पाओगे कि मृत्यु तो मात्र अमरत्व के लिए एक द्वार थी। लेकिन यह अंत में घटेगाप्रक्रिया के दौरान तो तुम केवल मरने का अनुभव करोगे।
वह हर वस्तु जिसको तुमने इतना प्यार किया हैतुमसे दूर कर दी जाएंगी -- तुम्हारा व्यक्तित्व,तुम्हारी धारणाएंवह सब जो तुमने सोचा था कि सुंदर है। सब कुछ तुम्हें छोड़ जाएगा। तुम पूर्ण रूप से उघाड़ दिए जाओगे। तुम्हारी सभी भूमिकाएं और तुम्हारे सभी आवरण छीन लिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में भय होगालेकिन यह भय मूल हैआवश्यक और अपरिहार्य है -- हर एक को इससे गुजरना पड़ता है। तुम्हें इसे समझना चाहिए परंतु इससे बचने का प्रयास नहीं करना चाहिएइससे भागने का प्रयत्न मत करो क्योंकि भागने का हर प्रयास तुम्हें फिर वापस ले आएगा। तुम फिर व्यक्तित्व में वापस लौट जाओगे।


(सौजन्‍य से : आोशे इंटरनेशनल न्‍यूज लेटर)

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