Sunday 22 January 2023

पश्चिम में स्त्री-विमर्श और स्त्री-लेखन

यूरोप में 15वीं सदी के इतालियन रैनेसां की चरम परिणिति 18वीं सदी के ज्ञान-प्रसार आंदोलन के रूप में हुई, जिस दौर में बुद्धिवाद चिंतन के केंद्र में आ गया तथा सभी परंपरागत संस्थानों को चुनौतियाँ दी गयी l इसी काल में अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियाँ हुई l स्त्री-मुक्ति आंदोलन की शुरुआत अमेरिका में हुई उसके बाद १८५९ में पीटर्सबर्ग में अगला आंदोलन हुआ l १९०८ में ‘विमेंस फ्रीडम लीग’ की स्थापना ब्रिटेन में हुई l जापान में इस आंदोलन की शुरुआत १९११ में हुई, १९३६ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मैडम क्यूरी सहित तीन महिलाएँ फ्रांस में पहली बार मंत्री बनी l इस प्रकार विश्व के अनेक देशों में इस आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन १९५१ में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने जब भारी बहुमत से स्त्रियों की राजनितिक अधिकारों का नियम पारित किया, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्त्री-मुक्ति की आंदोलन का प्रारम्भ तभी से माना जाता हैl

संगठित स्त्री-आंदोलन की शुरुआत फ्रांसीसी क्रांति के दौरान ही हुई थी जब स्त्रियाँ समस्त राजनितिक जन-कारवाइयों में खुलकर हिस्सा ले रही थी l उसी समय स्त्री-अधिकारों के लिए संघर्ष को समर्पित पहली पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था और ‘विमेंस रिवोल्यूशनरी क्लब’ का भी गठन हुआ था जो संभवतः आधुनिक विश्व इतिहास के प्रथम स्त्री-संगठन थे l इन संगठनों ने क्रन्तिकारी संघर्षों में भाग लेते हुए यह माँग की कि स्वतंत्रता,समानता को किसी प्रकार के लिंगभेद के बिना लागू किया जाना चाहिए l

हालांकि फ्रांसीसी क्रांति के नेतृत्व ने स्त्री-पुरुष समानता और स्त्रियों के सामान अधिकारों के विचार को अस्वीकार कर दिया,लेकिन इस युगान्तरकारी क्रांति ने सामंती संबंधो पर चोट करने  के साथ ही स्त्रियों की कानूनी स्थिति में कई महत्वपूर्ण बदलाव किये l १७९१ के एक कानून द्वारा स्त्री-शिक्षा का प्रावधान,१७९२ की एक आज्ञप्ति द्वारा स्त्रियों को कई नागरिक अधिकार प्रदान करना तथा १७९४ में कन्वेंशन द्वारा पारित एक कानून द्वारा तलाक की प्रक्रिया को आसान बना देना ऐसे कुछ प्रमुख कदम थे l लेकिन थर्मिडोरियन प्रतिक्रिया के दौरान स्त्री-आंदोलन की ये उपलब्धियाँ एक बार फिर छीन गयी l १८०४ के नेपोलियनिक कोड और अन्य यूरोपीय देशों की ऐसी ही बुजुर्रआ नागरिक संहिताओं ने एक बार फिर स्त्रियों के नागरिक अधिकारों को अति सिमित कर दिया तथा परिवार,शादी,तलाक,अभिभावकत्व और संपत्ति के अधिकारों के मामलों में उन्हें एक बार फिर वैधिक तौर पर पूरी तरह पुरूषों के अधीन कर दियाl

इसी काल में मेरी वालस्टानक्राफ्ट (mary Wollstonecraft) की प्रसिद्ध पुस्तक “विंडीकेशन आफ टी राइट्स आफ वीमेन”,1792 (vindication of the Rights of Women) प्रकाशित हुई,जिसे आधुनिक काल में नारीवाद विचारों की सबसे पहली महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में स्वीकारा जाता है l उस दौर में और भी कई लेखकों ने यूरोप में स्त्रियों के अधिकारों के बारे में छोटी-बड़ी पुस्तकें लिखी l मेरी वालस्टानक्राफ्ट ने मूलतः स्त्रियों के बारे में रूसो के विचारों पर कड़ा प्रहार करते हुए यूरोप का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था l वे समाजवादी नहीं थी,क्योंकि उन्होंने आर्थिक व्यवस्था पर चर्चा नहीं की थी,लेकिन उनके लेखन में इस बात पर लगातार बल दिया गया था की किसी भी अच्छी समाज व्यवस्था का समाज में भारी असमानता के साथ कोई मेल नहीं हो सकता l

 उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भिक तीन दशकों के दौरान यूरोप में सक्रिय स्त्री स्वच्छंदतावादी (रोमांटिक) लेखिकाओं के लेखन को यदि देखा जाए तो उनमें उस समय के स्त्री-आंदोलन का प्रगतिशील पहलू और उसकी सीमाएँ-दोनों ही स्पष्ट नज़र आती है l

अन्ना सीवार्ड,हेलेन मारिया विलियम्स,मेरी हेज़ अन्ना,जोअन्ना बेली,हन्ना मोर,फेनी बर्नी,जेन टेलर,डोरोथी वर्ड्सवर्थ,मेरी लैम्ब,मेरी शेली आदि चर्चित स्त्री- स्वच्छंदतावादी लेखिकायें स्त्री-शिक्षा,स्त्रियों की पारिवारिक-सामाजिक स्थिति आदि प्रश्नों को उठाती हुई एक ओर जहाँ मेरी वालस्टानक्राफ्ट की परंपरा को विस्तार दी रहीं थी,वहीँ दूसरी ओर उनकी लेखन में स्त्री-समुदाय की मुक्ति-आकांक्षाओं का प्रमुख स्वर है l वे स्त्री-अस्मिता के प्रश्नों को अपने लेखन के माध्यम से उठा रही थी l

18वीं सदी के अंतिम दिनों तथा 19वीं सदी में मेरी वालस्टानक्राफ्ट,काल्पनिक समाजवादियों,विलियम थाम्पसन,जेम्स मिल से लेकर सेनेकाफाल कन्वेंशन तथा जॉन स्टूअर्ट मिल तक के प्रारंभिक नारीवादियों ने स्त्रियों के जनतांत्रिक अधिकारों की माँग उठायी थी,19वीं सदी के अंत तक उनमें से अधिकांश मांगों को ब्रिटेन तथा अमेरिका में कानूनी तौर पर मान लिया गया था l स्त्रियों में शिक्षा का विस्तार हुआ,तथा वे ऑफिस एवं अदालतों में काम करने लगी l 19वीं सदी के अंत तक विभिन्न विषयों पर कानून पारित किये गए जिनमें मुख्यतः स्त्रियों से जुडी समस्याओं को उठाया गया l लेकिन 19वीं के अंत तक स्थिति यह बन गयी थी कि स्त्रियाँ अब राजनीतिक बहसों से बाहर नहीं रह गयी थी l घरों के बाहर,विभिन्न प्रकार के संगठनों में स्त्रियाँ हिस्सा लेने लगी थी l ऐसे परिवेश में मतदान का वह अधिकार जिसे एक भारी क्रन्तिकारी माँग के रूप में पेश किया गया था,अब जनतांत्रिक अन्दोलन की एक बहुत ही स्वाभाविक माँग के रूप में सामने आ गया l

    19वीं सदी तक आते-आते स्त्रियों के लिए समान अधिकार की माँग एक प्रमुख राजनितिक प्रश्न की शक्ल लेने लगी l शिक्षा,कानून,राजनीति आदि तमाम क्षेत्रों में एक आंदोलन सा शुरू हो गया तथा स्त्रियों के लिए मतदान के अधिकार की माँग ने एक जन-अभियान का रूप ले लिया l इस दौर के प्रमुख स्त्रीवादी विचारकों में मुख्य रूप से इंग्लैंड के जॉन स्टूअर्ट मिल तथा उनकी पत्नी हेरीएट टेलर तथा अमेरिका की एलिजाबेथ केडी का नाम उल्लेखनीय है,जिनके लेखन में इस पूरे दौर के स्त्रीवादी सोच की सभी प्रमुख बातें निहित है l एलिजाबेथ केडी सिर्फ लेखिका ही नहीं बल्कि अमेरिका में हो रहे स्त्री-आंदोलन की एक सक्रिय कार्यकर्ता भी रह चुकी हैं l 19वीं सदी के अंत तक आते-आते,यूरोप में स्त्री-केन्द्रित चिंतन और सामाजिक आंदोलनों ने एक ऐसी शक्ल अख्तियार कर ली थी,जिसमें से स्त्री-मुक्ति के परवर्ती सभी प्रकार के सोच के श्रोत को पाया जा सकता है l

  20वीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटेन और अमेरिका के स्त्री-आंदोलन के लिए मतदान का अधिकार एक प्रमुख माँग बन गया था l इस दौरान स्त्री और पुरुष दोनों को मतदान का अधिकार नहीं था,ज़ाहिर सी बात है की स्त्रियों को मतदा का अधिकार का प्रश्न सार्थक मताधिकार की माँग के साथ अभिन्न रूप से जुड़ जाता l

स्त्रीवाद के नये आयाम  :

क्रिस्टाबेल पैंकहर्स्ट

ब्रिटेन की स्त्रीवादी नेता, क्रिस्टाबेल पैंकहर्स्ट ( Christabel Pankhurst ) को स्त्रीवाद की आधुनिक सेक्स-केन्द्रित धारा का एक मूल श्रोत कहा जाता है l इन्होंने समाज के प्रगतिशील तबको के बीच पाये जानेवाले ‘पुरुष-श्रेष्ठता’ के तत्वों को देखा था और इसी के आधार पर वे इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि,सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में सबसे मूल बाधा,पुरूषों द्वारा स्त्रियों को गुलाम बनाया जाना है l क्रिस्टाबेल पैंकहर्स्ट ने भी स्त्रियों के गुलामी के लिए पुरूषों पर उनकी आर्थिक निर्भरता को ज़िम्मेदार बताया l इनका अलग से एक महिला पार्टी था, इन्होंने यह नारा लगाया की स्त्रियों को भी मतदान का अधिकार मिले तथा पुरूषों को सतीत्व का पालन करना चाहिए l

सिमोन द बोउवार

आधुनिक स्त्री-आंदोलन में सिमोन द बोउवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है l उनकी पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स’ जिसका हिंदी अनुवाद ‘स्त्री-उपेक्षिता’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है l उन्होंने अपने अध्ययन में यही दिखाया है की स्त्री पैदा नहीं होती,बल्कि बनायी जाती है l इस पुस्तक में अस्तित्ववादी विचारों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है l सिमोन ने आधुनिक स्त्रीवादी विचारधारा की आधारशिला रखी जिसमें स्त्री-मुक्ति के अनिवार्य शर्त के रूप में स्त्री को अपने स्त्रीत्व से मुक्त होना बताया गया l  

बेट्टी फ्रीडेन

60 के दशक में एक विस्फोट की तरह पश्चिम में जिस नए स्त्रीवाद का जन्म लिया, उनमें बेट्टी फ्रीडेन का महत्वपूर्ण स्थान है l उनकी पुस्तक “The Feminine Mystique”,१९६३ में प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिकी समाज में स्त्रियों की स्थिति पर गहरा असंतोष व्यक्त किया है l उनका कहना है की इस युद्ध के बाद अमेरिका में स्त्रियों को यह यकीन दिलाया जा रहा था की उनका जीवन घर के चारदीवारों में ही सुखी है l फ्रीडेन में परंपरागत नैतिकता का गहरा बोध था ,उन्होंने अपने पुस्तक के ज़रिये अमेरिकी स्त्रियों के खिलाफ बुने जा रहें रहस्यों को तोड़ा तथा उन्होंने अमेरिकी स्त्रियों को चारदीवारी से स्वतंत्र करने का प्रयास किया l

अमेरिका तथा यूरोप के सभी देशों में स्त्रीवादी आंदोलन के एक नए दौर का प्रारंभ हुआ जिसे स्त्रीवाद के इतिहास में दूसरी लहर के रूप में जाना जाता है l दूसरी लहर की देन लिसे वोगेल को दिया जाता है , लिसे स्त्रीवादी नेता तथा सिद्धांतकार है l वोगेल लिखती हैं कि –

“आमतौर पर यह नारी-मुक्ति आंदोलन ‘काली या मजदूर वर्ग की महिलाओं को अपने संगठन की ओर बहुत अधिक आकर्षित नहीं कर सका था,लेकिन नारी-मुक्ति आंदोलन के प्रयास इस ओर जारी थे तथा वे इन महिलाओं को शामिल करना सबसे ज़रूरी समझते थे l पीटी गयी महिलाओं के शरण-स्थल,निकट सम्बन्धियों द्वारा शारीरिक हमलों से बचाव की होटलाइन,बलात्कार सम्बन्धी मामलों के केंद्र,महिलाओं के स्वास्थ्य केंद्र,काम के स्थलों पर विभिन्न प्रकार के अभियानों आदि से स्थानीय इलाकों की कुछ गरीब और मजदूर वर्ग की महिलाओं को भी लाभ मिला l कई जगहों पर नारी-मुक्ति के समूहों में सिर्फ मजदूर वर्ग की महिलाएँ ही थी l काली विद्रोही महिलाओं की एक छोटी,किन्तु महत्वपूर्ण संख्या ऐसी थी जो नस्ल और वर्ग के आधार पर गुलामी की सच्चाई से इंकार न करते हुए भी अपने को नारीवादी कहती थी l”[1]  

इस प्रकार वोगेल ने नए विद्रोहों तेवर के साथ स्त्रीवाद की विभिन्न धाराओं का बहुत ही सजीव चित्र पेश करने का प्रयास किया है l

        निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है की साहित्यिक क्षेत्र में स्त्री-लेखन की एक सशक्त भूमिका रही है l स्वतंत्रता के पूर्व की लेखिकाओं ने व्यक्ति स्वातंत्र्य का समर्थन करते हुए सामाजिकता को महत्व दिया और स्वातंत्र्योत्तर लेखिकाओं के रचनाओं में मनोविश्लेषण,व्यक्तिवाद आदि को महत्व दिया l समय के साथ इस जीवन में स्त्री को हमेशा शोषित होआ पड़ा है,कष्टों को झेलना पड़ा है l इस शोषित और पीड़ित स्त्री के जीवन यथार्थ को वाणी देने का प्रयास स्त्री-लेखन ने किया हैं l इन लेखिकाओं ने स्त्री-सम्बन्धी समस्याओं को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया तथा विश्लेषित भी किया है l

   स्त्री-लेखन अपनी तमाम खूबियों और खामियों के बावजूद आधी दुनिया को अपनी रचनाओं में बड़ी खूबसूरती के साथ उपस्थित किया है l लेखिकाओं ने महज स्त्री-जीवन पर ही नहीं लिखा है,बल्कि जीवन की तमाम संवेदनाओं पहलुओं को अभूतपूर्व ढंग से कई मायनों में पुरुष रचनाकारों से ज्यादा कामयाबी हासिल की हैं l स्त्री-लेखन की शुरुआत ऋग्वेद से पूर्व हो चुकी थी,लेकिन उन्हें दर्शाया नहीँ गया l सन १९६० के बाद ही स्त्री-लेखन सक्रिय रूप में उभरा है l बदलते सन्दर्भ,अर्थतंत्र का दबाव,शिक्षा-प्रसार,स्त्री-जगत में अस्मिता का साक्षात्कार,विज्ञान एवं तकनीकी का आविष्कार आदि विभिन्न कारणों से पुराने मूल्यों का विघटन होकर वहाँ नए मूल्य विकसित हो रहे हैं l परिवर्तित मूल्यों ने जहाँ एक ओर वैवाहिक मान्यताओं में बदलाव उपस्थित किया है,वहीँ दूसरी ओर दाम्पत्य जीवन में अनेकानेक समस्याओं को प्रस्तुत किया हैं l संबंधों के इस बदलाव ने व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बना दिया है पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन में एक बिखराव तथा टूटन की स्थितियाँ उत्पन्न हो गयी है l स्त्री के अवलोकन बिंदु से स्त्री-जीवन की विविध समस्याओं को साहित्य में लेखिकाओं ने अंकित किया है l

स्त्री के समक्ष जीवन का सारा ताना-बाना सामाजिक और धार्मिक बन्धनों का है,अत: बहुत स्वाभाविक है की इस स्त्री का रचना संसार ‘मैं’ की भावात्मकता से बहुत दूर नहीं निकल पाया है l स्त्री का ‘मैं’ प्रेम के विस्तार,आस-पास की घटनाएँ,घर-परिवार से जुडी समस्यायें ही बहुधा इनका लेखन क्षेत्र है l वैदिक काल के बाद बौद्धिक काल ,फिर एक लम्बी चुप्पी के बाद औद्योगिक काल में नारी-अधिकार और नारी-स्वातन्त्र्य को लेकर स्त्रियाँ मुखे हुई हैं l

  आज के स्त्री-रचनाकारों में कहानी,उपन्यास तथा कविता- ये तीन विधायें प्रमुख: स्वीकृत हैं l भारतीय सन्दर्भ में यदि देखा जाए तो स्त्री-लेखन की शुरुआत थेरीगाथा से शुरू हुई है और आज के आधुनिक काल तक आते-आते स्त्रियों ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और रचना-संसार में अपना वर्चस्व बनायें रखा हैं , चाहे वह कहानी-संग्रह हो या उपन्यास लेखन या और कोई भी रचना-विधा हो l उन्होंने स्त्रियों की समस्याओं का मुद्दा लेकर अपने रचना के माध्यम से उन्हें विस्तृत रूप से चित्रण करने का प्रयास किया हैं l आज भी स्त्री-रचनाकारों को चुनौती का सामना करना पड़ता हैं l कठिनाईयों का सामना करते-करते उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता पायी हैंl


सन्दर्भ ग्रन्थ सूचि:

1.  नारी प्रश्न – डॉ.सरला माहेश्वरी

2.  लमही,पत्रिका – सं.डॉ.विजय राय

3.  स्त्री-लेखन:स्वप्न और संकल्प – डॉ.रोहिणी अग्रवाल

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[1] नारी-प्रश्न , सरला माहेश्वरी – पृष्ठ सं – ४०


प्रस्तुतकर्ता: राज्य लक्ष्मी (ph.d)

हैदराबाद विश्वविद्यालय, ph. 9866041833,

Email- rsreenasingh62@gmail.com.

Sunday 1 January 2023

वर्ष 2022 और थर्ड जेंडर विमर्श

थर्ड जेंडर विमर्श साहित्य में आज अपना स्थान भली-भांति निर्धारित कर चुका है। लगभग बीस वर्षों का कालखंड किसी विमर्श की स्थापना, प्रसार-सौष्ठव और समृद्धि के लिए अधिक नहीं तो कम भी नहीं कहा जा सकता। तेज़ी से बदलती दुनिया के इस भाग-दौड़ भरे दौर में नयी सोच-नये तेवर सामने रहे हैं। साहित्य की प्रत्येक विधा में प्रयोग होते रहे हैं। यदि इन प्रयोगों से कोई नया रास्ता निकलता है तो सफलता प्राप्ति की दर बढ़ जाती है और धीरे-धीरे यही दर सर्जनशीलता को बढ़ावा दिया करती है। कला के किसी भी रूप के लिए सबसे अधिक ज़रूरी हैसर्जनात्मक आवृत्ति प्रसन्नता की बात है कि थर्ड जेंडर विमर्श (एलजीबीटी विमर्श) ने पिछले सात-आठ वर्षों के अंतराल में अपनी इस सर्जनात्मक आवृत्ति को बनाए और बचाए रखा है। पिछले वर्षों में थर्ड जेंडर विमर्श पर प्रचुर मात्रा में कृतियाँ प्रकाशित होती रही हैं। थर्ड जेंडर की अस्मिताओं का अंकन इन कृतियों का मूल अभीष्ट है। थर्ड जेंडर साहित्य लोकचेतना का शाब्दिक रेखांकन है। मानवीय अस्तित्व की प्रवृत्तियाँ अपनी चेतना के साथ लोक में विद्यमान रहती हैं। समय आने पर वे अपना प्रभाव भी दिखलाया करती हैं। थर्ड जेंडर विमर्श (एलजीबीटी विमर्श) इन्हीं प्रवृत्तियों को संवेदना के स्तर पर अनुभव कर पाने का और चेतना के स्तर पर लाकर प्रामाणिकता के साथ प्रदर्शित कर पाने का नाम है।

वर्ष 2022 भी वर्ष 2021 की तरह इसी परम्परा को जीवंत बनाए रखने में सहायक रहा है। इस वर्ष भी विभिन्न विधाओं पर अनेक कृतियाँ हमें थर्ड जेंडर विमर्श पर केन्द्रित प्राप्त हुई हैं, जिनका एक संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत करने का यहाँ प्रयास किया गया है।(हो सकता है कुछ कृतियाँ देखने से रह भी गई हों, अतः प्रस्तुत आलेख में परिवर्द्धन की गुंजाइश भी बाकी रहती है।)

 


उपन्यास अपनी पठनीयता के कारण आज भी साहित्य की सबसे प्रसिद्ध विधा रही है। थर्ड जेंडर विमर्श आधारित उपन्यासों में इस वर्ष कुल पांच उपन्यास प्रकाशित हुए। राकेश शंकर भारती काज़िंदगी एक जंजीरडायमंड पॉकेट बुक्सनई दिल्ली से आया है। यह उपन्यास एक साथ ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स के कथानक को सामने लाता है। ट्रांसमैन जनकदेव से जानकी बनने का अन्तर्द्वन्द्व इस उपन्यास में दर्शाया गया है। ट्रांसमैन के हार्मोन्स लेने के  फलस्वरुप उसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का वर्णन भी इस उपन्यास में मिलता है। डार्क डेस्टिनीडॉ. राजकुमारी द्वारा लिखित है जिसका प्रकाशन देवसाक्षी प्रकाशन (हनुमानगढ़, राजस्थान) से हुआ है। यह उपन्यास अमृता नामक किन्नर की कहानी है जिसका विषमय जीवन अनेक प्रकार की समस्यायों से भरा हुआ है। जगह-जगह भटकने के बाद हिजड़ों के डेरे में वह अपना जीवन बिताती है, अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखती है और समाजसेवा में संलग्न होती है। अपने अंतर्मन के युद्ध से अमृता किस प्रकार विजय पाती है और अंत में समाज सेवा के सर्वोच्च सम्मान के लिए चुनी जाती है,यह जानना रोचक है। उल्लेखनीय यह भी है कि डार्केस्ट डेस्टिनीउपन्यास  किन्नर विमर्श, दलित विमर्श और स्त्री विमर्श को एक साथ लेकर चलता है। सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पूनम मनु का उपन्यास ब्लैंक पेपरकहानी है पुत्र मोह में डूबी एक ऐसी माँ की जो अपने समलैंगिक पुत्र की शादी ऐसी लड़की से करवाना चाहती है जो जेल से छूटकर आई है। अपने बेटे का दोष छिपाने के लिए उन्हें यह लड़की भी स्वीकार है। उपन्यास में एक कहानी और चलती है जिसमें दो लड़कियों के आपसी प्रेम को दर्शाया गया है और इसी कारण उनमें से एक लड़की को भी जेल जाना पड़ता है। इस प्रकार यह उपन्यासगेऔरलेस्बियन’; दोनों ही प्रकार के चरित्रों को सामने लाता है। रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित मालती मिश्रा के उपन्यासमंजरीमें एक भरे-पूरे परिवार में एक किन्नर बच्चे का जन्म होता है। इसके बाद उसके सामने क्या-क्या दुविधाएँ आती हैं और कैसे अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर वह आई..एस. के पद तक पहुँचता है, कहानी का मूल सार है। एक किन्नर बच्चे के साहस और स्वाभिमान को रेखांकित करता हैमंजरीउपन्यास।अमित गुप्ता का उपन्यासदेहरी पर ठिठकी धूपराधाकृष्ण पेपरबैक्स,नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। प्रेम, संघर्ष और यातना की यह कहानी वर्ष 2018 की है जो धारा 377 के हटाए जाने से पहले की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। कहानी के मुख्य पात्र श्लोक और अनुराग एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। श्लोक कार दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो जाता है। अस्पताल पहुँचने पर उसकी बहन को सारी सच्चाई का पता चलता है। बहन इस बात पर आक्रोशित हो जाती है। अनुराग के पछतावे और श्लोक की दयनीयता के साथ उपन्यास की कथावस्तु आगे बढ़ती है।

इस वर्ष थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित कुल तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। डॉ. लता अग्रवाल काहज़ार दिनारा लौंडाविकास प्रकाशन, कानपुर से आया है जिसमें कुल सोलह कहानियाँ है। इन कहानियों में किन्नरों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को दर्शाया गया है। हितेश कुमार मिश्र का उदय पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रह हैकराहजिसमें कुल छः कहानियाँ संगृहीत हैं।ये किन्नर जीवन के अलग-अलग पक्षों को दर्शाती हैं। वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रहदिल है कि चोर दरवाज़ाकिंशुक गुप्ता द्वारा लिखी गई कुल आठ कहानियों का संग्रह है जो एसेक्युअलिटी, गे और लेस्बियन पात्रों को आधार बनाकर लिखी गई हैं। थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित कविता संग्रह बहुत अधिक नहीं हैं और वर्ष 2022 में इनसे सम्बंधित एक भी कविता संग्रह नहीं प्रकाशित हुआ। छिटपुट रूप से कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के माध्यम से भले ही सामने आती रहीं हैं।

किसी भी विमर्श को धार देने में उसकी आलोचना का भी अपना विशिष्ट महत्त्व होता है। विश्वसनीयता और रचनात्मकता को साथ लेकर चलने वाली आलोचना, किसी कृति को जानने-समझने के विभिन्न पहलू सामने लाती है। इस वर्ष आलोचनात्मक पुस्तकों में कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें आई हैं। विकास प्रकाशन, कानपुर से डॉ. अभिषेक सिंह का शोधग्रंथहिंदी कथा साहित्य में ट्रांसजेंडरप्रकाशित हुआ है। कुल छः अध्यायों में विभक्त प्रस्तुत ग्रंथ किन्नर के अर्थ को दर्शाता हुआ उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर विस्तारपूर्वक बात करता है। वर्तमान समाज में किन्नरों के बदलते जीवन-मूल्यों के साथ-साथ हिन्दी उपन्यासों और कहानियों में किन्नर जीवन की सामाजिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और उनके कथ्य भाषा के अंतर्संबंधों पर प्रस्तुत पुस्तक में विवेचनापरक रूप से दृष्टि डाली गई है। लेखक का निष्कर्ष इस दिशा में भविष्य की राहें भी खोलता है,“हिन्दी साहित्य की किन्नर विमर्श रचनाओं ने भारतीय लोकतंत्र की अस्मिताओं के लिए गंभीर आत्मालोचन कर अपनी निष्पक्ष भूमिका ईमानदारी से निभाई है लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी लेखन की कई संभावनाएँ शेष हैं, जिसके लिए एक गंभीर शोध अलग से होना चाहिए।विकास प्रकाशन, कानपुर से ही प्रकाशितमैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी आत्मकथा में चित्रित किन्नर समस्याएँपुस्तक शिवानी गुप्ता की आई है जिसमें लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की आत्मकथा पुस्तकमैं लक्ष्मी मैं हिजड़ा’ (वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली) को लेखिका ने अपनी आलोचना का आधार बनाया है।आत्मकथा की कथावस्तु पर प्रकाश डालते हुए शिवानी गुप्ता ने आत्मकथा में चित्रित विभिन्न किन्नर समस्याओं को उजागर किया है और उनका समाधान भी देखने का प्रयास किया है। ग्रीष्मा एलिज़बेथ के.. द्वारा सम्पादित पुस्तकसमकालीन हिन्दी कथा साहित्य में पानजेंडर विमर्शमाया प्रकाशन, कानपुर से आई है। इसमें कुल उन्नीस आलेख और एक साक्षात्कार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पानजेंडर एक गैर द्विआधारी सम्प्रत्यय है, जिसे एक से अधिक लिंग के रूप में परिभाषित किया जाता है। एक ही समय और समाज में पानजेंडर व्यक्ति स्वयं को सभी लिंगों का सदस्य मान सकता है। इस दृष्टि से इन्हें बहुलिंगाकर्षी माना जा सकता है। परन्तु पुस्तक में अधिकांश आलेख थर्ड जेंडर विमर्श को ही उभारते हैं। पानजेंडर विमर्श को आधार बनाकर और अधिक विश्लेषण की आवश्यकता इस पुस्तक में प्रतीत होती है। प्रख्यात् पत्रकार जी. पी. वर्मा की पुस्तकबंद गली से आगेथर्ड जेंडर विमर्श पर चिंतन के नये द्वार खोलती है। प्रस्तुत पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2021 में विकास प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2022 में इसका द्वितीय संस्करण कुछ और नवीन सामग्री के साथ आया है। थर्ड जेंडर में ट्रांसमैन और ट्रांसवूमैनदोनों ही सम्मिलित हैं। पुस्तक की लंबी भूमिका में लेखक ने थर्ड जेंडर, किन्नर आदि को ऐतिहासिकता के दृष्टिकोण से भी देखा है। प्रस्तुत पुस्तक कुल पांच खंडों में विभाजित है। पहले खंडजीवन चरितमें कुल सोलह ट्रांसजेंडर्स का जीवन दर्शाया गया है। उल्लेखनीय यह भी है कि ये जीवनचरित स्वयं इन ट्रांसजेंडर्स द्वारा अपनी ही भाषा-शैली में लिपिबद्ध किए गए हैं। ये आत्मकथात्मक शैली में रचे गए हैं जिनमें ट्रांसजेंडर के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की विडंबनाएँ, विवशताएँ, विद्रूपताएँ विविध रूपों में हमारे सामने आती हैं। विद्या राजपूत, धनंजय चौहान, राज कनौजियाआर्यनरुद्रांशी, पप्पी देवनाथसंजना सिंह चौहानभैरवी अरमानीदीपिका ठाकुर आदि के विचार जानना सर्वथा एक नया अनुभव है।प्रथम अचीवर्सके अंतर्गत ट्रांस जेंडर समाज में अग्रणीय काम करने वालों की सूची दी गई है। प्रथम ट्रांसजेंडर एम.एल.. शबनम मौसी, किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी,. रेथी, कलकी सुब्रह्मण्यम, रोजी वेंकेटेशन, पद्मिनी प्रकाश, ज्योति मंडल, निष्ठा विश्वास, गंगा कुमारी, जिया दासइस्थर भारती जैसे नाम यहाँ उल्लेखनीय हैं। पुस्तक का तृतीय खंडवैधानिक स्थितिहै जिसमें ट्रांसजेंडर से सम्बंधित विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों, अधिनियमों और राजपत्रों का संग्रह किया गया है।बन्द गली से आगेथर्ड जेंडर विमर्श पर साहित्यिक और सामाजिक, दोनों ही आयामों पर खुली आँखों से देखने का सफलतम प्रयास है। जी.पी. वर्मा पत्रकारिता की जीवंत मिसाल रहे हैं। यही कारण है कि वह समाज और इसके नागरिकों की सोच तथा इसके स्पंदनों को भली-भाँति पकड़ना और महसूस करना जानते हैं।

डॉ. एम. फ़ीरोज़ खान द्वारा सम्पादित थर्ड जेंडर विमर्श पर पिछले वर्षों में अनेक उपयोगी आलोचनापरक पुस्तकें आती रही हैं। डॉ. एम. फ़ीरोज़ खान द्वारा सम्पादितथर्ड जेंडर: अतीत और वर्तमान भाग 2’ पुस्तक एक आलोचनात्मक ग्रंथ है जिसका प्रथम् संस्करण सन् 2021 में आया था और द्वितीय संस्करण सन् 2022 में आया है। इसके प्रकाशक विकास प्रकाशन, कानपुर हैं। पुस्तक में थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित कुल ग्यारह उपन्यासों पर विभिन्न विद्वान लेखकों के सोलह आलेख सम्मिलित हैं। पुस्तक में तीन साक्षात्कार भी हैं। एक वर्ष के अंतराल में किसी पुस्तक का द्वितीय संस्करण सामने आना उसकी प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि और पाठकों के प्रेम को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है। उल्लेखनीय यह भी है किथर्ड जेंडर: अतीत और वर्तमान भाग 3’ भी शीघ्र प्रकाश्य है। वरिष्ठ साहित्यकार नीरजा माधव कृतयमदीप’ (सामयिक प्रकाशन,नई दिल्ली, वर्ष 2002) थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित प्रथम उपन्यास है। इस उपन्यास ने अपने कथ्य और विशिष्ट भाषा-शैली के कारण साहित्य जगत् में पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त की।यमदीपपर आधारित समीक्षात्मक पुस्तकथर्ड जेंडर पर केन्द्रित हिंदी का प्रथम उपन्यास: यमदीपका प्रथम संस्करण वर्ष 2018 में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2022 में प्रस्तुत पुस्तक का द्वितीय और परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित हुआ है, कुछ बढ़े हुए आलेखों के साथ। इस द्वितीय संस्करण में कुल अठारह आलेख हैं। नीरजा माधव से डॉ. फ़ीरोज़ खान की बातचीत पुस्तक का विशिष्ट आकर्षण है। इसी क्रम में वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार प्रदीप सौरभ के उपन्यासतीसरी ताली’ (वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, वर्ष 2011) पर आधारितथर्ड जेंडर: तीसरी ताली का सचपुस्तक का सम्पादन डॉ. शगुफ़्ता नियाज़ ने वर्ष 2018 किया था। प्रस्तुत पुस्तक का द्वितीय और परिवर्द्धित संस्करण विकास प्रकाशन, कानपुर से इस वर्ष प्रकाशित हुआ है जिसमें कुल सोलह आलेख विभिन्न समीक्षकों द्वारा लिखे गए हैं। देवदत्त पट्टनायक एक ऐसे लेखक हैं जिन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को आधुनिक तरीके से प्रस्तुत किया है। उनकीमिथक’, ‘राम’, ‘सीता’, ‘देवलोक’ (तीन भाग) जैसी कृतियाँ धर्म के मर्म को समझने-जानने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। इस वर्ष देवदत्त पट्टनायक की नवीनतम पुस्तकधर्म और समलैंगिकतापेंगुइन इंडिया प्रकाशन, गुड़गांव से आई हैं।क्वीयर हिन्दू अलायंसएक संस्था है जो समलैंगिकता और हिन्दू धर्म के क्षेत्रों में काम करती है जिसके संस्थापक और अध्यक्ष हैं अंकित भुपताणी। उन्होंने धर्म और समलैंगिकता को लेकर देवदत्त पटनायक से अनेक महत्त्वपूर्ण सवाल किए हैं जिनके स्पष्ट और सटीक जवाब इस पुस्तक में हैं। संवादों के माध्यम से कई नये विचार पुस्तक में सामने आए हैं। समलैंगिकता क्या है? हमारा हिन्दू धर्म इसके बारे में क्या कहता है, इस्लाम,बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों में इस पर क्या दृष्टिकोण हैं; इन सबके उत्तर इस पुस्तक में मिलते हैं। प्रश्नोत्तर के माध्यम से एलजीबीटी विमर्श को जानना मनोरंजक और ज्ञानवर्धक है।

 


कुछ पत्रिकाओं ने भी थर्ड जेंडर विमर्श पर अपने विशेषांक इस वर्ष निकाले, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है लवलेश दत्त द्वारा लिखे गए उपन्यासदर्द जाने कोईपर केन्द्रितअनुसंधानपत्रिका (अलीगढ़) का विशेषांक। इसकी संपादक हैं डॉ. शगुफ़्ता नियाज़। इस विशेषांक में कुल इक्कीस आलेख विभिन्न आलोचकों द्वारा लिखे गए हैं। डॉ. लवलेश दत्त का साक्षात्कार भी इसमें दिया गया है।अनुसंधानका यह विशेषांक अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 का अंक है। गिरिधर झा के सम्पादन में प्रख्यात् समाचार पत्रिकाआउटलुक’ (नई दिल्ली) का 2 मई 2022 का साप्ताहिक अंकट्रांस नायकट्रांसजेंडर बिरादरी के विभिन्न प्रकार के सामाजिक अवदानों को सामने लाता है। अंक की आवरण कथा में राजीव नयन चतुर्वेदी प्रश्न उठाते हैं,“समाज, परिवार, सरकार सबकी उपेक्षा के शिकार ट्रांसजेंडर बिरादरी के लोगों ने अपने दर्द भरे मगर कामयाब सफर में ऐसे पताके फहराए, जिन्होंने यकीनन बेमिसाल जज, वकील, पायलट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, मॉडल, एक्टर, ब्यूटी-क्वीन जैसे हर मुकाम पर मोर्चा फतह करके साबित किया कि हम किसी से कम नहीं; क्या अब भी समाज और सरकार की उनके हक-हुकूक के बारे में आँखें खुलेंगी? देहरादून से प्रकाशितसरस्वती सुमनपत्रिका का अक्टूबर 2022 अंक किन्नर विशेषांक के रूप में आया है जिसके अतिथि संपादक किशोर श्रीवास्तव हैं। इस विशेषांक में किन्नर विमर्श पर आधारित कुल सात आलेख, छः कहानियाँ, छः लघुकथाएँ और सात कविताएँ संकलित हैं। इसके अतिरिक्त समीक्षा खंड में भगवंत अनमोल के उपन्यासज़िन्दगी 50-50’ और चित्रा मुद्गल के उपन्यासपोस्ट बॉक्स नंबर 203: नालासोपाराकी समीक्षाएँ प्रकाशित की गई हैं। इसके अतिरिक्त कुछ पत्रिकाओं ने किन्नर विशेषांक या थर्ड जेंडर विशेषांक तो नहीं प्रकाशित किए परन्तु इनसे सम्बंधित कहानियों-कविताओं और विभिन्न आलेखों को अवश्य स्थान दिया है। ये आलेख थर्ड जेंडर विमर्श पर विभिन्न दृष्टिकोणों से लिखे गए हैं।वागर्थ’ (कोलकाता), ‘वीणा’ (इंदौर), ‘सरस्वती’ (प्रयागराज), ‘अक्सर’ (जयपुर), ‘एक और अंतरीप’ (जयपुर), ‘गर्भनाल’ (भोपाल), ‘परिवर्तन’ (पुदुच्चेरी) आदि पत्रिकाओं ने समय-समय पर इस विमर्श को उपयुक्त स्थान दिया है। विभिन्न शोध पत्रिकाएँ भी समय-समय पर थर्ड जेंडर से सम्बंधित शोध आलेखों का प्रकाशन करती रही हैं।

साक्षात्कार एक उपयोगी विधा है किसी व्यक्ति को गहराई से जानने-समझने के लिए। किसी व्यक्ति के अनेक पहलू साक्षात्कार के माध्यम से पाठकों के सामने आते हैं। थर्ड जेंडर विमर्श को हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठित करने वाले डॉ. एम. फ़ीरोज़ खान द्वारा लिए गए संजना साइमन और विद्या राजपूत के साक्षात्कार महत्त्वपूर्ण हैं। इन साक्षात्कारों में उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू, उनके संघर्ष और भावी योजनाएँ सामने आई हैं। आउटलुकपत्रिका में मुख्य आकर्षण किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी का साक्षात्कार है जिसमें राजीव नयन चतुर्वेदी के प्रश्नों के विस्तार से लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने उत्तर दिए हैं।

इसके अतिरिक्त वर्ष 2022 में थर्ड जेंडर के पक्ष में अनेक अच्छी बातें हुई हैं। उनकी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को उपयुक्त रूप से सरकार ने भी पहचाना है और उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएँ भी धरातल पर लाई गई हैं। केन्द्र सरकार की ओर से किन्नरों को आयुष्मान योजना में सम्मिलित किया गया है। किन्नरों को वृद्धाश्रम में भी स्थान देने की योजना समाज कल्याण विभाग की ओर से सामने आई है। इसके अतिरिक्त थर्ड जेंडर्स ने समाज  के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रतिनिधित्व निर्धारित किया है; जिनमें चिकित्सा, पुलिस सेवा, अध्यापन आदि प्रमुख हैं। भारतीय ट्रांसजेंडर नमिता मारिमुथु ने थाईलैंड में हुए मिस इंटरनेशनल क्वीन 2022 में भारत का प्रतिनिधित्वअर्धनारीश्वररूप में किया। भगवान शिव का यह अवतार महिला-पुरुष की समानता को दर्शाता है। मितवा समिति, रायपुर की अध्यक्ष विद्या राजपूत को प्रथम कमला भसीन पुरस्कार से इस वर्ष सम्मानित किया गया। तेलंगाना के दो किन्नर डॉक्टरों प्राची राठौड़ और रुत जॉन पॉल ने हैदराबाद के सरकारी उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल में नियुक्ति पाकर सरकारी चिकित्सा सेवा में एक इतिहास रच दिया। उल्लेखनीय है कि डॉ. प्राची राठौड़ को किन्नर होने के कारण तेलंगाना के एक सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल ने नौकरी से निकाल दिया था। 29 नवंबर 2022 को बिहार सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा एक पत्र जारी किया गया जिसमें उच्च शिक्षा निदेशक द्वारा बिहार के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को  उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित किए जाने का आदेश दिया गया। थर्ड जेंडर के उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते कदमों में यह एक सहारा है।

थर्ड जेंडर विमर्श पर कुछ शोधार्थियों को इस वर्ष विभिन्न विश्वविद्यालयों ने शोध उपाधियाँ भी प्रदान की हैं जो इस विमर्श पर गवेषणा के नवीन मार्गों की खोज को और भी मजबूती प्रदान करता है। विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों में अनेक सेमिनार और वेबिनार थर्ड जेंडर विमर्श को आधार बनाकर सम्पन्न कराए गए हैं। विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं ने भी एलजीबीटी समुदाय से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन-संयोजन समय-समय पर किया।

उल्लेखनीय है कि आज थर्ड जेंडर विमर्श सहानुभूति और संवेदना के संस्पर्श से अभिव्यक्ति,अध्ययन,अनुसंधान और अधिगमन के नवीन अधिगुणी आयामों को प्राप्त कर रहा है। हमारा आज का साहित्य अपने सामाजिक सरोकारों को स्वीकार करते हुए इंद्रधनुषी रंगों से बने और बुने सतरंगी सपनों को मूर्त रूप देने का प्रयास कर रहा है। आज थर्ड जेंडर स्वयं भी अपनी अभिव्यक्तियों को विभिन्न माध्यमों से समाज के सामने ला रहे हैं। वर्ष 2022 इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय उपलब्धियों से परिपूर्ण ही कहा जाएगा।

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- डॉनितिन सेठी

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गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...