थर्ड जेंडर विमर्श साहित्य में आज अपना स्थान भली-भांति निर्धारित कर चुका है। लगभग बीस वर्षों का कालखंड किसी विमर्श की स्थापना, प्रसार-सौष्ठव और समृद्धि के लिए अधिक नहीं तो कम भी नहीं कहा जा सकता। तेज़ी से बदलती दुनिया के इस भाग-दौड़ भरे दौर में नयी सोच-नये तेवर सामने आ रहे हैं। साहित्य की प्रत्येक विधा में प्रयोग होते रहे हैं। यदि इन प्रयोगों से कोई नया रास्ता निकलता है तो सफलता प्राप्ति की दर बढ़ जाती है और धीरे-धीरे यही दर सर्जनशीलता को बढ़ावा दिया करती है। कला के किसी भी रूप के लिए सबसे अधिक ज़रूरी है ‘सर्जनात्मक आवृत्ति’। प्रसन्नता की बात है कि थर्ड जेंडर विमर्श (एलजीबीटी विमर्श) ने पिछले सात-आठ वर्षों के अंतराल में अपनी इस सर्जनात्मक आवृत्ति को बनाए और बचाए रखा है। पिछले वर्षों में थर्ड जेंडर विमर्श पर प्रचुर मात्रा में कृतियाँ प्रकाशित होती रही हैं। थर्ड जेंडर की अस्मिताओं का अंकन इन कृतियों का मूल अभीष्ट है। थर्ड जेंडर साहित्य लोकचेतना का शाब्दिक रेखांकन है। मानवीय अस्तित्व की प्रवृत्तियाँ अपनी चेतना के साथ लोक में विद्यमान रहती हैं। समय आने पर वे अपना प्रभाव भी दिखलाया करती हैं। थर्ड जेंडर विमर्श (एलजीबीटी विमर्श) इन्हीं प्रवृत्तियों को संवेदना के स्तर पर अनुभव कर पाने का और चेतना के स्तर पर लाकर प्रामाणिकता के साथ प्रदर्शित कर पाने का नाम है।
वर्ष
2022 भी
वर्ष
2021 की
तरह
इसी
परम्परा
को
जीवंत
बनाए
रखने
में
सहायक
रहा
है।
इस
वर्ष
भी
विभिन्न
विधाओं
पर
अनेक
कृतियाँ
हमें
थर्ड
जेंडर
विमर्श
पर
केन्द्रित
प्राप्त
हुई
हैं,
जिनका
एक
संक्षिप्त
लेखा-जोखा
प्रस्तुत
करने
का
यहाँ
प्रयास
किया
गया
है।(हो
सकता
है
कुछ
कृतियाँ
देखने
से
रह
भी
गई
हों,
अतः
प्रस्तुत
आलेख
में
परिवर्द्धन
की
गुंजाइश
भी
बाकी
रहती
है।)
उपन्यास अपनी पठनीयता के कारण आज भी साहित्य की सबसे प्रसिद्ध विधा रही है। थर्ड जेंडर विमर्श आधारित उपन्यासों में इस वर्ष कुल पांच उपन्यास प्रकाशित हुए। राकेश शंकर भारती का ‘ज़िंदगी एक जंजीर’ डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली से आया है। यह उपन्यास एक साथ ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स के कथानक को सामने लाता है। ट्रांसमैन जनकदेव से जानकी बनने का अन्तर्द्वन्द्व इस उपन्यास में दर्शाया गया है। ट्रांसमैन के हार्मोन्स लेने के फलस्वरुप उसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों का वर्णन भी इस उपन्यास में मिलता है। ‘द डार्क डेस्टिनी’ डॉ. राजकुमारी द्वारा लिखित है जिसका प्रकाशन देवसाक्षी प्रकाशन (हनुमानगढ़, राजस्थान) से हुआ है। यह उपन्यास अमृता नामक किन्नर की कहानी है जिसका विषमय जीवन अनेक प्रकार की समस्यायों से भरा हुआ है। जगह-जगह भटकने के बाद हिजड़ों के डेरे में वह अपना जीवन बिताती है, अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखती है और समाजसेवा में संलग्न होती है। अपने अंतर्मन के युद्ध से अमृता किस प्रकार विजय पाती है और अंत में समाज सेवा के सर्वोच्च सम्मान के लिए चुनी जाती है,यह जानना रोचक है। उल्लेखनीय यह भी है कि ‘द डार्केस्ट डेस्टिनी’ उपन्यास किन्नर विमर्श, दलित विमर्श और स्त्री विमर्श को एक साथ लेकर चलता है। सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पूनम मनु का उपन्यास ‘द ब्लैंक पेपर’ कहानी है पुत्र मोह में डूबी एक ऐसी माँ की जो अपने समलैंगिक पुत्र की शादी ऐसी लड़की से करवाना चाहती है जो जेल से छूटकर आई है। अपने बेटे का दोष छिपाने के लिए उन्हें यह लड़की भी स्वीकार है। उपन्यास में एक कहानी और चलती है जिसमें दो लड़कियों के आपसी प्रेम को दर्शाया गया है और इसी कारण उनमें से एक लड़की को भी जेल जाना पड़ता है। इस प्रकार यह उपन्यास ‘गे’ और ‘लेस्बियन’; दोनों ही प्रकार के चरित्रों को सामने लाता है। रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित मालती मिश्रा के उपन्यास ‘मंजरी’ में एक भरे-पूरे परिवार में एक किन्नर बच्चे का जन्म होता है। इसके बाद उसके सामने क्या-क्या दुविधाएँ आती हैं और कैसे अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर वह आई.ए.एस. के पद तक पहुँचता है, कहानी का मूल सार है। एक किन्नर बच्चे के साहस और स्वाभिमान को रेखांकित करता है ‘मंजरी’ उपन्यास।अमित गुप्ता का उपन्यास ‘देहरी पर ठिठकी धूप’ राधाकृष्ण पेपरबैक्स,नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। प्रेम, संघर्ष और यातना की यह कहानी वर्ष 2018 की है जो धारा 377 के हटाए जाने से पहले की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। कहानी के मुख्य पात्र श्लोक और अनुराग एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। श्लोक कार दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो जाता है। अस्पताल पहुँचने पर उसकी बहन को सारी सच्चाई का पता चलता है। बहन इस बात पर आक्रोशित हो जाती है। अनुराग के पछतावे और श्लोक की दयनीयता के साथ उपन्यास की कथावस्तु आगे बढ़ती है।
इस वर्ष थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित कुल तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। डॉ. लता अग्रवाल का ‘हज़ार दिनारा लौंडा’ विकास प्रकाशन, कानपुर से आया है जिसमें कुल सोलह कहानियाँ है। इन कहानियों में किन्नरों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को दर्शाया गया है। हितेश कुमार मिश्र का उदय पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रह है ‘कराह’ जिसमें कुल छः कहानियाँ संगृहीत हैं।ये किन्नर जीवन के अलग-अलग पक्षों को दर्शाती हैं। वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित कहानी संग्रह ‘दिल है कि चोर दरवाज़ा’ किंशुक गुप्ता द्वारा लिखी गई कुल आठ कहानियों का संग्रह है जो एसेक्युअलिटी, गे और लेस्बियन पात्रों को आधार बनाकर लिखी गई हैं। थर्ड जेंडर विमर्श पर आधारित कविता संग्रह बहुत अधिक नहीं हैं और वर्ष 2022 में इनसे सम्बंधित एक भी कविता संग्रह नहीं प्रकाशित हुआ। छिटपुट रूप से कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के माध्यम से भले ही सामने आती रहीं हैं।
किसी भी विमर्श को धार देने में उसकी आलोचना का भी अपना विशिष्ट महत्त्व होता है। विश्वसनीयता और रचनात्मकता को साथ लेकर चलने वाली आलोचना, किसी कृति को जानने-समझने के विभिन्न पहलू सामने लाती है। इस वर्ष आलोचनात्मक पुस्तकों में कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें आई हैं। विकास प्रकाशन, कानपुर से डॉ. अभिषेक सिंह का शोधग्रंथ ‘हिंदी कथा साहित्य में ट्रांसजेंडर’ प्रकाशित हुआ है। कुल छः अध्यायों में विभक्त प्रस्तुत ग्रंथ किन्नर के अर्थ को दर्शाता हुआ उनकी सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर विस्तारपूर्वक बात करता है। वर्तमान समाज में किन्नरों के बदलते जीवन-मूल्यों के साथ-साथ हिन्दी उपन्यासों और कहानियों में किन्नर जीवन की सामाजिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और उनके कथ्य व भाषा के अंतर्संबंधों पर प्रस्तुत पुस्तक में विवेचनापरक रूप से दृष्टि डाली गई है। लेखक का निष्कर्ष इस दिशा में भविष्य की राहें भी खोलता है,“हिन्दी साहित्य की किन्नर विमर्श रचनाओं ने भारतीय लोकतंत्र की अस्मिताओं के लिए गंभीर आत्मालोचन कर अपनी निष्पक्ष भूमिका ईमानदारी से निभाई है लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी लेखन की कई संभावनाएँ शेष हैं, जिसके लिए एक गंभीर शोध अलग से होना चाहिए।” विकास प्रकाशन, कानपुर से ही प्रकाशित ‘मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी आत्मकथा में चित्रित किन्नर समस्याएँ’ पुस्तक शिवानी गुप्ता की आई है जिसमें लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की आत्मकथा पुस्तक ‘मैं लक्ष्मी मैं हिजड़ा’ (वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली) को लेखिका ने अपनी आलोचना का आधार बनाया है।आत्मकथा की कथावस्तु पर प्रकाश डालते हुए शिवानी गुप्ता ने आत्मकथा में चित्रित विभिन्न किन्नर समस्याओं को उजागर किया है और उनका समाधान भी देखने का प्रयास किया है। ग्रीष्मा एलिज़बेथ के.ए. द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में पानजेंडर विमर्श’ माया प्रकाशन, कानपुर से आई है। इसमें कुल उन्नीस आलेख और एक साक्षात्कार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पानजेंडर एक गैर द्विआधारी सम्प्रत्यय है, जिसे एक से अधिक लिंग के रूप में परिभाषित किया जाता है। एक ही समय और समाज में पानजेंडर व्यक्ति स्वयं को सभी लिंगों का सदस्य मान सकता है। इस दृष्टि से इन्हें बहुलिंगाकर्षी माना जा सकता है। परन्तु पुस्तक में अधिकांश आलेख थर्ड जेंडर विमर्श को ही उभारते हैं। पानजेंडर विमर्श को आधार बनाकर और अधिक विश्लेषण की आवश्यकता इस पुस्तक में प्रतीत होती है। प्रख्यात् पत्रकार जी. पी. वर्मा की पुस्तक ‘बंद गली से आगे’ थर्ड जेंडर विमर्श पर चिंतन के नये द्वार खोलती है। प्रस्तुत पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2021 में विकास प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2022 में इसका द्वितीय संस्करण कुछ और नवीन सामग्री के साथ आया है। थर्ड जेंडर में ट्रांसमैन और ट्रांसवूमैन– दोनों ही सम्मिलित हैं। पुस्तक की लंबी भूमिका में लेखक ने थर्ड जेंडर, किन्नर आदि को ऐतिहासिकता के दृष्टिकोण से भी देखा है। प्रस्तुत पुस्तक कुल पांच खंडों में विभाजित है। पहले खंड ‘जीवन चरित’ में कुल सोलह ट्रांसजेंडर्स का जीवन दर्शाया गया है। उल्लेखनीय यह भी है कि ये जीवनचरित स्वयं इन ट्रांसजेंडर्स द्वारा अपनी ही भाषा-शैली में लिपिबद्ध किए गए हैं। ये आत्मकथात्मक शैली में रचे गए हैं जिनमें ट्रांसजेंडर के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की विडंबनाएँ, विवशताएँ, विद्रूपताएँ विविध रूपों में हमारे सामने आती हैं। विद्या राजपूत, धनंजय चौहान, राज कनौजिया, आर्यन, रुद्रांशी, पप्पी देवनाथ, संजना सिंह चौहान, भैरवी अरमानी, दीपिका ठाकुर आदि के विचार जानना सर्वथा एक नया अनुभव है। ‘प्रथम अचीवर्स’ के अंतर्गत ट्रांस जेंडर समाज में अग्रणीय काम करने वालों की सूची दी गई है। प्रथम ट्रांसजेंडर एम.एल.ए. शबनम मौसी, किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी,ए. रेथी, कलकी सुब्रह्मण्यम, रोजी वेंकेटेशन, पद्मिनी प्रकाश, ज्योति मंडल, निष्ठा विश्वास, गंगा कुमारी, जिया दास, इस्थर भारती जैसे नाम यहाँ उल्लेखनीय हैं। पुस्तक का तृतीय खंड ‘वैधानिक स्थिति’ है जिसमें ट्रांसजेंडर से सम्बंधित विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों, अधिनियमों और राजपत्रों का संग्रह किया गया है।‘बन्द गली से आगे’ थर्ड जेंडर विमर्श पर साहित्यिक और सामाजिक, दोनों ही आयामों पर खुली आँखों से देखने का सफलतम प्रयास है। जी.पी. वर्मा पत्रकारिता की जीवंत मिसाल रहे हैं। यही कारण है कि वह समाज और इसके नागरिकों की सोच तथा इसके स्पंदनों को भली-भाँति पकड़ना और महसूस करना जानते हैं।
डॉ.
एम.
फ़ीरोज़
खान
द्वारा
सम्पादित
थर्ड
जेंडर
विमर्श
पर
पिछले
वर्षों
में
अनेक
उपयोगी
आलोचनापरक
पुस्तकें
आती
रही
हैं।
डॉ.
एम.
फ़ीरोज़
खान
द्वारा
सम्पादित
‘थर्ड
जेंडर:
अतीत
और
वर्तमान
भाग
2’ पुस्तक
एक
आलोचनात्मक
ग्रंथ
है
जिसका
प्रथम्
संस्करण
सन्
2021 में
आया
था
और
द्वितीय
संस्करण
सन्
2022 में
आया
है।
इसके
प्रकाशक
विकास
प्रकाशन,
कानपुर
हैं।
पुस्तक
में
थर्ड
जेंडर
विमर्श
पर
आधारित
कुल
ग्यारह
उपन्यासों
पर
विभिन्न
विद्वान
लेखकों
के
सोलह
आलेख
सम्मिलित
हैं।
पुस्तक
में
तीन
साक्षात्कार
भी
हैं।
एक
वर्ष
के
अंतराल
में
किसी
पुस्तक
का
द्वितीय
संस्करण
सामने
आना
उसकी
प्रतिष्ठा,
प्रसिद्धि
और
पाठकों
के
प्रेम
को
प्रमाणित
करने
के
लिए
पर्याप्त
है।
उल्लेखनीय
यह
भी
है
कि
‘थर्ड
जेंडर:
अतीत
और
वर्तमान
भाग
3’ भी
शीघ्र
प्रकाश्य
है।
वरिष्ठ
साहित्यकार
नीरजा
माधव
कृत
‘यमदीप’
(सामयिक
प्रकाशन,नई
दिल्ली,
वर्ष
2002) थर्ड
जेंडर
विमर्श
पर
आधारित
प्रथम
उपन्यास
है।
इस
उपन्यास
ने
अपने
कथ्य
और
विशिष्ट
भाषा-शैली
के
कारण
साहित्य
जगत्
में
पर्याप्त
प्रसिद्धि
प्राप्त
की।
‘यमदीप’
पर
आधारित
समीक्षात्मक
पुस्तक
‘थर्ड
जेंडर
पर
केन्द्रित
हिंदी
का
प्रथम
उपन्यास:
यमदीप’
का
प्रथम
संस्करण
वर्ष
2018 में
प्रकाशित
हुआ
था।
वर्ष
2022 में
प्रस्तुत
पुस्तक
का
द्वितीय
और
परिवर्द्धित
संस्करण
प्रकाशित
हुआ
है,
कुछ
बढ़े
हुए
आलेखों
के
साथ।
इस
द्वितीय
संस्करण
में
कुल
अठारह
आलेख
हैं।
नीरजा
माधव
से
डॉ.
फ़ीरोज़
खान
की
बातचीत
पुस्तक
का
विशिष्ट
आकर्षण
है।
इसी
क्रम
में
वरिष्ठ
पत्रकार
और
साहित्यकार
प्रदीप
सौरभ
के
उपन्यास
‘तीसरी
ताली’
(वाणी
प्रकाशन,
नई
दिल्ली,
वर्ष
2011) पर
आधारित
‘थर्ड
जेंडर:
तीसरी
ताली
का
सच’
पुस्तक
का
सम्पादन
डॉ.
शगुफ़्ता
नियाज़
ने
वर्ष
2018 किया
था।
प्रस्तुत
पुस्तक
का
द्वितीय
और
परिवर्द्धित
संस्करण
विकास
प्रकाशन,
कानपुर
से
इस
वर्ष
प्रकाशित
हुआ
है
जिसमें
कुल
सोलह
आलेख
विभिन्न
समीक्षकों
द्वारा
लिखे
गए
हैं।
देवदत्त
पट्टनायक
एक
ऐसे
लेखक
हैं
जिन्होंने
प्राचीन
भारतीय
ग्रंथों
के
गूढ़
रहस्यों
को
आधुनिक
तरीके
से
प्रस्तुत
किया
है।
उनकी
‘मिथक’,
‘राम’,
‘सीता’,
‘देवलोक’
(तीन
भाग)
जैसी
कृतियाँ
धर्म
के
मर्म
को
समझने-जानने
का
एक
नया
दृष्टिकोण
प्रदान
करती
हैं।
इस
वर्ष
देवदत्त
पट्टनायक
की
नवीनतम
पुस्तक
‘धर्म
और
समलैंगिकता’
पेंगुइन
इंडिया
प्रकाशन,
गुड़गांव
से
आई
हैं।
‘क्वीयर
हिन्दू
अलायंस’
एक
संस्था
है
जो
समलैंगिकता
और
हिन्दू
धर्म
के
क्षेत्रों
में
काम
करती
है
जिसके
संस्थापक
और
अध्यक्ष
हैं
अंकित
भुपताणी।
उन्होंने
धर्म
और
समलैंगिकता
को
लेकर
देवदत्त
पटनायक
से
अनेक
महत्त्वपूर्ण
सवाल
किए
हैं
जिनके
स्पष्ट
और
सटीक
जवाब
इस
पुस्तक
में
हैं।
संवादों
के
माध्यम
से
कई
नये
विचार
पुस्तक
में
सामने
आए
हैं।
समलैंगिकता
क्या
है?
हमारा
हिन्दू
धर्म
इसके
बारे
में
क्या
कहता
है,
इस्लाम,बौद्ध
और
जैन
धर्म
के
ग्रंथों
में
इस
पर
क्या
दृष्टिकोण
हैं;
इन
सबके
उत्तर
इस
पुस्तक
में
मिलते
हैं।
प्रश्नोत्तर
के
माध्यम
से
एलजीबीटी
विमर्श
को
जानना
मनोरंजक
और
ज्ञानवर्धक
है।
कुछ पत्रिकाओं ने भी थर्ड जेंडर विमर्श पर अपने विशेषांक इस वर्ष निकाले, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है लवलेश दत्त द्वारा लिखे गए उपन्यास ‘दर्द न जाने कोई’ पर केन्द्रित ‘अनुसंधान’ पत्रिका (अलीगढ़) का विशेषांक। इसकी संपादक हैं डॉ. शगुफ़्ता नियाज़। इस विशेषांक में कुल इक्कीस आलेख विभिन्न आलोचकों द्वारा लिखे गए हैं। डॉ. लवलेश दत्त का साक्षात्कार भी इसमें दिया गया है। ‘अनुसंधान’ का यह विशेषांक अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 का अंक है। गिरिधर झा के सम्पादन में प्रख्यात् समाचार पत्रिका ‘आउटलुक’ (नई दिल्ली) का 2 मई 2022 का साप्ताहिक अंक ‘ट्रांस नायक’ ट्रांसजेंडर बिरादरी के विभिन्न प्रकार के सामाजिक अवदानों को सामने लाता है। अंक की आवरण कथा में राजीव नयन चतुर्वेदी प्रश्न उठाते हैं,“समाज, परिवार, सरकार सबकी उपेक्षा के शिकार ट्रांसजेंडर बिरादरी के लोगों ने अपने दर्द भरे मगर कामयाब सफर में ऐसे पताके फहराए, जिन्होंने यकीनन बेमिसाल जज, वकील, पायलट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, मॉडल, एक्टर, ब्यूटी-क्वीन जैसे हर मुकाम पर मोर्चा फतह करके साबित किया कि हम किसी से कम नहीं; क्या अब भी समाज और सरकार की उनके हक-हुकूक के बारे में आँखें खुलेंगी? देहरादून से प्रकाशित ‘सरस्वती सुमन’ पत्रिका का अक्टूबर 2022 अंक