Monday, 23 May 2016

व्यंग्य सप्ताह : DAY 4

संस्मरण

पद्मश्री के बाद शरदजी के साथ चन्द बोफोर्स क्षण
ब्रजेश कानूनगो

यह मेरा सौभाग्य रहा कि व्यंग्यकार माफ कीजिए पत्रकार श्री शरद जोशी को पद्मश्री से सम्मानित किए जाने की घोषणा के तुरंत बाद उनके साथ कुछ घंटे बिताने का अवसर मिला। कहते हैं सुख और खुशी के क्षण हमें ईश्वर से वरदान स्वरूप ही मिलते हैं। और उन्ही क्षणों में से वे क्षण जो हिन्दी के समर्थ व्यंग्य लेखक के साथ बिताए गए हों और भी अविस्मरणीय हो जाते हैं।

अवसर था मक्सी और शाजापुर (म.प्र.) में लॉयंस क्लब द्वारा आयोजित कार्यक्रमों का,जिसके केन्द्र में शरद जोशी थे। अट्ठाइस जनवरी सन उनीस सौ नब्वे के दिन दोपहर से लेकर रात दो बजे तक हम हँसते रहे,ठहाके लगाते रहे। पद्मश्री जैसे सम्मान के घोषणा के बाद भी शरदजी अपनी चिरपरिचित चश्में से झांकती शरारती आँखों के साथ सहजता से चुटकियाँ लेते रहे।


पद्मश्री की घोषणा के बाद उनके सम्मान में बैंड बजाने का पहला मौका और स्थान मालवा के एक छोटे-से कस्बे मक्सी को प्राप्त हुआ। लॉयंस क्लब के क्षेत्रीय अधिवेशन में अपना उद्बोधन करते हुए उन्होने कहा- क्लब की मजबूरी रही है कि मुझे अधिवेशन का मुख्य अतिथि बनाया गया,अगर किसी सांसद को अतिथि बनाते तो राज्य सरकार के साथ अन्याय होता,अगर किसी राज्य स्तरीय नेता को बुलाते तो केन्द्र के साथ अन्याय हो जाता, इसलिए इस सन्धिकाल में साहित्यकार को,व्यंग्यकार को पकड लिया गया। ऐसे ही सन्धिकालों में मैं अतिथि बनता रहा हूँ और बनता रहूँगा।बाद में शरद जी कोई डेढ घंटे तक चोट करते रहे, हँसाते रहे।

वन विभाग का एक अधिकारी उनसे मिला और अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोले-अच्छा तो आप हैं ऑफिसर विदाउट फॉरेस्ट।जब लॉयंस क्लबों द्वारा किए गए कार्यों को पढा गया तो अपने उद्बोधन में शरद जी कहते हैं- कर्तव्य के बखान की यही रफ्तार रही तो थोडे ही दिनों में कोई क्लब कहेगा कि उसने पाँच लोगों को ठंडा पानी पिलाया।लेकिन इन क्लबों के माध्यम से लोग एक दूसरे से मिलते हैं,यही क्या कम है। उन्होने बल दिया कि अच्छे लोगों को राजनीति में भी आना चाहिए,,अच्छे लोग मात्र पेड लगाते रहेंगे,रोटियाँ वितरित करते रहेंगे तो देश की बागडोर माफिया ग्रुप के हाथों में कचली जाएगी। उन्होने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत का नागरिक समझदार हुआ है वह अपने तरीके से पहचान लेता है कि कौन सही है,ईमानदार है,और कौन केवल सच का मुखौटा लगाए है। यही कारण है कि टिकैत और किसान नेता शरद जोशी कई कमियों-कमजोरियों के बावजूद लाखों किसानों के नेता बने हैं।

शाम को शाजापुर में शरदजी का स्वागत और अभिनन्दन किया गया। लगभग तीस वर्षों बाद शाजापुर जो कि उनकी ससुराल भी भी थी, कई भूली बिसरी यादों को ताजा कर गया। एक जगह वे रुककर कहते हैं; यहाँ एक पुल था, वहाँ एक स्कूल हुआ करता था, यहाँ हमने कार रोकी थी, वगैरह-वगैरह।

अपने सम्मान के लिए धन्यवाद देते हुए अपने चुटकी भरे अन्दाज में वे कहते हैं- तीस वर्ष पहले मैं शाजापुर से लडकी तो ले गया था परंतु कुछ रस्में होना रह गईं थी, वे अब पूरी हो रहीं हैं..नारियल, कपडे, माला और कुछ नगदी अब मुझे प्रदान किया जा रहा है। हाँ, पद्मश्री तो अब मिल रही है, लेकिन पद्मश्रीमती तो पहले ही मैं शाजापुर से हाँसिल कर चुका हूँ।

इस पर एक उत्साही नागरिक ने बडे जोश से माइक पर आकर कहा- श्री शरद जी ने आज से तीस बरस पहले एक मुसलमान लडकी से विवाह करके राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम की थी। इतना कहकर उन्होने शरद जी को माला पहनाई। तब शरद जी ने बहुत ही सहजता से विवाह और राष्ट्रीय एकता वाली बात का खंडन करते हुए कहा-उन्होने उस समय किसी राष्ट्रीय एकता को मद्देनजर रखकर कोई निर्णय नही लिया था,उन्होने वही किया जो एक सामान्य युवा उस अवस्था में करता है। उनकी प्रेमिका उस वक्त चाहे सिन्धी होती,क्रिश्चियन होती या उनकी अपनी जाति की ही क्यों न होती तो भी वे वही करते जो उन्होने किया।

एक अपरिचित युवक मुझे एक गोपनीय पत्रबन्द लिफाफे में उनके नाम दे गया तो उसे लेते हुए उन्होने टिप्पणी की-अच्छा अभी तक शाजापुर में मेरे नाम गोपनीय पत्र लिखने की परम्परा कायम है।कार्यक्रम की समाप्ति के बाद हम लौट रहे थे तो मैने उन्हे शिकायत के लहजे में कहा-आपके प्रतिदिनलिखने से हमारी चौखट’(नवभारत टॉइम्स में दैनिक व्यंग्य कॉलम) बन्द हो गई है,अब हम क्या करें?’ तब उन्होने बडी गम्भीरता से सलाह दी- आप लोग लिखें रज्जू बाबू को(श्री राजेन्द्र माथुर, नभाटा के तत्कालीन सम्पादक) कि वे हर पृष्ठ पर एक व्यंग्य लेख छापने की परम्परा शुरू करें।

देवास का जिक्र आने पर उन्हे अपने स्कूल के हेड मास्टर खडके साहब की याद आ गई, कैसे खडके साहब का अर्थ ही डंडा हुआ करता था और किस तरह उनके आतंक के बावजूद शरदजी ने स्कूल में पहली बार हडताल करवाई थी। उन्हे सब कुछ याद आ रहा था। उन्ही के शब्दों में कहा जाए तो वे बोफोर्स (यादों) में खो गए थे। हालाँकि मैं उनका सदा से बोफोर्स (प्रशंसक) रहा हूँ, उनके साथ बिताए चन्द बोफोर्स (बेमिसाल) क्षण हमेशा बोफोर्स (गुदगुदाते) करते रहेंगे।

-ब्रजेश कानूनगो
503, गोयल रिजेंसी, चमेली पार्क, कनाडिया रोड,
इन्दौर- 452018
मो.न.09893944294

5 comments:

  1. शुक्रिया राहुल जी।

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. ब्रजेश जी, आपका यह संस्मरण पढक़र आनन्दातिरेक से भर गया। वाकई आपने इतनी सहज और भावप्रवण भाषा में लिखा कि पढक़र लगा, जैसे शरद जी स्वयं चुटकियां ले रहे हों। आभार आपका। साधुवाद राहुल जी को, जो सही सम पर इतना महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।

    ReplyDelete

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...