Wednesday, 28 July 2021

जीवन की अर्थवत्ता का व्यंग्य राग : बारामासी

ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास ‘बारामासी’ भाषा और शैली की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें अद्भुत वाक्य-विन्यास और शब्दों के बहुआयामी अर्थबोधकता की ऐसी लयकारी है जिसकी दूसरी मिसाल मिल पाना मुश्किल है। यह उपन्यास बुंदेलखंड के एक छोटे-से कस्बे के एक छोटे-से आँगन में पल रहे छोटे-छोटे कस्बे के छोटे-छोटे स्वप्नों की कथा है - वे स्वप्न ऐसे हैं जो टूटने के लिए देखे जाते हैं...और टूटने के बावजूद देखे जाते हैं। स्वप्न देखने की अजीब उत्कंठा तथा उन्हें साकार करने के प्रति धुँधली सोच और फिर-फिर उन्हीं स्वप्नों को देखते जाने का हठ...कथा न केवल इनके आस-पास घूमती है बल्कि मानवीय सम्बन्धों, पारस्परिक शादी-ब्याह की रस्मों, सड़क छाप क़स्बाई प्यार, भारतीय क़स्बों की शिक्षा-पद्धति, बेरोज़गारी, माँ-बच्चों के बीच के स्नेहिल पल तथा भारतीय मध्यवर्गीय परिवार के जीवन-व्यापार को उसके सम्पूर्ण कलेवर में उसकी समस्त विडम्बनाओं-विसंगतियों के साथ न केवल पकड़ती है बल्कि बुंदेलखंडी परिवेश के श्वास-श्वास में स्पन्दित होते हुए सहज हास्य-व्यंग्य को भी समेटती है। इस उपन्यास में बुंदेलखंड की माटी से बने गुच्चन, छुट्टन, छदामी, फिरंगी, लल्ला और चन्द्र जैसे पात्र और भारतीय नारी के अदम्य संघर्ष और भारतीय माँ का अतुलनीय स्नेह की प्रतिध्वनि अम्माँ जैसा चरित्र और सब कुछ सह जाने को तत्पर बिन्नू जैसी बहन, पाठकों को एक अनोखे संसार में ले जाने में सक्षम हैं। इस उपन्यास को लेकर प्रस्तुत है युवा रचनाकार प्रभात प्रणीत की एक पाठकीय टिप्पणी-


उपन्यास लेखन के उद्देश्य, स्वरूप, विन्यास और चरित्र को लेकर हमेशा विमर्श होते रहा है. कई बार इस तरह का विमर्श विस्तृत होकर संपूर्ण कला क्षेत्र के कैनवास तक पहुँच जाता है और उस स्थिति में हमें कुछ ऐसे उपन्यास के उदाहरण सामने रखना होता है जो इस विमर्श को तार्किक परिणति प्रदान कर सके.  हिंदी उपन्यास के संदर्भ में भी यह बात लागू होती है.  इस क्रम में कुछेक उपन्यास न सिर्फ अपनी सार्थकता सिद्ध करते हैं बल्कि इस विधा को भी एक आयाम देते हैं. मेरी समझ से बारामासी उसी स्तर की किताब है.

 

एक उपन्यास, या यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि एक व्यंग्य उपन्यास जो देश के एक क्षेत्र विशेष की पृष्ठभूमि को केंद्र में रख कर लिखा गया हो उससे एक पाठक क्या और कितनी अपेक्षा रख सकता है? बारामासी किसी भी पाठक की अपेक्षा से ज्यादा समृद्ध, खास व मुकम्मल उपन्यास है. यह कहानी किसी भी क्षेत्र की हो, किसी भी काल-खंड से संबंधित हो ज्ञान चतुर्वेदी ने अपने अद्भुत लेखन से इसे व्यापक व सर्वकालिक बना दिया है.

 

सामान्य, पारम्परिक उपन्यास लेखन में कई तरह की सुविधा होती है, कहानी, विस्तार, समन्वय, प्रवाह के प्रति सचेत रहते हुए मूल ध्येय के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न आयामों को अपने हिसाब से पिरोया जा सकता है. यदि लेखक एकाग्र रहे तो यह सब करते हुए यहाँ भटकाव की संभावना इसलिए कम होती है क्योंकि उसे लगभग हर पंक्ति या पैराग्राफ को एक खास कलेवर में रंगना, बांधना नहीं होता. वह अपनी सारी बात सपाट, घुमावदार या रहस्यमय ढंग से कह सकता है, इससे पूरी कहानी या किताब पर प्रश्नचिह्न नहीं लग जायेगा. लेकिन व्यंग्य उपन्यास लेखन के साथ ये सारी सुविधाएं नहीं होती. लेखक को उपन्यास लेखन के प्रचलित या अप्रचलित मापदंडों को पूरा करते हुए लगभग हर पंक्ति और हर पैराग्राफ को हास्य बोध से भरना पड़ता है, वह भी व्यंग्य की धार को निरंतर कायम रखते हुए, पूरे उपक्रम को अर्थपूर्ण, प्रासंगिक बनाये रखते हुए. ज्ञान चतुर्वेदी ने यह काम इतनी सूक्ष्मता व निपुणता से किया है कि पाठक बार-बार अचंभित हुए बिना नहीं रह सकते.

 

आम जीवन की कहानी, जिसमें हर आपाधापी, छोटी-छोटी सामान्य दिखनेवाली घटनाएं और वार्तालाप का वर्णन करते हुए एक आम व्यक्ति, परिवार की विवशता, दर्द, समाज व व्यवस्था द्वारा आरोपित यातनाएं, सीमा, पतन और निष्कर्ष को जिस तरह से कहा गया है वह वाकई अद्वितीय है. आप लगभग हर पैराग्राफ में मुस्कुराने को बाध्य होंगे, कई बार ठिठकेंगे, आस-पास झांकेंगे, टटोलेंगे, अंतः से जूझेंगे और जब किताब को समाप्त करेंगे तो ठहर जाएंगे. देर तक. आपको वक्त लगेगा यह समझने में कि अब आप मुस्कुरा रहे हैं या किसी व्यथा से घिरे हैं, आप किताब पढ़ने के दौरान की अपनी हर मुस्कान का विश्लेषण करने को विवश होंगे कि आप अब तक आखिर किस पर मुस्कुरा रहे थे, हँस रहे थे, पात्र पर, संवाद पर, समाज पर, व्यवस्था पर, मनुष्य की पंगुता पर, पूरी दुनिया पर या खुद ही पर. बेजोड़ किताब.

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प्रभात प्रणीत

प्रकाशित किताब- 2017- विद यू विदाउट यू (उपन्यास), 2021-प्रश्न काल (काव्य संग्रह)

संप्रति- साहित्यिक संस्था इन्द्रधनुषके संस्थापक एवं सम्पादकीय निदेशक

भारतीय रेल में इंजीनियर के रूप में कार्यरत

ईमेल:-prabhatpraneet@gmail.com

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