‘‘आओ,
देवत्व धारण करें’’
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अपनी-अपनी श्रद्धा, भक्ति, विश्वास और आस्था के अनुसार सभी देवी देवता पूजनीय
हैं, सभी आराध्य हैं । समत्व की इस भावना में किसी प्रकार
का कोई विवाद नहीं है । कोई मतभेद नहीं है ।
सोचता हूं,
इंसान के मन में इस प्रकार की दुविधा
उत्पन्न नहीं हुई होगी कि कौन देवता बड़ा है ? कौन
देवता श्रेष्ठ है ? किस देवी-देवता में आस्था रखनी चाहिए ? हो सकता है, इंसानों
के पहले इस प्रकार का विचार देवी-देवताओं के मन में आया होगा ? देवताओं को भी यह दुविधा आयी होगी कि, हम करोड़ों में । इंसान किसे पूजे ? किसे न पूजे ? सभी
देवी-देवताओं को एक साथ तो नहीं पूजा जा सकता ? इंसान
का कोई एक देवी-देवता ही आराध्य हो सकता है ? फिर
किसी एक देवी-देवता को पूजा जाए तो दूसरे देवी-देवता नाराज हो जायेगे ? रूष्ट हो जायेगे । और यदि इंसान की श्रद्धा भक्ति और विश्वास
से प्रसन्न होकर आराध्य देवी-देवता ने दूधो नहाओ पूतो फलो, खुश रहो,
अमर रहो, नेति-नेति
तरह के प्रचलित आशीर्वाद दे दिये तो दूसरा देवता अपने को न पूजे जाने पर कुपित
होकर श्राप देना चाहे तो यह कैसे संभव होगा ? इससे
तो देवी-देवताओं में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी । और इस वैमनस्यता के कारण भक्तों में
गलत संदेश जायेगा । तब भला इंसान क्या सोचेगें ? देखा, ये तो इंसानों से भी गये-गुजरे निकले ?
ऐसा विचार आते ही देवी-देवता कांप गये होगें । एक साथ
बैठकर मंत्रणा की होगी । और इस प्रकार समाधान निकाला कि, अब चूंकि हम हैं तो करोड़ों में । हमें अपनी लुटिया
बचानी है तो हमें एक-दूसरों की बड़ाई करनी होगी, परस्पर
मान-सम्मान करना होगा,
एक-दूसरे को श्रेष्ठ बताना होगा ।
एक-दूसरे को महान बनाना होगा । नही तो हम अपना अस्तित्व नहीं बचा पायेगें ।
कहना न होगा कि, देवी-देवताओं
की यह मंत्रणा कामयाब हुई । क हमेशा ख की बड़ाई करता, ख
हमेशा ग की बड़ाई करता,
ग हमेशा......। नतीजा यह हुआ कि, कोई भी देवी-देवता कमतर साबित न हुआ । एक-दूसरे की
बड़ाई ने, परस्पर मान-सम्मान ने उन्हें श्रेष्ठ बनाया, महान
बनाया । देवताओं की यह देवत्व की भावना आज भी कायम है । जो एक ही भावना और
सहअस्तित्व की धारण को लेकर काम कर रहे हो उनका आपस में विरोध कैसा ?
थोड़ा और गहराई से अध्यनन करे तो ज्ञात होगा कि, एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम नीचता की श्रेणी में
आता है । इसलिए किसी को नीचा दिखाकर स्वयं को श्रेष्ठ साबित नहीं किया जा सकता ।
खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए दूसरों को श्रेष्ठ बताना होगा । अर्थात दूसरों
की श्रेष्ठता बताने में खुद की श्रेष्ठता स्वतः ही सिद्ध हो जाती है, किसी प्रमाण की आवश्यकता नही पड़ती है ।
भूखा,
प्यासा, बदहाल
आदमी अपनी श्रेष्ठता के बारे में तब सोचे जब उसके पास अदद जिदंगी हो । उसकी जिदंगी
का मूल्य हो । उसकी जिंदगी का तो मोल-भाव होता है । उसकी सारी सोच तो दाल, रोटी और पानी तक आते-आते ही खत्म हो जाती है । शाम को
या रात में उसका चूल्हा भी चलता है तो,
कुछ पकाने के लिए नहीं भाई, अंधेरा दूर करने के लिए । दिन में अंधेरा किसे दिखता
है ? इससे उपर उठे तो सोच आगे बढ़े ।
चूंकि देवता खास थे, आम
नहीं । इसलिए देवत्व की यह भावना भी आम नहीं, खास
लोगों में ही पायी जाती है । यानी देवत्व की भावना का फायदा खास लोगों को ही मिलता
है ।
देखिये इस श्रेष्ठता की एक बानगी । जनता को एक बहुत
बड़ी सौगात लाकार्पित करने का अवसर था । मंच पर
वर्तममान श्रेत्रीय,
जनपदीय आदि-आदि सहित क्षैत्र के वरिष्ठ
प्रतिनिधि जो कि अब भूतपूर्व जीवी हैं, भी सम्मान विराजित थे । उन्हें उद्बोधन का मौका मिला
था । उन्होंने वर्तमान श्रेत्रीय प्रतिनिधि की जमकर तारीफ करते हुए इस सौगात का
श्रेय उन्हें दिया । साथ ही यह भी कहा कि, अब
तक क्षैत्र में जितने भी विकास हुए हैं,
उनके प्रणेता वे ही है । और उम्मीद जताई
थी कि, क्षैत्र के चहुंमुखी विकास इनके भागीरथी प्रयासों से
ही संभव होगा । पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।
फिर वर्तमान प्रतिनिधि को आमंत्रित किया गया ।
उन्होंने भूतपूर्व द्वारा बखान किये गये उद्बोधन हृदय से सरमाथे पर लगता हुए उनकी
ओर इशारा करते हुए कहा,
‘‘इस अवसर मुझे एक भजन याद आ रहा है ।
उसकी दो पक्तिंया आपको सुनाने का मन कर रहा है । और उन्होंने पहली ही सुनाई थी कि, पूरा पांडाल फिर तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा, ‘‘करते हो तुम कन्हैया, मेरा
नाम हो रहा है...........।’’
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जन्म- 27 अगस्त सन 1973
शिक्षा-परा स्नातक
सम्प्रति- मध्य प्रदेश शासन, लोक
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत प्रशासनिक अधिकारी,
प्रकाशन- भूतपूर्व का भूत-व्यंग्य
संग्रह-अयन प्रकाशन नई दिल्ली 2015, पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं/ ब्लाग्स आदि में
कविताएं/व्यंग्य/लघुकथाएं प्रकाशित । तीन साझा काव्य संकलनों में कविताएं प्रकाशित
। हिन्दी समय डाट काम एवं कविताकोश डाट काम में कविताएं/ व्यंग्य सम्मिलित हैं ।
संपर्क-
203,सरस्वती नगर, गार्डन
के सामने, धार,
जिला-धार, मध्य
प्रदेश - 454001
मोबाईल नंबर- 09926527654
ईमेल- arvind.khede@gmail.com
अच्छा व्यंग्य है।
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