मार्टिन जॉन से
मेरा परिचय एक सुधी पाठक के रूप में हुआ था। बहुत बाद में जाकर पता चला कि वे
साहित्य के बहुत संवेदनशील अध्येता हैं और स्वयं भी जब-तब अपने भाव और विचारों को
कभी शब्द तो कभी रेखांकनों द्वारा व्यक्त करते रहते हैं। इधर ‘स्पर्श’ के लिए
उनकी कुछ कवितायेँ हमें मिलीं जिन्हें पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि जॉन के वास्तविक
सरोकार और चिंताएं क्या हैं | उनकी कविताओं ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया | जटिलता
से कोसों दूर उनकी कविता से संवाद करना कितना सरल और सहज है | आप स्वयं देखें और
इस रचनाधर्मी के प्रति कुछ कहें | कविताओं के साथ दिए गये रेखांकन भी जॉन के ही
हैं |
हमारे
बच्चे अंग्रेज़ी बोलते हैं
हम ख़ुश
हैं कि हमारे बच्चे अंग्रेज़ी बोलते हैं
ख़ुशख़बरी
बांटना चाहते हैं यह बताते हुए कि
यह जो
ख़ुशी है
उन तमाम
दुखों को धो पोछने की काबिलियत रखती है
जिन्हें
हम
हिंदी
नामक भाषा रस पीकर झेले थे
भाषा रस
अपने घर का
यहीं के
मिटटी-पानी और हवा से बना
पीकर हम
हृष्ट पुष्ट हुए
लेकिन
‘रेस’ के मैदान में फिसड्डी ही रहें
घर के
आस पास ही रह गया |
सुनते
हैं एक मुक़ाबले में कछुए की जीत हुई थी
हमें
गर्व है हमारे बच्चे कछुए नहीं बने
क्योंकि
वे अंग्रेज़ी बोलते हैं |
वे
अंग्रेज़ी में अंकल चिप्स कुतरते हैं
डिज़नी
के अंकल क्रूज, मिकी माउस, डोनाल्ड डक से
बतियाते
हंसते हैं
फैंटम
और डब्ल्यू डब्ल्यू एफ से
पहलवानी
सीखते हैं
विस्मिल्लाह
खान की शहनाई पर
झुंझलाते
हुए ऊंघने लगते हैं
जगाने
के लिए यो यो हनी सिंह को बुलाना पड़ता है |
इस बात
के लिए कतई अफ़सोस नहीं कि
उनके
जनरल नॉलेज के दरवाजे पर
प्रेमचंद,
दिनकर अभी भी ‘क्यू’ में हैं
जबकि
सलमान रुश्दी, विक्रम सेठ, चेतन भगत और
झुम्पा
लाहिड़ी ‘खिडकियों’ से
बहुत
पहले अन्दर समा चुके हैं
शकुंतला
पुत्र भरत और भारत को अपनी ज़ुबान से
कोसों
दूर रखते हैं
क्योंकि
भारत नामक मरियल घोड़े पर इंडिया की सवारी
उनके
दिलो-दिमाग को सुकून पहुँचाने लगी है |
म्यूजिक
लवर्स की सर्किल में अग्रणी रहने के लिए
ब्रिटनी
स्पीयर्स, जेनेट जैक्सन, जस्टिन को
अपने
स्पेनिश गिटार में उतार चुके हैं |
चुकि वे
अंग्रेज़ी बोलते हैं,
रोनाल्ड,
रोज़र मूर, जेनिफर लापेज, एंजिलीना, निकोल किडमेन की
तस्वीरें
उनकी क़िताबों के साथ चलतीं हैं
हंसती
हैं, मुस्कराती हैं |
अंग्रेज़ियत
के ‘फीलगुड’ के लिए
‘स्पाइडर
मैन’, ‘आयरन मैन’, ‘टर्मिनेटर’, ’स्पेक्टर’ और
‘इंटरनल
अफेयर्स’ को दर्जनों बार
आंखों
के रास्ते भीतर उतार चुके हैं |
हमारी
भी भरसक यही कोशिश रहती है कि
अंग्रेज़ी
बोलने वाले हमारे बच्चे
मीरा,
तुलसी, कबीर के ‘वायरस’ से दूर ही रहे
ताकि इस
हक़ीक़त से रु-ब-रु न होना पड़े कि
हिंदी
पढने, खाने, पहनने, बिछाने वालों को
साल में
एक ही बार हिंदी-पर्व मनाने का अवसर मिलता है |
हम खुश
हैं कि हमारे बच्चे अंग्रेज़ी बोलते हैं
हर रोज़
हम उन्हें ग़ालिब के तर्ज पर समझाते आ रहें हैं –
“...हमें
मालूम है हुकूमत की हक़ीकत मगर
दिल
बहलाने के लिए हिंदी का ख्याल अच्छा है |”
मित्र , मुझे चिट्ठी लिखो न !
मित्रवर, फिर से मुझे चिट्ठी लिखो न !
मानता हूँ हम सरपट भाग रहे हैं
सड़कों के स्पीडब्रेकर भी
अपने वजूद के नकारे जाने से उदास है
मुँह चिढाती रहती है उसे भागमभाग वाली ज़िन्दगी
मंजूर है मुझे दो कदम पीछे लौटना
आँखें मृतप्राय उस मंजर को
पुनर्जीवित कर सुकून पाना चाहती है – खाकी टोपी,
खाकी थैला
थैले से निकल कर तुम्हारा सामने आना |
साँसें और धडकनें बैग वाले को देखकर
संवाद की बांसुरी से
संपर्क की धुन छेड़ना चाहती है |
लिखे शब्दों से उदास होना चाहता हूँ
खुश होना चाहता हूँ
नाराज होना चाहता हूँ
स्पर्श का खुशबूदार एहसास भरना चाहता हूँ
अपने सीने में |
क्रांति, तरक्की और तब्दिलियां
तुम्हारे क़दमों में गति ला दी है
गतिमान क़दमों को कभी कभार रोक लिया करो न !
फिर से एक चिट्ठी लिखो न
जिसके चार शब्दों में ही हमें मिलता है
अवसाद, विषाद, सुख दुःख वाला जीवन का
महाकाव्य पढने का चरम सुख
पिता उवाच
आहिस्ता बोल रे बावरी
अभी अभी तो थपकियाँ
देकर सुलाया है ग़म को हमने
बहुत पतली नींद है
इसकी, अधपकी / अधकचरी
सोता नहीं है कमबख्त
गहरी नींद से |
उछल-कूद मत कर ख़ुशी
की बच्ची
थोड़ी देर राहत की
साँसें ले लेने दे
जब तक सोया है
नामुराद |
रास आ गया है उसे
मेरा ही घर
घरघुसरा निकलने का
नाम ही नहीं लेता
खुदा का शुक्र है
उसे नींद आ गई है |
धमा चौकड़ी करेगी तो
खुल जाएगी उसकी आँखें
और निगल जाएगा साबुत
वह
आँगन में बिखरी धूप
के टुकड़ों को,
देख कितना बिखरा पड़ा
है उसके उत्पात से मेरा बाहर भीतर
थोड़ा समेट लेने दे /
थोड़ा बटोर लेने दे |
फुदक मत / चहक मत /
महक मत री सोनचिरैया !
सो लेने दे उसे थोड़ी
देर
उलझे-उलझे सपनों को
थोड़ा सुलझा लूँ |
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