हारना दुःख का
दुःख तपाता था
तपाता जाता था
अपने चरम बिंदु तक
जताता था कि
अब गया, अब गया
बैठ जाता था
छुप के कहीं
अँधेरे कोने में मन
के
कुंडली मार के बैठा
दुःख
मुस्कुराता मुझे देख
देख के
मैं चिढ़ा,रोया
यहाँ तक कि चिल्लाया
भी
पर न पसीजना था दुःख
को
न पसीजा वो
और फिर एक दिन
हरा ही दिया दुःख को
मैंने
उसके साथ ही
सीख गया,खुश रहना
सुख खिलखिलाता
सुख खिलखिलाता
बैठ कर बीच
हीरे जवाहरात के
दुःख चटाई पे बैठ
देखता तमाशा
चुपचाप
कहता कुछ नही
सुख ने शुरू किया
लुटाना....और
खाली हो गया खजाना
नंगे पैर ..कराहते
सुख को
दुःख ने दे दी
थोड़ी सी जगह
चटाई पे अपने साथ
अब सुख दुःख
साथ-साथ रहते है
चटाई के
दोनों सिरों पर
उसका न होना भी
उसका न होना भी
उसका होना है
धूल-रहित दर्पण
ज़िन्दगी के राग सा
जताता है,उसका होना
शिकवे-नसीहत
उलाहनों के मीठे स्वर
गूंजते ज्यूँ गीत से
सर्द रातों का नरम
गरम कम्बल
उसका होना
खोई रसीद और चाबी का
यकबयक मिल जाना
उसका होना
कविता की नदी में जमे
शब्द
ग़ज़ल की रवानगी में
बयां होना
उसका होना
कैसे कहूँ,क्या कहूँ
खाने में नमक होना
उसका होना
--
नाम- आरती तिवारी
पति- रवीन्द्र तिवारी
जन्म- 08 जनवरी
जन्म स्थान- पचमढ़ी
शिक्षा- बीएससी, एम ए बी-एड
अध्यापन अनुभव--लगभग 15 वर्ष, पूर्व शिक्षिका
प्रकाशन---विगत 15 16 वर्षों से मध्य-प्रदेश
के प्रमुख समाचार पत्रों में विभिन्न विधाओं पे रचनाएँ प्रकाशित
नई दुनिया,दैनिक भास्कर,राज एक्सप्रेस,नवभारत
व् सरस्वती साहित्य,शब्द-प्रवाह,सृजन की आँच,व् अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में निरन्तर
प्रकाशन
सम्मान __2014 में नागदा की साहित्यिक
,सामाजिक,सांस्कृतिक संस्था "अभिव्यक्ति विचार मंच" द्वारा प्रदत्त
राष्ट्रीय विष्णु जोशी (अंशु) सम्मान
से सम्मानित
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में विशेष
सक्रिय संस्था__"अनुराग" से जुड़ाव व् मन्दसौर विकास समिति से संलग्न
मुख्य विधा-नई कविता
आकाशवाणी इंदौर से कविताओं का प्रसारण
संबंधित संस्थायें-प्रगतिशील लेखक संघ,म
प्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन व् अन्य सांस्कृतिक सामाजिक संस्थायें
संप्रति-स्वतन्त्र लेखन
वर्तमान पता- आरती तिवारी, dd/05 चम्बल
कॉलोनी मन्दसौर 458001 म प्र
मोबाइल--09407451563
ईमेल--arti.tiwari15@yahoo.com
बहुत बहुत आभार राहुल जी का स्पर्श का संवेदन संस्था का मुझे और मेरी संवेदनशीलता को इस जगह स्थान देने के लिए
ReplyDeleteआरती तिवारी
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aartiji ,aapki kavitao ne mn ko chhu liya.....aur yahi ek samvedansheel kavitri ki pahchaan hai.... hmari shubhkamnaye.,aap ansman chhu le...... badhai...
ReplyDeleteऔर फिर एक दिन
ReplyDeleteहरा ही दिया दुःख को मैंने..
नंगे पैर ..कराहते सुख को
दुःख ने दे दी
थोड़ी सी जगह...
कविता की नदी में जमे शब्द....
मर्म के चरम को बड़ी सहजता से अभिव्यक्त करती हैं...कविताएं....
बधाई...आप दोनों को...
शुक्रिया
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