यह मुस्लिम समाज में तलाक लेने का जरिया है जिसमें पति अगर अपनी पत्नी एक ही बार में तीन बार ‘तलाक़’ शब्द का उच्चारण करता है तो वह शादी रद्द हो जाती है । तलाक देने का यह तरीका मुस्लिम लॉ बोर्ड के अनुसार कानूनी है । इस कानून के तहत केवल पुरुषों को तलाक़ देने का अधिकार है और मुस्लिम स्त्रियाँ इस कानून के अधिकार पात्र नहीं हैं । यह एक प्रकार से मुस्लिम स्त्रियों पर अत्याचार है क्योंकि इस कानून के तहत पति अपनी पत्नी को किसी भी तरीके से तलाक़ दे सकता है। उदाहरण के लिए वह फ़ोन पर भी तलाक़ दे सकता है और साथ ही ई-मेल, वाट्सअप और पत्र के ज़रिए भी तलाक़ दे सकता है । वह अपनी पत्नी के गैर - हाज़री में भी यह कदम उठा सकता है । यही कारण है कि ज़्यादातर मुस्लिम स्त्रियाँ अपने पति के खिलाफ बगावत करने से घबराती हैं क्योंकि उनके मन में यह डर बैठ गया था कि कहीं गुस्से से उनके पति तलाक़ न दे दे और तलाक़ के बाद की ज़िम्मेदारियाँ कौन उठाएगा ?
मुस्लिम समाज में ‘ट्रिपल तलाक़’ कोई नई बात
नहीं है । उनका कहना है की यह कुरान में भी बताया गया है । लेकिन कुरान ने समाज
में स्त्रियों की गरिमा, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे
प्रावधान किए हैं । यहाँ तक की तलाक़ देने के लिए भी कड़े नियम बताए गए हैं ।
सूरहनिसा के अनुसार –
अगर औरत की नाफ़रमानी और बददिमागी का खौफ हो तो उसे नसीहत करो और अलग बिस्तर पर छोड़
दो । अगर किसी औरत को अपने शौहर की बददिमागी का खौफ हो तो भी शौहर को मौका देना
चाहिए न कि फ़ौरन कोई फैसला करना चाहिए । घर को बरबादी से बचाने के लिए अगर उसके हक
में कोई कमी हो तो उसे भूलकर हर हाल में घर को बचाने की कोशिश करनी चाहिए । अगर
शौहर बीवी की सारी कोशिशें नाकाम हो जाए, तो भी तलाक़ देने में ज़ल्दबाज़ी की जगह एक
और रास्ता है कि दोनों के खानदान से एक-एक समझदार और हकपरस्त व्यक्ति को शामिल कर
रास्ता निकालना चाहिए । यही नहीं अगर फिर भी तमाम कोशिशें नाकाम साबित हो जाएँ तभी
दोनों को एक दूसरे से अलग होने की इजाज़त है । कुरान में एकतरफा, एक ही वक़्त में या
एक ही बैठक में तलाक़ देना ‘गैर-इस्लामी’ माना गया है ।
बहुत सारे मुस्लिम देशों में ‘ट्रिपल तलाक़’ को
खारिज किया गया है । हमारे भारत में यह एक राजनैतिक मुद्दा बन गया है । हाल ही में
वर्तमान सरकार लोकसभा के शीतकालीन सत्र (2018)
में ‘ट्रिपल तलाक’ बिल पारित करने में सफल हुई । इस विधेयक के अंतर्गत ट्रिपल तलाक़
देना कानूनन अपराध होगा, जिसके लिए मुस्लिम पुरुष को 3
साल की सज़ा हो सकती है । यह बिल लोकसभा में सफलतापूर्वक पारित हो गया है,साथ ही राज्य
सभा में भी पारित हो गया है । लेकिन आल
इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि – “सुप्रीम कोर्ट को इस
मामले में दखल नहीं देना चाहिए । अगर इसे ख़त्म किया गया तो मर्द अपनी पत्नी से
छुटकारा पाने के लिए उसे जलाकर मार सकता है या फिर उसका क़त्ल कर सकता है” ।[1] तीन
बार तलाक के मुद्दे पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनललॉ बोर्ड ने कहा – “अगर कपल के बीच
किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ तो फिर वह साथ न रहने का फैसला कर लेंगे । ऐसे में वे
अलग होने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनायेंगे तो उसमें काफी वक़्त लग सकता है ।
उसमें क़त्ल करना, जिंदा जला देना जैसे अपराधिक तरीके शामिल हैं ।”[2]
मुस्लिम पर्सनललॉ बोर्ड ‘ट्रिपल तलाक़’ को कानूनन सही बताता है । लेकिन वर्तमान
भारत में ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) विधेयक’ के तहत अब ‘ट्रिपल
तलाक’ गैरकानूनी घोषित किया गया है जिसके उल्लंघन पर मुस्लिम पुरुषों को तीन साल
की सज़ा हो सकती है । और साथ ही पुरुष को तलाकशुदा पत्नी के रख - रखाव के लिए भी
खर्चा देना होगा । यह कानून मुस्लिम स्त्रियों को समान अधिकार दिलाने के पक्ष में
है । वह भारतीय न्याय संस्था से न्याय की माँग कर रही हैं । भारतीय सुप्रीम कोर्ट
ने ‘ट्रिपल तलाक’ को गैर-कानूनी तो घोषित कर दिया परन्तु अभी भी असली लड़ाई लड़नी
बाकी है ।
अत: कहा जा सकता है कि धर्म एवं प्रथाएँ समय के अनुसार बदलनी चाहिए । हमारे देश में हर धर्म के स्त्रियों को उनका अधिकार देना हमारा कर्तव्य है । देश की आधी आबादी जो की स्त्रियाँ हैं, उन्हें पीछे छोड़कर, देश कभी प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता है । एक बार में तीन तलाक़ का तरीका आज के समय में अप्रासंगिक ही नहीं है बल्कि पवित्र कुरान के भावनाओं के विपरीत भी है । और हमें यह भी देखना होगा कि जब निकाह दोनों पक्षों के रजामंदी से संपन्न होता है तो तलाक़ का यह तरीका पुरूषों को ही क्यों मिला है ?
राज्य
लक्ष्मी (शोधार्थी,
हिंदी)
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ हैदराबाद ५०००४६
email – rsreenasingh62@gmail.com
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