Thursday 27 August 2020

सुषमा मुनीन्द्र की कहानी - कीमती

कीमती

गुम्मन जब गल्ला बाई के साथ पहली बार आई, उसकी उम्र जो भी रही हो पर उसके आगे वाले दूध के दो दाँत टूटे हुये थे। निरंजना ने पॅूछा -

‘‘यह कौन है गल्ला बाई?’’

‘‘हमार नातिन गुम्मन। हमरे साथ काम सीखी।’’

‘‘बहुत छोटी है।’’

‘‘बड़ी होई जई। काम त सीखे।’’

‘‘स्कूल नहीं जाती?’’

‘‘जात ही। दुसरा दर्जा (दूसरी) पढ़त ही पै तोतलात (तोतली है) ही।’’

‘‘छोटी है न।’’

‘‘एकर महतारी तोतल रही। एकर मामा तोतल हय। यहौ तोतल ही।’’

‘‘तोतली है पर सुंदर है।’’

गल्ला बाई ने गुम्मन को एक सप्ताह तक बर्तन धोने, झाड़ू-पोंछा करने का कायदा समझाया -

‘‘गुम्मन झाड़ू अइसन पकड़ ........ पलॅंग के नीचे से कचड़ा निकाल ......... वा कोना मा पोंछा ठीक से नहीं लगा ........ देख बर्तन मा जूठ लगा हय ........ गुम्मन कामचोरी न कर ......... मलकिन (निरंजना) नाराज हो जाती हैं .........।’’

आगे के दो दाँत आने तक गुम्मन को सम्पूर्ण रूप से काम सौंप कर गल्ला बाई ने अवकाश ले लिया। गुम्मन, निरंजना का काम करती। इस बीच गल्ला बाई मोहल्ले से गोबर बीन-बटोर कर निरंजना के परिसर के दूर वाले कोने में कंडे पाथ लेती। निरंजना चाहती गुम्मन, गल्ला बाई की तरह मुस्तैदी से काम करे लेकिन नन्हें हाथों में न बल, न अभ्यास। वस्तुतः निरंजना का समृद्ध घर गुम्मन के लिये चमत्कार की तरह था। जिधर देखती, देखती रह जाती। खाना बनाने के लिये निरंजना को बर्तन चाहिये। गुम्मन, निरंजना के बेटे विज्ञान और विमान के कमरे में झाँक कर संगीत सुन रही है। निरंजना बेचैन -

2

‘‘गुम्मन ........।’’

विज्ञान बचाव में ‘‘बच्ची है मम्मा।’’

आँगन धोना है, गुम्मन रस्सी कूद रही है।

‘‘गुम्मन ...........।’’

विमान बचाव में ‘‘बच्ची है मम्मा।’’

निरंजना व्यंजन बना रही है। गुम्मन ललक कर देख रही है।

‘‘गुम्मन ..........।’’

निरंजना के पति एकनाथ बचाव में ‘‘बच्ची है निरंजना।’’

गुम्मन, निरंजना को संत्रस्त करने के लिये हरकत नहीं करती थी। नहीं जानती थी दरअसल निरंजना को नाराज कर रही है।

‘‘गुम्मन तरीके से काम कर। तू जल्दी काम नहीं करती है। गल्ला बाई कहती है मैं तुझसे देर तक काम कराती हूँ। गल्ला बाई से तेरी शिकायत करूँगी।’’

‘‘आदी (आजी) माल-माल के तमली (चमड़ी) उकेल लेगी। कान पकलती हॅू मम्मा दी (जी)।’’

एकनाथ ने अभयदान दिया ‘‘निरंजना, गुम्मन काम सीख रही है। विज्ञान और विमान से छोटी, एकदम बच्ची है।’’

निरंजना उसे बच्ची नहीं गल्ला बाई का स्थानापन्न मानती थी। लेकिन एक दिन देखा सबकी नजरों से बचकर गुम्मन, दीवान के नीचे गहरी नींद सो रही है। निरंजना को उस क्षण अप्रतिम ज्ञान मिला। उसने निद्रालीन गुम्मन में छोटी बच्ची देखी। छोटी बच्ची की मजबूरी और मासूमियत देखी। बचपन की मोहलत पाना चाहती है। छोटी-छोटी लापरवाहियाँ करना चाहती है। हो जाती है गलती। इसे थोड़ा सुकून, सुरक्षा, स्नेह, सहयोग मिले तो बेहतर तरीके से काम कर सकती है। निरंजना ने नरमाई से पुकारा -

‘‘गुम्मन ............।’’

गुम्मन भयभीत मुद्रा में उठी ‘‘मम्मा दी, मैं थक दाती हॅू।’’

3

‘‘आज स्कूल नहीं जायेगी ?’’

‘‘दाऊॅंगी। काम कल लूँ।’’

‘‘स्कूल जा। बचा हुआ काम लौट कर करना।’’

इसी तरह होती हैं संधियाँ।

विकसित होता है लगाव।

बन जाता है भरोसा।

गुम्मन दक्ष हो गई। गल्ला बाई अब कंडा पाथने और वेतन लेने ही आती -

‘‘मालकिन, पइसा देई। रासन खरीदना हय।’’

निरंजना ने पैसे गल्ला बाई को दे दिये। गुम्मन एकाएक बोली -

‘‘आदी पताथ (पचास) लुपिया मुझे दे। हम तोले बद (तुम्हारे बदले) काम कलते हैं।’’

गल्ला बाई को गुम्मन घुटी हुई दुनियादार लगी।

‘‘काम करते हय त हम तोही खाना देईत हयन। .........मलकिन अमदरा वाली (गुम्मन की माँ) से जवानी नहीं सम्भारी जात रही। कहय दसईंया (गुम्मन का पिता) नामरद हय। हमरे पहुना (गल्ला बाई की पुत्री सिमरा का पति) से मोहब्बत कई लिहिस। पहुना के साथ भाग गय त आज तक नहीं लउटी। दसईंया पागल होइ गा। सिमरा मनी अउर मझली (सिमरा की पुत्रियाँ) का लइके हमरे पास आ गय के मजूरी कइ के पेट चलाइ। अमदरा वाली के मइके मा तंत्र-मंत्र होत हय। मूठ चलवाय के सिमरा का मरवाय दिहिस। सिमरा के पेट मा अइसन पीड़ा भय के तड़प-तड़प के मरी। मनी अउर मझली हमरे साथ रहती हैं। उनहीं खाना-कपड़ा चाही। दसईंया का गाँजा अउर कोपरी (परात) भर भात चाही। हमार आदमी मर गा। पहिले हम मजूरी करत रहेन। अब जाँगर नहीं चलय। अमदरा वाली कहत रही दसईंया नामरद हय। नामरद हय त गुम्मन, दसईंया के अउलाद न होय। तबहूँ हम ऐही पाल-पोस रहे हयन। या बेसरम पचास रुपिया माँगत ही।’’

‘‘बच्ची है। इतना काम करती है।’’

4

‘‘एहसान नहीं करय। मेवा-पकवान खाय के खासा लम्बी होय रही हय। आप मिठाई, नमकीन, हेलुवा, पकौड़ी दइ के एही चटोर बना दिहेन। घर लइ जात ही अउर मनी-मझली का देखा के खात ही। कोहू को नहीं दे।’’

दूसरों को ललचाते हुये अकेले खाना गुम्मन का आनंद, परिश्रम से किया गया उपार्जन और खुद को खास साबित करने का आयोजन है।

‘‘मम्मा दी, मैं मनी औल मधली को मिथाई नहीं देती इथलिये आदी मुझे मालती है।’’

गल्ला बाई दंग। मालकिन के प्रश्रय में प्रतिद्वन्दी तैयार हो रही है -

‘‘हमार इज्जत न उतार। ले पचास रुपिया।’’

पचास रुपये का नोट गुम्मन के सम्मुख फेंक कर गल्ला बाई चली गई। गुम्मन में न स्वाभिमान था न आत्म सम्मान। उसने हुलस कर नोट उठा लिया।

‘‘पचास रुपये का क्या करेगी गुम्मन ?’’

‘‘तात-फुलकी (चाट फुलकी) खाऊॅंगी। तप्पल (चप्पल) तूली औल क्लिप खलीदूँगी।’’

छोटी बच्ची की छोटी-छोटी हसरतें।

निरंजना की प्रसाधन मेज और टी0वी0 के विज्ञापन उसे क्रीम, लोशन, तेल, शैम्पू, परफ्यूम का उपयोग और प्रयोग बता रहे थे। प्रसाधन मेज में सजी सुंदर शीशियों को ललक कर देखती। निरंजना ने उसे पुरानी क्लिप और बैक पिन दे दी -

‘‘ले। बालों में तेल लगा कर तरीके से बाँध लिया कर।’’

‘‘हौ।’’

गुम्मन सौगात घर ले जाती। मनी और मझली चुरा लेंती। उनसे पूँछ-ताँछ करने के जुर्म में गल्ला बाई, गुम्मन को पीट देती। वे दरअसल सौगत ही नहीं, गुम्मन का साम्राज्य बल्कि फंतासियाँ थीं। साम्राज्य को सुरक्षित करने के लिये उसने जूते के खाली बड़े डिब्बे को निरंजन के गैरिज के दूर वाले कोने में रख दिया। उसमें सहेजने लगी स्कार्फ, मोजे, क्लिप, एक जोड़ी चप्पल, बेल्ट, क्लिपें, डियो, लोशन, परफ्यूम की खाली सुंदर शीशियाँ, रुमाल, एक हाफ स्वेटर ...........। बस गई एक पूरी दुनिया। जिसे देख कर खुश हो जाती।

5

इस बीच विज्ञान फिर विमान स्कूल पास कर बाहर पढ़ने चले गये। उनकी अनुपस्थिति को गुम्मन ने अपनी उपस्थिति से अच्छा भरा। निरंजना चाहने लगी गुम्मन इतना जरूर पढ़ ले जब अपने हिस्से की लड़ाई को ठीक तरह लड़ सके। वह एक-डेढ़ घण्टे गुम्मन को पढ़ाती -

‘‘गुम्मन आज क्या सबक मिला ?’’

गुम्मन पुस्तक खोलती ‘‘मम्मा दी, यहाँ इतकूल है फिल दोनों भैया बाहल पलने क्यों तले गये ?’’

विज्ञान डाँक्टर बनने गया है। विमान इंजीनियर।’’

‘‘मैं खूब पल कल क्या बनूँगी ?’’

कठिन प्रश्न। क्या बनेगी ? अपनी बात शुद्ध रूप में कैसे कह पायेगी ? तुतलाते देख लोग हॅंसते हैं। आनंद लेते हैं। चिढ़ाते हैं। मजाक बनाते हैं। आरम्भिक दिनों में विज्ञान और विमान इसे बार-बार बोलने के लिये बाध्य करते थे। उनके साथ निरंजना भी हॅंसती थी।

‘‘खूब पढ़ा। फिर बताऊॅंगी क्या बनेगी।’’

‘‘कैसे पलॅू ? आदी कहती है मैं बली हो गई हूँ। मदूली (मजदूरी) कलने दाऊॅं।’’

‘‘पढ़। मैं गल्ला बाई को समझा दूँगी।’’

‘‘हौ।’’

मामला प्रतिस्पर्धा का बनता गया।

गल्ला बाई ने फौजदारी बढ़ाई। गुम्मन ने प्रतिरोध। निरंजना के नेतृत्व में वैचारिक रूप से समृद्ध हो रही गुम्मन, गल्ला बाई के हुक्म को खारिज करने लगी। गल्ला बाई मारने दौड़ती। गुम्मन पूरी ताकत से उसका जर्जर हाथ जब्त कर लेती। उसने समझ लिया घर में गल्ला बाई का विरोध नहीं होता है इसलिये ताकतवर दिखती है। बाकी इसकी ताकत खत्म हो चुकी है। गल्ला बाई ने समझ लिया निरंजना की मिली - भगत से गुम्मन अपने उत्थान के प्रति सतर्क रहते हुये किसी निष्कर्ष पर पहॅंुचना चाहती है। इसके जिगर की आतिश को ठंडा न किया गया तो योद्धा बन जायेगी।

गल्ला बाई वेतन लेने पहुँची -

6

‘‘मलकिन, अब आपका काम हम करब। गुम्मन, मझली के साथ मजूरी करॅंय जइ। रेजा के रेट दुइ सौ पच्चीस रुपिया चल रहा है।’’

गुम्मन ने गल्ला बाई को पूरी तरह उपेक्षित कर निरंजना से कहा ‘‘अम्मा दी मैं पलूँगी।’’

‘‘इसे पढ़ने दो गल्ला बाई।’’

‘‘पढ़के मास्टर बनी ? तोतल से बोलत बनत हय ?’’

‘‘पढ़ने दो गल्ला बाई।’’

‘‘मलकिन, गुम्मन का न भड़काइये। कंडा बेच के अउर अपना के वेतन से हमार खर्चा नहीं चलय। मनी कमात रही पै ओकर बियाह (ब्याह) कइ (कर) दिहेन। मझली मजूरी करत ही। एक दिन ऐहू के बियाह होइ जइ। तोतल से कोउ बियाह न करी। मजूरी करने लगे त आपन अउर हमार जिंदगी का सहारा देई।’’

‘‘मम्मा दी, मैं पलूँगी।’’

‘‘गुम्मन को पढ़ने दो गल्ला बाई।’’

‘‘मालकिन, अपना का गुम्मन बहुत पियार ही त अपने घर मा बइठा लेई। मास्टर बने या कलेश्टर। हम फुर्सत होई।’’

प्रक्षेपास्त्र छोड़ कर गल्ला बाई चली गई।

गुम्मन दृढ़ थी ‘‘मैं पलूँगी।’’

निरंजना को गुम्मन दयनीय लगी। जब आई थी अक्षर ठीक से नहीं पहचानती थी। अब तुतलाते हुये लेकिन अच्छे विश्वास के साथ तेज गति और लय में अखबार बॉंचती है। अखबार में छपे समाचारों का अर्थ जानना चाहती है। गुम्मन सुबह काम करने आई। आँगन में बैठी निरंजना अखबार पढ़ रही थी। गुम्मन समीप आकर खड़ी हो गई -

‘‘क्या समाताल थपा है मम्मा दी ?’’

‘‘ले पढ़ कर सुना। जोर से पढ़ने से आत्मविश्वास आता है।’’

गुम्मन तुतला कर पढ़ने लगी -

7

‘‘वर्तमान दौर में समाज के प्रत्येक वर्ग को चाहिये चैदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शिक्षा से जोड़ कर समाज की मुख्यधारा में लायें। बालश्रम के कलंक को मिटाने के लिये सामूहिक भागीदारी की जरूरत है। कम उम्र के बच्चों से काम कराने वाले संस्थान संचालकों का सामाजिक बाहिष्कार हो। बाल मजदूरी के कारण देश में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी बढ़ रही है। छापामार कार्यवाही अभियान चलाना चाहिये ........।’’ गुम्मन अर्थ समझने के लिये रुकी ‘‘मम्मा दी, थापामाल अबियान क्या होता है ?’’

बेसिन पर शेव कर रहे एकनाथ ने स्पष्ट किया -

‘‘गुम्मन, इसका मतलब है चैदह साल से कम उम्र के बच्चों से घरेलू काम कराना कानूनी तौर पर गलत है ....... निरंजना तुम्हारी रिपोर्ट कर दी जाये तो तुम्हें तीन साल की सजा मिलेगी। दस हजार रुपिया जुर्माना देना पड़ेगा।’’

निरंजना सहमत न हुई ‘‘सरकार से पूँछो जिस लड़की की माँ न हो, पिता बेकार हो, आजी मारती हो वह क्या करे ? मैं गुम्मन को स्कूल जाने के लिये प्रेरित करती हूँ। हमारे घर में इसने गुण सीखे हैं। मैं चाहती हूँ पढ़ कर यह अपनी जिंदगी तरीके से जिये। चार पैसे कमा सके। अपनी सुरक्षा कर सके। स्कूल के बाद इसे कौन सा कोर्स कराया जाये कि जाँब मिलने में आसानी हो ?’’

गुम्मन आशय न समझे अतः एकनाथ अंग्रेजी में बोले -

‘‘निरंजना, इसका तुतलाना बहुत बड़ी अयोग्यता है। इसे अच्छा जाँब कैसे मिलेगा ? तुम्हीं ने बताया गल्ला बाई भड़क कर कह गई इसे अपने घर में बैठा लो। हम एक सीमा से आगे इसकी जिम्मेदारी नहीं ले सकते।’’

निरंजना को लगा गुम्मन को वह झूठा आश्वासन देती रही है। लेकिन गुम्मन आश्वस्त थी। उसे भरोसा था उसके अच्छे भविष्य के लिये निरंजना बंदोबस्त करेगी। इसी भरोसे पर गल्ला बाई से शत्रुता ठानी है। गल्ला बाई के आक्षेप और आपत्ति के बावजूद ठीक वक्त पर निरंजना के घर आती है। इसीलिये निरंजना को नहीं लगा गुम्मन पूरे सप्ताह नहीं आयेगी।

अगले सप्ताह गल्ला बाई आई -

‘‘मालकिन, गुम्मन भाग गया।’’

निरंजना को गल्ला बाई फरेबी लगी।

8

‘‘क्या कहती हो गल्ला बाई ?’’

‘‘हमार सोन चिरैया। पाले-पोसे। कमाने लायक भई त भाग गय।’’

‘‘क्या कहती हो गल्ला बाई ?’’

‘‘हौ। गुम्मन, अमदरावाली कस बदमास रही। आप नये-नये सलवार-कुरथा पहिना के ओही अइसन चमकुल बना दिहेन के अइसन फर्राटा साइकिल चलाबत रही के टोला के लड़िका आसिक होइ जात रहे।’’

‘‘गुम्मन अच्छी लड़की है। उसके साथ कुछ हुआ है। गल्ला बाई थाने में रिपोर्ट लिखाओ।’’

‘‘थाना वाले गरीब के रिपोर्ट नहीं लिखय।’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ चलती हॅू।’’

‘‘गुम्मन के बदनामी होइ। आपौ के होइ।’’

गल्ला बाई बहुरुपिया। रोने में प्रशिक्षण प्राप्त। चालें तय करने वाली कूटनीतिज्ञ। खूब रोई फिर बर्तन माँजने के लिये आँगन में आ गई।

निरंजना अवसाद में।

ठीक अभी मिशन असफल हो गया। गुम्मन क्या सचमुच भाग गई ? तब तो इस लड़की ने खुद से अधिक निरंजना को ठगा है। यदि किसी के फुसलाने पर गई है तो बेवकूफ है। अब वह ऐसी मासूम या मूर्ख नहीं थी जो बहकावे में आ जाये। आत्मविश्वास और परिष्कार से भर कर अच्छी तैयार हो रही थी। एकनाथ ठीक कहते हैं इनके लिये एक सीमा से अधिक नहीं किया जा सकता। ये लोग अपनी भलाई नहीं क्षणिक लाभ देखते हैं। लाभ इनकी जरूरत ही नहीं मानसिकता भी है। इसीलिये ये लोग पगबाधाओं से नहीं छूट पाते। इनकी जिंदगी का विन्यास ही ऐसा है। ...........निरंजना न जान पाती गुम्मन पर क्या बीती पर परिस्थिति अक्सर अपना प्रमाण दे देती है। सच गवाही दे जाता है। मझली सूखे कंडे लेने आई। कंडे झौआ में रख रही थी। निरंजना ने खिड़की से पुकारा -

‘‘मझली, इधर आ।’’

‘‘का है मम्मा जी ?’’

9

‘‘गुम्मन का कुछ पता चला ?’’

‘‘नानी ने उसे पता नहीं कहाँ बेच दिया।’’

हद दर्जे का खुलासा।

‘‘बेच दिया ?’’

‘‘हौ। नानी कहती थी गुम्मन मजूरी करे। गुम्मन नहीं मानती रही। नानी उसे मारती-गरियाती थी के मलकिन ने इसे फैसनदार बना दिया है। मजूरी करने में लजाती है। का बतायें मम्मा जी। गुम्मन आपके घर आने को निकली थी फिर नहीं लौटी। नानी ने बेच दिया।’’

‘‘कितने में बेचा ?’’

‘‘दस हजार। बीस हजार। पता नहीं मम्मा जी। मेरे टोला से यह चैथी लड़की गायब हुई है। एक मिस्तरी (मिस्त्री) बड़ा बदमास है। नानी पहले उसके ठीहे में काम करती थी। कभी-कभी नानी के साथ बैठ कर दारू पीता है। वह नानी से बता रहा था गुम्मन तोतलाती है इसलिये दो हजार जादा दिलाया हूँ। तोतला कर बोलेगी तो लोग खुश हो जायेंगे। मम्मा जी मिस्तरी बहुत बदमास है।’’

भय, अविश्वास, करुणा से निरंजना की आह निकल गई ‘‘गुम्मन तोतली है। इतने रुपये में उसे कौन ले गया ?’’

निरंजना खरीद ले गया नहीं कह सकी।

‘‘पता नहीं।’’

‘‘मझली, तुझे गल्ला बाई से डर नहीं लगता ?’’

‘‘नानी मुझे और मनी को मानती है। गुम्मन, दसईया मामा की औलाद नहीं थी, सायद इसलिये नानी ने बेच दिया। गुम्मन की याद आती है ......... मम्मा जी कुछ करो .........।’’

अविश्वास में निरंजना।

10

यह कैसी दुनिया है, कैसा चलन जहाँ तुतलाना नये-नये रोमांच तलाश रहे नर पशुओं को रोमांच देने जैसी विशेषता बन जाता है ? निरंजना जानती है स्किन बिजनेस में स्पष्ट बोली, भाषा नहीं दैहिक आकर्षण प्रमुख होता है, जो भागी हुई माँ और गाँजे में धुत्त, अधपगले बाप की बेटी में गजब का था। नहीं जानती थी गुम्मन तुतलाती थी इसलिये कीमती थी।

--------------------


सुषमा मुनीन्द्र

व्‍दारा श्री एम. के. मिश्र

जीवन विहार अपार्टमेंट

व्दितीय तल, फ्लैट नं0 7

महेश्वरी स्वीट्स के पीछे,

रीवा रोड, सतना (म.प्र.) - 485001

मोबाइल: 07898245549

1 comment:

  1. सार्थक और सुन्दर।
    दूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।

    ReplyDelete

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...