कविता मनुष्यता के सबसे समीप
है
मनुष्यता का विकास कविता का विकास है। कविता मानवीय जीवन
का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। मानव जीवन कभी भी सम्पूर्ण
नहीं होता लेकिन उसे सम्पूर्णता प्रदान करने की कोशिश करती है कविता। जीवन भौतिक रूप
से कितना भी संतोषजनक हो, लेकिन फिर भी वह एक नितान्त निजी
आन्तरिक परिपूर्णता के लिए प्रयासरत रहता है, जो कभी प्राप्त नहीं होता, लेकिन कविता इस दिशा में एक कोशिश है। यह किसी व्यक्ति
विशेष की समस्या नहीं है, मानव जाति की समस्या है।
मुझे लगता है मनुष्यों के परस्पर व्यवहार में कुछ है जो बेहद विचलित करने वाला
है इस विचलन को नापने की एक कोशिश है कविता। कविता सहज आन्तरिक अनुशासन से युक्त सघन
लयात्मक शब्दार्थ है, जिसमें सह-अनुभूति उत्पन्न करने की
यथेष्ट क्षमता निहित रहती है। -नयी कविता, 5-6, 1960-61
कविता संवाद की एक विशेष कलात्मक विद्या है। भावोद्वेग
के लिए कविता सबसे सशक्त माध्यम है और उसके लिए किसी तथ्य का होना अनिवार्य है। कविता संवाद की ऐसी विद्या है जिसमें कवि का अंतःकरण सीधे
पाठक के अंतःकरण से संवाद करता है।
श्री रामचंद्र ओझा का कहना है कि काव्य सौन्दर्य बोध का
एक अप्रतिम माध्यम है। यह सांस्कृतिक जीवन की प्राणवायु है, किन्तु आधुनिक युग में काव्य के प्रति अभिरूचि कम हुई है।
वस्तुतः जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदला है, हमारी प्राथमिकतायें बदली हैं और हमारे सरोकार बदले हैं
जिससे काव्य ही क्यों, सम्पूर्ण कला और साहित्य अप्रासंगिक
हो गये हैं। किन्तु इसके लिए केवल वर्तमान सामाजिक परिदृश्य जिम्मेवार नहीं है। काव्येतर
प्रतिमानों से प्रभावित कविताओं का गुणस्तर इसके लिए उतना ही दोषी है।
कविताओं में काव्यात्मक भाषा से परहेज, रूपवादी मान्यताओं पर संदेह, प्रतीक-विमुखता तथा बिंबों का परित्याग, प्रयोगों की जगह सपाटब्यानी, यथार्थ और कल्पना की उलझने सबके सब आधुनिकता के प्रभाव
के नतीजे हैं। सौन्दर्य बोध की जगह यथार्थ बोध का प्रतिमान के रूप में प्रतिष्ठित किया
जाता कोई स्वतः स्फूर्त घटना नहीं थी, बल्कि यह विस्थापन-स्थापन आधुनिक विचारों की आँधी का परिणाम था।
समकालीन रचनाशीलता की कोख से ही समकालीन हिन्दी कविता का
जन्म होता है। समकालीन कविता हमारे वर्तमान संदर्भों की कविता है। इस कविता के भीतर
से हमारा भविष्य आंकता है। समकालीन कविता अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संघर्षों से जन्मी कविता है।
आज की रचना मनुष्य की यातना, पीड़ा और गुलामी की गवाही बनकर सत्ता और संस्कृति के दमनकारी
चरित्र और चेतना से मुठभेड़ कर रही है। दूसरी ओर इसमें उपभोक्तावादी और बाजारवादी मूल्यों
की भत्र्सना और आत्तीकार भी है। आज की कविता में अनेक संकटों एवं कठिनाइयों के बावजूद
कल अभी भी एक संभावना है। असंभव को संभव करने वाली संभावना। केदारनाथ सिंह के शब्दों
में-
मौसम चाहे जितना भी खराब हो, उम्मीद नहीं छोड़ती कविताएं।
आजादी के बाद की हिन्दी कविता ‘प्रगति’ और ‘प्रयोग’ की तमाम सर्जनात्मक सूचियों को अपने
में समेटे हुए नई कविता, अकविता, युवा कविता और नवप्रगतिवादी कविता आदि धाराओं से गुजर कर
यहाँ तक पहुँची है। पचास-साठ वर्षों की अपनी इस यात्रा में उसने अनेक दमकते हुए शिखर
और ऐंठते हुए ज्वार देखे हैं।
कविता के लिए संवेदनशीलता चाहिए, जिसका अर्थ है दूसरे की वेदना को अपनी वेदना समझना। आज
की कविताओं में संवेदना कम, विचार ज्यादा हैं। विचार से भी कविता
बनती है, बड़े विचारों से बड़ी कविता बनती
है। बड़ी कविता वही है जो हमारी भूमि को सुन्दर बनाती है।
आज की कविता अपने समय की सचाइयों को बेबाक तरीके से उजागर
कर रही है, इस लिए यह आशा भी बँधती है कि समाज
के विकास की अगली मंजिल में ले जाने के लिए जिस विचारात्मक संघर्ष की जरूरत है उसमें
एक सकारात्मक रोल कविता का भी होगा।
समय को नापना संभव नहीं लेकिन बुरे से बुरे समय में भी
प्रतिरोधक शक्तियाँ अपना काम करती रहती है। कविता में भी प्रतिरोध जारी रहता है। व्यक्ति
कठिन से कठिन समय में भी सत्य की खोज करता है।
‘‘नहीं होती,
कहीं भी खत्म नहीं
होती कि वह आवेग त्वरित कालयात्री है व मैं उसका नहीं कर्ता,
पिता - धाता
कि वह कभी दुहिता
नहीं होती-
परथ स्वाधीन है वह
विश्व शास्त्री है
गहन गंभीर छाया
आगमिष्यत की लिए
वह जन-चरित्री है।
-मुक्तिबोध
हिन्दी कविता आज विश्व की कविता से कहीं पीछे नहीं ठहरेगी।
इस कारण कविता का भविष्य तथा संभावनाएं काफी अच्छी है। पाठक एक बार फिर कविता की तरफ
वापस हो रहा है। अनन्तिम, समकालीन स्पंदन, पहल, सदानीरा, संवेदन, संकेत, गीत प्रिया, मृग मरीचिका, चर्वणा, नए हस्ताक्षर आदि पत्रिकाएं इस बात का प्रमाण हैं।
अरविन्द कुमार मुकुल
एल.एफ.27, श्रीकृष्णापुरी
पटना - 800001
मो0 - 09931918578
e-mail : mukul.arvind@gmail.com
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