Monday, 22 February 2016

पन्द्रह छोटी कविताएँ / राकेश रोहित

जीवन की आपाधापी में संवेदनाओं का कम होते चले जाना समकालीन समय में हमारी चिंता का मुख्य विषय है | युवा कवि राकेश रोहित की कवितायेँ पढ़कर इस बात की तस्दीक की जा सकती हैं | जीवन को शब्दों के माध्यम से कविता में बचा लेना चाहते हैं वे | राकेश कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाने वाले थोड़े से कवियों में से हैं | कवि की सूक्ष्म नज़र किस तरह कविता में ढलकर एक मार्मिक आख्यान में तब्दील होती हैं इनके यहाँ देखा जा सकता है | वे रचनात्मक रूप से निरंतर सक्रिय रहने वाले कवियों में से हैं | कवि को इन कविताओं को हमें उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद देते हुए प्रस्तुत हैं ‘स्पर्श’ के पाठकों के लिए उनकी पंद्रह नयी छोटी कविताएँ :
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1.
इंतजार

कविता लिखकर हर बार
मैंने तुमको सुनाने का इंतजार किया
तुमने कहा समय नहीं है!

फिर मैंने पत्तों को सुनाई कविता
उस बरस वसंत में बहुत फूल आए।

अब फूलों को तुम्हारा इंतजार है
मैं जानता हूँ तुम्हारे पास समय नहीं है!

2.
दुनिया ऐसे बदलती है

जहाँ छूट जाती है प्रार्थना की लय
वहाँ से उठता है उसका स्वर
कोरस से अलग गूंजती है उसकी आवाज
वह खुले दरवाजे पर खड़ी है
और खिड़कियों के बाहर बदल रहा है दृश्य
वह धीरे से शामिल हो गयी है इस दृश्य में
नारंगी फूल जो हँस रहा है उन्मुक्त हँसी
वह विनय की मुद्रा में नहीं है।


3.
तुम्हारे नाम का शब्द

जबकि तुम मुझे भूल गयी हो
डायरी के किसी पन्ने में
समय अब भी ठहरा हुआ है।

कल चाँद के पास
अकेला चमक रहा था तुम्हारे नाम का शब्द
तुम पढ़ना
मैं उसे कविता में उतार लाया हूँ।

4.
अनछुआ एक जीवन

सिर्फ यादों के सहारे वह नदी पार कर सकती है
घुप्प अंधेरे में वह स्मृति की नावों पर सवार है
सबसे कमजोर क्षणों में भी
नहीं खोलती वह स्मृतियों के दरवाजे
जिनके पार अनछुआ है एक लड़की का जीवन!

5.
जब घूम रही थी धरती

बच्चा गोल- गोल घूम रहा था
और उसके साथ चल रही थी धरती
फिर वह स्थिर हुआ
और घूमने लगी धरती!

वह हँसा
और जोर से तालियां बजाने लगा
दूरदर्शन देखने में तल्लीन
एक परिवार ने झिड़का उसे-
चुप रहो!

वे बदलते दृश्यों के निस्पंद गवाह थे
जब घूम रही थी धरती
वे पृथ्वी पर नहीं थे!

6.
मैंने उससे बात की

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था
और सुनने को कोई नहीं
मैंने देखा मेरी आँख में
एक आँसू अटका पड़ा था
मैंने उससे बात की
वह धीरे-धीरे बहने लगा।

7.
मैं उससे मिला एक दिन

मैं उससे मिला एक दिन
जिसे किसी ने हँसते हुए नहीं देखा
एक विश्वप्रसिद्ध पेंटिंग में उसकी
मुस्कराहटों की छवियां हैं
मैंने एक दिन उसकी बंद आँखों को चूमा था
वह अंधेरे में मोती बरसने की रात थी।

8.
एक अव्यक्त मन

मेरे पास रथ का कोई टूटा पहिया नहीं
बस कुछ अधूरे वाक्य हैं!
जब तेज संगीत के साथ बजती है
विजेताओं के आगमन की धुन
मैं खड़ा हूँ शब्दों की भीड़ में
एक अव्यक्त मन लिए
मुझे अभिव्यक्ति का एक अवसर दो
मैं तुम्हारे अंदर गूंजता स्वर हो जाना चाहता हूँ।

9.
वह

नदी के जिस ओर खड़ी थी स्त्री
उस ओर बहुत फिसलन थी
और काई
कि खड़ा होना मुश्किल था
फिर भी तुम्हें देखना चाहती थी वह
इसलिए वह खड़ी रही।

10.
चिड़िया, बारिश, सपना और पेड़

धूप में बैठी चिड़ियों को
बारिश के सपने आते हैं
एक दिन सपने में बारिश होती है
और लौटती है चिड़िया पेड़ पर!


 11.
तुम्हारी आवाजों को जगह


मैं धूप में इसलिए निकल आया हूँ
कि थोड़ी छाया हो धरती पर
मैं खामोश रहता हूँ इस शोर में
कि तुम्हारी आवाजों को जगह मिले!

12.
उस राह पर दीपक

हर रात एक जलता हुआ दीपक
उस राह पर रख आता हूँ
जिस राह पर तुमने कहा था
फिर कभी नहीं मिलना!

13.
संशय क्यों हर प्रेम पर छाया है


संशय क्यों हर प्रेम पर छाया है?

क्योंकि प्रेम पृथ्वी है
और संशय आकाश!
आकाश की छाया डोलती है
पृथ्वी की देह पर
और पृथ्वी के धुले चेहरे पर
आकाश के चुंबनों के निशान हैं!

क्योंकि प्रेम मैं हूँ
और संशय तुम!

14.
सौ आँखें और एक सपना

तुम्हारी सौ आँखों में
मेरा एक सपना नहीं समाता
मैं जिसे देखता हूँ
तो बची रह जाती है
दुनिया में तुम्हारी जगह!

15.
इस दुनिया में छल


इस दुनिया में सिर्फ छल चमकता है
और तुम्हारी आँखें इसलिए चमकती हैं
क्योंकि मुझको छलती हैं
वो निश्छल आँखें!

०००००


राकेश रोहित 
जन्म : 19 जून 1971 (जमालपुर)
संपूर्ण शिक्षा कटिहार (बिहार) में. शिक्षा : स्नातकोत्तर (भौतिकी)
कहानी, कविता एवं आलोचना में रूचि
पहली कहानी "शहर में कैबरे" 'हंस' पत्रिका में प्रकाशित
"
हिंदी कहानी की रचनात्मक चिंताएं" आलोचनात्मक लेख शिनाख्त पुस्तिका एक के रूप में प्रकाशित और चर्चित. राष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओ और ब्लॉग में विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन
सक्रियता : हंस, कथादेश, समावर्तन, समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, नवनीत, गूँज, जतन, समकालीन परिभाषा, दिनमान टाइम्स, संडे आब्जर्वर, सारिका, संदर्श, संवदिया, मुहिम, कला, सेतु आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, लघुकथा, आलोचनात्मक आलेख, पुस्तक समीक्षा, साहित्यिक/सांस्कृतिक रपट आदि का प्रकाशन. अनुनाद, समालोचन, पहली बार, असुविधा, स्पर्श, उदाहरण आदि ब्लॉग पर कविताएँ प्रकाशित
संप्रति : सरकारी सेवा
ईमेल - rkshrohit@gmail.com

10 comments:

  1. Vah rakesh ji.bahut achchhi kavitaye.nayapan sukhad hai

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  2. Vah rakesh ji.bahut achchhi kavitaye.nayapan sukhad hai

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  3. बहुत सुंदर कवितायेँ

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  5. प्रेम की बहुत ही सहज और सुंदर अभिव्यक्ति राकेश रोहित की इन कविताओं में सौंधी गंध की तरह जीवन को उल्लसित कर रही हैं। बधाई राकेश रोहित भाई और राहुल देव भाई को

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  6. वे बदलते दृश्यों के निस्पंद गवाह थे
    जब घूम रही थी धरती
    वे पृथ्वी पर नहीं थे!
    सुन्दर कविताएँ राकेश जी।

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  7. वे बदलते दृश्यों के निस्पंद गवाह थे
    जब घूम रही थी धरती
    वे पृथ्वी पर नहीं थे!
    सुन्दर कविताएँ राकेश जी।

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  8. आप जब भी अपनी रचनात्मकता के साथ सामने आते हैं चकित कर जाते हैं। धन्यवाद। सारगर्भित कविताएँ।

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  9. आप जब भी अपनी रचनात्मकता के साथ सामने आते हैं चकित कर जाते हैं। धन्यवाद। सारगर्भित कविताएँ।

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  10. बहुत खूब 👌👌

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