‘स्पर्श’ पर इस हफ्ते तीन कवि : तीन कविताओं की
श्रृंखला में पढ़िए –
1- विजेंद्र
2- केशव
तिवारी
3- माणिक
---------------------------------------------------------------------------------
कामना / विजेन्द्र
मैंने हर ढलती साँझ के समय
सदा सूर्योदय की कामना की है
जब सब छोड़ कर चले गए
वृक्ष मेरे मित्र बने रहे
खुली हवा... निरभ्र आकाश में
साँस लेता रहा
निखरी धूप में
फूलों ने अंग खोले
वह सूर्य-बिन्दु भी मुझे दिखाओ... वह नखत-पंख
जब सबसे पहले
मेरे पूर्वजों ने सहसा, अचक
मिट्टी का हरा-स्याह ढेला फेंक कर
दमकता ताँबा पा लिया
मैं हिम, पाषाण, धातु
युग के पुनर्जागरण काल से
गुज़र कर यहाँ तक आया हूँ
धातुओं को रूप बदलते पहली बर देखा
ओह... जैसे अग्नि की आत्मा चमक उठी हो
कितनी हैरत में हूँ
कहाँ देख पाऊँगा उन्हें
जो चकमक के हथौड़े से धातु को पीटकर
कुल्हाड़ों के फाल...
कुदालों...बर्छियों में बदल रहे थे
कैसे हरे-भरे वृक्ष जीवाश्म बने
कुछ नष्ट नहीं हुआ
रूप और सौन्दर्य बदले हैं
मुझे खदान में उतरते किसी ने देखा
उस समय तनी रस्सियाँ...दाँतेदार बल्लियाँ
मेरी दोस्त थीं
मृत्यु का सामना थ
नीचे गाढ़े अँधेरे में उम्मीद की तीख़ी कौंध
धुएँ की कड़वी घुटन
नन्हें से तेल के दिए की रोशनी में
अपनी साँसों का ध्रुपद सुना है
पोली चट्टानों के खिसकने से
खनिज जहाँ-के-तहाँ दफ़न हुए
हर बार दानव ने मेरी आत्मा का सौदा किया है
मुझे बँधुआ बना के रखा है
बहुत पुरानी खदानों में
खनिकों की गली ठठरियाँ
बड़े-बड़े खण्डों के नीचे मिली हैं
एक युग डायनासोरों का भी था
लद्धड़ सोच ने उन्हें
प्रकृति के महागर्त में बैठाया
जब चकमक के भण्डार चुके
मैंने हरे-स्याह पत्थर को आँच में तपाया
हर क्रिया में मेरा जन्मोत्सव था
नए क्षितिज, नए द्वार, नई
उषा, नया भोर
आँखों ने रोशनी की ज़ुबान सीखी
मेरा हर क़दम आगे पड़ा
आज मैं जिन अदृश्य अणुओं को
बारीक औज़ारों से तोड़ने को बैठा हूँ
उसकी शुरूआत बहुत पहले
कर चुका हूँ
न आँच बुझी है
न हाथ हारा है ।
-
संपर्क- C/o आर.एन. मणि, म.न. – 503, अरावली, ओमैक्स हिल्स, सेक्टर-43, ग्रीन लैंड के पास, फरीदाबाद (हरियाणा) 121001
ईमेल- kritioar@gmail.com
-
बाँदा / केशव तिवारी
यह
शहर मेरे लिए
चौदह
बरस पुराना है.
किन्हीं
और के लिए
और
ज़्यादा
कितना
ही नामालूम और
छोटा
हो यह
पर
इसके बिना देश का
नक्शा
पूरा नहीं होता
इसको
ज़िक्र आते ही
जब
लोग
चोरी, हत्या लूटमार
की
बातें करते हैं
तब
दुःख होता है मुझे
क्यों
नहीं याद आता उन्हें
अट्ठारह
सौ सत्तावन का नायक
नवाब
बांदा
कामरेड
दुर्जन,
प्रहलाद
तुलसी
पद्माकर,
केदार
क्यों
नहीं आते याद
उन्हें
दिखना चाहिए यहाँ के
होश
एवं प्रेम से लबरेज युवा
इश्क
की मद्धिम-मद्धिम आंच में
सिकते
हुए दिल
कुछ
दिनों के लिए
होता
हूँ जब बाहर
ये
आकर खड़ा हो जाता है
सिरहाने
कहता
है चलो घर चलो
अब
बहुत दिन हो गए
महाकौशल
ट्रेन से घर लौटते
मीलों
दूर से खुल जाती है
मेरी
नींद और मैं
ताकने
लगता हूँ भूरागढ़ का दुर्ग
सुनता
हूँ शहर की नींद में
खलल
डालती
इंजन
की कर्कश आवाज़
पर
रात भर जगी
कुछ
आँखों के लिए
इस
आवाज़ का
क्या
मतलब है
मैं
यह समझ सकता हूँ
पल-पल
बदलता ये शहर
मैं
नहीं जानता मेरे बाद
किस
सूरत में होगा.
पर
इतना तो अवश्य जानता हूँ कि
मेरे
बाद भी
मेरे
जैसा ही कोई कवि
इसकी
बदली हुई सूरत पर
कविता
लिखेगा.
-
संपर्क - c/o पाण्डेय जनरल स्टोर, कचहरी चौक, बाँदा (उ.प्र.)
210001
-
मुश्किल रास्ते पर / माणिक
राजस्थान में रहता हूँ मैं
भीतर राजस्थान बस जाने के बाद भी
जगह बचाकर रखता हूँ हमेशा
मुज़फ्फरनगर और कोलकाता के लिए
हँसना जानता हूँ
पहाड़ों,पेड़ों और पक्षियों के बीच
जब भी होता हूँ हँसता हूँ
रोना मेरे लिए हूनर का होना नहीं है
रोना आया है जब-तब
रोया है मेरा राजनादगाँव, देवगढ़
और बैतूल
आँखें लाल हो जाती है गुस्से में मेरी
नारे उछालने लगती है ये ज़बान
दीवारों पर पोस्टर चिपकाने
लेई बनाने में जुट जाते हैं दोनों हाथ
बुद्धि भाषण गड़ने लगती है
विवेक बैठक की जाजम में पड़ी सलवटें ठीक करने लगता है
इस तरह
जब भी जलती है तुम्हारी बस्ती
उदास होता हूँ मैं भी
समझने का एक ओर सरल तरीका
कि मैं और तुम एक ही हैं भाई
गोया
तुम्हारे शहर की तरह ही
यहाँ भी ठीक उसी वक़्त
बढ़ते और उतरते हैं
पेट्रोल, डीज़ल और सिलेंडर के दाम
वे तमाम लोग एक ही हैं
एकदम हमारे विरुद्ध
अच्छे परिणामों और मुश्किल रास्तों के बीच
रोड़े अटकाते हुओं की तरह
भाई
तुम राजधानी में निकालते हो रैली जब भी
मैं यहीं से जी-भर गालियाँ बकता हूँ तख़्त को
खर्चीली कोरट-कचेरी और वकीलों के बीच
जब-जब भी तुम्हे न्याय मिला और
लफंगों से मिली निजात तुम्हें
यहाँ गाँव में मैंने भी बँटवाए हैं
जलेबी और गुड-भूंगड़े
-
सम्पर्क- द्वारा जगदीश
मंडोवरा,10-ए,कुम्भा नगर, स्कीम नंबर-6, चित्तौड़गढ़-312001, राजस्थान।
ई-मेल- manik@apnimaati.com
-
तीनों कवितायेँ बेहतरीन हैं.... साझा करने का आभार
ReplyDeleteअपने अभियान में शामिल करने का शुक्रिया भाई
ReplyDeleteबेहतरीन कवितायेँ...
ReplyDeletekavitayen acchi lagin, dhanyvad.
ReplyDeleteShaandaar chayan...badhai!!
ReplyDelete