तीन कवि तीन कविताओं की श्रृंखला में इस बार प्रस्तुत हैं कवयित्री रति सक्सेना, वंदना ग्रोवर, और सुलोचना वर्मा की कविताएँ :
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मेरी हथेली पर रख
मुट्ठी बन्द कर दी
पसीजी मुट्ठी लिए
मैं देखने लगी सपने
बीजों में अंकुर
अंकुर में रेशा
रेशे में जड़
दो पत्तियों पर खड़ा हुआ
लहराता दरख्त
आँख खुली तो पाया
उनके हिस्से में खड़ा था
वही दरख्त
जिसे लगाया था मैंने
अपने आँगन में
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ईमेल- saxena.rati@gmail.com
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जान लेती हैं
जब मां होती है
प्रेम में
फिर भी वह करती हैं
टूट कर प्यार
माँ से
एक माँ की तरह
थाम लेती है बाहों में
सुलाती हैं अपने पास
सहलाती हैं
समेट लेती हैं उनके आंसू
त्याग करती हैं अपने सुख का
नहीं करती कोई सवाल
रिश्तों को कटघरे में
खड़ा नहीं करती
अकेले जूझती हैं
अकेले रोती हैं
और
बाट जोहती हैं माँ के घर लौटने की
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ईमेल- groverv12@gmail.com
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जब वे करते हैं भेदभाव जीवन में
जैसे कि मेरी नानी की सफ़ेद साड़ी
और उनके घर का लाल कुआं
जबकि नहीं फर्क पड़ना था
कुएं के बाहरी रंग का पानी पर
और तनिक संवर सकती थी
मेरी नानी की जिंदगी साड़ी के लाल होने से
मैं अक्सर झाँक आती थी कुएं में
जिसमे उग आये थे घने शैवाल भीतर की दीवार पर
और ढूँढने लगती थी थोड़ा सा हरापन नानी के जीवन में
जिसे रंग दिया गया था काला अच्छी तरह से
पत्थर के थाली -कटोरे से लेकर, पानी के गिलास तक में
नाम की ही तरह जो देह था कनक सा
दमक उठता था सूरज की रौशनी में
ज्यूँ चमक जाता था पानी कुएं का
धूप की सुनहरी किरणों में नहाकर
रस्सी से लटका रखा है एक हुक आज भी मैंने
जिन्हें उठाना है मेरी बाल्टी भर सवालों के जवाब
अतीत के कुएं से
कि नहीं बुझी है नानी के स्नेह की मेरी प्यास अब तक
उधर ढूँढ लिया गया है कुएं का विकल्प नल में
कि पानी का कोई विकल्प नहीं होता
और नानी अब रहती है यादों के अंधकूप में !
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ईमेल- verma.sulochana@gmail.com
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तीनो कविताएँ बेहतरीन। मनीषा जैन
ReplyDeleteरति जी को मैं पढ़ती हूँ और उनकी रचनाएँ मुझे अच्छी लगती हैं ; वंदना जी की यह कविता मुझे बेहद अच्छी लगी; एक अलहदा विषय...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ बेहद उम्दा
ReplyDeletesimply hridaysparshi
ReplyDeleteकितना कुछ कहती हैं ये तीनों कवितायेँ, बगैर किसी शोर के चुपचाप स्त्री मन के विविध परतों को खोलती हुई सी ....बेहतरीन चयन | बधाई !!
ReplyDeleteall is best...
ReplyDeleteपहली कविता -रति सक्सेना जी की जिनकी मुट्ठी में कैद है एक आशा .. जिसमे पनप जाना है एक पौधा आशाओं का ... बेहतरीन ख्याल
ReplyDeleteदूसरी कविता है प्रिय वंदना ग्रोवर जी की - जाहिर है पढ़ कर कि माँ बेटी के रिश्ते कि मीठी सी सुगंध से भर उठी है उनकी ये अनमोल कविता
तीसरी कविता कुछ जीवन के कडवेपन मिठास ढूंढती हुई सी प्रतीत हुई , कि सफ़ेद रंग में कवियत्री सुलोचना वर्मा ने तमाम रंग भरने की कोशिश की है अपनी कलम कि सियाही से
आप तीनों ही बधाई की पात्र हैं ,,, मेरी शुभ कामनाएं आप सभी को ... मैं, निशा
सलोनी कविताएं । जीवन के कटु यथार्थ को भोगती
ReplyDeleteVery effective and creative writing.
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