Saturday 12 June 2021

स्त्री लेखन की चुनौतियाँ

स्वतंत्रता के पूर्व सन् 1917 ई० से 1920 ई० के समय केवल एक ही विषय पर प्रधान रूप से चिन्तन मनन हुआ कि किस भाँति स्त्री शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाना था। यह वह समय रहा जब बदलते हुये समाज के पुरूष और अशिक्षित स्त्री के बीच के अन्तराल की भरपाई स्त्रियों के लिये पृथक स्कूल खोलकर की गयी। एक आवश्यकता महसूस की जाने लगी कि स्त्रियाँ गृहस्थी के संकुचित दायरे से बाहर निकल कर बाहरी दुनिया की तमाम गतिविधियों में आर्थिक सहभागिता दिखाएं। उस समय स्त्रियों को परम्परावादी बेड़ियों की जकड़ तोड़कर कलम चलाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था। 

            आज के प्रासंगिक समय में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है।आज स्त्रियाँ जहाँ प्रगतिवादी कविता के भीतर वैयक्तिक सामाजिक जीवन के प्रेम मूल्य को साध चुकी हैं। वे  नागार्जुन, त्रिलोचन, मुक्तिबोध, शमशेर के प्रेम काव्य से हटकर स्त्री पुरूष संबंधो पर बेबाकी से लिखना चाहती हैं। वह छायावादी वायवीय वातावरण से कोसों दूर खास किस्म की फैंटेसी से इतर प्रणय-व्यंजना जैसे विषय को लेखन का विषय नहीं चुनती। अतएव इन सब कारणों को देख स्त्री का लेखन कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा यह अनुभूत होता है।

आज की स्त्री अकविता के दौर पर प्रेम की जगह सेक्स का विषय नहीं उठाती। वह देह श्रृंगार से परे नारी के दमनित यौवन और समाज की उस भोग्या को लेखन की विषय वस्तु मानकर लिखती है। वह समाज में कहीं न कहीं आत्मानुभव के खाके को बुनकर आज परिवेश में नारी की स्थिति और उसकी अस्मिता को सहेजते हुये लिखने की पक्षधर है।आज सीधा सवाल मन में जनित होता है पुरूष कवियों के लेखन पर वाहवाही और स्त्री लेखन पर स्त्री लेखिका का उलाहना का शिकार होना क्या तर्कसंगत और न्य़ायपूर्ण है। जगदीश चन्द्र गुप्त की तरह वे किसी भी सूरत में संभोग में सम्मिलित रहते हुये ईश्वरीय सुख पाने को लालायित होती नहीं दिखतीं।

              वास्तव में आज ज्यादातर लेखक टूटते बिखरते संबंधों पर कलम चला रहे। सच कहूँ तो अब आत्म निर्वासन  के विकल्प के रूप में पुरूषों में पशुता की भावना की तीव्रता ने कई मानसिक विकृतियों को जन्म दे दिया है। नारी के भोग की स्वतंत्रता और नपुंसकता ने आज के पुरूषों की मांसलता का उद्भव ही किया। जो आगे चलकर आधुनिक युग में सेक्स का यह नवदर्शन कई वर्जनाओं को लेकर विकसित हुआ। इस समय तक मनुष्य यथार्थ से पलायन करते करते अपनी कल्पनाओं से विसंगतियों के रहस्य खोजने में तल्लीन हो चुका था। वह सेक्स संबंधों की स्वतंत्रता से रचनात्मक अभिव्यक्तियाँ करने को आमादा था। जिधर देखो नारी के बाहरी अंगों में अन्तर्लोक के दर्शन हो रहे थे जिसका प्रभाव यह हुआ कि समूचा मनोविज्ञान का विज्ञान जैविक बोध के निकट आता चला गया। धूमिल की कविताओं तक आते आते हम स्त्री सन्दर्भ में एक विरोधाभासी मूल्य दृष्टि का अवलोकन करते हैं।

समकालीन दौर में स्त्री सामाजिक राजनैतिक विसंगतियों पर प्रहार करने के निमित्र स्त्री को लेखन में औज़ार की तरह प्रयोग किया जा रहा था।धूमिल ने जरूर इन राजनैतिक स्थितियों का पर्दाफाश करने में सफलता पाई है, वे नयी पीढ़ी के दिशाहीन युवकों को उनके आमोद प्रमोद को प्रतिबिम्बित करने के लिये पिकनिक से लौटी लड़कियों से प्रेमगीत के गरारे और कुल्लीकरण करा देते हैं।

 1960 ई० तक आते आते स्त्री अकवितावादी स्त्री संदर्भगत कविता की रचना प्रक्रिया भाव बोध उस समय की पुरूषवादी मनःस्थिति पर धूमिल के कई वक्तव्य भी जारी होते है वे इस पर लिखते भी हैं कि "स्त्री विरोधी मनोग्रंथियो के चलते ही पुरूष स्त्री के लिये साथ अपने लिये भी नर्क तैयार करने में जुट पड़ा है।" 

उनकी एक कविता की ये पंक्तियाँ सहज यह बयान करती जाती हैं:--

"उम्र के सत्ताईस साल/ उसने भागते हुये जिए हैं/ उसके पेशाब पर चींटिया रेंगती हैं/ उसके प्रेम पत्र की आंच में/ उसकी प्रेमिकायें रोंटियां सेंकती हैं/अपनी अधूरी इच्छाओं में झुलसता हुआ/वह एक संभावित नर्क है/ वह अपने लिये काफी सतर्क है/ और जब जवान औरतों को देखता है उसकी आंखों में कुत्ते भौंकते हैं।"

        इस मनोवेग को आज की पीढ़ी की प्रत्येक लेखिका ने अनुभूत किया और स्त्री लेखन की हर चुनौती को स्वीकार किया है।वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गल, मैत्रयी पुष्पा, मृदुला गर्ग ममता कालिया एवं मणिका मोहनी जैसी संवेदनशील  उपन्यासकारों ने स्त्री विमर्श पर जमकर लिखा है।कविता में अश्लीलता के सवाल पर आज हर महिला ने विरोधी स्वर उठाये हैं।आज की पीढ़ी की लेखिकाओं में डा० सुनीता सिंह,डा० भावना, प्रज्ञा रावत, मधु प्रधान, गीता पंडित,प्रज्ञा पांडे,रूपा सिंह,सोनी पांडे, अनुराधा सिंह,अपर्णा अनेकवर्ण, सुलक्षणा राजवंशी दत्ता, पुष्पा तिवारी, मनीषा कुलश्रेष्ठ, कविता, अलकनंदा साणे, सुशीला पुरी, प्रज्ञा रोहिणी, ऋतु सागर, आभा बोधिसत्व की कविताओं के नारी विमर्श पर शामिल विषय वस्तु को गहरे तक अध़्ययन मनन की आवश्यकता प्रतीत होती है।

वंदना राग, डा० पदमा शर्मा, निशि शर्मा, व प्रज्ञा पांडे व हाल सोनी पांडे व सिनिवाली शर्मा की कहानियाँ कई संवेदनशील विषयों पर आवाज बुलंद करती है।आज की युवा पीढ़ी से संध्या नवोदिता, रश्मि भरद्वाज, शैली किरण, कविता, शैलजा पाठक, अलका प्रकाश और हाल चर्चित रूपा सिंह, प्रियम्वदा सिंह, विशाखा के कवित्व और आलेख को हर हाल में तवज्जो देने की जरूरत समझता हूं।

         आज सभी लेखिकाओं ने जहाँ स्त्री होने की पीड़ा, उसके साथ हो रहे अन्याय और असमानतापरक व्यवहार के खिलाफ स्त्री को घर परिवार, चूल्हे चौके, एक बंद कमरे की चहरदीवारी फाँद कर अपने अधिकार को सहेजने की बात की है और किसी भी सूरत में पुरूषों में केवल मनोवादी भोग्या बनकर रहने से इंकार किया है।

   आज के वर्तमान अधिकारों के सापेक्ष पुरूष के बराबर अधिकार मांगने को कलम चलायी है।सच कहूं मेरी नजर में ऐसी कलमकारी करना आज के चलन के हिसाब से जरूरी रहा।स्त्री चैतन्य का, उसके जागरण का बेहतरीन उदाहरण आज सौन्दर्या नसीम, अंजू जिंदल के आलेख हैं।अर्चना गौतम, चेष्टा सक्सेना का आलेख व गज़लें स्त्री मन में दबी पीड़ा को सहज दर्शाती हैं।

  नीलिमा चौहान ने अपने "पतनशील पत्नियों के नोट्स" श्रृंखला में स्त्री अस्मिता से जुड़े हर बारीक पहलू पर खासा ध्यान दिया है।ममता सिंह जी की कलम नारी शोषण पर लगाम कसने हेतु विशिष्ट आह्वान करती प्रतीत होती है।

   विगत के दिनों में शैलजा पाठक की कलम बाखूबी स्त्री चुनौतियों पर चली है।सच उनकी कलम तो मानो जमीन हकीकत तलाशती है। बहुत सहजता से किसी स्त्री का मन पढ़कर बेबाकी से स्त्री लेखन की चुनौती को समाज में प्रस्तुत करती हैं।वह तब और अब के समाज में पुरूष मन की संकीर्ण सोच को नकार कर स्वस्थ दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।उनकी कविताओं में स्त्री अस्मिता पर अलग ही दृष्टिकोण पाता हूँ।

        आशा करता हूँ कि आगे भी इस समाज के सुधी कवि लेखक/लेखिकाएं, कवि/कवयित्रियाँ, लेखन में आयी चुनौतियों को साधते हुये लेख में ऊपरवर्णित स्त्री लेखन की चुनौतियों के परिवेश में स्त्रियों के साथ हो रहे अनाचार, यौन अपराध, घरेलू हिंसा पर लगाम कसान हेतु लगातार कलम चलाते रहेंगे।

 

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विमल चन्द्राकर

शिक्षा: एम०ए, बीएड (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

रूचि: कविता लेखन और गायन, स्वतंत्र लेखन।

विभिन्न‌ पत्र पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।

प्रकाशित पुस्तकें- १- परिधि पर समय साझा काव्य संग्रह २- कलाप साझा कविता संग्रह ३- अधूरे हम तुम (प्रथम काव्य संग्रह)

पुरस्कार: 1- अखिल भारतीय साहित्य परिषद युवा साहित्यकार सम्मान, कानपुर 2015 2- साहित्य सागर सम्मान, दिल्ली 2017 3- मत प्रेरणा सम्मान, आगरा 2019

पता: 297- बी, चन्द्र विला, आनंद विहार थाना नौबस्ता, कानपुर नगर पिनकोड: 208021

संपर्क सूत्र: 8726452002

ईमेल: vimalchandrakar@gmail.com

8 comments:

  1. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 14  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

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  2. अति सुंदर रचना
    सादर

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  3. बहुत सी लेखिकाओं के नाम यहां लेखक ने दिए हैं , इससे इतर भी बहुत लेखिकाएं हैं जो अन्याय के खिलाफ लिख रही हैं और अपनी आवाज़ बुलंद कर रही हैं ।।
    सही गलत का विश्लेषण करती हैं ।
    ऐसे विषय उठाते रहने चाहिए । साधुवाद ।।

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  4. 1917 से 2021 के बीच काफी सारा जल नदी -नालों में बह चुका
    है,इन सबमें नारी सदैव भोग्या ही बनी रही,जबकि इस कार्य में निर्माण भी जुड़ा है,इस पर किसी ने गौर नहीं किया..
    विमर्श और बाकी है..
    सादर..

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  5. बेहतरीन लेख आदरणीय।

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  6. बहुत सुंदर स्त्री लेखन पर उपयुक्त आलेख

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  7. बहुत सटीक आलेख

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