नौटंकीबाज बच्चा
सरकारी स्कूल के बच्चे मैदान में खेल रहे थे। तभी एक बच्चा रोते
हुए, भागते हुए, मास्टर जी के पास आया, उसके पीछे, उसके साथ खेलने
वाले कुछ बच्चे भी आ गये। रोता हुआ वह बच्चा मास्टर जी से चिंहुकते हुए बोला- मास्टर जी ये सब मिलकर मुझे मार रहें है।
"हाय! कित्ता झूठ बोलता हैं यह खुद हम को धड़ाधड़ मार के आ रहा है, ऊपर से, हमारे ऊपर झूठा
आरोप लगा रहा है-एक बच्चा मास्टर जी से हैरानी से बोला।
वह बच्चा रोता रहा।
"हां हां म...ऽ ऽ मास्टर जी, ये बिलकुल झूट्ठा है- दूसरा बच्चा हकलाते
हुए जल्दी-जल्दी में बोला।
बच्चे ने अपना रूदन और तेज का दिया।
"हां हां मास्टर जी, ये बहुत बड़ा नौटंकीबाज है।... इसका
बाप भी बड़ा नौटंकीबाज है, इसका दादा भी नौटंकीबाज है, इसका पूरा खानदान नौटंकीबाज
है।....ऐसे ही दूसरो को ये लोग पीटते हैं, मारते हैं और उल्टा रोते हुए थाने में
चले जाते हैं ताकि इनका बाल बांका न हो और उल्टा इनसे पिटनेवाला दुबारा फिर पिट जाए पुलिस से।
अब रोता हुआ वह बच्चा आसमान सिर पर उठा कर कुत्ते जैसा बिलख-बिलख
कर रोने लगा।
"मास्टर जी मेरी गलती नहीं... मास्टर जी यह झूठा, यह मक्कार है! यह
धोखेबाज है।.. रोने वाले बच्चे से पिटे बच्चे, दुबारा मास्टर जी से न पिटे, इसलिए अपनी पूरी
सफाई देने लगे।
अब लड़के का रूदन राग पंचम स्वर में था। मास्टर जी ने अपना माथा पीट कर, एक संटी उठाई। दड़बड़ाते हुए बोले-नालायकों एक साधु से लगने वाले बच्चे को खामखा परेशान कर रहे हो। शिकायती सारे बच्चे फुर्र से फौरन उड़ गए। अब मास्टर जी रोते हुए उस बच्चे के सिर पर हाथ फेर रहे थे। रोने वाला नौटंकीबाज बच्चा, अपनी आंखों में हंस रहा था, मन में कह रहा था, नौटंकीबाजों से दुनिया हारी है।
इंसानियत के देवता हारे
वह मर गई। वह एक वेश्या थी। जब लोगों को यह पता चला कि वह कोरोना से
मरी, तो उसके सारे आशिक और भड़ुवे भी मर गए। अब उसकी लाश लावारिस पड़ी
थी।.... अब उस लाश को नगर पालिका की कूड़ा गाड़ी लिए जा रही थी। अपने घरों से झांकते
हुए लोग उसे देख रहे थे-कह रहे थे, "बड़े-बड़े धन्ना सेठ, नेता, मंत्री जिसके पैरों
में लोटा करते थे आज उसी पैरों को कुत्ते भी सूंघना नहीं चाहते। वाह रे! कोरोना
तेरी क्रूरता से दुनिया हारी,
दुनिया के सारे हुस्न हारे, इंसानियत के सारे
देवता हारे।
परिक्रमा
पहले वह अस्पताल के 'बड़े' साहब के पास गई। 'बड़े' साहब ने 'छोटे' साहब के पास भेजा। छोटे साहब ने 'उस' साहब के पास भेजा। 'उस' साहब ने 'फलाने' साहब के पास भेजा, 'फलाने' ने 'ढिकाने' के पास भेजा। इस तरह वह दिन भर भटकते हुए मर गई। अगले दिन अखबार में खबर छपी-प्रसव कराने लिए, अस्पताल में भर्ती होने के लिए, आई एक प्रसूता,सारा दिन कोरोना जांच के लिए अपने पति के साथ यहां-वहां भटकती रही, किसी ने उसे अस्पताल में भर्ती नहीं किया, जिससे वह मर गई। डीएम साहब ने उस अस्पताल के 'बड़े' साहब को आदेश दिया है कि प्रसूता कैसे मरी इसकी निष्पक्ष जांच करें।
अमानवीयता
पति एकदम से फट पड़ा-नहीं! अब घर में ही पड़े-पड़े खाना है और मर जाना
है। दुनिया के लिए छुट्टी है,
पर हम पुलिस वालों के लिए नहीं, हमें तो बस मरना है
ड्यूटी पर।
“बात क्या है,पूरी बात, बताओ तो सही?“
“क्या बताएँ? आंय! क्या बताएँ? अस्पताल नहीं?
डाक्टर नहीं? दवाएँ नहीं? ऑक्सीजन नहीं?
बस सेन्ट्रल विस्टा खा लो, स्टेडियम खा लो, और मंदिर खा लो, बच जाएँगे सब
कोरोना से। लाइलाज लोग मर रहें हैं, उनके पास लाश फूँकने तक का पैसा नहीं? गंगा में शव बहाए जा रहे हैं। कुत्ते नोंच रहें हैं। अब तुम्हीं
बताओ,जब उस लाश को कुत्ते नोंच रहे थे, दुनिया तमाशा देख
रही थी, तब हम लोगों ने किसी तरह टायर-फायर से उसे जला दिया, तो हमारे ही ऊपर
हाकिम हावी है। कह रहा है, तुम ने अमानवीता की, इसलिए निलंबित।“
“हाकिम को देखना
चाहिए क्या सही है, क्या गलत?
“सब अंधे-बहरे हो गए
हैं। हाकिम को मोर नचाने से फुरसत कहाँ? जो हमारी और जनता की तकलीफों को समझे?
“अब क्या करोगे?“
“घर में बैठ कर भगवान का स्मरण करते हुए, अपनी अमानवीयता का पश्चाताप करेंगे।“
अब दोनों से खामोशी से मुँह लटकाए बैठे थे, उनके चेहरों से अपराध भाव टप-टप टपक रहा था। ऐसा लग रहा था, कोरोना से बेमौत मरने वालों के असल दोषी-दुश्मन वहीं हो।
नाम- सुरेश सौरभ
मूल नाम- सुरेश कुमार
पिता-स्वः केवल राम
शिक्षा- बीए(संस्कृत) बीकाम, एम०ए० हिंदी, यूजीसी नेट हिंदी ।
पत्नी- श्री मती अंजू , बेटी-कृति शाक्य
माता- श्री मती कमला देवी।
पता- निर्मल नगर लखीमपुर- खीरी उ० प्र० पिन-262701
जन्म तिथि-03-06-1979
प्रकाशित-दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, हरिभूमि,
अमर उजाला, हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, सोच विचार ,विभोम स्वर, कथाबिंब,
पंजाब केसरी, ट्रिब्यून सहित देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं एवं बेब पत्रिकाओं में
सैकड़ों लघुकथाएं, बाल कथाएं व्यंग्य लेख ,कविताएं, समीक्षाएं,
आदि प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें- एक कवयित्री की प्रेमकथा (उपन्यास), नोट 'बंदी',
तीस-पैंतीस,वर्चुअल रैली (लघुकथा
संग्रह) अमिताभ हमारे बाप (हास्य-व्यंग्य) नंदू सुधर गया (बाल कहानी संग्रह),निर्भया (कविता
संग्रह), १०० कवि,
५१ कवि, काव्य मंजरी, खीरी जनपद के कवि
(संपादित ग्रंथ)।
भारतीय साहित्य विश्वकोश में 41 लघुकथाएं शामिल। यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया में लघुकथाओं व
हास्य-व्यंग्य लेखों की व्यापक चर्चा।
एक लघुकथा ‘कबाड़ी’ पर शार्ट फिल्म का निर्माण।
चौदह साल की उम्र से लेखन में सक्रिय।
मंचों से रचनापाठ एवं आकाशवाणी लखनऊ से रचनापाठ।
सम्मान-भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर प्रताप
नारायण मिश्र युवा सम्मान,
हिन्दी साहित्य परिषद् सीतापुर द्वारा
लक्ष्य लेखिनी सम्मान,
लखीमपुर की सौजन्या, महादलित परिसंघ, परिवर्तन
फाउंडेन्शन सहित कई प्रसिद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
सम्प्रति -प्राइवेट महाविद्यालय में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन।
मो-7376236066
Email-sureshsaurabhlmp@mail.com
नौटंकीबाजों से दुनिया हारी है।
ReplyDeleteवाह रे! कोरोना तेरी क्रूरता से दुनिया हारी, दुनिया के सारे हुस्न हारे, इंसानियत के सारे देवता हारे।
डीएम साहब ने उस अस्पताल के 'बड़े' साहब को आदेश दिया है कि प्रसूता कैसे मरी इसकी निष्पक्ष जांच करें।
सब अंधे-बहरे हो गए हैं। हाकिम को मोर नचाने से फुरसत कहाँ? जो हमारी और जनता की तकलीफों को समझे?
चारों कहानियां आज के हालातों की सच्ची बयानी है। बहुत सटीक लिखा है आपने
यूं ही निरंतर लिखते रहें ब्लॉग पर
thanks
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