बहुमुखी प्रतिभा संपन्न डॉ प्रदीप शुक्ल पेशे से बच्चों के डॉक्टर हैं और हृदय से कवि। उन्होंने इधर बहुत कम समय में अपनी प्रखर रचनात्मकता से सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हिंदी में वह नवगीत और लोकभाषा अवधी के एक समर्थ कवि के रूप में उभर कर सामने आये हैं। उनका पहला कविता संग्रह 'अम्मा रहतीं गाँव में' इसी साल प्रकाशित होकर आया है जिसे काफी चर्चा मिल रही है। 'स्पर्श' पर पहली बार उनका स्वागत करते हुए आइये पढ़ते हैं उनकी कुछ नयी अवधी रचनाएँ -
अब
फिरि चुनाव कै
आहटि
है
फिरि
मंदिर हुएं बनईबे हम
हम
अच्छे दिन के
घोड़ा
पर
खुब
दौरि दौरि कै देखि लीन
औ
बिकास कै पुपुही वह
बीते
चुनाव मा फेंकि दीन
अब
एकु सहारा
बचा
यहै
बसि
राम राम चिल्लईबे हम
ओ
रामदीन
तुम
भूलि जाव
तुम्हरे
घर मा सब भूँख बईठ
बप्पा
तुम्हार ई जाड़े मा
बिनु
कपड़ा चाहै जायँ अईंठ
तुम
जोर जोर ते
चिल्लायो
ओ
रामलला जी अईबे हम
है
वहू तरफ ते
बातचीत
रैली
रैला सब सुरु भवा
बस
मारु काट दंगा कर्फू
का
भईया मौसमु आय गवा
फिरि
पहिनि झक्कु
कपड़ा
सफ़ेद
बस
टी बी पर गरियैबे हम
अब
फिरि चुनाव कै
आहटि
है
फिरि
मंदिर हुएं बनईबे हम.
जब
हमका राह म देसु मिला
हम
पूँछेन वहिते
हालु
चालु
जब
हमका राह म देसु मिला
छब्बीस
जनवरी रहै तौनु
जिउ
वहिका लागै खिला खिला
ब्वाला,
छब्बीस
जनवरी है,
बस
आजु कै दिन तुम रहै देव
सच्ची
झूठी हमका बधाई
जो
दीन चहौ तौ वहै देव
पिकनिक
मनाओ,
घर
मा पहुड़ौ,
है
हमका कउनिव नहीं गिला
तुम
पूरे साल म
सबै
जने
हमरी
छाती पर मूँग दरौ
जहिते
हमार जिउ दहलि उठै
तुम
पंचै खाली वहै करौ
हम
कहा
कि
तुम सठियाय गयो
औ फ्यांका
नहिला पर दहिला
दिनु
राति हियाँ
हम
एकु केहे
तुमरे
बारे मा सोचि रहेन
दलितन
औरतन क अब्यो रोजु
पैरन
के नीचे दाबे हन
हम
पकरि झोटैय्या
खैंचि
ल्याब
जो
मंदिर मा जाई महिला
हम
चाहे माँगी
भीख
रोजु
मुलु
मंदिर भब्य हमार बनी
हम
चाहे भूखे बिल्लाई
मस्जिद
कै बाबत रारि ठनी
हम
टोपी तिलक
लेहे
दउरी
हर
गाँव गली हर जिला जिला
हम
पूँछेन वहिते
हालु
चालु
जब
हमका राह म देसु मिला
छब्बीस
जनवरी रहै तौनु
जिउ
वहिका लागै खिला खिला.
घर
घर यहै कहानी
सड़क
किनारे बनी दुकानें
ख्यात
मरैं बिनु पानी
चले
जाव गाँवन मा भईय्या
घर
घर यहै कहानी
उलरे
उलरे
फिरैं
मुसद्दी
अंट
शंट गोहरावैं
आधा
बिगहा खेतु बेंचि कै
दारू
ते मुंहु ध्वावैं
लरिका
करै मजूरी, घर मा
कढ़िलि
रहीं जगरानी
चले
जाव गाँवन मा भईय्या
घर
घर यहै कहानी
जी
जमीन का
बप्पा
गोड़िनि,
दादा
औ परदादा
जहिमा
पानी कम, पुरिखन का
मिला
पसीना जादा
बंजर
होईगै धरती वहि पर
जाय
न कुतिया कानी
चले
जाव गाँवन मा भईय्या
घर
घर यहै कहानी
सिटी
बनी स्मार्ट
हुआँ
पर
करिहैं
चौकीदारी
नंबर
वन के काश्तकार जो
अब
तक रहैं मुरारी
कालोनी
के पीछे डरिहैं
आपनि
छप्पर छानी
चले
जाव गाँवन मा भईय्या
घर
घर यहै कहानी.
देसप्रेमु
का पाठु फ़लाने
समझाईति
है तुमका, ना
एतना
उत्पातु करौ
देसप्रेमु
का पाठु फलाने
फिर
ते यादि करौ
ऊपर
ते सब जय जय ब्वालैं
अन्दर
खूनु पियैं
अईसन
मा ई भारत माता
कब
तक भला जियैं
ई
च्वारन का मारौ पहिले
ताल
ठोंकि सम्भरौ
' टुकड़ा टुकड़ा करिबे यहिके '
जो
ब्वालै यहु नारा
नटई
ते तुम पकरौ वहिका
दई
देव देसु निकारा
लेकिन
बात सुनौ अउरिनु की
थ्वारा
धीरु धरौ
बेमतलब
ना रागु अलापौ
देसप्रेमु
का भइय्या
रामदीन
द्याखौ भूखा है
भूखी
वहिकी गईय्या
रुपिया
चढ़ा जाय फ़ुनगी
पहिले
वहिका पकरौ
एतना
बड़ा देसु, दुई नारन
ते
यहु टूटि न जाई
का
चाहति हौ, देस भक्ति
हम
माथे पर लिखवाई?
खुलि
जाई जो यह जबान
ना
पईहौ अपन घरौ
समझाईति
है तुमका ना
एतना
उत्पातु करौ
देसप्रेमु
का पाठु फलाने
फिर
ते यादि करौ.
रामराजु
का तुमतो काका कहे रहौ
हाहाकार
मचाए कक्का
सब
लंगूर तुम्हार हियाँ पर
रामराजु
का तुमतो काका कहे रहौ
तुलसी
बाबा तो
रामराजु
का
अईसन
कबो बखान किहिन ना
रामचंद
बानर सेना का
एतनिउ
छूट तो कबो दिहिन ना
आजु
तुमरिही रजधानी के
बाग़
उजारैं ई सब बांदर
रामराजु
का तुमतो काका कहे रहौ
अब
कक्का तुमका
का
बताई
तुम
ते तौ केतनी आस रही
तुम
मउनी बाबा बने रहौ
बस
देसु क सत्यानास रही
यहु
देसु प्रेम तौ ठीक मगर
बस
घबराहट है डगर डगर
रामराजु
का तुमतो काका कहे रहौ
ओ
कक्का!
तुमते
बिनती है
अब
छप्पन इंच देखाय देव
ई
बंदरन का थपरा मारौ,
आँखी
काढौ, डेरवाय देव
रोंकि
लेव अबहीं इनका,
यहिते
पहिले की फून्कैं घर
रामराजु
का तुमतो काका कहे रहौ.
रामकली
चारि
बजे हैं
खटिया
पर ते
बस
उतरी हैं रामकली
हैण्डपम्प
ते
पानी
भरिकै
लाई
हैं दुई ज्वार
लकड़ी
कै कट्ठा पर जूठे
बासन
ते है वार
बिन
अवाज
पूरे
आँगन मा
बस
दउरी हैं रामकली
पौ
फूटै तो
लोटिया
लईकै
बहिरे
बाहर जायँ
लउटैं
तो लोटिया फ्याकैं
औ' ग्वाबरु लेयँ उठाय
रपटि
परी हैं
डेलिया
लईकै
फिरि
सँभरी हैं रामकली
दूधु
दुहिनि
बर्तन
मा डारिनि
अब
यहु जाई बजार
बचा
खुचा लरिकन के खातिर
रखिहैं
पानी डार
महिला
दिवस म
हँसिया
लईकै
निकरि
परी हैं रामकली.
-डॉ. प्रदीप शुक्ल
ईमेल
– drpradeepkshukla@gmail.com
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