Sunday, 10 August 2014

तीन कवि : तीन कवितायेँ - 2

इस श्रृंखला को शुरू करने को लेकर हमारा कोई दावा नहीं है न ही हम एकदम से कुछ तय करने की कोशिश कर रहे हैं | वैसे भी किसी कवि की मात्र एक कविता को पढ़कर हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते | यह सिर्फ पीढ़ियों के मध्य चल रहे सृजन को विभिन्न कोणों से देखने/ परिचय करने की विनम्र कोशिश मात्र है | पिछले हफ्ते इस कोशिश की पहली कड़ी में आप तीन कवि और उनकी तीन कविताओं से रूबरू हुए I इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए इस बार प्रस्तुत है हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले, बेहद सक्रिय और युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय और उदीयमान सशक्त युवतर स्वर अरुन श्री की नवीनतम तीन कवितायेँ :

दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी / चन्द्रकान्त देवताले 


दुनिया का सबसे ग़रीब आदमी 
दुनिया का सबसे गैब इन्सान
कौन होगा
सोच रहा हूँ उसकी माली हालत के बारे में 
नहीं! नहीं !! सोच नहीं 
कल्पना कर रहा हूँ

मुझे चक्कर आने लगे हैं 
ग़रीब दुनिया के गंदगी से पते 
विशाल दरिद्र मीना बाजार का सर्वे करते हुए 
देवियों और सज्जनों 
'चक्कर आने लगे हैं "
यह कविता की पंक्ति नहीं 
जीवनकंप है जिससे जूझ रहा इस वक़्त 
झनझना रही है रीढ़ की हड्डी 
टूट रहे हैं वाक्य
शब्दों के मलबे में दबी-फँसी मनुजता को 
बचा नहीं पा रहा 
और वह अभिशप्त, पथरी छायाओं की भीड़ में 
सबसे पीछे गुमसुम धब्बे-जैसा 
कौन-सा नंबर बताऊँ उसका 
मुझे तो विश्व जनसँख्या के आकड़े भी 
याद नही आ रहे फ़िलवक़्त 
फेहरिस्तसाजों को 
दुनिया के कम- से -कम एक लाख एक 
सबसे अन्तिम ग़रीबों की 
अपटुडेट सूची बनाना चाहिए 
नाम, उम्र, गांव, मुल्क और उनकी 
डूबी-गहरी कुछ नहीं-जैसी संपति के तमाम 
ब्यौरों सहित 


हमारे मुल्क के एक कवि के बेटे के पास
ग्यारह गाडियाँ जिसमें एक देसी भी
जिसके सिर्फ़ चारों पहियों के दाम दस लाख 
बताए थे उसके आश्वर्य-शानो-शौकत के एक शोधकर्ता ने 
तब भी विश्व के धन्नासेठों में शायद ही जगह मिले 
और दमड़िबाई को जानता हूँ मैं 
ग़रीबी के साम्राज्य के विरत रूप का दर्शन 
उसके पास कह नहीं पाऊंगा जुबान गल जाएगी
पर इतना तो कह सकता हूँ वह दुनिया की 
सबसे ग़रीब नहीं

दुनिया के सत्यापित सबसे धनी बिल गेट्स का फ़ोटो 
अख़बारों के पहले पन्ने पर 
उसी के बगल में जो होता 
दुनिया का सबसे ग़रीब का फ़ोटू 
तो सूरज टूट कर बरस पड़ता
भूमंडलीकरण की तुलनात्मक हकीकत पर
रोशनी डालने के लिए 

पर कौन खींचकर लाएगा
उस निर्धनतम आदमी का फोटू 
सातों समुन्दरों के कंकडों के बीच से 
सबसे छोटा-घिसा-पिटा-चपटा कंकड़ 
यानी वह जिसे बापू ने अंतिम आदमी कहा था 
हैरत होती है 
क्या सोचकर कहा होगा 
उसके आसूँ पोंछने के बारे में 
और वे आसूँ जो अदृश्य सूखने पर भी बहते ही रहते हैं 
क्या कोई देख सकेगा उन्हें 

और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक 
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में 
और मेरी स्थिति कितनी शर्मनाक 
न अमीरों की न गरीबों की गिनती में 
मैं धोबी का कुत्ता प्रगतिशील 
नीचे नहीं जा सका जिसके लिए 
लगातार संघर्षरत रहे मुक्तिबोध 
पांच रूपये महीने की ट्यूशन से चलकर
आज सत्तर की उमर में 
नौ हजार पाँच सौ वाली पेंशन तक 
ऊपर आ गया
फ़िर क्यों यह जीवनकंप 
क्यों यह अग्निकांड
की दुनिया का सबसे गरीब आदमी 
किस मुल्क में मिलेगा
क्या होगी उसकी देह-सम्पदा
उसकी रोशनी, उसकी आवाज-जुबान और 
हड्डियाँ उसकी
उसके कुचले सपनों की मुट्ठीभर राख 
किस हंडिया में होगी या अथवा 
और रोजमर्रा की चीजें 
लता होगा कितना जर्जर पारदर्शी शरीर पर
पेट में होंगे कितने दाने 
या घास-पत्तियां 
उसके इअर्द-गिर्द कितना घुप्प होगा 
कितना जंगल में छिपा हुआ जंगल 
मृत्यु से कितनी दुरी पर या नजदीक होगी 
उसकी पता नहीं कौन-सी सांस
किन-किन की फटी आंखों और 
बुझे चेहरों के बीच वह
बुदबुदा या चुगला रहा होगा 
पता नहीं कौन-सा दृश्य, किसका नाम 

कोई कैसे जान पाएगा कहाँ 
किस अक्षांश-देशांश पर
क्या सोच रहा है अभी इस वक्त 
क्या बेहोशी में लिख रहा होगा गूंगी वसीयत 
दुनिया का सबसे गरीब आदमी 
यानि बिल गेट्स की जात का नही 
उसके ठीक विपरीत छोर के 
अन्तिम बिन्दु पर खासता हुआ 
महाश्वेता दीदी के पास भी 
असंभव होगा उसका फोटू 
जिसे छपवा देते दुनिया के सबसे बड़े 
धन्नासेठ के साथ 
और उसका नाम 
मेरी क्या बिसात जे सोच पाऊं 
जो होते अपने निराला-प्रेमचंद-नागार्जुन-मुक्तिबोध 
या नेरुदा तो सम्भव है बता पाते 
उसका सटीक कोई काल्पनिक नाम
वैसे मुझे पता है आग का दरिया है ग़रीबी 
ज्वालामुखी है 
आँधियों की आंधी 
उसके झपट्टे-थपेडे और बवंडर 
ढहा सकते हैं 
नए- से -नए साम्राज्यवाद और पाखंड को 
बड़े- से- बड़े गढ़-शिखर 
उडा सकते पूंजी बाजार के 
सोने-चांदी-इस्पात के पुख्ता टीन-टप्पर 

पर इस वक़्त इतना उजाला 
इतनी आँख-फोड़ चकाचौंध
दुश्मनों के फ़रेबों में फँसी पत्थर भूख 
उन्हीं की जे-जयकार में शामिल 
धड़ंग जुबानें 
गाफ़िल गफ़लत में 
गुणगान-कीर्तन में गूंगी 
और मैं तरक्की की आकाशगंगा में 
जगमगाती इक्कीसवीं सदी की छाती पर
एक हास्यास्पद दृश्य 
हलकान दुनिया के सबसे ग़रीब आदमी के वास्ते

सम्पर्क : एफ़-2/7, शक्ति नगर (माधव नगर), उज्जैन-456010, मध्य प्रदेश
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इस बस्ती का नाम मुआनजोदड़ो नहीं था / अशोक कुमार पाण्डेय 


वहाँ अमराइयों की छाया में बैठी एक चिड़चिड़ी कुतिया थी 
अमिया चूसती एक लड़की फ्राक के फटे झालर से नाक पोछती 
उधड़ी बधिया वाली खटिया पर ऊँघता बूढ़ा न मालिक लगता था न रखवाला 
कुंए में झाँकती औरत पता नहीं पानी के बारे में सोच रही थी या आत्महत्या के 

अधेड़ डाकिया था खिचड़ी बालों और घिसी वर्दी से भी अधिक घिसी साइकल पर सवार 
स्कूल के चबूतरे पर बैठी चिट्ठियाँ बांचती मास्टरनी लौटती बस के इंतज़ार में 
चिट्ठियों में बम्बई-कलकत्ता-ग्वालियर-भोपाल की बजबजाती गलियों की दुर्गन्ध भरी थी 
मनीआर्डर के नोटों पर पसीने से अधिक टीबी के उगले खून की बास 
बादलों से ख़ाली आसमान और चूल्हों से जूझती आग़ 

दोपहर का कोई वक़्त था जून का महीना प्यास से बेचैन गले 
और पानी मांगने की हिम्मत जुटाने में सूखते होठ 

न नौकर था उस वक़्त मैं न मालिक न बाहरी न गाँव का 
सवाल पूछते शर्म से थरथराती जबान दर्ज़ करती क़लम की तरह 
कितनी ज़मीन थी क्या-क्या बोया उसमें काटा क्या-क्या क्या क़ीमत घर की कितने ज़ेवर जानवर कितने? 
सवाल थे सरकार के और जवाब बिखरे हुए पूरे गाँव में सन्नाटे की तरह
उम्मीद मेरे आश्वासनों से निकल थककर बैठ जाती प्यास से बेहाल उनके बिवाइयों भरे पैरों के पास 
शब्द वहाँ बौने हो जाते हैं जहाँ छायाएं पसरने लगती हैं मृत्यु की.

दीवारों पर चमत्कारी महात्माओं के पोस्टर थे जो वही सबसे चमकदार उस इंसानी बस्ती में 
चमकते दांतों वाला एक विज्ञापन अश्लील उस मरती हुई सभ्यता के बीच 
फीके पड़ चुके चुनावी पोस्टर उनमें लिखे सपनीले शब्दों जैसे ही 
मुझे अचानक लगा कि कितने पोस्टर होने चाहिए थे यहाँ गुमशुदा लोगों के 
जहाँ इबारतें लिखीं सरकारी योजनाओं की वहाँ लिखे होने चाहिए थे उन लड़कों के नाम 
जो बारह साल बाद अब बूढ़े हो चुके होंगे दिल्ली की किसी गली में 

उम्मीद का एक गीत, सपनों का एक पता तो होना ही था वहाँ
जहाँ कुछ नहीं बचा सूखी धरती, खाली चूल्हों, मुन्तजिर औरतों, उदास बच्चों 
और मृत्यु से हारे बूढों के अलावा 
एक पोस्टर तुम्हारा भी तो होना था यहाँ कामरेड!

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संपर्क- 104, नवनीति अपार्टमेंट, प्लाट नंबर 51, आई पी एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-110092
ईमेल- ashokk34@gmail.com


मेरी गवाहियाँ / अरुण श्री 


घड़ी के टिक-टिक सी एकरस नहीं होती समय की आवाज !
सभ्यता की सुरीली आदत के विरुद्ध विस्फोटित समय -
बिखरा रहता है देर तक कुछ सुलगती हुई जगहों पर !
शुक्र है -
कि सभ्यता के पास कान ढँकने के लिए अभ्यस्त हाथ हैं ,
समय को छोड़ , घड़ी के साथ चलने में सक्षम हैं पाँव ! 

एक विद्रोही लड़की है जो सरकार के कब्जे में है !
किसी सैनिक-कानून की बपौती हैं उसके पहाड़ों की आबरू !
नाक में जबरन घुसेड़ी गई नली कम दर्दनाक नहीं है -
किसी न साबित हुए बलात्कार से, पर न्यायिक प्रक्रिया है !
कोई नया फैशन होगा -
लड़कियों के नंगे जिस्म पर लिखा सेना के विरुद्ध नारा !

एक माननीय रोटी की गुणवत्ता पूछते हैं किसी रोज़ेदार से !
चर्चा बस इतनी होती है -
कि मुंह में ठूँसी रोटी हलक तक पहुंची या बच गया धर्म !
ये भूख से किए वादों का प्रतीकात्मक निर्वाह होगा शायद ! 

एक साहित्यकार अपनी पत्नी को पीटता है ! 
कुछ पालतू बताते हैं कि वो प्यार करता है कुत्तों तक से !
लतियाई जाती स्त्री की अपेक्षा -
हिंसा का पुख्ता प्रमाण है साहित्यकार की फटी बनियान !

मैं मनुष्यता के दुर्दिनों का साक्षी मात्र हूँ ! 
अदालतें बंद हैं इन दिनों !
थाने की दीवार पर लिखा है कि शांति बनाए रखें कृपया !
मुझे “वर्ना” समझ आता है सरकारी “कृपया” का अर्थ !
मैं अपनी गवाहियाँ चौराहे के कूड़ेदान में फेंक कर लौटा हूँ ! 

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निवास- मुगलसराय, चन्दौली- 232101
ईमेल – arunsri4ever@gmail.com
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13 comments:

  1. तीनों कविताओं को जोड़ती हुई एक ज़रूरी लय सुनाई दी है - इस तरह के चयन से यह सम्‍भव हो सका। अच्‍छा लगा राहुल आपके ब्‍लाग पर आ कर, अब आवाजाही बनी रहेगी।

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  2. सामाजिक ताने बाने में छिपे सत्य को प्रतिध्वनित करती तीनों रचनाएं ...

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  3. अरुण श्री अपनी कविता को बिखेरकर समेटने का हुनर रखते हैं
    उनको बधाई

    वीनस

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  4. देवताले जी मेरे प्रिय कवियों में से हैं. कभी उन पर बहुत विस्तार में लिखा है. आज उनके साथ खुद को देखकर ही प्रसन्न हूँ. अरुण में मुझे बहुत संभावनाएं दिखती हैं. उन्हें असुविधा पर छापा भी है. तो इस पंगत में जगह देने का आभार.

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  5. उत्कृष्ट कवितायेँ..... प्रभावी , प्रवाहमयी ......

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  6. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है ..आपकी और रामजी भाई की ईमानदारी ने अरुण भाई को जगह दी सिताबदियारा और असुविधा जैसे प्रसिद्द ब्लॉग में ...अरुण भाई को दो प्रिय कवि के साथ देखकर बहुत गर्व महसूस कर रहा हूँ | अशेष शुभकामनाएं |

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  7. बेहतरीन कवितायें....
    सभी बेहद सुन्दर !

    अनु

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  8. ये तीनो कवि जितने बेमिसाल हैं उससे भी कहीं अधिक बेमिसाल हैं वो द्रष्टि जिसने इन कवितायो का चयन किया हैं कितना कुछ कहती ये कविताये हर द्रष्टि से सर्वश्रेठ हैं....
    अरुण श्री भैया और अशोक आज़मी का लिखा हमे बहुत अधिक प्रभावित करता हैं.....पर आज चंद्रकांत देवताले जी के लेखन का भी दर्शन हो गया...

    ये प्रयास आगे भी जारी रहना चाहिए

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  9. utkrisht chayan evam prastuti ki badhayi..

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  10. सराहनीय कविताये हैं, हर द्रष्टि से सर्वश्रेठ !!

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  11. Ise kahte hain sahi chunaav! Teeno kavitain ek se badhkar ek....Haardik badhai Rahul jee...

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गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...