Sunday 15 January 2012

चुनावी बयार (अवधी कविता)


लेव आइ गवा मउसम चुनाव क्यार
पम्फलेट छपय लाग
खटारा खड़बड़ाय लागीँ
अदमी दउरय लागि
बिजुरी केरे दरशन दुरलभ रहै
कि जो लुप्प-लुप्प होति रहय
अब तो जातेन नाहीँ
पानी केरी टोँटी जो आँसू बहाउत रहय
फूटि गए भाग जी के
वहव आज बोलि परी
पानिन पानी देखाय लाग
चुनावन केरे फेरि मा
दउरा चलय लाग
लेकिन चाहे जतना रमलु बनाय लेव
ई तुमरा पुराना हालु है
हमसे कछु छिपा नाहीँ
हमेँ मूरख न समझ लियो
यू अवध केरा गाँव आय
औ अवधी हमरी भासा
मुला कमपूटर हमहूँ जानित हन
गुलबलाइजेसन केरी बयार मा
लपटि गये गाँव-गाँव
फेरि-फेरि आवै
दुलरावै रोबोटवा
इंटरनेट केरे जालु मइहा फँसय सेने बचे रहे
मिट्टी हमरी सोना है
मंसा तुम्हार समझिति हन
भले अधकचरा हन
तुमेँ बड़ा खतरा है
ओटु वहै पइहै
जो परमानेन्ट रइहै
अत्ता तुम जानि लेव
चहव अगर सत्ता
तो हमका पहिचानि लेव
हमरे गाँवन मा झाँकि लेव..।

-राहुल देव  

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