रमाकान्त दायमा एक मँजे हुए अभिनेता हैं | मुंबई शहर की भीड़-भाड़ में तमाम
व्यस्तताओं के बीच समय निकालकर वे कविताएँ भी लिखते रहे हैं | इन कविताओं को एक कवि हृदय अभिनेता की सहज-सरल अभिव्यक्ति कहा जा सकता है | आपकी कविताओं को लगातार बदलते हुए सिनेमा और साहित्य के बीच एक ऐसे पुल की
तरह से भी देखा-पढ़ा जा सकता है जहाँ व्यक्त होने की सामर्थ्य अपना रास्ता किसी
वेगवती नदी के प्रवाह की तरह अपनी विधा खुद तलाश लिया करती है | आत्म-संप्रेषण के लिए वे 'बच्चन' की तरह अंग्रेजी की तरफ नही बल्कि हिंदी की तरफ देखते हैं | पहली दफा 'अभिप्राय' पर आपका स्वागत करते हुए आपकी पाँच कविताएँ हम अपने पाठकों के लिए
प्रस्तुत कर रहे हैं-
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मुंबई
ये
मुंबई
शहर
तनहाइयों
का
शहर
है
यहाँ
रोज़
ट्रेनों
से,
बसों
से
उतरते
हैं सपने,
और
उतरते
ही
दौड़
पड़ते
हैं
वे
लड़खड़ाते
हुए
को
सम्भालने
की
फ़ुरसत
नहीं है
किसी
को
बस
भागने
लगते
हैं,
अनजान
मंज़िल
की
तरफ़
यहीं
से
साथ
हो
लेती
है
तन्हाई
साया
फिर
भी
रात
में
साथ
छोड़
देता
है,
ये
रात
में
और
गहरा
जाती
है
महफ़िलों
में,
पार्टियों
में
कोशिश
करते
हैं
लोग
उसे
दूर
भगाने
की
मगर
घर
जाते
समय
चुपके
से
फिर
चिपक
जाती
है तन्हाई
ये
मुंबई
शहर
है
बाबू
यहाँ
भीड़
में
रहकर,
किसी
का
हाथ
पकड़कर
भी
तनहा
रहा
जा
सकता
है
इसीलिए
शायद
ये
आपका
घर
नहीं
है।
अभिनय
अभिनेता
हूँ
किरदारों
के
हिसाब
से
कपड़े
और
रंग
बदलना
आता
है
मुझे
पर
हर
बार
किसी
ना
किसी किरदार
का
कोई
ना
कोई
रंग
रह
जाता
है
भीतर
कहीं,
शूटिंग
के
बाद
जब
घर
जाता
हूँ
तो
लगता
है
मेरे
साथ
मेरे
अलावा
कुछ
और
भी
लोग
बैठे
हैं
जिन्हें
सिर्फ़
मैं
ही
देख
सुन
सकता
हूँ
घर
पहुँच
कर
दरवाज़े
पर
दस्तक
देने
से
अब
डर
लगने
लगा
है।
कल
ही
मेरी
पत्नी
कह
रही
थी
“अब आप
पहले
जैसे
नहीं
रहे।“
फ़िल्म-कास्टिंग
मैं
केवल
एक
सम्भावना
हूँ,
जो
तुमने
मेरे
कामों
में
देखी
है
वह
काम,
जो
तुमने
देखा
है
मेरा
उसमें
और
भी
लोगों
का
सहयोग
है
किसी
और
के
संवाद
किसी
और
की भावना
किसी
और
के
आदेश
और
थोड़ी
मेरी
ईमानदार
कोशिश
बस
यही
हूँ
मैं,
फिर
भी
तुम
चाहते
हो
मुझे
क्योंकि
मैं
एक
सम्भावना
हूँ
तुम्हारी
उम्मीदों
पर
खरा
उतरने
की
कोशिश
करूँ
ये
भी
एक
सम्भावना
ही
है।
आस्था
वह
मील
का
पत्थर
जो
सड़क
के
किनारे
हुआ
करता
था
जब
से
सड़क
के
बीचों-बीच
आ
गया
है
किसी
ने
उस
पर
फूल
चढ़ा
दिए
किसी
ने
दिया
जला
दिया
अब
लोग
जो
उस
पर
बैठ
कर
सुस्ताया
करते
थे
पल
दो
पल
उसकी
प्रदक्षिणा
कर
आगे
बढ़ने
लगे
हैं।
एक सवाल
वो
क्या
है
जो
मुझमें
- तुझमें
है
बराबर
फिर
भी
कुछ
अधूरा-अधूरा
सा
है
ये
क्या
है
?
ये
अधूरापन
भी
दोनों
तरफ़
कुछ बराबर
सा
है
न
तू
परिपूर्ण
है
न
मैं
सम्पूर्ण
हूँ,
तो
फिर
ये
तू-तू,
मैं-मैं
क्या
है
??
रमाकान्त दायमा एक व्यावसायिक अभिनेता हैं।
आप पिछले लगभग तीस वर्षों से हिंदी फ़िल्म और
टेलीविज़न इंडिस्ट्री में कार्यरत हैं। इन्होने लगभग 150 विज्ञापन फ़िल्में, कई धारावाहिक और अनेक वेब सिरीज़ में काम किया
है।
‘चक दे इंडिया’, ‘बनारस’, ‘इंतक़ाम’, ‘बैंक चोर’ और ‘राम सेतु’ जैसी लगभग 30 फ़िल्में कर चुके हैं।
‘स्कैम 92 हर्षद मेहता’, ‘मेड इन हैवन’ जैसी कई वेब सिरीज़ में काम
किया है।
युवावस्था में दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो में
युववाणी और युवदर्शन में तथा मुंबई के मंचीय कवि-सम्मेलनों में अपनी कविताएँ पढ़ते रहे हैं।
आपके अभिनय के साथ-साथ कविताओं का सिलसिला आज भी
जारी हैं।
फेसबुक उपस्थिति- https://www.facebook.com/rammakant.daayama?mibextid=LQQJ4d
बहुत सुंदर कविताएँ
ReplyDeleteसभी रचनाएं सार्थक सामायिक चिंतन देती।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend
Thank You for sharing.
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