Saturday 6 August 2022

अनीता श्रीवास्तव का व्यंग्य 'बड़ा आदमी, आम और देशहित'

          जिसे देखो आम आदमी के पीछे पड़ा है l कवि आम आदमी पर कविता लिख रहा है, चित्रकार उस पर पेंटिंग बना रहा है, नेता के भाषण का वह केंद्र बिंदु है l और तो और, आम आदमी खुद सारा संकोच त्याग कर आम आदमी की ही तरफदारी में लगा है; जैसे कि उसे पता चल चुका है कि उसका आम होना ही उसकी खासियत है l आम फलों का राजा है और आम आदमी ही देश का राजा है l ये राज अब राज नहीं रहा इसीलिए हर कोई आम आदमी के स्तुति वाचन में लगा है l ऐसे में बड़े और खास आदमी की उपेक्षा हो रही है l अपनी उपेक्षा से दुखी बड़ा आदमी छोटे-छोटे काम करने लगता है l कभी वो छोटे आदमी की तरह प्याज़ से रोटी खाता है l उसके झोपड़े में जा कर खटिया पर सोता है तो कभी चाय बेचने लगता है l तिस पर भी लोग उसे बड़ा ही समझते  हैं l पहले वाले की उपेक्षा पहले की और कुछ समय की मोहलत के बाद दूसरे की भी करने लगते हैं l अपना  तो फर्ज़ बनता है, जिसके साथ कोई नहीं खड़ा उसीके साथ खड़े होने का

    ...इसीलिए मेरी सहानुभूति बड़े के साथ है , फिर चाहे वह पद, प्रतिष्ठा, योग्यता या संपन्नता में बड़ा हो; या केवल डील-डौल से ही बड़ा हो l बड़ा माने बड़ा इसके पर्याप्त कारण हैं l पहला तो यही कि उसे हर समय अभिनय करना पड़ता है, छोटा होने का l जो है वो न होने का और जो नहीं है वो होने का l उसे कैमरे के सामने रोना तक पड़ता है जबकि छोटा  आदमी स्माइल दे दे के फोटू खिंचाता है l वह आदतन झूठी हँसी हँसता है l उसे इसका इतना अभ्यास है कि कोशशि नहीं करनी पड़ती l ऐसी ही किसी फोटू पर सौ दोसौ लाइक मिलते हैं और वह भूल ही जाता है कि उसकी स्माइल झूठी है l बार-बार  की प्रशंसा ब्यूटीफुल ,औसम्, लवली पढ़- पढ़ कर उसे लगने लगता है कि वह सच में खुश है l बार- बार दोहराया गया झूठ सच होने का भ्रम देता है l उसकी स्माइल असली है ...उसे सचमुच का भ्रम हो जाता है l यदि आदमी पद प्रतिष्ठा में बड़ा है तब तो उसकी स्थिति और भी दयनीय है l उसे काग़ज़ों में वह सब करके दिखाना पड़ता है जो वह वास्तविकता के धरातल पर नहीं करता l ये काम बिना भीगे नहाने जैसा है l ये एक ऐसा काम है जिसकी उसे कहीं से ट्रेनिंग नहीं दी गई l लेकिन, करत- करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान l उसके भीतर ओरिजिनल हुनर विकसित हो जाते हैं जैसे तीन बनाना उसने सीखा स्कूल में ,किंतु समय के साथ उसने तीन का आठ बनाना भी सीख लिया l यह उसका ओरिजिनल हुनर है l स्वयम की इजाद l उसकी इसी योग्यता से इंप्रेस हो कर मैं उसके साथ हूँ l अब अगर इतना सब तामझाम न भी हो और आदमी केवल डील डौल से ही बड़ा हो तो भी उसका साथ आपको बॉडी गार्ड का सुख देगा l अतः इस मामले में भी औसत या मंझोले का साथ छोड़ बड़े का साथ देना ही फायदे का सौदा है l

 ऐसा नहीं है कि आदमी जन्म से ही बड़ा होता है या कर्म से ही बड़ा होता है l जन्म और कर्म दोनों ही कन्फुजियाने के लिए गढ़े गए कन्सेप्ट हैं l आप सावधानी बरतें! जन्म से बड़ा, छोटे छोटे काम कर के क्षैतिज रूप से पसर  कर जियोग्रैफ़िली बड़ा बन जाता है और अब बड़ा आदमी नामक कॉमन नाऊन के अंतर्गत आने लगता है l दूसरी तरफ, छोटा आदमी बिना पापड़ बेले, बिना लोहे के चने चबाए, केवल बड़े आदमी की पायलागी  करके या उसकी गाड़ी चला कर  भी बड़ा बन सकता है l तो जिसने जीवन में संघर्ष किया है आपको उसीका साथ देना चाहिए l न्याय की बात यही है l आप न्याय का साथ दें l न्याय बड़े आदमी के साथ है

        एक बार मेरे पडौसी में कुछ परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे l वे सदा की तरह देखते ही सायरन से बज उठने वाले व्यक्ति थे मगर अब खराब पड़ी स्ट्रीट लाइट की तरह किनारे खड़े रहते, मेरे वहाँ होने से अप्रभावितl....या खौफ बिखेरते एंबुलेंस की तरह बगल से गुज़र जाते l मैंने इसका कारण जानने के लिए अन्य  पडौसियों को टटोला तो पता चला कि अब वे पहले जैसे नहीं रहे... क्यों ...पहले वे एक मामूली अध्यापक थे... 

 -तो अब इस उम्र में क्या कलेक्टर हो गए... 

नहीं उनके लड़के की कम्पनी में नौकरी लग गई l ... बीस लाख का पैकेज है l बताने वाले की आँखें बड़ी हो गई l एक पडौसी बड़ा आदमी हुआ बाकियों की आँखें बड़ी हो गई

- अच्छा 

होने वाली बहू भी कम्पनी में है.... 

 -  तो इसका मास्टर साब के स्वभाव से क्या लेना देना . .. 

- है... लेना देना है... अब वे बड़े आदमी हो गए हैं l पहले जैसे ठिलठिला कर हँस नहीं सकते l कायदे में रहना पड़ता है

 मैं भावुक सी हो गई l उनके प्रति सहानुभूति की ताज़ा कोंपलें फूट पड़ीं l उन्हें इस उम्र में खामखाँ अतिरिक्त श्रम करना पड़ रहा है, बड़ा आदमी दिखने का अभिनय l वे जब तक छोटे और मामूली मास्टर थे, मुझे उनसे कभी सहानुभूति न हुई अपितु समानुभूति ही हुई

        मित्रो बड़ा आदमी, बड़ा अकेला होता है l कुछ तो डिप्रेसन के मरीज़ तक हो जाते हैं कुछ अपनी इहलीला  समाप्त कर लेते हैं आम आदमी इन सब ठटकर्मो  से ऑटोमेटीकेली बरी है l नून-  तेल के चक्कर से छूटे तब तो टेंशन-डिप्रेसन हो l कुछ भी होने के  लिए  लाइफ में थोड़ा  स्पेस चाहिए l मंहगाई, बेरोजगारी, महामारी... इन सबसे बचे तब तो डिप्रेशन का शिकार हो मंहगाई से निपटता है तो इच्छाएँ शिकार बना लेती हैं l बेरोजगारी से पिंड छूटता है तो  कम्पनी शोषण कर के तेल निकाल लेती है l महामारी से बच गया  तो महामारी के भय का शिकार... लहर के बाद लहर शिकार करने को तैयार है l आखिर एक शिकार को कितने चबाएंगे! इसी उधेड़बुन में वह बच निकलता है l ' मल्टीपल शिकार " नामक क्वालिटी का उसे लाभ मिलता है

     बड़े आदमी की स्थिति दयनीय है l वह इतने शिकारियों का टार्गेट नहीं है , इसलिए बचा रह जाता है ... डिप्रेशन के लिए l एक लेखक को इतना सहृदय तो होना ही चाहिए कि वह बड़े आदमी से सहानुभूति  रखे l

     मेरा  सुझाव है कि लेखक आम आदमी पर न लिखें l चित्रकार उस पर चित्र न बनाएं l वे लगातार लिखते है इससे आम आदमी बड़े आदमी के दिमाग पर 

 छा जाता है l उनकी रसना आम आदमी के आमपने को चखने के लिए  लपलपाने लगती है l वे इसके लिए योजनाएं बनाते हैं l घोषणा पत्र बनाते हैं जिसका नतीजा देश हित में नहीं होता l उल्टे आप बड़े आदमी पर लिखें l भले ही व्यंग्य लिखें l इससे बड़ा आदमी आम आदमी के राडार पर रहेगाl बड़ा आदमी जो कहेगा आम आदमी उसे उसके आचरण के आलोक में देखेगा और तय करेगा , उसे किसके झोले में जाना है l  ...और यही देश हित में होगा l

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- अनीता श्रीवास्तव

(कवयित्री, कथाकार, व्यंग्यकार, मंच संचालक, पूर्व रेडियो एवम टीवी उद्घोषिका)  

शिक्षा- एम एस सी (वनस्पति शास्त्र) ( बुंदेलखण्ड वि वि, झाँसी) 

बी एड ( बरकतुल्लाह वि वि भोपाल  ) 

बी जे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल

200 से अधिक रचनाएँ विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित

भास्कर मधुरिमा, देशबंधु, पत्रिका, इंदौर समाचार,सम्पर्क क्रांति, विज्ञान पत्रिका, सत्य की मशाल, संगिनी (कहानी, कविता,व्यंग्य) बच्चों का देशनूतन कहानियाँसाहित्य संस्कृति, उजाला मासिक ( बाल कविताएं) एवम व्यंग्य की  राष्ट्रीय स्तर की अग्रणी पत्रिकाओं  व्यंग्य यात्रा, अट्ठहास, रंग चकल्लस,सहित विभिन्न अखबारों में लगातार  रचनाएँ प्रकाशित l

कनाडा से प्रकाशित पाक्षिक वेब पत्रिका साहित्य कुंज में नियमित लेखन l 

कहानी धरती की छाती में( भूजल संरक्षण पर आधारित) एवम पुरस्कार (नशामुक्ति पर आधारित)  आल इंडिया रेडियो से प्रकाशित l

काव्यपाठ का प्रसारण l वार्ता एवम रेडियो नाटक में प्रतिभाग

प्रकाशित कविता संग्रह जीवन वीणा (अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज) 

कहानी संग्रह तिड़क कर टूटना (सनातन प्रकाशन, जयपुर) 

बाल गीत संग्रह- बंदर संग सेल्फी 

सम्प्रति- शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मवई, टीकमगढ़, मध्यप्रदेश में उच्च माध्यमिक शिक्षक, जीवविज्ञान के पद पर  सेवारत साथ ही लगातार लेखन में सक्रिय l

 

1 comment:

  1. सच है बड़ा होना मजाक की बात नहीं है। बहुत सही ...

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