साहित्य सृजन के लिये बस आपको तुक मिलाना आना चाहिये। शिल्प अथवा कथ्य की परवाह करने की कोई ज़ुरूरत नहीं। किन्हीं चार-छः कवियों की कवितायें पढ़ीं, शब्दों में थोड़ा हेर-फेर किया, कुछ पक्तियां इधर-उधर कीं, तैयार हो गयीं कुछ ताज़ा रचनायें मुक्तता का युग है, आप मुक्त हैं कुछ भी लिखने के लिये। आपका लिखा किसी के पल्ले पड़े या न पड़े और उसका कोई अर्थ निकले या न निकले, आप इसके बारे में तनिक भी परेशान न हों। आपका लिखा आसानी से समझ में आ जाये तो आप (साहित्यकार) और पाठक में फ़र्क ही क्या रह जायेगा। जो चित्र समझ में न आये वही माडर्न आर्ट और जो साहित्य पल्ले न पड़े उसे ही आधुनिक साहित्य समझा जाता है। स्तरीय साहित्य वही है जिसे लेखक ख़ुद लिखे, खुद पढ़े और स्वयं ही समझे। नमने के तौर पर (आपकी सुविधा के लिये) कुछ पक्तियां अर्ज कर रहा हूं-
डण्डे की नोक पर टिका है अण्डा, अण्डा सफेद झक, अण्डा अण्डाकार जिसके भीतर है समूचा ब्रह्माण्ड अण्डा उछल रहा है, एक बूढ़ा बालक फुदक रहा है अण्डा...
पाठकों को शब्दाडम्बरों में उलझाना भला कौन सा मुश्किल काम है। छायावाद चला गया तो क्या हुआ आप छायावाद के भूत और रहस्यवाद के फ़ार्मूले का इस्तेमाल करने के लिये स्वतंत्र हैं। यह दीगर बात है कि न तो आप छायावाद के बारे में कुछ जानते हैं और न ही रहस्यवाद के विषय में |
यदि आपकी इच्छा लोकप्रिय मंचीय कवि बनने की है तो सबसे पहले आप चुटकुलों की कुछ किताबें खरीदिये जिनमें नानवेज चुटकुले भी हों। अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल कर आप चुटकुलों का काव्य रूपान्तरण कर डालिये। अब आप धौंस जमा सकेंगे मंचों पर शर्त यह कि मंच पर काव्य पाठ करते समय आपको कुछ लटकों-झटकों तथा कुछ विशेष मुद्राओं का प्रयोग ज़ुरूर करना पड़ेगा, कुछ ही दिनों में जिसके आप अभ्यस्त हो जायेंगे आपकी जो हास्य कविता हिट हो जाये उसे ही हर मंच पर सुनाकर आप साल दर साल दर्शकों की वाह वाही लूट सकते हैं और पत्र-पुष्प भी अर्जित कर सकते हैं बग़ैर कुछ नया लिखे।
साहित्यकार बनने के लिये सिर्फ लिखने से काम नहीं चलने वाला आपको प्रचार तंत्र के महत्व को समझना पड़ेगा और विज्ञापन के बहुप्रचलित हथियार के प्रयोग में सिद्धहस्त होना पड़ेगा। समीक्षकों और सम्पादकों का दामन थामना साहित्य की इण्डस्ट्री में पांव जमाने के लिये अनिवार्य है। आलोचक और समीक्षक जब जिसे चाहें ज़मीन से उठाकर आसमान पर बैठा दें और चांद से लाकर धरती पर पटक दें। सम्पादक अगर आप से मुंह फेर लें तो भी आपका लिखा सब गोबर इसलिये हे भावी स्वनामधन्य साहित्यकार ! सम्पादकों और समीक्षकों से रिश्ता जोड़ो। उनसे अपनी घनिष्ठता बढ़ाओ और उन्हें ही अपना माई-बाप सबकुछ समझो |
प्रकाशकों सम्पादकों तक आपकी एप्रोच हो, इसके लिये जुरूरी है कि या तो आप खुद उच्च अधिकारी हों अथवा ऊंचे अफ़सरों से आपका अच्छा सम्पर्क हो आज की तारीख में तक़रीबन हर बड़े सौ अफ़सरों में से पचास साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। आये दिन किसी न किसी अफ़सर के उपन्यास या कविता संग्रह का विमोचन होता ही रहता है। इसलिये आप किसी न किसी बड़े अफ़सर की चाटुकारिता करिये और उससे दोस्ती गांठिये। वह आपके लिये साहित्यकार बनने की सीढ़ियां बनाएगा |
कवि अथवा कथाकार के रूप में लगातार चर्चा में बने रहने के लिये समय समय पर पुरस्कृत होना व प्रशस्ति पाना आवश्यक है। इनकी व्यवस्था आपको खुद करनी पड़ेगी और खर्च भी आप ही को वहन करना पड़ेगा। नुस्खा थोड़ा खर्चीला जुरूर है पर है बड़ा कारगर आप किसी संस्था द्वारा अपना सम्मान समारोह अथवा अपनी नयी किताब का विमोचन समारोह स्वयं आयोजित करवाइये। विमोचन अगर किसी स्थानीय नेता या किसी पत्रिका के सम्पादक द्वारा हो तो बेहतर है।
- चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
लफ़्ज़
30
26
जनवरी से 25 अप्रैल
2006
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