Sunday 13 December 2020

व्यंग्य परिक्रमा 2020


लेखा-जोखा

 राहुल देव

 

आमतौर पर व्यंग्य को अगम्भीर किस्म का गंभीर साहित्य माना जाता रहा है। अपने मूल में व्यंग्य साहित्य विसंगतियों का चरित्र चित्रण है। व्यंग्य जीवन और समाज की आलोचना का सशक्त भाषिक अस्त्र है। यह एक सरोकारसम्पन्न गंभीर उपविधा है। व्यंग्यकार खुद व्यवस्था का सबसे बड़ा आलोचक है। इसलिए इसकी लोकप्रियता गुणवत्ता में ह्रास के बावजूद आज भी कम नही हुई है | कोरोना संकट के बावजूद अपनी तमाम कमियों और गुणों के साथ हर साल की तरह इस वर्ष भी व्यंग्य की तमाम किताबें आई हैं जिनका संक्षिप्त उल्लेख इस आलेख में किया गया है |

 

'व्यंग्य का ब्लैकहोल' शीर्षक से व्यंग्यकार आभा संजीव सिंह का रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से संग्रह इसी साल आया। चर्चित व्यंग्यकार पीयूष पाण्डेय का व्यंग्य संग्रह 'कबीरा बैठा डिबेट में' प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से साल के शुरुआती दिनों में आया था। परसाई नगरी जबलपुर के व्यंग्यलेखक जयप्रकाश पाण्डेय का रवीना प्रकाशन से 'डांस इंडिया डांस' नामक संग्रह आया। शिवना पेपरबैक्स, सीहोर ने भी व्यंग्य की कुछ अच्छी पुस्तकें प्रकाशित कीं जिनमे प्रेम जनमेजय और लालित्य ललित की 'मेरी दस रचनाएं' सिरिज की किताबें रहीं। वहीं दिव्यांश पब्लिकेशन्स से प्रकाशित सुधीर मिश्र की किताब 'हाइब्रिड नेता चुनिंदा लखनवी तंज' थोड़ा अलग मिज़ाज़ की पुस्तक रही। यह किताब पिछले वर्ष प्रकाशित हुई थी | इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इस वर्ष इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ है | अलग मिजाज़ की बात करें तो एक किताब ने और मेरा ध्यान खींचा जिसका शीर्षक है ‘साहित्यिक पंडानामा’ और इसके लेखक हैं सीतापुर निवासी भूपेंद्र दीक्षित इसे लोकमित्र प्रकाशन, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है |

 


युवा व्यंग्यकारों में इंदौर के व्यंग्यकार सौरभ जैन का पहला व्यंग्य संग्रह 'डेमोक्रेसी स्वाहा' भावना प्रकाशन, नयी दिल्ली से छपा। इसी प्रकाशन हाउस से नोएडा (उ.प्र.) के युवा व्यंग्यकार अभिषेक अवस्थी का प्रथम व्यंग्य संग्रह 'मृगया' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। इस विधा में अन्य युवाओं की प्रमुख किताबों की बात करें तो उनमें लखनऊ के प्रसिद्ध कवि और व्यंग्य लेखक पंकज प्रसून की 'हँसी का पासवर्ड' व मांडवी प्रकाशन, गाज़ियाबाद से प्रकाशित मुकेश राठौर की किताब 'मुआवजे का मौसम' का नाम लिया जा सकता है।

 

इस वर्ष प्रकाशित अपेक्षाकृत वरिष्ठ रचनाकारों की प्रमुख पुस्तकों का जिक्र करूँ तो उनमें किताबवाले, नई दिल्ली से गिरीश पंकज का 'जादुई चिराग', नीरज बुक सेंटर से प्रकाशित हुई विनोद साव की किताब 'धराशायी होने का सिलसिला', अश्विनी कुमार दुबे का संग्रह 'महान बनने की कला', अमन प्रकाशन कानपुर से प्रेम जनमेजय का संग्रह 'हँसो हँसो यार हँसो', वनिका प्रकाशन बिजनौर से आलोक पुराणिक का व्यंग्य संग्रह 'व्हात्सप्प के पढ़े-लिखे' काफी समय बाद देखने को मिला। इसी क्रम में उज्जैन के सशक्त व्यंग्यकार शांतिलाल जैन का चौथा व्यंग्य संग्रह 'वे रचनाकुमारी को नही जानते', राजस्थान से बुलाकी शर्मा का व्यंग्य संग्रह 'पांचवां कबीर', अमन प्रकाशन कानपुर से चतुर्थ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्राप्त राजस्थानी व्यंग्यकार अतुल चतुर्वेदी का संग्रह 'बेशर्म समय में', कलमकार प्रकाशन से सेवाराम त्रिपाठी का संग्रह ‘हाँ, हम राजनीति नही कर रहे’, मुम्बई के डॉ प्रमोद पाण्डेय के संपादन में 'बता दूं क्या' शीर्षक से निकला 15 व्यंग्यकारों का संयुक्त संकलन और वर्षांत में सरोकार प्रकाशन भोपाल से कुमार सुरेश का व्यंग्य संग्रह 'व्यंग्य-राग' का नाम लिया जा सकता है।

 


महिला व्यंग्यकारों की बात करें तो उनमें नीरज बुक सेंटर से प्रकाशित स्नेहलता पाठक का संग्रह 'एक दीवार सौ अफ़साने', अर्चना चतुर्वेदी के संग्रह 'घूरो मगर प्यार से' 'लालित्य ललित के श्रेष्ठ व्यंग्य' संपादक- सुनीता शानू प्रमुख रहे।

 

इसी साल प्रकाशित देश के कुछ अन्य व्यंग्यकारों के संग्रहों की बात की जाय तो उनमें इंडिया नेटबुक्स, नॉएडा से हरीश कुमार सिंह का व्यंग्य संग्रह 'आप कैमरे की नज़र में हैं', रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से दीपक गिरकर का व्यंग्य संग्रह 'बंटी, बबली और बाबूजी का बटुआ', वैभव प्रकाशन, रायपुर से प्रकाशित सुनील जैन राहीका संग्रह 'झम्मन बारात के रिश्तेदार', रवीना प्रकाशन से विवेक रंजन श्रीवास्तव का संग्रह 'खटर-पटर', राजशेखर चौबे का व्यंग्य संग्रह 'स्ट्राइक 2.0', इंडिया नेटबुक्स से प्रकाशित अरुण अर्णव खरे का संग्रह 'उफ ये ऐप के झमेले' तथा विवेक रंजन श्रीवास्तव का व्यंग्य संग्रह 'समस्या का पंजीकरण व अन्य व्यंग्य' उल्लेखनीय रहे।

 


व्यंग्य विधा पर आलोचनात्मक दृष्टि से बात करती सुरेश कान्त की पुस्तक 'व्यंग्य एक नई दृष्टि' अमन प्रकाशन, कानपुर ने इसी साल प्रकाशित की जो अपने आप मे उपयोगी पुस्तक रही। यह वर्ष व्यंग्य उपन्यास की दृष्टि से उतना उर्वर नही रहा। राजीव तनेजा के व्यंग्य उपन्यास 'काग-भुसन्ड' को छोड़ दें तो कोई अन्य महत्वपूर्ण व्यंग्य औपन्यासिक कृति मेरी नज़र में नही आई। हाँ बहुपठित उपन्यासकार-व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी का छठा उपन्यास 'स्वांग' इस साल राजकमल से आना संभावित था लेकिन नही आ सका शायद अब वह 2021 के पुस्तक मेले में आयेगा।

 

पत्र-पत्रिकाओं की बात करें तो कई पत्रिकाओं जैसे 'इण्डिया टुडे' के व्यंग्य वार्षिकांक ने काफी अच्छी सामग्री प्रस्तुत की। व्यंग्य की सदाबहार पत्रिका 'व्यंग्य यात्रा' तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने व्यंग्यप्रेमी संपादक प्रेम जनमेजय की वजह से संयुक्तांक निकालते हुए इस वर्ष को हँसते-हँसते विदा दी।

 

व्यंग्य साहित्य की दृष्टि से यह वर्ष काफी भरा-पूरा रहा। गुणवत्ता व परिमाण दोनों दृष्टियों से पिछले वर्ष की अपेक्षा व्यंग्यलेखकों ने आश्वस्त किया। ख़ासतौर से युवा रचनाकारों की वैचारिक जमीन, ऊर्जा और तैयारी देखकर खुशी हुई। अब इसका कारण लॉकडाउन के कारण इफ़रात में मिला काफी खाली समय रहा या कुछ और यह निश्चित रूप से नही कह सकता। लेकिन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और वैश्विक मुद्दों पर इस साल सबने जी भर कलम चलाई और क्या खूब चलाई। ऐसा नही है कि जितनी किताबें आईं सभी बेहतरीन रहीं लेकिन इस लेखे में वे ही किताबें शामिल की गयीं हैं जिनमे कुछ सार्थक लेखन देखने को मिला और जिन्हें पाठकों ने भी अपना भरपूर प्यार दिया | कुछेक संग्रहों ने मुझे काफी निराश भी किया | उनके नाम न लेते हुए बस यही सलाह कि किताब केवल अपने संग्रहों की संख्या बढ़ाने भर के लिए न निकालें बल्कि किताब ऐसी हो जो अपनी समृद्ध व्यंग्य परम्परा में कुछ न कुछ जोड़ती चले तभी आपका लिखना सार्थक साबित होगा | कुल मिलाकर कोविडग्रस्त निराशाजनक माहौल में 2020 व्यंग्य की दृष्टि से राहत भरा रहा। अब यह उम्मीदें कहाँ तक अपना असर छोड़ पाएंगीं यह तो आने वाला समय बताएगा। मुक्तिबोध की पंक्तियाँ हमेशा स्मरण रहे 'जो है उससे बेहतर चाहिए'। बेहतरी की यह तलाश अनवरत जारी रहे | आमीन |

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9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध) सीतापुर 261203 (उ.प्र.)

9 comments:

  1. बढ़िया लेखा जोखा है। एक बात और व्यंग्य के संदर्भ में इस वर्ष हुई है। व्यंग्य विधा को स्वतंत्र रूप से पहली बार मुम्बई विश्वविद्यालय के बीए पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। राधाकृष्ण प्रकाशन से पाठ्य पुस्तक 'व्यंग्य वीथी' के नाम से प्रकाशित हुई है, जिसमें कुल 12 व्यंग्य रचनाएं अलग अलग पीढ़ी के व्यंग्यकारों के शामिल हुए हैं। सम्पादन विश्वविद्यालय के हिंदी मंडल ने किया है।

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  2. बहुत सुंदर विवेचना राहुल।

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  3. बहुत संतुलित और बेबाक लिखा आपने 👌

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  4. व्यंग्य का लेखा - जोखा अच्छा लगा। बधाई राहुल जी।

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  5. संपूर्ण लेखा-जोखा! उल्लेखनीय कार्य!

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  6. आपने सार्थक टिप्पणी की है और इस वर्ष का पूरा लेखा जोखा प्रस्तुत किया है।हार्दिक बधाई राहुल जी।

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  7. जानकारी और सार्थक टिप्पणी से भरपूर। राहुल भाई आप व्यंग्य आलोचना में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। बधाई.

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