सूखा कुआँ
नवाब चौक का सूखा कुआँ
हमारे शहर का इकलौता बचा कुआँ है
जो प्यास का भावार्थ बतलाता है
बाकी जो भी कुएँ थे
उसे भू-माफिया पी गए
अपनी धन की प्यास बुझाने
नवाब चौक का कुआँ भी अब
एक विशाल कूड़ेदान में बदल चुका है
झाँकने पर अब उसमे स्वच्छ पानी नहीं
मोहल्ले भर का कचरा दिखाई देता है
पानीदार महिलाओं की सेनेटरी नैपकिन्स
और रसूखदार पुरुषों की यूज्ड कंडोम्स से
भरा वह कुआँ
युवक-युवतिओं में जुगुप्सा जगाता है ।
शुद्धता
नदियों ने जन्म दिया सभ्यताओं को
सभ्यताओं ने संस्कृतियों का निर्माण किया
जब भी किसी सभ्यता ने
अपनी संस्कृति में
शुद्धता का दुराग्रह पाला
बुरी तरह बिखर गईं
कितनी तरह की मिट्टियों और अवयवों को
साथ लेकर चलती है नदियाँ ।
पहेली
अँधेरे से भागना नहीं
अँधेरा भी जगाता है
कठिन राह की रोशनी है अँधेरा
सपने टहलते हैं अँधेरे में
ईच्छाएं करवट लेती हैं अँधेरे में
आकांक्षाएं दौड़ती हैं अँधेरे में
अँधेरा कोई अबूझ पहेली नहीं
अँधेरे को समझने के लिए
जुगनू को समझना जरुरी है
मेरे जीवन में जुगनू का बड़ा महत्व है
इसीलिए अँधेरा मुझे इतना प्रिय है
लोहा-1
लोहा काटता है लोहे को
लोहा काटता है पत्थरों को
लोहा काटता है मासूम जीवों को
लोहा बहुत ताकतवर दिखता है
लेकिन लोहा नहीं काट सकता
समय, हवा और पानी को
मैं समय, हवा और पानी के साथ हूँ ।
लोहा-2
लोहा बहुत मजबूत होता है
तुमने कहा था एक बार
कि तुम लोहा हो
तो सुनो
नमी से बचाकर रखना खुद को
क्षरित होता है लोहा नमी से
मेरे जीवन में नमी जरुरी है
मैं लोहा नहीं हो सकता
मजबूत होने का भरम
दुनिया का सबसे खूबसूरत भरम है ।
संक्षिप्त परिचय
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शेखर सावंत
शिक्षा - एम.ए (अंग्रेजी), एल.एल.बी, पीजीडी
(पत्रकारिता व जनसंचार)
पेशा - शिक्षण व स्वतंत्र पत्रकारिता
लेखन - कविता, कहानी व आलेख
प्रकाशन - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ
प्रकाशित एक कविता-संग्रह और एक कहानी-संग्रह का प्रकाशन शीघ्र ।
संपादन - साहित्यिक पत्रिका " समीहा " का पांच वर्षों (सन् 2000 से 2005) तक संपादन ।
ई-मेल - shekharjeesahityakar@gmail.com
मोबाईल - 09835263144
बहुत सुंदर और सार्थक लेखन
ReplyDeleteलोहा-1 बहुत अच्छी लगी