आजकल के त्यौहारोँ मेँ वह उल्लास कहाँ है
जो ज्यादा नहीँ बल्कि 20-25 साल पहले था।
वर्तमान मेँ अधिकतर पर्व उपेक्षित होते जा रहे हैँ
मोबाइल जिन्दगी चन्द शब्दोँ तक सिमट कर रह गयी है
इसने हर एक मौका छीन लिया है हमसे
मिलने मिलाने का समय न जाने कहाँ चला गया है,
हम सब एक औपचारिक जिन्दगी जी रहे हैँ
चुपचाप अपने मेँ लस्त हैँ
विभिन्न परेशानियोँ से त्रस्त हैँ
अब किसी की कलम त्योहारोँ पर
नहीँ उठती
कहने को आज बड़े मस्त हैँ
कोई कवि होली पर कविता नहीँ लिख रहा
लेकिन होली तो होली है
हर साल आती है
और हम हर साल एक कदम आगे बढ़ जाते हैँ
ज्यादा समय नहीँ बीता है
हमेँ सोचना होगा!
थोड़ा ही सही
मुड़कर पीछे देखना होगा
जो हुआ उसे भूल जाएं
आओ सबकी खैरसल्लाह लेँ
रंगोँ मेँ डूबकर
मस्ती मेँ सराबोर हो जाएं
हम अभी इन्सान ही हैँ
समाज मेँ अभी भी रह रहेँ हैँ हम सब
सुबह का भूला शाम को घर आ जाए
तो उसे भूला नहीँ कहते
रंगोँ का त्यौहार होली आने वाली है
इसलिए थोड़ी ख़ुशी बाँटेँ
मतभेदोँ को तोड़ देँ
बनावटीपन छोड़ देँ
आओ न यार होलिकोत्सव मनाएँ..
-राहुल देव
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