Saturday 18 February 2012

भावी कवियोँ/लेखकोँ से


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कभी तो छपेगा
इसलिए लिखते रहो
भावी आशा मेँ
कागज़ काले करते रहो
क्योँकि वह तभी छपेगा
जब तुम्हारा टिकट
रामपुर के लिए कटेगा,
जब लोग तुम्हारे
साहित्य को पढ़ेँगे
तब तुम्हारी आत्मा की शान्ति के लिए
भगवान से प्रार्थना करेँगे
तब तुम ऊपर से देखना
अपने कलम की धार
फिलहाल अपनी पांडुलिपि करो तैयार!

-राहुल देव



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