Monday, 25 July 2011

आत्मविश्वास और दृढ़ता के साथ बढ़े आगे



  • स्वामी विवेकानंद ने कई स्थानों का भ्रमण किया था। उन्होंने अपने यात्रा- वृत्तान्त में एक घटना का वर्णन किया है। प्रस्तुत है, उसके कुछ अंश :
    एक बार मैं हिमालय के अंचल में यात्रा कर रहा था। सामने लम्बी सड़क का विस्तार। उस निर्जन स्थान पर हम गरीब साधुओं को ले जाने वाला कोई नहीं था, इसलिए हमें पूरा मार्ग पैदल चल कर ही पार करना था। लेकिन हमारे साथ एक वृद्ध व्यक्ति भी यात्रा कर रहे थे। रास्ते में उतार-चढ़ाव देख कर वृद्ध साधु ने कहा कि इसे कैसे पार करें? मैं अब आगे चलने में बिल्कुल असमर्थ हूं!
    मैंने उनसे कहा कि आपके पांवों के नीचे जो सड़क है, उसे आप पार कर ही चुके हैं। अब आपको सामने जो सड़क दिखाई दे रही है, वह भी शीघ्र आपके पांवों के नीचे आ जाएगी, यदि आप हताश न हों और हिम्मत से काम लें! यहां विवेकानंद का संदेश बड़ा स्पष्ट है। यदि हमारे पास साधन या सहायक न हो, रास्ता उतार-चढ़ाव वाला हो और शरीर वृद्धावस्था को प्राप्त हो गया हो, तब भी हिमालय पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
    उत्साह का संचार
    हम अपने जीवन की संघर्षमय यात्रा का अधिकांश हिस्सा सहज भाव से काट देते है। यह सच है कि किसी भी क्षण हमारे सामने हिमालय पर चढ़ने के समान दुर्गम समस्या खड़ी हो सकती है। संभव है कि समस्या से मुकाबला करते-करते हमारा शरीर कमजोर पड़ जाए और उस समय हमारी कोई सहायता भी न करे! ऐसी स्थिति में मन में हीन भावना उत्पन्न होना अवश्यंभावी है। और तो और, हमारा उत्साह भी भंग हो जाता है और हार को स्वीकार करने के लिए हम तैयार हो जाते हैं! यदि किसी व्यक्ति के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, तो स्वामी जी के यात्रा वृत्तान्त के मर्म को अवश्य याद करना चाहिए। हमें कभी निरुत्साहित नहीं होकर स्वयं में उत्साह का संचार अवश्य करना चाहिए, क्योंकि कोई भी समस्या ऐसी नहीं होती है, जिसका हल मौजूद न हो। यहां सवाल कदम को पीछे हटाने का नहीं, बल्कि आगे बढ़ाने का है।
    असंभव नहीं है कोई कार्य
    स्वामी विवेकानंद के कथन को हम कुछ उदाहरणों से अच्छी तरह समझ सकते है। वर्षो पूर्व हिमालय को अजेय माना जाता था। लेकिन एडमंड हिलेरी ने एक साहसिक भरा कदम उठाया और हिमालय पर विजय प्राप्त कर ली। उनके साहस का ही परिणाम है कि कई व्यक्तियों ने हिमालय की चोटी पर पहुंच कर सफलता का परचम लहराया है।
    वास्तव में, दुनिया में जो भी कीर्तिमान बनते है, वे पहले असंभव ही माने जाते हैं। लेकिन हमें यह भी हमेशा याद रखना चाहिए कि कीर्तिमान टूटने के लिए ही बनते हैं। हम सभी निरंतर खेल के मैदान पर रिकार्ड टूटने के बारे में सुनते रहते हैं। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि इस दुनिया में असफलता नाम की कोई चीज ही नहीं है। जरूरत है, तो केवल दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कदम आगे उठाने की।
    हीनता का त्याग
    स्वामी विवेकानन्द कहते है कि हमें हीन भावनाओं को अवश्य त्याग देना चाहिए। क्योंकि हमारी मुख्य समस्या हीन भावना ही है। यदि हम मन ही मन स्मरण करते हैं कि यह कार्य हमसे नहीं हो पाएगा, तो असफलता तय है। सच तो यह है कि निराशा ही हमें अवसाद की स्थिति में ले जाती है। हीनता-निराशा पाप है, क्योंकि मनुष्य जन्म मूल्यवान है। इतालवी उपन्यासकार सेजरे पावसे कहते हैं कि सभी पापों का जन्म हीनता की भावना से उत्पन्न होता है। इसी भाव की वजह से हम अपनी असफलता का कारण किसी अन्य व्यक्ति के सिर मढ़ देते हैं। डर लगता है कि यदि हम साहसपूर्वक कदम उठा लेंगे, तो असफल हो जाएंगे और फिर दूसरे व्यक्ति भी हम पर हंसेंगे। लोग क्या कहेंगे, यह एक अजीब डर है। लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि असफल होने पर भी हम कुछ ज्ञान अवश्य प्राप्त करते हैं। क्योंकि यह भी एक सच है कि जो दौड़ेगा, वही तो गिरेगा! इसी तरह यदि हम एक-एक कदम आगे बढ़ाएंगे, तभी मंजिल मिलेगी। यदि हम केवल विचार करते हुए सड़क पर खड़े रहेंगे, तो मंजिल तक पहुंचने की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। दरअसल, भाग्य भी उन्हीं व्यक्तियों का साथ देता है, जो कर्म करते हैं। इसलिए एक कदम आगे उठाने का साहस कीजिए, रास्ता स्वयं बनता चला जाएगा। इस संबंध में वेद व्यास कहते हैं कि चिंता रहित होकर आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी हमें समृद्धि और ऐश्वर्य मिल पाएगा।
    स्वामी जी कहते है कि हिमालय के उतार-चढ़ाव भरे रास्ते के समान हमारा जीवन भी संघर्षो से भरा हुआ है। इसलिए हमें धैर्यपूर्वक अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाते रहना चाहिए। कवि श्याम नारायण पांडेय ने भी कहा है :
    यह तुंग हिमालय किसका है?
    उत्तुंग हिमालय किसका है?
    हिमगिरि की चट्टानें गरजीं,
    जिसमें पौरुष है उसका है।
    इसलिए हमें जीवन के संघर्ष-पथ पर निरंतर बढ़ते रहना चाहिए, तभी सफलता भी हासिल होगी।

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