यह वर्ष हिन्दी के 'नागार्जुन' और मैथिली के 'यात्री', मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र का जन्म शताब्दी वर्ष है। ज्येष्ठ पूर्णिमा 1911 को बिहार के दरभंगा जिलांतर्गत तरौनी गाँव मेँ जन्मे नागार्जुन बहुभाषाविद् थे-हिन्दी,मैथिली के अलावा उन्होँने संस्कृत और बांग्ला मेँ भी मौलिक लेखन किया। एक साधारण परंपरावादी ब्राह्मण परिवार मेँ जन्मे नागार्जुन की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के संस्कृत पाठशाला मेँ हुई। संस्कृत की 'मध्यमा' परीक्षा पास कर वे काशी चले गये। जीवन यापन और अध्ययन के लिए की गयी यात्राओँ के कारण उन्होँने 'यात्री' उपनाम धरा। काशी मेँ 'शास्त्री' करने के बाद कलकत्ता गये और तब वहाँ से लंका। वहाँ बौद्ध धर्म मेँ दीक्षित हो 'नागार्जुन' नाम ग्रहण किया(1937)। फिर महापंडित राहुल सांकृत्यायन संग तिब्बत यात्रा पर निकले पर स्वास्थ्य की वजह से लौट आए और सोनपुर (बिहार) मेँ किसान नेता स्वामी सहजानंद के सान्निध्य मेँ आए। अमबारी सत्याग्रह ने उन्हेँ जेल पहुँचाया दूसरी जेल यात्रा दो वर्ष बाद 1941 मेँ। पर राजनीति रास नहीँ आई ,सो साहित्य की ओर मुड़े। फिर तो पीछे मुड़कर नहीँ देखा। घर-बार कभी भी उनके लिए बाधा नहीँ बना और घुमक्कड़ी संग लेखन चलता रहा। कविता और उपन्यास लेखन की मुख्य विधा रही पर कहानी,कथेतर गद्य,यात्रा वृत्तांत और समय-समाज तथा समकालीनोँ पर भी लिखा। बलचनमा, रतिनाथ की चाची(उपन्यास), हजार- हजार बाहोँ वाली, खिचड़ी विप्लव देखा हमने(कविता-संग्रह)आदि उनकी मुख्य रचनाएं हैँ। अपने आदर्श निराला को केन्द्र मेँ रखकर एक व्यक्ति:एक युग लिखा। सभी विधाओँ मेँ कुल मिलाकर 45 पुस्तकोँ का प्रणयन किया। हिन्दी का जनकवि और मैथिली का महाकवि यह नागार्जुन उर्फ यात्री जीवन भर घुमक्कड़ बना रहा और फक्कड़ बना रहा, लेकिन जिसका मन फकीरी मेँ रम गया हो उसे भला सुख और आराम से लेना-देना क्या! अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारोँ-सम्मानोँ से सम्मानित इस रचनाकार का 5 नवंबर, 1998 को देहान्त हो गया।
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