Tuesday, 18 July 2023

संजय शांडिल्य की कविताएँ


पृथ्वी का सबसे लंबा पुल

  

नदी

स्वयं एक पुल है

पृथ्वी का सबसे लंबा पुल

 

पहाड़ से 

समुद्र को जोड़नेवाला

पहाड़ की हर बात 

समुद्र तक पहुँचानेवाला

नगरों...क़स्बों...जंगलों के 

सुख-दुख का 

निरंतर वाहक पुल

 

कभी मैं भी जाऊँगा समुद्र तक 

उस पुल से

जो एक नदी भी है..

 

लौटना

 

ज़रूरी नहीं

कि लौटो यथार्थ की तरह

स्वप्न की भी तरह

तुम लौट सकती हो जीवन में

 

ज़रूरी नहीं

कि पानी की तरह लौटो

प्यास की भी तरह

लौट सकती हो आत्मा में

 

रोटी की तरह नहीं

तो भूख की तरह

फूल की तरह नहीं

तो सुगंध की तरह

लौट सकती हो

 

और हाँ,

ज़रूरी नहीं कि लौटना

कहीं से यहीं के लिए हो

यहाँ से कहीं और के लिए भी

तुम लौट सकती हो...

 

हम मिलेंगे

 

पानी और फ़सल बनकर

किसी मेड़ पर हम मिलेंगे

और लहलहा उठेंगे

 

नमी और प्रकाश बनकर 

मिलेंगे किसी शाख़ पर

और खिल उठेंगे बेसाख़्ता

 

हम भूख और भोजन होकर 

किसी देह में मिलेंगे

और तृप्त हो जाएँगे आत्मानंत में

 

एक दिन

नदी और समुद्र-रूप में

किसी छोर पर मिलेंगे

और अछोर हो जाएँगे परस्पर

 

हम मिलेंगे

किसी और ही जीवन में मिलेंगे

पर मिलेंगे ज़रूर

हम ज़रूर मिलेंगे, प्रिये !

 

आदमी

 

एक आदमी

अगले ही क्षण

दूसरा आदमी हो जाता है

 

दूसरे से तीसरा

तीसरे से चौथा

चौथे से पाँचवाँ...

इस तरह 

अनंत क्षणों में एक आदमी 

अनंत हो जाता है

हालाँकि अनंत हुआ आदमी 

लौटता है आरंभ की ओर

और छूटे हुए 

प्रत्येक आदमी को ढूँढ़ता है 

ढूँढ़ता है और आगे बढ़ता है

बढ़ता हुआ 

किसी और दिशा में 

मुड़ जाता है...

 

अभी 

पिछले क्षण

तुम्हारे बारे में सोचता हुआ मैं

इस क्षण 

तुम्हारे बारे में लिखता हुआ

बिलकुल दूसरा आदमी हूँ

सोचता हुआ आदमी

सोचनेवाला आदमी था

लिखता हुआ आदमी

लिखनेवाला आदमी है

संभव है

लिखनेवाला यह आदमी

अगले क्षण

सुनानेवाला आदमी हो जाएगा

 

तुम भी 

जो मुझे पढ़ रहे हो 

सुन रहे हो

विचार रहे हो

बदलते हर क्षण में

एकदम अलग-अलग आदमी हो

 

ऐसे ही अपने हर आदमी से बिछुड़ता

एक एक आदमी से जुड़ता

रह जाता है आदमी 

और किसी दिन ख़त्म हो जाता है

 

हालाँकि 

जिसे हम 'खतम आदमी' कहते हैं

वह भी एकदम अलहदा आदमी होता है...

 

मैं आऊँगा

 

मैं आऊँगा

यहाँ बार-बार आऊँगा

 

यहाँ के पेड़

फूल और पत्तियाँ

उड़ती चिड़ियाँ और तितलियाँ

बेहद पसंद हैं मुझे

उनका होना फिर से देखने

मैं आऊँगा

 

मुझे पहाड़ यहीं के चाहिए

झीलें और झरने

तालाब, उपवन और वन

सब यहीं के चाहिए

और जैसे हैं, वैसे ही चाहिए

 

आऊँगा धरती से देखने आकाश

असंख्य ताराओं की गिनती के

अगणित प्रयासों के लिए आऊँगा

चंद्रमा का अमृत आत्मा में धारने

सूरज की तपिश से फिर-फिर हारने आऊँगा 

 

मैं दुखों से

अभावों से

आनंदों से बार-बार गुज़रना चाहूँगा 

इसलिए आऊँगा

 

आऊँगा

कि बेहद प्यार है मुझे इस धरती से

मोह के समुद्र में

मैं फिर से डूब जाना चाहूँगा

इसलिए आऊँगा

 

आऊँगा

कि मुझे प्यास चाहिए और भूख

अकर्मण्यता का छप्पनभोग मुझे नहीं चाहिए

 

आऊँगा

वनस्पतियों और प्राणियों के

इसी लोक में फिर आऊँगा

और हाँ,

मोक्ष का हर प्रलोभन

ठुकराकर आऊँगा !

 

◆◆◆

 

संजय शांडिल्य

जन्म : 15 अगस्त, 1970 | 

स्थान : जढ़ुआ बाजार, हाजीपुर |

शिक्षा : स्नातकोत्तर

वृत्ति : अध्यापन

प्रकाशन : कविताएँ 'आलोचना', 'आजकल', 'हंस', 'समकालीन भारतीय साहित्य', 'वागर्थ', 'वसुधा', 'बनास जन', 'दोआबा', 'नई धारा', 'कृति बहुमत', 'नया प्रस्थान' एवं 'ककसाड़'-समेत हिंदी की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं तथा इ-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले', ‘जनपद : विशिष्ट कवि’, 'इश्क एक : रंग अनेक', 'काव्योदय', 'प्रभाती', 'आकाश की सीढ़ी है बारिश' तथा अँधेरे में पिता की आवाज़’-सहित दर्जनों संकलनों में संकलित | कविता-संकलन उदय-वेलाके सह-कवि | चार कविता-संग्रह 'समय का पुल', 'लौटते हुए का होना', 'जाते हुए प्यार की उदासी से' (प्रेम-कविताएँ) एवं 'नदी मुस्कुराई' (नदी और पानी-केंद्रित कविताएँ) शीघ्र प्रकाश्य

संपादन : ‘संधि-वेला’, ‘पदचिह्न’, ‘जनपद : विशिष्ट कवि’, ‘प्रस्तुत प्रश्न', ‘कसौटी’ (विशेष संपादन-सहयोगी के रूप में), ‘जनपद’ (हिंदी कविता का अर्धवार्षिक बुलेटिन), ‘रंग-वर्षएवं रंग-पर्व’ (रंगकर्म पर आधारित स्मारिकाएँ), 'जीना यहाँ मरना यहाँ' (गायक मुकेश के जीवन और कलात्मक अवदान पर केंद्रित स्मारिका) | ‘चाँद यह सोने नहीं देता’ (नंदकिशोर नवल की संपूर्ण कविताएँ), ‘पानी की भाषा में एक नदी’ (हिंदी की नदी-विषयक कविताओं का संचयन) एवं बेदर-ओ-दीवार सा इक घर’ (उर्दू की प्रतिनिधि ग़ज़लों और नज़्मों का संचयन) शीघ्र प्रकाश्य | अर्धवार्षिक पत्रिका 'उन्मेष' का संपादन एवं इसी नाम से एक साहित्यिक ब्लॉग का संचालन |

भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (FTII), पुणे, महाराष्ट्र के वरिष्ठ छात्रों द्वारा 'समकालीन भारतीय साहित्य' में प्रकाशित कविता 'जो आदमी लौट आया है' पर लघु फ़िल्म का निर्माण

संपर्क : साकेतपुरी, आर. एन. कॉलेज फ़ील्ड से पूरब, प्राथमिक विद्यालय के समीप, हाजीपुर, वैशाली, पिन : 844101 (बिहार) |

मोबाइल नं. : 9430800034, 7979062845 |

मेल पता : sanjayshandilya15@gmail.com |

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