यदि हम अच्छे मेहमान और अच्छे मेज़बान बन सकें तो जीवन
कितना आनंदपूर्ण हो जाए!
हमारी संस्कृति में आतिथ्य
को बड़ा महत्त्व प्रदान किया गया है। अतिथि को भगवान का दर्जा दिया गया है। कहा गया
है अतिथि देवोभव। इसी का पालन करते हुए अधिकांश लोग घर आए मेहमानों की सेवा-सत्कार
में जी जान से लग जाते हैं। जो चीज़ें स्वयं अपने लिए या अपने बच्चों के लिए सुलभ नहीं
करवा पाते हैं उन चीज़ों को अपने मेहमानों के लिए सुलभ करवाने का प्रयास करते हैं। निस्संदेह
मेहमाननवाज़ी अथवा आतिथ्य हमारे जीवन और व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण अंग है। जो व्यक्ति
अथवा परिवार मेहमाननवाज़ी अथवा आतिथ्य में कोताही बरतते हैं वे अपने परिचितों, मित्रों व रिश्तेदारों में ही नहीं समाज में भी न तो
सम्मान ही पाते हैं ओर न स्नेह ही। हमें घर आए मेहमानों का यथोचित स्वागत-सत्कार करना
ही चाहिए। यह हमें सुसंस्कृत व शिष्ट बनाने के साथ-साथ आनंद भी प्रदान करने में सक्षम
होता है। ये भी कहा गया है कि भाग्यवान घरों में ही मेहमान आते हैं। मेरा तो मानना
है कि जिन घरों में मेहमान आते हैं और जो आतिथ्य का भरपूर आनंद लेते हैं वही भाग्यवान
बनते हैं।
प्रश्न उठता है कि जहाँ
समाज में अतिथि को भगवान का दर्जा दिया गया है वहीं क्या अतिथि को अपने इस दर्जे की
गरिमा का पालन नहीं करना चाहिए? कई लोग ऐसे भी होते हैं
जहाँ कहीं भी जाते हैं मेज़बान के लिए परेशानी ही पैदा करते हैं। एक अच्छा मेज़बान होने
के साथ-साथ एक अच्छा मेहमान बनना भी अनिवार्य है। एक मेहमान को भी चाहिए कि वो जहाँ
जा रहा है उनके लिए प्रसन्नता का कारण बने न कि परेशानी का। किसी भी व्यक्ति को कहीं
मेहमान के रूप में जाने से पहले कई बातों पर विचार कर लेना चाहिए।
सबसे पहले तो हमारा यही
देखना बनता है कि हम जहाँ अतिथि बनकर जा रहे हैं वहाँ जाना बनता भी है या नहीं। क्या
उस परिवार या व्यक्ति विशेष से हमारे ऐसे संबंध है कि हम बेतकल्लुफ़ होकर उनके मेहमान
बन जाएँ? कई लोगों को सिर्फ़ पता
चाहिए और वे ऐसे लोगों के यहाँ जा पहुँचते हैं जो न तो उन्हें जानते हैं और न उनसे
पहले मिले ही होते हैं। ऐसी स्थिति में किसी के यहाँ जा टिकना सरासर ग़लत है। किसी अपरिचित
से मिलने जाने में कोई बुराई नहीं लेकिन किसी अपरिचित के यहाँ जाकर टिक जाना बुरी बात
है।
किसी के यहाँ मेहमान
बनकर जाने से पूर्व सूचना देना ही नहीं अपितु ये पूछना भी अनिवार्य है कि आप कहीं व्यस्त
तो नहीं और हमारे आने से आपको असुविधा तो नहीं होगी। यदि कोई प्रसन्नतापूर्वक अनुमति
दे अथवा आग्रह करके बुलाए तभी जाएँ अन्यथा नहीं। जबरदस्ती किसी का मेहमान बनना घोर
अशिष्टता है। कई लोग न केवल बिना पर्याप्त सूचना के अथवा असमय स्वयं किसी के यहाँ मेहमान
रूपी भगवान बनकर प्रकट हो जाते हैं अपितु अपने साथ अपने मित्रों अथवा रिश्तेदारों रूपी
देवी-देवताओं को साथ लेकर साक्षात दर्शन देने को प्रस्तुत हो जाते हैं। अब इस भगवत
मंडली को साक्षात अपने सम्मुख पाकर मेज़बान किस क़दर अपने भाग्य पर इठलाने लगेगा आप स्वयं
अनुमान लगा सकते हैं।
जब लोग बिना किसी पूर्व
सूचना के आ धमकते हैं तो कई बार मेज़बान को बड़ी असुविधा होती है। शहरों में अधिकांश
लोग व्यस्त रहते हैं और उनका कार्यक्रम अथवा दिनचर्या निश्चित होती है। ऐसे में यदि
बेमौसम बरसात की तरह कोई मेहमान या मेहमान परिवार आ टपकता है तो उनका सारा कार्यक्रम
चौपट हो जाता है। कई बार भारी आर्थिक नुक़सान भी हो जाता है।
बहुत से लोग बहुत महत्त्वपूर्ण
अथवा संवेदनशील पदों पर कार्य करते हैं अतः उनके लिए एकदम से छुट्टी लेना भी संभव नहीं
होता। ऐसे में यदि कोई अचानक आकर मेहमान हो जाए तो बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। मेज़बान
कुछ करना चाहते हुए भी विवश होता है। किसी के लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न करना अच्छा नहीं।
ऐसा करना आपसी संबंधों के लिए घातक भी हो सकता है।
कभी घरों में परिवार
के सभी सदस्य अपने-अपने कार्यों पर चले जाते हैं और घर पूरे दिन बंद रहता है। कई लोग
अपने घरों को किसी दोस्त अथवा रिश्तेदार के भरोसे भी नहीं छोड़ना चाहते अतः ऐसे में
कोई मेहमान बिना बुलाए या बिना सूचित किए आ जाता है तो सचमुच बड़ी परेशनी का कारण बनता
है। किसी को अपना घर दूसरों के भरोसे छोड़ने के लिए विवश करना किसी भी तरह से उचित नहीं
कहा जा सकता। ऐसे में कोई असामान्य घटना घटित हो जाती है तो उसकी क्षतिपूर्ति कौन करेगा?
शहरों में अधिकांश घर
अपेक्षाकृत छोटे ही होते हैं और बड़े भी हों तो घर के सदस्यों की आवश्यकता के अनुसार
ही बेड अथवा दूसरा फर्नीचर होता है। ऐसे में कई मेहमान आ जाएँ तो स्थिति बहुत ख़राब
हो जाती है। यदि घर में चार सदस्य हैं और पाँच-छह सदस्य लंबे समय के लिए मेहमान के
तौर पर आ जाएँ तो क्या हालत होगी अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
आज के ज़माने में मेज़बान
की आर्थिक स्थिति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यदि किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति
ठीक नहीं है तो ऐसे में किसी नज़दीकी रिश्तेदार का भी उसके यहाँ जाकर मेहमान बनना उचित
प्रतीत नहीं होता। यदि कोई व्यक्ति किसी भी कारण से नहीं चाहता कि आप उसके यहाँ मेहमान
बनें तो उसके वहाँ जाना निर्लज्जता ही होगी। ऐसी कुचेष्टा कई बार संबंधों में स्थायी
विघटन का कारण भी बन जाती है।
कई लोग कहते हैं कि उन्हें
तो बस रात गुज़ारने के लिए स्थान चाहिए दिन में तो ज़रूरी काम निपटाने के लिए या घूमने
के लिए बाहर ही रहना होता है। खाना भी बाहर ही खाना पसंद करते हैं। जब आपको मेज़बान
से कोई लगाव ही नहीं है तो उनके यहाँ मेहमान बनने की क्या ज़रूरत है? होटल का किराया बचाने के लिए? ऐसे लोगों को किसी शरीफ़ आदमी को बिना वजह परेशान और
लज्जित करने की बजाय किसी होटल में ही रुकना चाहिए।
कई लोग जानते हैं कि
हम जहाँ मेहमान होने जा रहे हैं वो लोग हमें पसंद नहीं करते लेकिन फिर भी बेशर्म होकर
उनके घर की कुंडी जा खटखटाते हैं। वहाँ रहेंगे भी रौब से। बातें भी ऐसे करेंगे जैसे
यहाँ आकर मेज़बान के परिवार पर कोई बहुत बड़ा अहसान कर दिया हो। यदि वो नहीं आते तो मेज़बान
महत्त्वहीन ही रह जाता। मेज़बान को ये जताने के लिए कि हम तुम्हारे ऊपर बोझ नहीं हैं
आते-जाते कहीं से दस-बीस रुपल्ली की गली-सड़ी सब्ज़ियाँ अथवा फल ख़रीद लाएँगे। ये कहाँ
की शालीनता अथवा शिष्टता है।
कई लोगों को काम के सिलसिले
में प्रायः किसी विशेष स्थान पर लगातार जाना पड़ता है और वे हर बार किसी परिचित को परेशान
करने से बाज नहीं आते। कई बार तो अपने साथ अपरिचितों तक को ले जाने में भी संकोच नहीं
करते जो कि बहुत ग़लत बात है। एक परिचित के यहाँ ऐसा ही एक मेहमान प्रायः आने लगा। कई-कई
दिन रुकता। बाद में बिना पूछे ही एक दो को और भी लाने लगा। पहले कुछ अनुशासन रखा लेकिन
बाद में कभी रात को दस बजे आ रहे हैं तो कभी बारह बजे। एक दिन जब रात को दो बजे लाव-लश्कर
के साथ नशे में धुत्त इन सज्जन का आगमन हुआ तो इन्हें अंदर घुसने देने की बजाय इनका
सामान इनके सुपुर्द करके बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। ऐसे लोगों के साथ ऐसा करना
ही उचित है।
कई लोगों को न तो खाने-पीने का शऊर होता है और न उठने-बैठने
का। न तो ख़ुद अच्छे मेहमान होने का फ़र्ज़ अदा करते हैं और न अपने बच्चों को गंदगी फैलाने
से रोकते हैं। न केवल मेज़बान का फ़र्नीचर और दीवारें गंदी कर डालते हैं अपितु क़ीमती
सजावटी सामान भी तोड़-फोड़ डालते हैं। किसी के यहाँ जाकर इतना गंदा और अव्यवस्थित कर
डालते हैं कि मेज़बार अंदर ही अंदर रो पड़ता है। उनके बच्चे अपना तांडव जारी रखते हैं
और माँ-बाप उन्हें रोकने की बजाय उनकी शिष्टता और सद्गुणों के पुल बाँधने में ही लगे
रहते हैं।
एक बार एक सज्जन आए।
अपने किसी अन्य रिश्तेदार के यहाँ किसी कार्यक्रम में आए थे। हमसे भी मिलने आ गए। पत्नी
समेत आए थे। बतला रहे थे कि किसी फाइव स्टार होटल में रुके हुए थे। फाइव स्टार होटल
से निकलकर हमारे ग़रीबख़ाने पर आ गए। पहले तो भाई साहब ने मिठाइयाँ खाकर हाथ बढ़ाकर पास
ही लटकते हुए पर्दे से हाथ पौंछ लिए और उनकी श्रीमती जी ने मुंडी घुमाकर चाय पर आ गई
पपड़ी को उँगली से उठाकर पीछे की दीवार पर लगा दिया जबकि मेज़ पर ही टिश्यू पेपर मौजूद
थे। एक दो बार इशारों से रोकने की कोशिश भी की लेकिन बेकार। शायद फाइव स्टार होटल का
असर बना हुआ था। कमी नहीं है ऐसे लोगों की। ऐसे मेहमानों से भगवान बचाए।
एक बार किसी के यहाँ
एक परिवार आया। उनके छोटे बच्चे भी थे। मेज़बान ने उनको ज़मीन पर दरी बिछाकर सुलाने की
बजाय अपना बेडरूम दे दिया और ख़ुद फ़र्श पर चटाई डाल कर कई रातें गुज़ारीं। क्योंकि मेहमानें
के छोटे बच्चे थे इसलिए बेड पर रबर की शीट बिछा दी थी लेकिन मेहमानों की उद्दण्डता
देखिए कि उन्होंने वो शीट हटा दी जिससे बच्चों का मल-मूत्र सीधे गद्दों में पहुँच गया
और उनमें इतनी दुर्गंध हो गई कि उन्हें फ़ौरन बदलवाना पड़ा। बार-बार कहने के बावजूद उन्होंने
बेड पर रबर की शीट नहीं डाली और कहा कि हमारे बच्चे बिस्तर गीला नहीं करते जबकि वो
दोनों क्रियाएँ बिस्तर में ही करते थे। कई लोग होते ही इतने असभ्य और विध्वंसक हैं
कि न तो होटलों और धर्मशालाओं को ही बख़्शते हैं और न दोस्तों अथवा रिश्तेदारों को ही।
ऐसे मेहमानों से न केवल सख़्ती से पेश आना चाहिए अपितु उन्हें दूर से सलाम कर लेने में
भी कोई बुराई नहीं नज़र आती।
डायपर का शायद नाम भी
न सुना हो लेकिन नखरे ही नखरे। हर बात पर नखरे। खाने के वक़्त भी नखरे करते थे। बार-बार
कहते थे कि आपके यहाँ ये नहीं बनता वो नहीं बनता। ये सज्जन और सजनी जी अपने बच्चों
के लिए कुछ नूडल्स के पैकिट साथ लाए थे और बार-बार उन्हें पकाकर खिलाते थे। कहते थे
कि हम बच्चों को सिर्फ़ नूडल्स और डिब्बाबंद दूध वग़ैरा ही देते हैं। भगवान बचाए ऐसे
बेवकूफ़ और छिछोरे मेहमानों के नखरों से। जो लोग कहीं रिश्तेदारी वग़ैरा में जाते हुए
अपने साथ अपने लिए थोड़ा बहुत खाने-पीने का सामान भी साथ लेकर जाते हैं वो वास्तव में
बहुत ही निकृष्ट क़िस्म के लोग होते हैं। वो कभी अच्छे मेहमान या अच्छे इंसान नहीं हो
सकते। यदि आपको किसी के घर का खान-पान और रहन-सहन पसंद नहीं है तो आप उनके यहाँ जाते
ही क्यों हो?
कुछ लोग कहीं जाते हैं
तो कुछ उपहार अथवा फल-मिठाई आदि भी ले जाते हैं। कुछ ख़ुश होकर तो कुछ मजबूरी में। ये
सज्जन भी आम लेकर आए थे। आम इतने बढ़िया थे कि मैंगो शेक बनाने की ज़रूरत नहीं सीधे गिलासों
में डालो और सर्व कर दो। आमों की महक से उनका सामान तक महक रहा था। थैले में से बाहर
निकालते वक़्त कुछ का शेक ही बाहर आ गया। एक विचित्र गंध उनमें से आ रही थी जिसके कारण
उनको सीधे कूड़े की टोकरी के दर्शन करवाना अनिवार्य था। कहने लगे दिल्ली में अच्छे फल
मिलते ही नहीं हमारे यहाँ तो बहुत अच्छे और ताज़ा फल मिलते हैं।
कई लोग जान-बूझकर ऐसे समय में किसी के यहाँ जाते हैं
जब वो सर्वाधिक व्यस्त होते हैं अथवा उनके बच्चों की परीक्षाएँ वग़ैरा होती हैं। ऐसे
नकारात्मक विचारों वाले मेहमानों का मक़सद ही किसी को परेशान करना अथवा हानि पहुँचाना
होता है। ऐसे लोगों को घर में तो क्या गली में भी नहीं घुसने देना चाहिए। न ग़लत लोगों
के यहाँ जाओ और न उन्हें बुलाओ। कई लोग किसी मेहमान या मेहमान परिवार की ग़लत हरकतों
का बदला लेने के लिए उनके यहाँ जा पहुँचते हैं और उनसे भी बुरा व्यवहार करते हैं जो
किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसे में दोनों पक्ष ही भर्त्सना के पात्र हैं।
मेहमान के लिए ज़रूरी
है कि वो मेज़बान की इच्छा-अनिच्छा अथवा उसकी भावनाओं का भी ध्यान रखे। संयोग से मेरे
पास बहुत से लोग मिलने के लिए आते रहते हैं। अपरिचित अधिक आते हैं। कुछ लोग फोन करके
आते हैं तो कुछ बिना सूचना के ही आ जाते हैं। चाहे कोई सूचना देकर आए अथवा बिना सूचना
के मुझे तो बहुत ही अच्छा लगता है। कोई हमसे मिलने आया है इससे बड़ी प्रसन्नता की बात
हमारे लिए और क्या हो सकती है? आगंतुकों के साथ गपशप
करने व उनके साथ चाय पीने में जो आनंद आता है वह अनिर्वचनीय है। कई लोग चाय नहीं पीएँगे।
कहेंगे आपका अमूल्य समय लिया यही क्या कम है?
अरे भई जब अमूल्य समय ले लिया तो एक कप चाय भी पी लो। लेकिन कुछ लोग बिल्कुल नहीं
पीएँगे। ये कोई अच्छे मेहमान के लक्षण नहीं। ऐसी मानसिकता मेज़बान का सम्मान नहीं। हमें
तो दोनों ही स्थितियाँ प्रिय हैं। चाहे कोई हमारे पास आए या हम किसी के पास जाएँ साथ
बैठ कर चाय पीना तो वैसे भी बनता ही है।
कई मेहमान बड़े विचित्र
होते हैं। आते तो सूचना देकर ही हैं लेकिन या तो पहले ही आ टपकेंगे या फिर बहुत बाद
में। ये मसला गाड़ी के लेट होने से संबंधित नहीं है अपितु उनकी नीयत में खोट का है।
आज के युग में कार्यक्रम में किसी भी परिवर्तन की समय पर सूचना देनी चाहिए और ये मुश्किल
भी नहीं है लेकिन कुछ लोगों को दूसरों को परेशानहाल देखने में ही आनंद आता है। कई बार
ऐसे लोगों का मक़सद किसी से मिलने का नहीं होता अपितु असमय पहुँचकर मेज़बान की व्यवस्था
में कमी ढूँढकर उसे लज्जित कऱने का होता है। कई बार कुछ लोग मेज़बान को अपने आने की
व उनकी व्यवस्था करने की सूचना तो दे देंगे लेकिन पहुँचेंगे नहीं। ऐसे लोगों का क्या
किया जाए?
छत्तीसगढ़ से एक सज्जन
का नवंबर में फोन आया। सज्जन नहीं चचेरे अनुज का फोन था। कहने लगे बच्चे आएँगे। कब
आएँगे ये पूछने पर बतलाया कि मार्च में। कौन-कौन आएँगे ये पूछने पर बतलाया कि पता नहीं।
चलो बुकिंग वग़ैरा करवा के बतला देना। हऔ। फरवरी के अंत तक कोई सूचना नहीं मिली। हमें
व्यवस्था करनी थी सो चिंता हो रही थी। कई बार फोन किया। पता चला कि कई परिवार आ रहे
हैं। दस-बारह आदमी तो होंगे। बच्चों समेत अठारह-बीस हो सकते हैं। किस दिन पहुँच रहे
हैं कितने दिन रुकने का प्रोग्राम है? दिल्ली पहुँच कर बतलाएँगे।
पता चला दस तारीख को दिल्ली पहुँच रहे हैं। सीधे घर आएँगे। नियत समय पर नहीं पहुँचे
तो पता किया कि क्यों नहीं पहुँचे? पता चला कि और कहीं निकल
गए हैं बाद में आएँगे। कब आएँगे? आने से पहले बता देंगे।
रोज़ फोन करके पता करते रहे। तीसरे दिन बतलाया कि आज आ रहे हैं। कितने बजे? दोपहर तक। फिर फोन आया कि और कहीं निकल रहे हैं शाम
तक आएँगे। कितने लोग आएँगे? सभी आएँगे।
बीस लोगों के खाने की
तैयारी शुरू कर दी। थोड़ी देर बाद फोन आया कि सीधे अभी आ रहे हैं। कितना समय लगेगा? दो-ढाई घंटे। चलो तब तक खाना तैयार हो जाएगा। युद्धस्तर
पर खाना बनाने का काम किया जा रहा था। एक घंटे के बाद फिर फोन की घंटी बजी। माथा ठनका।
कहीं कार्यक्रम फिर से तो नहीं बदल दिया? आवाज़ आई कि आपकी कॉलोनी
के गेट पर पहुँच गए हैं किसी को भेज दीजिए। गुस्सा तो आया पर क्या किया जा सकता था? उनको लेने के लिए गेट तक पहुँचे। फिर गुस्सा आया। घर
के दो सदस्य छुट्टी लेकर बैठे थे। एक महाराज की व्यवस्था की थी। बीस-पच्चीस आदमियों
का खाना बन चुका था। मेहमान आए थे केवल सवा तीन। क़ायदे से मेहमान नहीं घर के सदस्य
ही थे। कारण एक तो भतीजा था और उसकी पत्नी थी जो पहली बार आई थी। उनका दो वर्ष का पुत्र
भी स्वाभाविक है पहली बार ही आया था। और साथ में थीं उनकी माताजी। गुस्सा संभव ही नहीं
था। कोई शिकायत भी नहीं की। बच्चे को गोद में लेकर खिलाया। प्रेमपूर्वक बातें कीं।
सभी को प्रेम से भोजन करवाया।
अपने स्वजनों को अपने
हाथों से खिलाने का आनंद ही कुछ और होता है। अपने बच्चों को खिलाने-पिलाने का अद्वितीय
आनंद मिला। कुछ दिन पूर्व इनके ही दूसरे भाई के बच्चे भी आए थे। घर के सामने बीस गज़
की दूरी से होकर निकल गए पर घर नहीं आए। जो पुत्रवधू आई उससे कभी बात नहीं हुई थी।
जो पुत्रवधू नहीं आई और जो घर के सामने बीस गज़ की दूरी से होकर निकल गई उससे ख़ूब बातें
हुई हैं। नहीं आने के बाद भी हुई हैं। बड़ी अच्छी बच्ची है। फोन करती रहती है। उस पर
तो क्रोध आ ही नहीं सकता। किसी न किसी दिन उसको भी अपने हाथों से खिलाने का आनंद मिलेगा
आश्वस्त हूँ। जिन पर क्रोध करने की ज़रूरत होती है अगर वो क्रोध के प्रेम को नहीं समझते
तो उन पर क्रोध करना बेमानी है। पता नहीं लोग कैसे अपने परिचितों, मित्रों और रिश्तेदारों के घरों के सामने से बिना मिले
गुज़र जाते हैं? मैं ऐसा नहीं कर पाता
हूँ। और न ऐसी कामना ही करता हूँ। कोई मिलने से इंकार कर दे तो मजबूरी है। हम शहरों
में रहें अथवा गाँवों में, अमीर हों अथवा ग़रीब, बहुत पढ़े-लिखे हों या कम पढ़े-लिखे अच्छे महमान और अच्छे
मेज़बान बन सकें तो जीवन कितना आनंदपूर्ण हो जाए!
सीताराम गुप्ता
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