विष्णु
नागर, नीलकमल और समीर पाण्डेय
कोई उस दिन इसलिए मारा गया कि उसने तय किया था कि
आज वह घर जल्दी पहुंचेगा
कोई इसलिए कि आज उसने हांफते-दौड़ते इस ट्रेन को पकड़ लिया था
कोई इसलिए कि किसी से मिलने जाने के लिए उसने वैस्टर्न लाइन की
यह ट्रेन पकड़ी थी
कोई पन्द्रह मिनट पहले की बोरीवली फास्ट में चढ़ा था
मगर रास्ते में याद आया कि पिता से जरूरी बात पूछ नहीं सका
वह उतरा, फिर इस ट्रेन में चढ़ गया
कोई ऑफिस के बाद बेटी की शादी का निमंत्रण बांटने जा रहा था
कोई किसी को फूट भेंट करके यह कहने वाला था
कि सॉरी, वह जन्मदिन की आज रात की पार्टी में शामिल नहीं हो पाएगा
कोई किसी से यह कहने जा रहा था कि अपन तुमसे शादी बनाएगा
और तुम इनकार करेगा तो अभीच जहर खा लेगा
देख पुडिया जेब में रखेला है
कोई बचपन के किसी दोस्त की अंत्येष्टि में
शामिल न हो पाने का अफसोस जताने जा रहा था
किसी ने आज ही नई नौकरी ज्वाइन की थी,
वह घर मिठाई का डिब्बा लेकर जा रहा था
कोई बेटी का फ्राक, कोई नया थर्मामीटर खरीदकर
घर जा रहा था
कोई इसलिए आज जल्दी निकला था कि वह बुखार से बुरी तरह कांप रहा था
किसी के मन में उस दिन लड्डू फूट रहे थे तो कोई गणेशजी को लड्डू
चढ़ाने जा रहा था
कोई बेटे के लिए पहली बार इतनी महंगी चाकलेट लेकर जा रहा था
कोई मोबाइल पर बार-बार रिक्वेस्ट कर रहा था कि जॉनी समझो
मैं पन्द्रह मिनट से पहले किसी भी हालत में वहां नहीं पहुंच सकता
कोई खर्च का हिसाब बार-बार लगाते हुए बड़बड़ा रहा था
कोई कह रहा था कि इस नौकरी से मैं कंटाल गया हूं
इससे तो औरत की दलाली करना अच्छा, पन क्या करूं
कोई खांसते-खांसते बेदम हो रहा थ, कोई हंसते-हंसते
कोई पास बैठे आदमी से कह रहा था कि आजकल
लड़के का बाप होने का कोई फायदा नहीं है
बचपन में भी इनकी सेवा करो और बुढ़ापे में भी
कोई कह रहा था कि मेरे नसीब से मुझको इतना अच्छा दामाद मिला है
कि क्या किसी का बेटा भी ऐसा होता होयेंगा
कोई उतरने के लिए अभी-अभी दरवाजे पर आया था
और कोई अभी चढ़ा था और खड़े होने की जगह ढूंढ रहा था
कोई बीवी की जिद पर फर्स्ट क्लास का पास बनवाकर आज पहली बार
सफर कर रहा था
कोई अपने को मन ही मन समझा रहा था कि इतना टेंशन काय को लेने का
किस्मत में जो लिखा है वो होकेच रहेगा
कोई सोच रहा था कि बुढिया के इलाज पर और कितना खर्च करूं
लगता है, ये डाकन मुझे मारकर ही मरेगी
कोई सोच रहा था कि बस आज टैंटवाले से बात हो जाये तो लड़की की
शादी की मेजर प्रॉब्लम साल्व
कोई सोच रहा था कि आज वाइफ की एक बात नहीं सुनूंगा
उसे डिनर पर बाहर ले जाऊंगा
किसी की किसी बात पर जोर से रूलाई फूट रही थी और वह अपने को
रोके हुए था
कोई सोच रहा था कि ऊपरवाला भी कमाल का है आखिर आग मूतने वाले
को सबक सिखा ही दिया
किसी का ट्रेन का पास एक्सपायर हो गया था और उसका डर के मारे
बुरा हाल था
कोई ख्वाब देख रहा था और जब विस्फोट हुआ तो उसने सोचा
कि ये क्या बात है कि जब भी मैं कोई सपना देखता हूं
विस्फोट हो जाता है
और इसके बाद उसके चिथड़े उड़ गए.
आज वह घर जल्दी पहुंचेगा
कोई इसलिए कि आज उसने हांफते-दौड़ते इस ट्रेन को पकड़ लिया था
कोई इसलिए कि किसी से मिलने जाने के लिए उसने वैस्टर्न लाइन की
यह ट्रेन पकड़ी थी
कोई पन्द्रह मिनट पहले की बोरीवली फास्ट में चढ़ा था
मगर रास्ते में याद आया कि पिता से जरूरी बात पूछ नहीं सका
वह उतरा, फिर इस ट्रेन में चढ़ गया
कोई ऑफिस के बाद बेटी की शादी का निमंत्रण बांटने जा रहा था
कोई किसी को फूट भेंट करके यह कहने वाला था
कि सॉरी, वह जन्मदिन की आज रात की पार्टी में शामिल नहीं हो पाएगा
कोई किसी से यह कहने जा रहा था कि अपन तुमसे शादी बनाएगा
और तुम इनकार करेगा तो अभीच जहर खा लेगा
देख पुडिया जेब में रखेला है
कोई बचपन के किसी दोस्त की अंत्येष्टि में
शामिल न हो पाने का अफसोस जताने जा रहा था
किसी ने आज ही नई नौकरी ज्वाइन की थी,
वह घर मिठाई का डिब्बा लेकर जा रहा था
कोई बेटी का फ्राक, कोई नया थर्मामीटर खरीदकर
घर जा रहा था
कोई इसलिए आज जल्दी निकला था कि वह बुखार से बुरी तरह कांप रहा था
किसी के मन में उस दिन लड्डू फूट रहे थे तो कोई गणेशजी को लड्डू
चढ़ाने जा रहा था
कोई बेटे के लिए पहली बार इतनी महंगी चाकलेट लेकर जा रहा था
कोई मोबाइल पर बार-बार रिक्वेस्ट कर रहा था कि जॉनी समझो
मैं पन्द्रह मिनट से पहले किसी भी हालत में वहां नहीं पहुंच सकता
कोई खर्च का हिसाब बार-बार लगाते हुए बड़बड़ा रहा था
कोई कह रहा था कि इस नौकरी से मैं कंटाल गया हूं
इससे तो औरत की दलाली करना अच्छा, पन क्या करूं
कोई खांसते-खांसते बेदम हो रहा थ, कोई हंसते-हंसते
कोई पास बैठे आदमी से कह रहा था कि आजकल
लड़के का बाप होने का कोई फायदा नहीं है
बचपन में भी इनकी सेवा करो और बुढ़ापे में भी
कोई कह रहा था कि मेरे नसीब से मुझको इतना अच्छा दामाद मिला है
कि क्या किसी का बेटा भी ऐसा होता होयेंगा
कोई उतरने के लिए अभी-अभी दरवाजे पर आया था
और कोई अभी चढ़ा था और खड़े होने की जगह ढूंढ रहा था
कोई बीवी की जिद पर फर्स्ट क्लास का पास बनवाकर आज पहली बार
सफर कर रहा था
कोई अपने को मन ही मन समझा रहा था कि इतना टेंशन काय को लेने का
किस्मत में जो लिखा है वो होकेच रहेगा
कोई सोच रहा था कि बुढिया के इलाज पर और कितना खर्च करूं
लगता है, ये डाकन मुझे मारकर ही मरेगी
कोई सोच रहा था कि बस आज टैंटवाले से बात हो जाये तो लड़की की
शादी की मेजर प्रॉब्लम साल्व
कोई सोच रहा था कि आज वाइफ की एक बात नहीं सुनूंगा
उसे डिनर पर बाहर ले जाऊंगा
किसी की किसी बात पर जोर से रूलाई फूट रही थी और वह अपने को
रोके हुए था
कोई सोच रहा था कि ऊपरवाला भी कमाल का है आखिर आग मूतने वाले
को सबक सिखा ही दिया
किसी का ट्रेन का पास एक्सपायर हो गया था और उसका डर के मारे
बुरा हाल था
कोई ख्वाब देख रहा था और जब विस्फोट हुआ तो उसने सोचा
कि ये क्या बात है कि जब भी मैं कोई सपना देखता हूं
विस्फोट हो जाता है
और इसके बाद उसके चिथड़े उड़ गए.
शाखों
सरक रहे हैं
पौरुषपूर्ण तनों के कंधों से
पीतवर्णी उत्तरीय
ढुलक रही है
अलसाई टहनियों के माथे से
हरी ओढ़नी
एक थके पेड़ के उघड़े सीने पर
फूली नसों-सी शाखाएँ
पढ़ी जा सकती हैं, अक्षरों-सी
ये फागुन के चढ़ते हुए दिन हैं
बौराए आम के सिर पर
उग रही है कलँगी
उदास नीम पर आ गए हैं
गुच्छों में फ़ूल,
उजाड़ पेड़ पर कूकती है
बेफ़िक्र एक कोयल
यह पेड़ों के कपड़े बदलने का
समय है,
एक बीतता हुआ सम्वत
अब जल उठेगा, धरती के कैलेन्डर पर
ढोलक की थाप पर
साल का पहला चैता गाकर
लौटेंगे लोग गाँव की तरफ़
अब बदल जाएगा मौसम,
तैयार होंगे पेड़
जेठ के उदास दिनों की
लम्बी दुपहरिया के लिए....
जिन्हें पेड़ कहते थे हम
वे तने हुए हाथ थे, धरती के।
सरक रहे हैं
पौरुषपूर्ण तनों के कंधों से
पीतवर्णी उत्तरीय
ढुलक रही है
अलसाई टहनियों के माथे से
हरी ओढ़नी
एक थके पेड़ के उघड़े सीने पर
फूली नसों-सी शाखाएँ
पढ़ी जा सकती हैं, अक्षरों-सी
ये फागुन के चढ़ते हुए दिन हैं
बौराए आम के सिर पर
उग रही है कलँगी
उदास नीम पर आ गए हैं
गुच्छों में फ़ूल,
उजाड़ पेड़ पर कूकती है
बेफ़िक्र एक कोयल
यह पेड़ों के कपड़े बदलने का
समय है,
एक बीतता हुआ सम्वत
अब जल उठेगा, धरती के कैलेन्डर पर
ढोलक की थाप पर
साल का पहला चैता गाकर
लौटेंगे लोग गाँव की तरफ़
अब बदल जाएगा मौसम,
तैयार होंगे पेड़
जेठ के उदास दिनों की
लम्बी दुपहरिया के लिए....
जिन्हें पेड़ कहते थे हम
वे तने हुए हाथ थे, धरती के।
कवि
सुरक्षित नही हो सकता
वह सच को
झूठ की तरह नही
फेंकी गई गूंज को भी
सच की तरह ही ईमान कहता है.....
शब्दों से हुए
बलात्कार के बाद
अपने कपड़े संभालता है
कभी चीखता है
और कभी चुप हो आगे बढ़ता है.....
वह इंतज़ार नही करता
जहाँ खड़ा है वही से
अँधेरे में भटक रहे
लाखों-करोड़ों पैर को सँभालने की कोशिश में
लड़खड़ाती हुई हिम्मत के साथ
देश के सम्मुख खड़े होने की कोशिश में लगा है...
ताज्जुब यह कि
मारे जाने पर भी
और देर तक जिन्दा रहता है
मृत्यु की चेतना में
वह अकेले विश्व हो जाना चाहता है...।