प्राकृतिक और आँचलिकता के
साथ-साथ गहरी संवेदना से भरा उपन्यास
प्राकृतिक
दृश्य और उसके सौंदर्य शास्त्र को इमैनुअल कैट ने १७८१ में विस्तृत अर्थों में परिभाषित करते हुए
इसकी व्याख्या की और इस शब्द के सुंदर अर्थ “भावनात्मक समझ का दर्शन शास्त्र” कहा|
स्वाति तिवारी का नवीनतम उपन्यास ब्रह्मकमल एक प्रेम कथा प्राकृतिक दृश्यों के
सौंदर्य शास्त्र की इसी व्याख्या को स्पष्ट करता है| उपन्यास उत्तराखण्ड की
पृष्ठभूमि पर रचा गया है जहाँ प्रकृति ने अपना खजाना बिखेर रखा है पूरे उपन्यास
में प्रकृति मुखर है और कहा जा सकता है कि इसमें प्रकृति दृश्य की तरह नहीं बल्कि
पात्र की तरह जीवंत बनी हुई है जो दृश्यों के माध्यम से पाठकों से बात करती है|
प्राकृतिक
दृश्य भूमि के किसी एक हिस्से की सुस्पष्ट विशेषताएँ लिए होता है, जिनमें
प्राकृतिक स्वरूपों के भौतिक तत्त्व, जल निकाय, जैसे नदियाँ, झीलें, सागर, झरने,
पहाड़, प्राकृतिक रूप से उगनेवाली वनस्पतियों सहित धरती पर रहनेवाले जीवन, मिट्टी,
मौसम, अन्य तत्त्व और परिस्तिथियाँ शामिल होती हैं| उपन्यास एक प्रेम कहानी के
माध्यम से एक प्राकृतिक यात्रा है एक ऐसी यात्रा जिसमें यात्रा जीवन है जीवन यात्रा
है और जीवन के साथ चलनेवाले तत्त्व स्मृति और विस्मृति के बीच उभरते कथा का हिस्सा
बनते और चले जाते| उपन्यास पढ़ने के बाद कहा जा सकता है कि प्रकृति और मनुष्य का
अद्भुत रिश्ता है कभी प्रकृति हमारे साथ जीती जागती है तो कभी हमारे लिए शिक्षक है
वह हमें हर पल कुछ ना कुछ सीखाती है| मनुष्य की जीवन यात्रा में प्रकृति साथ होती है|
उपन्यास इंगित करता है कि भौतिक स्त्रोत और मानवीय संस्कृति को एकाकार होकर किसी
स्थान विशेष की पहचान बनने में हजारों साल लगते हैं और इस उपन्यास में यह स्पष्ट
रूप से दिखाई देता है| स्वाति तिवारी मूलतः कथाकार तो हैं ही पर वे प्रकृति प्रेमी
और पर्यावरण से भी जुड़ी हैं| उन्होंने कथा को देह के नहीं बल्कि प्रकृति के
सौंदर्य से जोड़ा है| उपन्यास इस बात का कई बार इशारा करता है कि अपने आसपास देखो
समस्याओं के समाधान और जिज्ञासाओं के हल वहीँ मिलेंगे|
उपन्यास
की शुरुआत बद्रीनाथ यात्रा से होती है| यह यात्रा एक लम्बे अंतराल की यात्रा है
जहाँ बाल मन से प्रौढ़ा अवस्था तक की जीवन यात्रा शामिल है| यह यात्रा विस्मृति से
निकल कर स्मृति की यात्रा है जहाँ जगह-परिवेश विस्मृत प्रेम कथा को लौटा लाते हैं
स्मृतियों में| यह यात्रा पहाड़ों से मैदानों के बीच के अंतर की यात्रा है| यह
हिमालय से कन्याकुमारी के बीच की यात्रा है| कहानी को बहा ले जाती या कहें कथा को
प्रवाह देती अलकनंदा की यात्रा है| पढ़ते हुए लगेगा कि आप यात्रावृत्तांत पढ़ रहे
हैं वही रोचकता इसमें बनी रहती है पर ध्यान से पढ़ने पर यह समझ में आता है कि यह एक
कथा और उपकथाओं का गीतमय आख्यान है जिसमें धर्म भी यात्रा पर है और आस्तिकता भी|
जहाँ आनंद भी यात्रा पर है और रोमांच भी| जहाँ आध्यात्म भी यात्रा पर है और
सांसारिकता भी| जहाँ प्रेम एक गहरी समझ बन कर राकेश में प्रगट होता है तो प्रेम एक
अवसाद बनकर उभरता है अपर्णा में| जहाँ प्रेम एक समर्पण बन नंदा में समा जाता है तो
अवसाद बन कमल में| कहानी में विस्तार देने के लिए कहीं-कहीं पौराणिक कथा को हिस्सा
बनाया गया है तो कहीं-कहीं उत्तराखण्ड की लोक कथाओं को बड़ी सहजता से कहानी में शामिल
करके उत्तराखण्ड के लोकगीत भी डाल दिए गए हैं जैसे काफल की किवदन्ती| बेड़ीपाको का पहाड़ी कुमाँऊ गीत
भी है तो घुघुती की कविता भी है| उपन्यास में स्वाति समय और समाज को उसकी
गत्यात्मकता में पकड़ने का और परखने का उपक्रम करती है| यहाँ भी एक विशेषता उन्हें
अन्य उपन्यासकारों से अलग करती है वह यह है कि वह छोटी-छोटी बातों को पकड़ती हैं
उन्हें रचती हैं और बड़ा अर्थ प्रदान करती हैं| उनके उपन्यास में कोई चीज़ अलग-थलग
दिखाई नहीं देती वह रचना के विकास में सहजता से शामिल होकर प्रवाह में बहती है|
उपन्यास
में प्रेम और प्रकृति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट झलकती है वे प्रेम को
प्रकृति का हिस्सा मानती हैं| स्वाति ने उपन्यास में कई आध्यात्मिक एवं दार्शनिक
प्रयोग किए हैं जैसे वे लिखती हैं “हाँ प्रसाद का थाल तो ईश्वर की कृपा से ही मिला
है, सौंदर्य, सामर्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति का आशीर्वाद है| सुख-समृद्धि और
सामर्थ्य सब प्रभु की ही माया है ईश्वर भी जानते हैं नैतिक और मानसिक शुद्धता बहुत
ज़रूरी है जीवन में|”
दार्शनिक
मूड में वे लिखती हैं- “जब प्रेम, संवेदना और अनासक्ति का विस्तार होता है तो समझना
चाहिए कि हमारे क़दम सही दिशा में बढ़ रहे हैं|”
कहानी
का आधार प्लेटोनिक लव है| मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसकी खूब विवेचना की गई है लेकिन
अहसास के आधार पर इसकी अनुभूति को व्यक्त करना नामुमकिन कहा गया है| यह ऐसा प्रेम
है जो जन्मों तक स्मृतियों में रचा बसा रहता है| इसमें दैहिक आकर्षण नहीं होता यह
भावनात्मक होता है| उपन्यास में लेखिका ने गहरी संवेदना के साथ प्रेम और पारिवारिक
रिश्तों की कथ्यात्मक विवेचना की है| उनकी भाषा और सांस्कृतिक जानकारी पर मजबूत
पकड़ है| उनकी उपन्यास गाथा छोटे-छोटे ब्योरों के साथ सहजता से विकसित होती है वे
परिकल्पना के पात्र नहीं गढ़ती बल्कि सामान्य चरित्र को निर्मित करती है| व्याख्या
की जगह संवाद का इस्तेमाल करती है| स्मृति संवाद के माध्यम से वे अंतःक्रिया के
रूप में अंतरंगता प्रकट करती है| कहानी के केंद्र में अपर्णा है| अपर्णा एक
पारिवारिक अवकाश यात्रा पर है साथ है पति और किशोर उम्र बेटी| यात्रा से लौटते हुए
एक अदृश्य पात्र जो स्मृति में साकार होता है वह भी साथ आता है| कहानी का
ताना-बाना इस अदृश्य पात्र के साथ गुंथा गया है| यात्रा वृत्तांत की तमाम रोचकता
इसमें शामिल मस्ती, दृश्य, खाना-पीना, सानिध्य, स्नेह सभी स्पष्ट है| अंतर कथाओं
में कुछ पौराणिक प्रसंग और कुछ उत्तराखण्ड की लोककथाएं कशीदाकारी की तरह कहानी को
सौंदर्य प्रदान करती है जैसे राजा सगर की कथा, गंगा के धरती पर अवतरण का प्रसंग या
बुंरास और काफल की लोककथाएँ, पहाड़ी लोकगीत कहानी को ताल देते हैं और प्रकृति के गहने
की तरह पक्षी राजहंस, देवहंस, बुलबुल की जानकारी दी गई है| यात्रा के छोटे-छोटे
पड़ाव कहानी को आगे बढ़ाते हैं जैसे औली की यात्रा, अनुसुईया की यात्रा, सहस्त्रताल
की कथा ये सब सुनी हुई सी कथाएँ ऐसी लगती हैं ऊँचे पर्वत से कोई आवाज़ का परावर्तन
हो रहा हो विज्ञान इसे इको कहता है पर उपन्यास में यह प्रेम की अनुगूंज की तरह
लगती है|
उपन्यास
डायरी विधा में शुरू होता है और यात्रा वर्णन से आगे बढ़ता है| उत्तराखण्ड त्रासदी
की खबर से शुरू होता है जो यह समझाता है कि पृथ्वी-आकाश, नदी-पहाड़,
समुद्र-क्षितिज, झीलें-कुण्ड, जीव-जन्तु, फल-फूल, सबसे मिलकर जीवन है पर मनुष्य ने
इन चीजों को और इनसे आगे देखना बन्द कर दिया है जो विनाश का कारण है|
कहानी
का अंत यदि थोड़ा और क्लाइमेक्स रचता तो उपन्यास का अनूठापन दोगुना हो सकता था| एक
लम्बे अंतराल के बाद प्राकृतिक और आंचलिकता का सम्मिश्रण किसी उपन्यास में देखने
को मिला है |
**
ब्रहमकमल : एक प्रेम कथा/ उपन्यास/ स्वाति तिवारी/ किताबघर प्रकाशन, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली/ मूल्य-300 रुपये/ वर्ष- फरवरी 2015/ पृष्ठ 200
**
ब्रहमकमल : एक प्रेम कथा/ उपन्यास/ स्वाति तिवारी/ किताबघर प्रकाशन, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली/ मूल्य-300 रुपये/ वर्ष- फरवरी 2015/ पृष्ठ 200
**
-चेतना भाटी
जेलर्स बंगलो, रेसीडेंसी एरिया
No comments:
Post a Comment