‘स्पर्श’ पर पहली बार प्रकाशित हो रही
मिता दास अनुवाद के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है | वह खुद
भी हिंदी व बांग्लाभाषा में कवितायेँ, कहानियां व लेख लिखती
हैं | कई सम्मानों से समादृत मिता की रचनाएँ लगभग सभी
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं | जनसंस्कृति
मंच से जुड़ाव | भिलाई (छ.ग.) में रहती हैं | उनका स्वागत करते हुए प्रस्तुत हैं इस हफ्ते उनकी तीन हिंदी कवितायेँ
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यह कविता सिर्फ तुम्हारे लिए
इधर नितांत निजी सा
कोई नहीं मिलता
ठीक अरण्य में पथ भूला जैसे
टूटा - फूटा अभिमानी मुख
डूबता - उतराता है उसे
अनुभूति की नाव पर
शून्य में तिमिर में |
दिखता पथ , घाट , नदी का तट
पर डूबते - उतराते दृष्टि पट पर
कोई उकेरता शब्द - चित्र
अजाना सा कवि कोई ,
लिखता नीली स्याही से
सिर्फ प्रेम कवितायेँ
उस स्त्री के विषय में
जिस स्त्री के सपने अभी भी
जीवन समर में
युद्ध रत है |
स्त्री का कविता हो जाना
कितनी ही रचनाएँ
रसोई में
नमकदानी के सिरहाने
दम तोड़ देती हैं
खाना बनाती उस स्त्री की
जब वह शब्द गढ़ती है
हाथ हल्दी से पीले हो जाते हैं
आटा गूंथती है तो
मसालों की गंध से धुंधवाती मिलती है
उस दिन वह कहानी के क्लाइमेक्स पर थी
फ्रीज़ खोलकर टमाटर निकाले
शब्द दौड़कर जा बैठे
फ्रीज़ में रखे दही के कटोर दान में
उस दिन तो हद ही हो गई
अदरक का टुकड़ा पीसते हुए
उसने पीस डाले सारे बेहतरीन शब्द
और कविता गढ़ते - गढ़ते
खुद कविता हो गई |
टेलिविज़न पर नाचती भूख
टेलीविज़न के परदे पर
नाचती विपाशा
बिजली सी कौंधती मल्लिका
टक - टक , टुक - टुक करती
राखी की अदाओं पर
खोया पूरा गाँव
इन्ही सबके बीच
रात कौन था
अरहर की मेंढ़ पर
ठीक उनके खेतों के बीच
खड़े रहे कुछ पल सांस रोके
चहल कदमी की कुछ ने भारी कदमो से
देखो !
आज सुबह से गायब हैं
बारह नाबालिग लड़कियाँ
बिजली की जगह
भूख सी नाचती
परदे पर अर्धनग्न युवतियों को देखकर
जवान और बूढ़े सहला रहे थे
अपनी आँखें
और केबल की काली उजली
बिजली के तारों को देख
खुश थे बच्चे
टेलिविज़न के परदे पर
वो युवती जता रही थी ... बेखबर सी
काले भैंस पर चढ़ कर ...
"बाबूजी.... जरा धीरे चलो,
बिजली खड़ी यहाँ .... बिजली खड़ी ..........
०००००००
संक्षिप्त परिचय
मिता दास
जन्म- 12 जुलाई सन 1961, जबलपुर { म.प्र.}
शिक्षा- बी.एस.सी.
विधा- हिंदी भाषा, बांग्लाभाषा में कविता, कहानी, लेख, अनुवाद और संपादन
प्रकाशित ग्रन्थ- 1-"अंतर मम" { काव्यग्रन्थ, बांगला भाषा में } 2003 में
2-''अनुवाद एर जलसा'' { अनुदित कविताओं का संकलन बांगला भाषा में } प्रकाशनाधीन
3-'' माँ खिदे पेयेचे'' { बांग्ला काव्य संकलन } शीघ्र प्रकाशित
प्रसारण- आकाशवाणी रायपुर से 16 वर्षों से लगातार स्वरचित कविताओं का प्रसारण, दूरदर्शन रायपुर से कविताओं का प्रसारण, भोपाल दूरदर्शन से गीतों का प्रसारण
प्रकाशन– 1- बांग्ला कहानी एवं कविताओं का लगातार 15 वर्षों से लेखन एवं रेखांकन भी प्रकाशित
2- हिंदी कहानी एवं कविताओं का लगातार लेखन एवं रेखांकन का प्रकाशन
3- हिंदी से बांग्ला, बांग्ला से हिंदी में कविता, कहानियों का अनुवाद एवं प्रकाशन
पत्र-पत्रिकाएं- नया ज्ञानोदय, युद्धरत आम आदमी, शेष, पाखी, पब्लिक एजेंडा, अभिनव मीमांशा, सूत्र, संबोधन, अरावली ऊदघोष, परस्पर, समकालीन जनमत, सनद, समग्र दृष्टि, सद्भावना दर्पण, राष्ट्र सेतु, छत्तीसगढ़ आसपास, छत्तीसगढ़ टुडे, नारी का संबल, विकल्प, समावर्तन, साहित्यनामा, अक्षर की छांव, संतुलन, बहुमत {ग्रामोदय} आदि ।
कई सम्मानों से समादृत |
संपर्क- 63/4 नेहरू नगर पश्चिम, भिलाई, छत्तीसगढ़, 490020
ईमेल- mita.dasroy@gmail.com
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गहरे उतरती कविताएँ हैं,अच्छा लगा,जब अपनेअलावा कोई रचना अाकर्षित करती है तो महत्वपूर्ण तो हो ही जाती है।
ReplyDeleteयथार्थ को उजागर करती इन रचनाओं का स्वागत है. बहुत बधाई आपके चिंतन की गहराई पर.
ReplyDeleteयथार्थ के धरातल से उपजी मन को छूती कवितायेँ --
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर --
अंतर को छूती हुई कविताएँ
ReplyDeleteइधर नितांत निजी सा
ReplyDeleteकोई नहीं मिलता
ठीक अरण्य में पथ भूला जैसे
टूटा - फूटा अभिमानी मुख
डूबता - उतराता है उसे
अनुभूति की नाव पर
शून्य में तिमिर में |
दिखता पथ , घाट , नदी का तट
पर डूबते - उतराते दृष्टि पट पर
कोई उकेरता शब्द - चित्र
अजाना सा कवि कोई ,
लिखता नीली स्याही से
सिर्फ प्रेम कवितायेँ
उस स्त्री के विषय में
जिस स्त्री के सपने अभी भी
जीवन समर में
युद्ध रत है | I like only this.
सार्थक शब्द चयन के साथ उम्दा कविताएं... अच्छी कविताएं पढ़ाने के लिये 'स्पर्श' को बधाई, मिता दास जी को अनवरत सार्थक सृजन के लिये अशेष शुभकामनाएं...
ReplyDeletestri jeevan ke avyakt sanghrash aur antarman ki peeda ko mukhar karti ye sunder saarthak kavitaayen apni bhaasha aur kahan ki vishishtata se seedhe man men utarti hain....itni sunder rachnaayen sabse saanjha karne ke liye sparsh badhai ka paatra hain...meeta ji ki aur kavitaayen bhi padhne ki utsukta badh gayi hai....
ReplyDeleteगहरे भाव बोध की इन सहज अभिव्यक्तियों के लिये मीता को बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteइन कविताओं के सामाजिक सरोकार स्पष्ट दिखाई देते हैं ।
ReplyDeleteइन कविताओं में सामाजिक सरोकार तो है ही, जीवन के बहाव में निरंतर अनुभूति का भी संग-साथ है. कभी कभी शब्द उसे पकड़ते पकड़ते उसी के साथ बहते भी दीख जाते हैं.
ReplyDeleteAchchhi kavitain!! Badhai va Dhanyavaad! -
ReplyDeleteKamal Jeet Choudhary