Sunday, 22 June 2014

छोटे शहर की एक सुबह सी है यह ख़बर

वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले हिंदी के 10वें साहित्यकार हैं | इनकी कवितायेँ जटिल होते जा रहे समय में जीवन के सुकून का सूत्र देती हैं | ‘संवेदन परिवार’ की ओर से उन्हें हार्दिक बधाई देते हुए स्पर्श के पाठकों के लिए वरिष्ठ कवि अरुण कमल की यह टिपण्णी हम अमर उजाला शब्दिता से साभार उदृत कर रहे हैं :



केदारनाथ सिंह हमारे समय के सबसे बड़े कवि हैं | उन्होंने हिंदी कविता को एक नया रास्ता दिया, जिसके दोनों तरफ उम्मीद की दुनिया है | जैसा कि वह खुद अपनी कविता के हवाले से कहते हैं कि मुझे सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है, क्योंकि इससे एक उम्मीद होती है कि जो दुनिया सड़क के इस ओर है, उससे कहीं बेहतर दुनिया सड़क के उस तरफ है |

दरअसल, हममें से हर कोई रोज़ कहीं न कहीं कोई सड़क पार करता ही है | पर इससे उम्मीद तो सिर्फ केदारनाथ सिंह ही लगा सकते हैं | उन्होंने बने बनाये खांचों के विपरीत बगैर किसी विरोध के लोक और शास्त्र दोनों परम्पराओं को जोड़ते हुए आमजन के लिए हिंदी कविता को सुलभ और सरल बनाया | उनकी कविताओं में जीवन अपनी पूरी ऊर्जा के साथ मौजूद है | उन्होंने कविता में मनुष्य के विश्वास को फिर से स्थापित किया | केदारनाथ सिंह की कविताओं में गाँव, कस्बे, बाग़-बगीचे और भूले-बिसरे लोग तो आते ही हैं साथ ही उनमें ठेठ गँवई किसान जीवन भी सायास मुखर हुआ है | उनकी शुरू से लेकर अभी तक की कवितायेँ कई पीढ़ियों और श्रोताओं के कंठ में बसी हुई हैं | ऐसे कवि के लिए कोई भी सम्मान कम है | हाँ, ये जरूर है कि हिंदी साहित्य के लिए केदार जी को ज्ञानपीठ सम्मान मिलना उनके महत्त्व को रेखांकित करता है | ‘गिरने लगे नीम के पत्ते...पड़ने लगी उदासी’ से लेकर ‘पानी में घिरे हुए लोग’ और ‘लहरतारा’ जैसी कवितायेँ उनकी अपने समय के सापेक्ष सक्रियता को तो उजागर करती ही हैं, साथ ही सजगता से अपने परिवेश को बयान भी करती हैं | उनके पूरे काव्य खंड की बुनावट में सूक्ष्मता के साथ मनुष्य और पदार्थ में गहराई से प्रवेश करने की क्षमता है, जो हैरानी भरा लगता है | ‘बनारस’ और ‘नदी’ जैसी कवितायेँ उनकी बेहद प्राणवान रचनाएँ हैं | ‘बनारस’ कविता में तो उन्होंने उस शहर के इतिहास, भूगोल के साथ- साथ अध्यात्म का ऐसा तानाबाना बुना है कि पूरी की पूरी कविता जी उठती है | जैसे इसकी बानगी देखिये- किसी अलक्षित सूर्य को/देता हुआ अर्घ्य/ शताब्दियों से इसी तरह/ गंगा के जल में/ अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर/ अपनी दूसरी टांग से बिलकुल बेखबर |

कविता में अघोरपन है, जो शमशान का साधक ही महसूस कर सकता है | जो जीवन और मृत्यु के प्रति निर्विकार भाव रखता हो | इस तरह की कविता में समूचे कालखंड के साथ इतनी सहजता से प्रयोग तो केदार जी ही कर सकते हैं | असाधारण को साधारण और साधारण को असाधारण बनाने की अद्भुत क्षमता है उनमें | ‘अकाल में सारस’ कविता संग्रह में कुछ ऐसी ही कवितायेँ हैं, जहाँ कवि गहराई से, मगर मूल्यबोध के साथ जीवन की पड़ताल करता है | ये कवितायेँ सिर्फ सपाटबयानी नहीं हैं और न ही साहित्य का कोरस | केदार जी की तमाम कवितायेँ जिंदगी के सहजबोध से प्रभावित हैं | वे जटिल होते जा रहे समय में जीवन के सुकून का सूत्र देतीं हैं | उनकी कवितायेँ बोझिल होने से बचती हैं | वे अपनी छोटी-छोटी पंक्तियों में बड़ी-बड़ी बातें करतीं हैं | ये कवितायेँ ऐसी हैं कि परिवेश का एहसास होते ही लोगों की जुबान पर सहज ही आ जातीं हैं | काल से होड़ लेती, उनकी कई कविताओं के स्वर में पैनापन भले ही न हो, परन्तु आहिस्ता-आहिस्ता वे पाठक के दिलोदिमाग पर छा जातीं हैं | बहुत सी कवितायेँ तो ऐसी हैं कि वे बीते और रीते हुए की याद दिला जातीं हैं | जैसे कि ‘फागुन’, ‘फसल’ और ‘दाने’ कविता को पढ़ने के बाद हम गुज़रे हुए कालखंड में चले जाते हैं | ‘दाने’ कविता की एक बानगी- नहीं हम मंडी नहीं जायेंगे/ खलिहान से उठते हुए कहते हैं दाने/ जायेंगें तो फिर लौटकर नहीं आयेंगें/ जाते-जाते कहते जाते हैं दाने | केदार जी के यहाँ कविता बेहद मासूमियत से अपने को बयान करती है | ऐसी मासूमियत कि कोई भी उस पर मर मिटे | ऐसी कविता के लिए तो कालजयी दृष्टि के साथ साथ जीवनबोध भी चाहिए, जो अपने दौर में केदार जी के पास ही है | उनकी बहुत सी कविताओं में पूर्वांचल की धरती की गमक है | जिसमें आंचलिकता भरपूर है |

5 comments:

  1. सुन्दर आलेख ..

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  2. यह बहुत ही सार्थक, सटीक व सारगर्भित टिप्पणी है।

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  4. हिन्दी की आधुनिक पीढी के रचनाकार केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 के लिए देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जायेगा. वह यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के 10वें लेखक हैं.
    ज्ञानपीठ द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार सीताकांत महापात्रा की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में हिन्दी के जाने माने कवि केदारनाथ सिंह को वर्ष 2013 का 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय किया गया.
    केदारनाथ सिंह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले हिन्दी के 10वें रचनाकार है. इससे पहले हिन्दी साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर सुमित्रनंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को यह पुरस्कार मिल चुका है. पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मलयालम के लेखक जी शंकर कुरुप (1965) को प्रदान किया गया था.
    केदार जी का जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के ग्राम चकिया में वर्ष 1934 में हुआ था. उनकी प्रमुख कृतियां में ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘बाघ’, ‘सृष्टि पर पहरा’, ‘मेरे समय के शब्द’, ‘कल्पना और छायावाद’ और ‘तालस्ताय और साइकिल’ आदि शामिल हैं. पुरस्कार के रुप में केदारनाथ सिंह को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जायेगी.

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  5. KEDARNATH SINGH JI KO HARDIK BADHAYI EVAM SHUBHKAMNAYEN.

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