Monday, 22 March 2021

युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की 8 कविताएँ


1.

 

ऊख

 

(१)

प्रजा को

प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से

रस नहीं रक्त निकलता है साहब

 

रस तो

हड्डियों को तोड़ने

नसों को निचोड़ने से

प्राप्त होता है

(२)

बार बार कई बार

बंजर को जोतने-कोड़ने से

ज़मीन हो जाती है उर्वर

 

मिट्टी में धँसी जड़ें

श्रम की गंध सोखती हैं

खेत में

उम्मीदें उपजाती हैं ऊख

(३)

कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान

तब खाँड़ खाती है दुनिया

और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़!

 

2.

 

जोंक

 

रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान;

तब रक्त चूसते हैं जोंक!

चूहे फसल नहीं चरते

फसल चरते हैं

साँड और नीलगाय.....

चूहे तो बस संग्रह करते हैं

गहरे गोदामीय बिल में!

टिड्डे पत्तियों के साथ

पुरुषार्थ को चाट जाते हैं

आपस में युद्ध कर

काले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं!

प्यासी धूप

पसीना पीती है खेत में

जोंक की भाँति!

अंत में अक्सर ही

कर्ज के कच्चे खट्टे कायफल दिख जाते हैं

सिवान के हरे पेड़ पर लटके हुए!

इसे ही कभी कभी ढोता है एक किसान

सड़क से संसद तक की अपनी उड़ान में!

 

3.

 

सावधान

 

हे कृषक!

तुम्हारे केंचुओं को

काट रहे हैं – केकड़े

सावधान!

 

ग्रामीण योजनाओं के गोजरे

चिपक रहे हैं -

गाँधी के 'अंतिम गले'

सावधान!

 

विकास के ‘बिच्छू’

डंक मार रहे हैं - 'पैरों तले'

सावधान!

 

श्रमिक!

विश्राम के बिस्तर पर मत सोना

डस रहे हैं – ‘साँप’

सावधान!

 

हे कृषक!

सुख की छाती पर

गिर रही हैं – छिपकलियाँ

सावधान!

 

श्रम के रस

चूस रहे हैं – भौंरें

सावधान!

 

फिलहाल बदलाव में

बदल रहे हैं – ‘गिरगिट नेतागण’

सावधान!

 

4.

 

उम्मीद की उपज

 

उठो वत्स!

भोर से ही

जिंदगी का बोझ ढोना

किसान होने की पहली शर्त है

धान उगा

प्राण उगा

मुस्कान उगी

पहचान उगी

और उग रही

उम्मीद की किरण

सुबह सुबह

हमारे छोटे हो रहे

खेत से….!

 

5.

 

श्रम का स्वाद

 

गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ?

गरीबों के पक्ष में बोलने वाला गेहूँ

एक दिन गोदाम से कहा

ऐसा क्यों होता है

कि अक्सर अकेले में अनाज

सम्पन्न से पूछता है

जो तुम खा रहे हो

क्या तुम्हें पता है

कि वह किस जमीन का उपज है

उसमें किसके श्रम की स्वाद है

इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई?

तुम हो कि

ठूँसे जा रहे हो रोटी

निःशब्द!

 

6.

 

लकड़हारिन

 

तवा तटस्थ है चूल्हा उदास

पटरियों पर बिखर गया है भात

कूड़ादान में रोती है रोटी

भूख नोचती है आँत

पेट ताक रहा है गैर का पैर

खैर जनतंत्र के जंगल में 

एक लड़की बिन रही है लकड़ी

जहाँ अक्सर भूखे होते हैं 

हिंसक और खूँखार जानवर

यहाँ तक कि राष्ट्रीय पशु बाघ भी

 

हवा तेज चलती है

पत्तियाँ गिरती हैं नीचे

जिसमें छुपे होते हैं साँप बिच्छू गोजर

जरा सी खड़खड़ाहट से काँप जाती है रूह

हाथ से जब जब उठाती है वह लड़की लकड़ी

मैं डर जाता हूँ...!

 

7.

 

सब ठीक होगा

 

धैर्य अस्वस्थ है

रिश्तों की रस्सी से बाँधी जा रही है राय

दुविधा दूर हुई

कठिन काल में कवि का कथन कृपा है

सब ठीक होगा

अशेष शुभकामनाएं

 

प्रेम, स्नेह व सहानुभूति सक्रिय हैं

जीवन की पाठशाला में

बुरे दिन व्यर्थ नहीं हुए

कोठरी में कैद कोविद ने दिया

अंधेरे में गाने के लिए रौशनी का गीत

 

आँधी-तूफ़ान का मौसम है

खुले में दीपक का बुझना तय है

अक्सर ऐसे ही समय में संसदीय सड़क पर

शब्दों के छाते उलट जाते हैं

और छड़ी फिसल जाती है

 

अचानक आदमी गिर जाता है

 

वह देखता है जब आँखें खोल कर

तब किले की ओर

बीमारी की बिजली चमक रही होती है

और आश्वासन के आवाज़ कान में सुनाई देती है

 

गिरा हुआ आदमी खुद खड़ा होता है

और अपनी पूरी ताकत के साथ

शेष सफर के लिए निकल पड़ता है।

 

8.

 

देह विमर्श

 

जब

स्त्री ढोती है

गर्भ में सृष्टि

तब

परिवार का पुरुषत्व

उसे श्रद्धा के पलकों पर धर

धरती का सारा सुख देना चाहता है घर

 

एक कविता

जो बंजर जमीन और सूखी नदी का है

समय की समीक्षा-- 'शरीर-विमर्श'

सतीत्व के संकेत

सत्य को भूल

उसे बाँझ की संज्ञा दी।

____________________________

 

गोलेन्द्र पटेल

संपर्क: ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी,

जिला- चंदौली, उ.प्र. 221009

शिक्षा: काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र (हिंदी आनर्स)

मो.नं.: 8429249326, ईमेल: corojivi@gmail.com

Wednesday, 10 March 2021

पुस्तक समीक्षा


लोकरंजक ज्ञानवर्धक कृति : कहावतों की कविताएं

समीक्षक: डॉ. नितिन सेठी

सी 231,शाहदाना कॉलोनी, बरेली-243005 (उत्तर प्रदेश)

मो.: 9027422306

किसी भी भाषा की समृद्धि में उसके शब्द भंडार के साथ-साथ उसके मुहावरे और लोकोक्तियांभी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदी भाषा भी इससे अछूती नहीं है। कहावतें सामान्य तौर पर अपने में पूर्ण वाक्य की तरह जनसामान्य द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं।लोक में लंबे समय तक अनजाने ही इनका प्रयोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक परंपरा के रूप में किया जाता है। मुहावरे और कहावतें सामाजिक जीवन का संदर्भ होती हैं। चार से आठ शब्दों के समूह में रची-बची कहावतों में अनेकानेक पते की बातों को गागर में सागर के समान भर दिया जाता है। बड़ों के साथ-साथ बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान देने में भी कहावतों का अलग ही महत्व है। बच्चों के लिए कहावतों को आधार बनाकर अनेक साहित्यकारों ने बाल कथाओं औरकविताओं आदि का सृजन किया है। डॉ वेद मित्र शुक्ल वर्तमान समय में बाल साहित्य के क्षेत्र में जाना माना नाम हैं। आपकी पिछली बापू से सीखें के पश्चात् आपकी नवीन कृतिकहावतों की कविताएं प्रकाशित हुई है, जिसमें कुल 35 कहावतों को आधार बनाकर इतनी ही बाल कविताओं का सृजन किया गया है। सभी कविताएं अपने आप में जितनी मनोरंजक और आकर्षक हैं, उतनी ही प्रेरक और ज्ञानवर्धक भी।

‘एक अनार सौ बीमार’,‘अंगूर खट्टे हैं’,‘ढपोर शंख’,‘जिसकी लाठी भैंस उसी की’,‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’,‘एक से भले दो’,‘गरीबी में आटा गीला’,‘अकल बड़ी या भैंस’,‘अंधों का हाथी’,‘रंगा सियार’,‘कौवा कान ले गया’,‘हवाई महल बनाना’,‘हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आए’,जैसीकहावतों को आधार बनाकर लिखी गई ये कविताएं सहज ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं।‘एक अनार सौ बीमार’ को वेद मित्र इस तरह अभिव्यक्त करते हैं--

कई चाहने वाले थे

 किंतु, नगर में एक अनार,

तब से चली कहावत है

“एक अनार सौ बीमार|”

‘अंगूर खट्टे हैं’ की अभिव्यक्ति देखिए--

उछली-कूदी पाने को पर

 फल लटके थे दूर बहुत,

आखिर बोली हार मानकर

“खट्टे हैं अंगूर बहुत|”

‘ढपोरशंख’ की अभिव्यक्ति देखिए--

वह ढपोरशंख कहलाता

 बात करे जो बढ़-चढ़कर,

 करने की बारी आए जब

काम करे ना रत्ती भर |

वेद मित्र ने इन कहावतों को भलीभांति समझाने के लिए बारह से सोलह पंक्तियों की एक कहानी बनाई है और उस कहावत को लेते हुए अपनी बात पूर्ण की है।

‘आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास’ कविता कबीरदास के संदर्भ में है और पांच दोहों में लिखी गई है।कवि लिखता है—

 चिंता में घर बार की, पड़े कबीरा दास,

“आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास|”

‘कौवा कान ले गया’जैसी कहावत कोसमझानेकेलिए वेद मित्र कहते हैं—

अपनी हरकत के कारण ही

 बेवकूफ जाने जाते हैं,

बच्चो!‘कौवा कान ले गया,’

 तभी कहावत दोहराते हैं|

संकट में अपने प्राण बचाने की सीख देती पंक्तियां महत्वपूर्ण हैं--

 जब कोई पत्थर मारे तो ‘काटो मत पर फुफकारो,’

 संकट में जब प्राण पड़ें तो मत अपना जीवन हारो|

‘हर्र लगे ना फिटकरी, रंग चोखा आए’ की  भावाभिव्यक्ति देखिए--

 नानी तो ऐसी ही थी कि

बिना खर्च के काम बनाए,

 हर्र लगे न फिटकरी और

रंग चोखा आ जाए|

संग्रह की अधिकांश कविताएं बच्चों को संबोधित करके लिखी गई हैं।इनमें बच्चों से सीधा-सीधा संवाद स्थापित किया गया है। कुछ कहावतें लंबी भी हैं जैसे,‘हाथ पांव की काहिली, मुंह में मूंछें जाएं हैं’,‘माया के तीन नाम परसा-परसू-परसराम’, ‘चूल्हे पर तलवार चलाई तौऊचुखरिया मारन पाई’, ‘खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है’ आदि| इन पर भी बहुत रोचक ढंग से कवि ने कविताओं का सृजन किया है। इन कहावतों में एक ओर जहां पशु, पक्षी, फल आदि आ गए हैं तो दूसरी ओर इन्हीं के साथ- साथ बच्चों को सुंदर सीख भी प्रदान की गई है। इन कविताओं की संप्रेषण क्षमता गजब की है क्योंकि बहुत छोटी-छोटी पंक्तियोमें पूरी कहावत का भाव स्पष्ट हो गया है। कवि की रचनाधर्मिता की सार्थकता भी इसी में है कि बच्चों में श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की अभिवृद्धि हो सके।ये कविताएं बच्चों में जिज्ञासा और कौतूहल भी बढ़ा देती हैं। बच्चे अपनी लोक संस्कृति को भी इनकहावतोंकीकविताओं के माध्यम से जान सकते हैं। हम बड़ों का भी यह कर्तव्य होना चाहिए कि इन कहावतों से संबंधित संपूर्ण जानकारी बच्चों को प्रदान करें ताकि वेअपनी भाषा के विकास की गति को भी जान सकें। इन कविताओं में एक साथ मनोरंजन, कौतूहल, ज्ञानवर्धन,लोक- संस्कृति जैसे तत्व समाहित हो गए हैं। आशा है कि प्रस्तुत कृति का साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा।

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पुस्तक: कहावतों की कविताएं (बाल कविता-संग्रह)

रचनाकार: डॉ. वेद मित्रशुक्ल, प्रकाशक: विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र

संस्करण: 2019, पृष्ठ: 40, मूल्य: 40/-

 

 

 

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...