व्यंग्य परिक्रमा 2021
- राहुल देव
रचनात्मक रूप
से लगातार अच्छा लिखने की छटपटाहट बहुत अच्छी चीज हैं लेकिन मेरा मानना है कि यह
एक जेनुइन लेखक का स्वाभाविक गुण है। खुद को बेहतर करने की प्रक्रिया कोई कौंध के
रूप में नही बल्कि निरंतर चलती रहती है बहुत ही धीमी आंच की तरह। जिसकी गवाह उसकी
समग्र रचनायात्रा होती है। ऐसे में लेखक या कवि को चाहिए कि बस अपना सर्वश्रेष्ठ
देते हुए रचने का आनंद/ पीड़ा महसूस करते हुए देखे कि क्या वह अपनी रचना में वह कह
सका जो वह सोचते हुए कहना चाहता था। अगर आप खुद के लिखे हुए से संतुष्ट हैं, अपने शब्दों पर अपनी
भाषा पर आपको विश्वास है तो कोई बड़ी चिंता की बात नही। आज चुनौतियां निश्चित रूप
से बड़ी हैं लेकिन उन्हें अपने ऊपर हावी नही होने देना चाहिए। सब छोड़ दीजिए बस
स्वतंत्र रूप से रचिये। बाज़ार ने लोगों का टेस्ट बदलकर रख दिया है, लेखक/कवि भी उससे
अछूते नही। हमें उसके झांसे में नही आना चाहिए। समकालीन व्यंग्य को लेकर बहुत सारी चिंताएं हैं । व्यंग्य जगत
में संवाद से ज्यादा विवाद चलते रहते हैं। कविता, कहानी में इतनी उखाड़-पछाड़ देखने को नही मिलती | मुझे लगता है कि
इसका एक कारण यह भी है कि व्यंग्य लेखन को
लोग बहुत हल्के में लेते हैं जबकि यह अपने आपमे अत्यंत कठिन व गंभीर साहित्यिक
विधा है। अलेखकों और मीडियाकरों के अंकुशहीन प्रवेश से माहौल दूषित हुआ है इन
दिनों। सार्थक आलोचना के अभाव में पाठक के समक्ष भी भ्रम की स्थिति हो गयी है।
बाजार की आवश्यकता और सोशल मीडिया की इसमें बड़ी भूमिका है। सार्थक और चिंतनशील
रचनाशीलता को बचाना एक चुनौती है फिलहाल। हर साल की तरह इस साल भी हिंदी व्यंग्य
साहित्य की तमाम किताबें इस साल प्रकाशित हुईं जिनका वार्षिक लेखा-लोखा यहाँ
पाठकों के सुलभ सन्दर्भ हेतु प्रस्तुत किया जा रहा है |
व्यंग्य लेखकों में इस साल अरविन्द तिवारी और अश्विनी कुमार
दुबे ने जमकर लिखा और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं | इंडिया नेटबुक्स से
अरविन्द तिवारी का व्यंग्य संग्रह ‘पुरस्कार की उठावनी’ प्रकाशित हुआ जिसमे
लॉकडाउन समय में लिखे गये उनके चालीस व्यंग्य शामिल हैं | साहित्य और कोविड इस
संग्रह के प्रमुख व्यंग्य विषय रहे | वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से एक
साफ़-सुथरे और विषयगत विविधता को समेटे हुए ‘अरविन्द तिवारी के संकलित व्यंग्य’
शीर्षक व्यंग्य संग्रह का प्रकाशन भी हुआ | अश्विनी कुमार दुबे की बात करूँ तो उनके
एक के बाद एक लगातार चार व्यंग्य संग्रह आए पहला ‘इधर होना एक महापुरुष’
प्रतिश्रुति प्रकाशन, कोलकाता से, दूसरा ‘माया महा ठगनी हम जानी’ शिवना प्रकाशन,
सीहोर से, तीसरा ‘बरसात ने दिल तोड़ दिया’ इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल से और चौथा
‘करतब जमूरों के’ इंक पब्लिकेशन, इलाहाबाद से | इन तीनों पुस्तकों को मिला लें तो
इस साल उन्होंने ढाई सौ से अधिक व्यंग्य लिखे | दुबे जी की विसंगतियों का
सौन्दर्यबोध कलात्मक चिंतन की भंगिमा लिए हुए रहता है इसलिए अधिक मात्रा में लिखने
के बावजूद वे अपनी व्यंग्य रचनाओं की पठनीयता बचा ले जाते हैं | उनकी रचनात्मक
सक्रियता चकित करती है | हालांकि प्रकाशक उनकी पुस्तकों के मूल्य इतने अधिक रखते
हैं कि वे आम पाठक की पहुँच से बाहर ही प्रतीत होती हैं |
अपने आपको व्यंग्य का उदण्ड विद्यार्थी कहने वाले सुनील जैन
राही की दो किताबें इस साल आयीं | बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित व्यंग्य विमर्श की
पुस्तक 'व्यंग्य का केवाईसी'
तथा व्यंग्य संग्रह 'साहब की फुंसी' | व्यंग्य विमर्श की
इस जरूरी पुस्तक में आपने लगभग सभी चर्चित विद्वानों के आलेख एक जगह संकलित कर
महत्वपूर्ण कार्य किया है। होता यह है कि व्हाट्सएप व फेसबुक पर होने वाली चर्चाओं
पर आने वाले विचार एक साथ किसी पुस्तक के रूप में न आ पाने के कारण उनकी भविष्य की
उपादेयता समाप्त हो जाती है। व्यंग्य में आलोचना की वैसे ही बड़ी कमी है जिसे आप की यह
पुस्तक पूरा करने का विनम्र प्रयास करती है। 'साहब की फुंसी' राही जी का चौथा व्यंग्य संग्रह है | उनके इस संग्रह के व्यंग्य पढ़कर पता चलता है कि आपके भीतर
नैसर्गिक व्यंग्य प्रतिभा है। आपने समय के साथ अपनी व्यंग्य शैली को बहुत विकसित
कर लिया है। इस पुस्तक में शामिल आपके चुनिंदा 46
व्यंग्यलेख व्यंग्य प्रदेश में आपकी
सतर्क व सशक्त उपस्थिति का परिचय देने में पूर्णता समर्थ हैं। आपने बहुत ही
सरल-सहज, आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग कर अपनी वाग्विदग्धता से समकालीन
सामाजिक- राजनीतिक विसंगतियों की जमकर खबर ली है। इन व्यंग्य लेखों में
प्रवृत्तियों को लेकर लेखक की समझ और पक्षधरता सराहनीय है। संग्रह में बीच-बीच में
आने वाले सूक्तिपरक वाक्य लेखकीय कलम की धार प्रकट करते हैं और बताते हैं कि
व्यंग्यकार की पैनी नजर से बच पाना बहुत मुश्किल है।
बिहारी बाबू विनोद कुमार विक्की खूब सक्रिय रहने वाले व्यंग्यकार हैं
| दीक्षा प्रकाशन से उनके सम्पादन में 23 व्यंग्यकारों का साझा व्यंग्य संग्रह
‘खरी-खरी’ प्रकाशित हुआ | साझा व्यंग्य संकलनों के क्रम में चक्रवर्ती व्यंग्य
लेखक लालित्य ललित के सम्पादन में हम 3 हमारे 30 साझा संग्रह इसी वर्ष शाया हुआ |
डॉ लालित्य ललित, हरीश कुमार सिंह के संयुक्त सम्पादन में इंडिया नेटबुक्स नॉएडा
से 75 श्रेष्ठ व्यंग्यकारों की रचनाओं का संचयन ‘अब तक 75’ शीर्षक से छपा | इस साल
नॉएडा के प्रकाशक इंडिया नेटबुक्स ने व्यंग्य विधा की सर्वाधिक किताबें प्रकाशित
कीं | अन्य प्रकाशित संकलनों की बात की जाय तो उनमे राजस्थान के सक्रिय व्यंग्य
लेखक फारूख आफरीदी और कविता मुखर के सम्पादन में इंडिया नेटबुक्स नॉएडा से ‘चटपटे
शरारे’ शीर्षक व्यंग्य संकलन प्रकाशित हुआ | लालित्य ललित और राजेश कुमार के
सम्पादन में इंडिया नेटबुक्स नॉएडा से ‘इक्कीसवीं सदी के 251 अंतर्राष्ट्रीय
श्रेष्ठ व्यंग्यकार’ नामक व्यंग्य संकलन निकला |
व्यक्तिगत व्यंग्य संग्रहों की बात करें तो उनमे भावना प्रकाशन नयी
दिल्ली ने लालित्य ललित का 25वाँ व्यंग्य संग्रह ‘मुर्गे बेहद खुश हैं’, रश्मि
प्रकाशन लखनऊ से डॉ राकेश ऋषभ का व्यंग्य संग्रह ‘जादू की छड़ी’, राजमंगल प्रकाशन
से डॉ जवाहर धीर का व्यंग्य संग्रह ‘टेढ़ी गर्दन वाला शहर’, इंडिया नेटबुक्स नॉएडा
से डॉ पिलकेंद्र अरोड़ा का व्यंग्य संग्रह ‘श्री गूगलाय नमः’, राजपाल एंड संस नयी दिल्ली से वरिष्ठ
व्यंग्यशिल्पी डॉ ज्ञान चतुर्वेदी का नया व्यंग्य संग्रह ‘नेपथ्य लीला’, सर्वप्रिय
प्रकाशन दिल्ली से डॉ प्रदीप उपाध्याय का व्यंग्य संग्रह ‘ये दुनिया वाले पूछेंगें’,
इंडिया नेटबुक्स नॉएडा से दीनदयाल शर्मा का संग्रह ‘एक ही उल्लू काफी है’, बोधि
प्रकाशन जयपुर से जसविंदर शर्मा का नया संग्रह ‘उलझा हुआ यक्ष प्रश्न’ नाम से आया,
वंश पब्लिकेशन भोपाल से राजशेखर चौबे का व्यंग्य संग्रह ‘निठल्लों का औजार’, भावना
प्रकाशन नयी दिल्ली ने युवा लेखक राकेश सोहम का व्यंग्य संग्रह ‘टांग अड़ाने के
मज़े’, अक्षरा पब्लिशर्स दिल्ली से वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज का व्यंग्य संग्रह
‘पत्नी पीड़ित संघ’, सुदर्शन सोनी का हास्य-व्यंग्य संग्रह ‘पतियों का एक्सचेंज ऑफर’,
‘बाथरूम में हाथी’ सुदर्शन वशिष्ठ का व्यंग्य संग्रह इंडिया नेटबुक्स नॉएडा से, बोधि
प्रकाशन जयपुर से इंदौर के वरिष्ठ व्यंग्य लेखक ब्रजेश कानूनगो का संग्रह ‘पाषाणपुष्प
का किस्सा’ नाम से छपा, किताबगंज प्रकाशन, सवाई माधोपुर ने वरिष्ठ व्यंग्यकार हरीश
नवल का व्यंग्य संग्रह ‘गांधीजी का चश्मा’ नाम से प्रकाशित किया, इनके अतिरिक्त इंडिया
नेटबुक्स नॉएडा से रामस्वरूप दीक्षित का व्यंग्य संग्रह ‘कड़ाही में जाने को आतुर
जलेबियाँ’, इंडिया नेटबुक्स नॉएडा से ही प्रभात गोस्वामी का संग्रह ‘चुगली की गुगली’,
इंडिया नेटबुक्स से ही अशोक गौतम का व्यंग्य संग्रह ‘अतिथि करोनो भवः’, अद्विक
पब्लिकेशन से सूरज प्रकाश का व्यंग्य संग्रह ‘डॉक्टर साहिबा के डोगिज बीमार हैं’, इंडिया
नेटबुक्स से वीरेंद्र नारायण झा का व्यंग्य संग्रह ‘राईट टू गाली’, इंडिया
नेटबुक्स नॉएडा से ही देवकिशन राजपुरोहित का संग्रह ‘मेरा गधा गधों का लीडर’, संस्मय
प्रकाशन से लालित्य ललित के संग्रह ‘पाण्डेय जी छज्जे पर’ तथा इंक पब्लिकेशन से
युवा व्यंग्यकार अलंकार रस्तोगी के व्यंग्य संग्रह ‘जूते की अभिलाषा’ आदि
उल्लेखनीय रहे |
प्रकाशन के क्षेत्र में इसी साल कदम रखने वाले प्रयागराज के
रुद्रादित्य प्रकाशन से वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज सामाजिक विसंगतियों के
व्यंग्यात्मक आख्यानों की पुस्तक ‘एक था रावण’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ | वरिष्ठ
व्यंग्य लेखक डॉ प्रेम जन्मेजय की व्यंग्य कहानियों का संग्रह ‘तीसरी प्रेमिका’
प्रलेक प्रकाशन मुंबई ने प्रकाशित किया, वरिष्ठ व्यंग्य लेखिका सूर्यबाला के
व्यंग्य संग्रह ‘भगवान ने कहा था’ का नया संस्करण प्रभात प्रकाशन नयी दिल्ली से
इसी साल प्रकाशित हुआ | लम्बे समय से लिख रहे व्यंग्यकार श्रीकांत चौधरी का
व्यंग्य संग्रह ‘गिद्धों का प्रजातंत्र’ इंडिया नेटबुक्स से छपा | 5 विशिष्ट व्यंग्यकारों
ज्ञान चतुर्वेदी, आलोक पुराणिक, सूर्यबाला, प्रेम जन्मेजय, हरीश नवल के
साक्षात्कारों को लेकर डॉ पिलकेंद्र अरोरा के सम्पादन में वनिका पब्लिकेशन बिजनौर
से ‘साक्षात व्यंग्यकार’ शीर्षक पुस्तक आयी |
व्यंग्य उपन्यासों में वर्तमान व्यंग्य के शीर्ष व्यक्तित्व डॉ ज्ञान
चतुर्वेदी का छठा व्यंग्य उपन्यास ‘स्वांग’ राजमकल प्रकाशन नयी दिल्ली ने प्रकाशित
किया जोकि पाठकों के मध्य अपनी विषयवस्तु, पठनीयता और समग्र व्यंग्य दृष्टि के
कारण काफी सराहा गया | हिंदी
कवि सम्मेलनों के यथार्थ को लेकर लिखा गया अरविन्द जी का चौथा व्यंग्य उपन्यास
‘लिफाफे में कविता’ का प्रकाशन इसी वर्ष प्रतिभा प्रतिष्ठान नयी दिल्ली से हुआ |
जयपुर के लेखक डॉ अजय अनुरागी का पहला व्यंग्य उपन्यास ‘जयपुर तमाशा’ किताबगंज
प्रकाशन, सवाई माधोपुर से प्रकाशित हुआ | व्यंग्य लेखिका मीना अरोड़ा का
हास्य-व्यंग्य उपन्यास ‘पुत्तल का पुष्पवटुक’ शब्दाहुति प्रकाशन दिल्ली से और पेनमेन
इन्फोटेक गाज़ियाबाद से यशवंत कोठारी के ‘तीन लघु व्यंग्य उपन्यास’ शीर्षक से एक ही
जिल्द में प्रकाशित हुआ |
गद्य व्यंग्य की तुलना में पद्य व्यंग्य के क्षेत्र में कम ही किताबें
इस साल आयीं | वनिका पब्लिकेशन बिजनौर से लखनऊ के व्यंग्यकार सूर्यकुमार पाण्डेय
की व्यंग्य विनोद कविताओं का संग्रह ‘खरी-मसखरी’ शीर्षक से आया | इसके अतिरिक्त
मेरी नज़र में व्यंग्य कवि जयशंकर सोनोलिया का व्यंग्य काव्य संग्रह ‘झंडा-डंडा-प्रजातंत्र’
राजमंगल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ |
समग्र और आलोचना के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण किताबें प्रकाश में
आयीं जिसका जिक्र करना जरुरी है | इसमे पहली पुस्तक साठोत्तरी हिंदी व्यंग्य लेखन
के चर्चित हस्ताक्षर ‘प्रो. अशोक शुक्ल समग्र’ रहा जिसका सम्पादन डॉ राहुल शुक्ल ने
किया है | यह समग्र संकल्प प्रकाशन कानपुर से प्रकाशित हुआ | दूसरी किताब डॉ सुरेश
माहेश्वरी की ‘व्यंग्यालोचन का इतिहास’ रही जिसे विकास प्रकाशन कानपुर ने प्रकाशित
किया | मेरे स्वयं के संयोजन एवं सम्पादन में इंडिया नेटबुक्स ने भी साक्षात्कार
के फॉर्म में एक व्यंग्य विमर्श की पुस्तक ‘आधुनिक व्यंग्य का यथार्थ’ शीर्षक से
प्रकाशित की |
‘व्यंग्य यात्रा’ के कई महत्वपूर्ण अंक तो आए ही साथ ही ‘अनवरत’
पत्रिका का व्यंग्य यात्रा के यशस्वी संपादक प्रेम जन्मेजय पर केन्द्रित विशेषांक
भी निकाला | वाराणसी से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘सोच विचार’ ने भी वरिष्ठ लेखिका
सूर्यबाला पर अपना अंक केन्द्रित किया | कोलकाता से प्रकाशित ‘मुक्तांचल’
त्रैमासिकी का डॉ पंकज साहा के अतिथि सम्पादन में व्यंग्य विशेषांक भी इसी साल आया
जिन्हें काफी सराहा गया |
इन सभी किताबों में कुछ को पाठकों का प्यार मिला तो कुछ को पाठकों ने सिरे से खारिज़ कर दिया | कुछ पुस्तकालयीय खरीद की भेंट चढ़ गयी तो कुछ ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर धूम मचाई | कुछ मिलाकर लेखकों को यह समझ लेना चाहिए है कि सार्वजनीन लेखन के क्षेत्र में पाठक हमारा पार्टनर है। रचना में हम उससे झूठ नही बोल सकते। हमारा काम रचना में जवाब देते रहना नही होना चाहिए बल्कि हम सवाल का आईना रखते जाएं, जवाब उसे खुद खोजने दें। कला अपने सामाजिक अर्थ में यथार्थ का सामना ऐसे ही करती है। रचना जीवन को अलग अलग कोणों से देखती है, उसके भीतर झांकती है। कला कोई तत्व नही बल्कि एक दबाव है। रचना कला के उस दबाव की परिणति है। हम भाषा मे व्यंग्य का कारोबार न चलाएं जो वास्तव में व्यंग्य है ही नही। असली व्यंग्य क्या होता है यह हमारी परंपरा हमें बताती है जिसे पढ़कर, गुनकर आत्मसात कर ही समझा जा सकता है। लिखने से पहले आप सोचिये कि क्या व्यंग्य आपके लिए पैशन है। आप जिस चीज़ के बारे में पैशनेट होते हैं, उसके बारे में लगातार बातें करते रहते हैं। मेरे लिए आलोचनात्मक अर्थों में व्यंग्य के बारे में लगातार बातें करते रहना यही है। व्यंग्य की सर्वस्वीकृति के लिए साहित्यिकता और मनोरंजन की प्रवृत्ति के बीच के अंतर को समझना होगा | मेरा मानना है कि हँसने वाला व्यक्ति अपनी मौलिकता में ज्यादा गंभीर होता है | व्यवस्था की खामियों को व्यंजना में ढालकर प्रस्तुत करना ही व्यंग्य की खूबसूरती है | यह खूबसूरती आने वाले साल दर साल कायम रहेगी ऐसी उम्मीद हम इस विधा में काम करने वाले हर एक लेखक से करते हैं |
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9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग,
महमूदाबाद (अवध), सीतापुर उ.प्र. 261203
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