1
तुम अँधेरों से भर
गए शायद
मुझको लगता है मर गए
शायद
दूर तक जो नज़र नहीं
आते
छुट्टियों में हैं
घर गए शायद
ये जो फसलें नहीं हैं खेतों में
लोग इनको भी चर गए शायद
कागजों पर जो घर
बनाते थे
उनके पुरखे भी तर गए शायद
क्यों सुबकते हैं
पेड़ और जंगल
इनके पत्ते भी झर गए
शायद
तुम ज़मीं पर ही चल रहे हो अब
कट तुम्हारे भी पर
गए शायद
उनके काँधे पे बोझ था जो वो
मेरे काँधे पे धर गए शायद
सिर्फ कुछ पत्तियाँ मिलीं हमको
फूल सारे बिख़र गए शायद
2
जो ख़बर अच्छी बहुत है आसमानों के लिए
वो ख़बर अच्छी नहीं है आशियानों के लिए
इस नए बाज़ार में हर चीज़ महंगी हो गई
बीज से सस्ता ज़हर है पर किसानों के लिए
भूख से चिल्लाए जो वो, खिड़कियाँ तू बंद कर
शोर ये अच्छा नहीं है तेरे कानों के लिए
हक़ की बातें करने वालों के लिए पाबंदियाँ
और सुविधाएं लिखी हैं बेज़ुबानों के लिए
अब नए युग की कहानी में नहीं होगी फसल
खेत सारे बिक गए हैं अब मकानों के लिए
पेट भरने के लिए मिलती नहीं हैं रोटियाँ
खूब ताले मिल रहे हैं कारखानों के लिए
3
मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ
हरेक फूल को मैं कँवल लिख रहा हूँ
कभी आज पर ही यकीं था मुझे भी
मगर आज को अब मैं कल लिख रहा हूँ
बहुत कीमती हैं ये आँसू तुम्हारे
तभी आँसुओं को मैं जल लिख रहा हूँ
समय चल रहा है मैं तन्हा खड़ा हूँ
सदियाँ गँवाकर मैं पल लिख रहा हूँ
लिखा है बहुत ही कठिन ज़िंदगी ने
तभी आजकल मैं सरल लिख रहा
हूँ
मैं बदला हूँ इतना कि अब हर जगह पर
तू भी तो थोड़ा बदल लिख रहा हूँ
4
जैसे-जैसे बच्चे पढ़ना सीख रहे हैं
हम सब मिलकर आगे बढ़ना सीख रहे हैं
पेड़ों पर चढ़ना तो पहले सीख लिया था
आज हिमालय पर वो चढ़ना सीख रहे हैं
भूख मिटाने को खेतों में जो उगते थे
गोदामों में जाकर सड़ना सीख रहे हैं
कहाँ मुहब्बत में मिलना मुमकिन होता है
इसीलिए हम रोज़ बिछड़ना सीख रहे हैं
नदी किनारे बसना सदियों तक सीखा था
गाँवों में अब लोग उजड़ना सीख रहे हैं
धूप निकल कर फिर आएगी इस धरती पर
दुनिया को हम लोग बदलना सीख रहे हैं
5
मैं सदियों से यहां हूँ, मैं सदियों तक यहीं हूँ
ये दुनिया है नई, मैं पुराना आदमी हूं
सभी अंधे हुए हैं, हैं आंखें पर सभी की
मैं सबको
देखता हूँ, मैं काना आदमी हूँ
सियासत पूछती है कि तेरा नाम क्या है
सियासत ने ये शायद, न जाना आदमी हूँ
मैं अपने गाँव से जब चला तो आदमी था
शहर में पर किसी ने, न माना आदमी हूँ
मैं क्या हूं, नाम क्या है, मेरी पहचान क्या
है
क्यों मुझसे पूछते हो, कहा न, आदमी हूँ
--
परिचय:
नाम: डॉ. राकेश जोशी
जन्म: 9 सितम्बर, 1970
शिक्षा: अंग्रेजी साहित्य में एम.ए., एम.फ़िल., डी.फ़िल.
संप्रति: राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड में असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., एम.
फ़िल., डी. फ़िल. डॉ. राकेश जोशी मूलतः राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड
में अंग्रेजी साहित्य
के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इससे पूर्व वे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत
सरकार में हिंदी अनुवादक के पद पर मुंबई में कार्यरत रहे. मुंबई में ही उन्होंने थोड़े
समय के लिए आकाशवाणी विविध
भारती में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी कार्य किया. उनकी कविताएँ अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं
में प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं. उनकी एक
काव्य-पुस्तिका "कुछ बातें कविताओं में", एक ग़ज़ल संग्रह “पत्थरों के शहर में”, तथा हिंदी से अंग्रेजी में अनूदित एक पुस्तक “द
क्राउड बेअर्स विटनेस” अब तक प्रकाशित हुई है.
प्रकाशित
कृतियाँ: काव्य-पुस्तिका
"कुछ बातें कविताओं में", ग़ज़ल
संग्रह “पत्थरों के शहर में”
अनूदित कृति: हिंदी से अंग्रेजी “द क्राउड बेअर्स विटनेस” (The Crowd Bears Witness)
विशेष: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार में हिंदी अनुवादक के पद पर
मुंबई में कार्यरत रहे. मुंबई में ही उन्होंने थोड़े
समय के लिए आकाशवाणी विविध भारती में आकस्मिक उद्घोषक
के तौर पर भी कार्य किया. उनकी कविताएँ अनेक
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय
पत्र-पत्रिकाओं
में प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं. उनकी एक काव्य-पुस्तिका "कुछ बातें
कविताओं में", एक ग़ज़ल संग्रह “पत्थरों के शहर में”, तथा हिंदी से अंग्रेजी में अनूदित एक पुस्तक “द क्राउड बेअर्स विटनेस” अब तक प्रकाशित हुई है.
छात्र जीवन के दौरान ही साहित्यिक-पत्रिका "लौ" का संपादन भी किया.
छात्र जीवन के दौरान ही साहित्यिक-पत्रिका "लौ" का संपादन भी किया.
सम्पर्क:
डॉ. राकेश जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला
देहरादून, उत्तराखंड
फ़ोन: 08938010850
No comments:
Post a Comment