मॉरिशस हिंद महासागर में स्थित एक छोटा सा
टापू है. यों तो इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है फिर भी यह देश इडेन गार्डन से
कुछ कम नहीं है.
975 AD में अरब के समुद्री डाकुओं ने इसकी खोज की और इसका नाम रखा ‘दीनारोबी’. यह देश उनके द्वारा लूटे गए खज़ानों का गढ़ हुआ करता था.
सन् 1507 में पुर्तगालियों का आना जाना जब इस
देश में शुरु हुआ तो उनके साथ ही आये छोटे छोटे घरेलू पक्षी गौरैया. इन पक्षियों
को यहाँ का वातावरण और मौसम इतना रास आया कि देखते ही देखते ये मॉरिशस के वन उपवन में
बस गये.
1638 में डचों ने अपना कदम मोरिशस की धरती पर
रखा. लेकिन उन्हें यहाँ के मौसम ने बहुत नुकसान पहुँचाया. कुछ साल रहने के बाद वे
यहाँ से भाग खड़े हुए और जाते जाते यहाँ के आदिवासी पक्षी (डोडो) का सफ़ाया कर गये जो
विश्व में एकमात्र मॉरिशस में ही पाये जाते थे.
1715 में फ़्रेंचों का आगमन हुआ और वे यहाँ एक
समृद्ध राष्ट्र बनाने में सफ़ल हुए. उनके इस द्वीप में सौ वर्षों के अवस्थान के बाद
अंग्रेज़ों ने उन पर आक्रमण किया और इस देश को जीत लिया. तारीख बदलती रही, उपनिवेश बदलते रहे
मगर गौरैया इन बातों से अंजान इस सुंदर टापू में फलते फूलते रहे.
1810 के बाद से मोरिशस की हुकूमत ब्रिटिश
सरकार के हाथ में आ गयी. वे भारत से गिरमिटिया मज़दूर लाये. ये मज़दूर गन्ने के
खेतों में काम करते. इन लोगों की झोपड़ी का छाजन गन्ने के पत्तों का होता था.
गौरैया पक्षी इंसान के आस पास रहना ज़्यादा पसंद करते हैं तभी तो इन्हें घरेलू
पक्षी कहा जाता है. भारी संख्या में देश भर में झोपड़ियाँ देख कर गौरैया वनों को छोड़कर
इंसान की झोपड़ियों के छाजन में अपना बसेरा बनाने लगे. वे इंसान के घर के बचे-खुचे
दाना खाते और आँगन में फुदकते रहते. मज़दूर भी इन नन्हें साथियों को पाकर अपनी माटी
से बिछुड़ने का दु:ख धीरे धीरे भूलने लगे और इसी मिट्टी में रच बस गये. पीढ़ी बदलती
गयी.
1968 में मॉरिशस अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ और यहाँ का शासन मॉरिशस
वासियों के हाथ में आ गया. प्रगति ने अपना पाँव फैलाना शुरू किया. कल तक झोपड़ी में
रहने वाले मज़दूर कांक्रीट के घर में आ गये. उनके साथ ही साथ इंसान के साथी गौरैया
पक्षी भी उनके घर आ गये. इंसान को यह बात अच्छी नहीं लगी कि उसके आलीशान मकान के
रोशनदान में ये पक्षी रहें. गौरैया को आस पास की छोटी छोटी झाड़ियों में शरण लेनी
पड़ी. परिणाम यह हुआ कि आये दिन उनके अण्डे और चूज़े बिल्ली और नेवले के शिकार होने
लगे. गौरैया ने चीख चीख कर अपने मानव साथी से रक्षा की गुहार की मगर मानव अपनी सफ़लता
की राह में इतनी तेज़ी से भाग रहे थे कि उसकी शोर में उसके नन्हें साथी की चीख डूब गयी.
रहा सहा कसर तूफ़ानों ने पूरी कर दी.
इक्कीसवीं सदी. मॉरिशस देश का एक आधुनिक गाँव
का हाई फ़ाई स्कूल. अध्यापक ने श्यामपट पर लिखा. ‘गौरैया’. और बच्चों से
कहा-‘’बच्चों इस छोटी सी प्यारी पक्षी पर एक निबंध लिखो.
जिसका निबंध सबसे अच्छा होगा उसे इनाम मिलेगा और देश के मशहूर बाल पत्रिका में
उसका निबंध छपेगा.’’
लेकिन बच्चे खुश होने के बदले दुखी हो गये. एक बच्चे ने साहस कर के कहा-‘’सर हम तो इस पक्षी के बारे में कुछ जानते ही नहीं न हमने इनको कभी देखा
है.’’ अध्यापक को भी एक झटका लगा. उन्हें याद आया कि विदेश
से शिक्षा पूरी करने के बाद जब से वह स्वदेश लौटे हैं उन्होंने एक भी गौरैया पक्षी
को अपने आंगन में फुदकते नहीं देखा है. उन्हें अपना बचपन याद आया जब उनकी दादी
आँगन में बैठकर चावल बीनती और चावल के छोटे छोटे दाने आँगन में बिखेर देती जिन्हें
गौरैया फुदक फुदक कर चुगती थी. उसके
चहकने की आवाज़ बहुत मीठी होती है.
दादी यह भी बतायी थी कि नर गौरैया के कंठ
के नीचे काले निशान होते हैं और मादा भूरे मटमैले रंग के होते हैं.’ अध्यापक को विचारों में
खोये देखकर बच्चे ने कहा - ‘’सर क्या हम डोडो पक्षी की तरह ही गौरैया को भी गँवा दिये
हैं.’’
‘’नहीं बच्चों!
हम ऐसा नहीं होने देंगे. कल से हम ‘गौरैया बचाओ अभियान’ शुरू करेंगे. अपने इन नन्हें
साथियों को जंगल-जंगल ढ़ूँढ़ने जाएँगे. उनके लिये अपने बागों में घोंसले बनाऐंगे, उनके अण्डे और चूज़ों की
रक्षा करेंगे. हम उन्हें पुनः अपने आवास में लेंगे.’’
बच्चों ने अपनी कॉपी में लिखा - ’डोडो पक्षी की तरह हम
गौरैया को लुप्त नहीं होने देंगे.’
कुंती मुकर्जी
37,रोहतास एन्क्लेव,
फैजाबाद रोड,
लखनऊ-226016.
Mobile no.9717116167.
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