एक औरत
जब अपने अन्दर खंगालती है तो पाती है टूटी फूटी इच्छाओं की सड़क ,, भावनाओं का उजड़ा बगीचा , और लम्हा लम्हा मरती उसकी कोशिकाओं की लाशें लेकिन इन सब के बीच भी एक गुडिया बदरंग कपड़ों मे मुस्काती है ये औरत टूटती है ,बिखरती है काँटों से अपने जख्म सीती है पर इस गुडिया को खोने नहीं देती शायद इसीलिए तूफान की गर्जना को गुनगुनाहट में बदल देती है औरत ! |
Thursday, 29 November 2012
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पश्चिम में स्त्री-विमर्श और स्त्री-लेखन
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