एक औरत
जब अपने अन्दर खंगालती है तो पाती है टूटी फूटी इच्छाओं की सड़क ,, भावनाओं का उजड़ा बगीचा , और लम्हा लम्हा मरती उसकी कोशिकाओं की लाशें लेकिन इन सब के बीच भी एक गुडिया बदरंग कपड़ों मे मुस्काती है ये औरत टूटती है ,बिखरती है काँटों से अपने जख्म सीती है पर इस गुडिया को खोने नहीं देती शायद इसीलिए तूफान की गर्जना को गुनगुनाहट में बदल देती है औरत ! |
Thursday, 29 November 2012
क्यों मुझे गाँधी पसंद नहीं है ?
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग
को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों
को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते
हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी
केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग
1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में
वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की
मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के
लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे
दी गयी।
17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है
.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू
ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस
समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को
मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर
हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी
मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?
२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह
करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी
लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे
जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह
अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी
थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी
लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी
दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के
सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद
दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी
राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया
होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर
उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा
नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता
--
Thursday, 17 May 2012
विडम्बना
आज के समाज मेँ-
लोग बेटी पैदा करना बेकार समझते हैँ
बेटी का होना अपने पूर्वजन्मोँ का पाप समझते हैँ
बचपन की अठखेलियोँ के बाद जब यौवन सबल हो
दिला जाता है पिता को तीव्र ज्वर जो
तपन मेँ आठोँ पहर वह यही सोचे
कैसे भी होँ पुत्रियोँ के हाथ पीले
दिन ब दिन स्थिति अनवरत बिगड़ जाती है
जब तलक कोई योग्य वर मिल न जाता है
यहाँ तक तो ठीक था
मन पर न कोई बोझ था
पर खुला है द्वार वह
जिसका मुख कभी न बन्द हो
दहेज रूपी राक्षसी का क्रोध कितना रौद्र है
अजीब विडम्बना है
वास्तविक सपना है!
मैने देखा है-
बाप को बेटी का सिर कुचलते
या फिर शादी के समय
उसके श्वसुर के आगे नाक रगड़ते
आखिर बेटियोँ के साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?
क्योँकि हम स्वयं ऐसा चाहते हैँ
बेटी मेँ देने के बाद
बेटे मेँ वसूलना चाहते हैँ
लेकिन हम हैँ कि बस
कोरा आदर्शवाद दिखाते हैँ
बेटे मेँ पाने के लिए बेटी को मोहरा बनाते हैँ
बनिस्बत दोष सारा भाग्य पर मढ़ बच
निकलते हैँ
चोर उल्टा बन स्वयं ही कोतवाली जा धमकते हैँ
ऐसा ही रहा तो चक्र यह चलता रहेगा
है जरूरत नीँद से अब जागने की
बेटियोँ के अस्तित्व,सम्मान को बचाने की
हर पिता यह जान ले
स्वयं को पहचान ले
देने पर समान साधन बेटियाँ कमतर नहीँ हैँ
देन हैँ वे ईश्वरीय
कोरी नियति नहीँ हैँ
ठान यदि लेँ हम सभी अब
स्वयं को सुधारने मेँ
है क्या बिसात जो चल आएं
चिन्ता और कलह
विश्व को बिगाड़ने मेँ
प्रकृति को उजाड़ने मेँ।
-राहुल देव
Saturday, 14 April 2012
बीते हुए दिन मस्तीभरी अब वो शमाँ नहीं है पहले जैसी यह जहाँ नहीं है. ग़ुम है मतवाली कोयल की कूक साबुन,पानी,बुलबुले और फूँक . कहाँ है वो फुर्सत के लम्हे! अब रहते है सब सहमे-सहमे आँगन में गौरैया का फुदक-फुदकना बाहर बच्चों का वो कूद-कुदकना राजा-रानी की वो सरस-कहानी इस युग के बच्चों ने कहाँ है जानी ! सरसों के वो पीले फूल दहकते, अब किसी से कुछ क्यूँ नहीं कहते! पेड़ो पर चढ़ना,छुप कर सो जाना तब होती थी ये बातें रोजाना. टायर लुढ़काते जाना विश्व-भ्रमण किस्सों में हरिश्चंद्र और श्रवन. गुड्डे-गुड्डियों की धूमधाम से शादी, टीवी-विडियो ने कबकी बंद करवा दी चंदा मामा दिन में कहाँ है जाते? ऐसे प्रश्न अब कम ही आते. रेडियो के अंदर कौन बोल रहा है? अँधेरे में डाली पर कौन डोल रहा है? लंगड़ी मैना की ऐसी चाल है क्यूँ? बंदर के पीछे आखिर लाल है क्यूँ? पेड़ो के पत्तों की वो सरसराहट अँधेरे में अनजानी कोई आहट. बांस-खोपचे के बने वो 'मवनी मवनी भर 'लाइ',एक चवन्नी. अलकतरे के बने,बिकते वो लट्टू मरते थे जिसपर बब्बन और बिट्टू. चने के भूंजे, सोंधी मकई के लावा अब तो मैग्गी,चाऊ पे धावा पेड़ों पर सर्र से चढ़ती गिलहरियाँ नील गगन में वगुलों की लड़ियाँ ऊंचे पेड़ों पर आकर बैठा तोता देख-देख मन कितना खुश होता! गूंजती चैती,बिरहा और फाग देसी घी की लिट्टी, चने की साग . भोरे-भोरे जाना गंगा-स्नान खेतो में पुतले और मचान जान-बुझकर बारिश में भींगना फिर डर के मारे धीरे से छींकना लकड़-सुंघवा का डर ,लकड़ी सुंघाना दिन में ना सोने का तरह-तरह बहाना . जाड़े में सब बैठते अलाव को घेरे कैसे-कैसे गप्प,किस्से बहुतेरे . आसमान में है कितने तारे ,अब गिनते-गिनते परेशां बच्चे सारे. क्या कभी नहीं बोलते मौनी बाबा? कहां है काशी ?कहां है काबा? क्या नाक रगडने से मिलते भगवान्? नाक हुई लहू-लुहान ,अरे नादाँ! दोने में जलेबी, उसपर गिद्ध-झपटना पानी-जहाज से जाना पटना . दूध आता धाना-फुआ के घर से उनके बिना सब दूध को तरसे घर में बाबूजी की ग़ज़ब डिसिप्लिन कोई काम पूरी होती ना माँ बिन हर संकट-मोचक के रूप में माँ अब कोई इस जग में कहाँ ! .. |
Friday, 13 April 2012
1 एक मामूली आदमी. न मालूम कहाँ से जुटा रखता है सम्बल तमाम विपरीत हालात में जिन्दा रह पाता है. एक मामूली आदमी लड़ता है हर दिन छोटी छोटी लड़ाईयां. करता है मुठभेड़ राशन और सब्जी की पेट्रोल और किराये बढ़ती कीमत से. रिजर्वेशन के लिये लाइन गैस की काला बाजारी बच्चों के एडमीशन और बुजुर्गों की दवाईयों के लिये. देखता है छोटे छोटे सपने अक्सर टूटने के लिये. काँच की तरह चटख जाने के लिये. बालू के घरोन्दों की तरह बिखर जाने के लिये. ताश के पत्तों की तरह ढह जाने के लिये. फिर भी थमता नहीं है वह सच तो यह है कि उम्मीद ही जिलाये रखती है उसे एक न एक दिन सपनों के पूरा होने की. एक मामूली आदमी सुनता है महान और दिव्य लोगों के प्रवचन. सफल, समृद्ध और यशस्वियों से गुरुमंत्र. उसे दिये जाते हैं हर दिन नये उदाहरण अनुकरण के लिये प्रेरक प्रसंग. जनतंत्र का आधार स्तम्भ भी वही है. संस्कारों, परम्पराओं और नियम विधानों को ढोता पीढ़ी दर पीढ़ी पुल भी वही है. यह मामूली आदमी तंगी, बदनसीबी, बीमारी और हालात की मजबूरी के बावजूद मना ही लेता है पर्व और उत्सव. गुनगुना लेता है खास मौसम में. दोस्तों के साथ लगा लेता है ठहाके छोटी छोटी खुशियों पर तमाम उम्र घर, बाहर, दफ्तर, समाज की तमाम जिम्मेदारियां बिना शोर निभाते हुए चुपचाप एक दिन मामूली मौत मर जाता है एक मामूली आदमी. 2. ना तो मेरे मुंह में राम है और न ही बगल में छुरी न कोई दिव्यत्व, आत्मबोध चरम उत्कर्ष, परमानन्द और न ही वंचना, खलबली आत्मघात और धिक्कार है. किसी भी आका के वरद हस्त के बगैर. हाशिये पर जीये जा रही एक मामूली, औसत, महत्वहीन सी जिन्दगी है. अपनी छोटी छोटी शर्तो, सीमाओं थोडे आंसू और थोडी खुशियों के साथ. हकीकत की जमीन और उपलब्धियों के आसमान के बीच उड़ान भरने के लिये मेरे साथ है तो केवल अपने संकल्पों आशा-आकांक्षाओं महत्वाकांक्षाओं और स्वप्नों के पंख जिन्हें एक साथ सहना है हवा के घर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण अपकेन्द्र बल के अलावा मौसम की अनिश्चितता दिशा की अज्ञानता गति की सीमितता भूख, थकान बीमारी की चुनौतियां. किसी प्रायोजित यान में बैठकर बेशक आसान है इन अधकचरी कोशिशों का उपहास सुरक्षा और सुविधाओं का गुमान एक तयशुदा पथ और दूरी का आश्वासन. बशर्तें कि उस प्रायोजक का नाम और लेबल बन जाये अपना समूचा वजूद उसके स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा और मानदंड निर्धारित करने लगे अपनी भी प्रतिबद्धताएं पैकेज में सिमटी विज्ञापित मुद्राएं अपने ही सामर्थ्य पर प्रश्न करने लगे कहने लगे ये वैसाखियां अपने पैरों से ज्यादा विश्वसनीय है. 3 प्रायोजित जनतंत्र में शहंशाह कुछ ज्यादा ही ऊँचा सुनने लगे है अब बमुश्किल ही पहुँच पाती है उन तक दिशाओं को थर्राने वाले धमाकों की आवाज भूख और बीमारी की कराहें आत्महत्याओं की सिसकियां. हत्या, आगजनी और बलात्कार से दहलती चीखें दीवारों से ही परावर्तित हो कर लौट आती है उनकी विश्रांति और जश्नों के दौर में व्यवधान नहीं डालती. यूँ तो राजमहल के ठीक सामने टांगी गयी है घंटी किसी भी वक्त किसी भी फरियाद के लिये मगर सुना है उसे छूने से पहले ही मुस्तैद पहरियों द्वारा हाथ काट दिये जाते हैं अक्सर तो लोग वहाँ पहुँचने से पहले ही मुठभेड़ में ढेर हो जाते हैं. शहंशाह की न्याय प्रियता में कमी नहीं आती. किसी खास मौसम में निकल पड़ते हैं वे अपने कारवां के साथ झोपड़ पट्टी में बच्चों को प्यार से दुलारते नमक रोटी का स्वाद चखते सभी चैनल्स पर दिखते हैं. जमीनी हकीकत समझने राहगीरों से बात करते हैं. किसी खास अवसर पर प्रायोजित तरीके से घंटी की आवाज पहुँचती है उनके शयन कक्ष में फरियाद पहुँचती है उन तक और शहंशाह को बेचैन बदहवास गुस्से में तो कभी नम आंखों के साथ देखा जाता है. गरजते हैं दरबारियों पर मंत्रियों पर आदेशों की गर्जना करते हैं माफी मांगते मुआवजे की घोषणा करते हैं त्वरित न्याय का आश्वासन देते जाँच कमेटी बैठाते हैं. शहंशाह के मुकुट में कुछ और नये रत्न जगमगाते हैं. अब काफी लंबे वक्त चलने वाला खामोशी का दौर आरम्भ हो चुका है. --- |
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