Monday 19 December 2011

भ्रष्टाचारं उवाच!


जी हाँ मैँ भ्रष्टाचार हूँ

मैँ आज हर जगह छाया हूँ
मैँ बहुत खुश हूँ
और होऊँ भी क्योँ न..
ये दिन मैने ऐसे ही नहीँ देखा
मुझे वो दिन आज भी याद है जब
मैने अपने सफेद होते बालोँ पर
लालच की डाई और कपड़ोँ पर ईंर्ष्या का परफ्यूम लगाया
बातोँ मेँ झूठ और व्यवहार मेँ
चापलूसी के कंकर मिलाए
फार्मूला हिट रहा..
लोग मेरे दीवाने हो गए
मैने सच्चाई के हाथ से
समय की प्लेट छीनकर
बरबादी की पार्टी मेँ
अपनी जीत का जश्न मनाया,
मेरी इस जीत मेँ तुम्हारी
नैतिक कमजोरी का बड़ा योगदान रहा
तुम एक दूसरे पर
बेईमानी का कीचड़ उछालते रहे
और मैँ कब घर कर गया
तुम्हारे अन्दर
तुम्हे पता भी न चला
मैने ही तुम्हे चालाकी और मक्कारी का पाठ पढ़ाया
सुस्त सरकार के हर विभाग
मेँ
फर्जीवाड़े संग घूसखोरी का रंगरोगन करवाया
घोटालोँ पर घोटालोँ का टानिक पीने के बाद
मैँ यानी भ्रष्टाचार
अपने पैरोँ पर खड़ा हो पाया.
इस अंधी दौड़ मेँ
कुछ अंधे हैँ
दो-चार काने हैँ
जो खुली आँख वालोँ को
लंगड़ी मार रहे हैँ
खुद जीत का मेडल पाने की लालसा मेँ
अंधोँ को गलत रास्ता दिखा रहेँ हैँ
सब सिस्टम की दुहाई है
ऊपर से नीचे तक समाई है
मेरी माँग का ग्राफ
इधर हाई है
और हो भी क्योँ न
ये गलाकाट प्रतियोगिता
आखिर मैने ही आयोजित करवाई है
मैँ बदनीयती की
रोटी संग मिलने वाला
फ्री का अचार हूँ
पावर और पैसा मेरे हथियार हैँ
मैँ अमीरोँ की लाठी
और गरीबोँ पर पड़ने वाली मार हूँ.
तुम सबको
खोखला कर दिया है मैँने
जी रहे हो तुम सब
जीने के मुगालते मेँ
सत्य के प्रकाश पर
छा जाने वाली
तुम्हारे अंदर की
काली परछाई हूँ
आज के युग मेँ मै
सदाबहार हूँ
जी हाँ,
मैँ भ्रष्टाचार हूँ...!
-राहुल देव


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