Sunday 10 April 2016

तीन कवि : तीन कविताएँ – 21


अपना ही देश / मदन कश्यप 


हमारे पास नहीं है कोई पटकथा
हम खाली हाथ ही नहीं
लगभग खाली दिमाग आए हैं मंच पर
विचार इस तरह तिरोहित है
कि उसके होने का एहसास तक नहीं है
बस सपने हैं जो हैं
मगर उनकी भी कोई भाषा नहीं है
कुछ रंग हैं पर इतने गड्डमड्ड
कि पहचानना असंभव
वैसे हमारी आत्मा के तहखाने में हैं कुछ शब्द
पर खो चुकी हैं उनकी ध्वनियाँ
निराशा का एक शांत समुंदर हमारी आँखों में है
और जो कभी आशा की लहरें उठती हैं उसमें
तो आप हिंसा-हिंसा कह कर चिल्लाने लगते हैं
माफ कीजिएगा
हम किसी और से नहीं
केवल अपनी हताशा से लड़ रहे हैं
आप इसी को देशद्रोह बता रहे हैं
हम हिंस्र पशु नहीं हैं
पर बिजूके भी नहीं हैं
हम चुपचाप संग्रहालय में नहीं जाना चाहते
हालाँकि हमारे लेखे आपकी यह दुनिया
किसी अजायबघर से कम नहीं है
हम कमजोर भाषा मगर मजबूत सपनोंवाले आदमी हैं
खुद को कस्तूरी मृग मानने से इनकार करते हैं
आप जो भाषा को खाते रहे
हमारे सपनों को खाना चाहते हैं
आप जो विचार को मारते रहे
हमारी संस्कृति को मारना चाहते हैं
आप जो काल को चबाते रहे
हमारे भविष्य को गटकना चाहते हैं
आप जो सभ्यता को रौंदते रहे
हमारी अस्मिता को मिटाना चाहते हैं
आप बेहद हड़बड़ी में हैं
पर हमारे संघर्षों का इतिहास हजारों साल पुराना है
आप बहुत बोल चुके हैं हमारे बारे में
इतना ज्यादा कि अब आप को
हमारा बोलना तक गवारा नहीं है
फिर भी हम बताना चाहते हैं
कि आप जो कर रहे हैं
वह कोई युद्ध नहीं केवल हत्या है
हम हत्यारों को योद्धा नहीं कह सकते
ये बॉक्साइट के पहाड़ नहीं हमारे पुरखे हैं
आप इन्हें सेंधा नमक-सा चाटना बंद कीजिए
यह लाल लोहामाटी हमारी माता है
आप बेसन के लड्डू-सा इन्हें भकोसना बंद कीजिए
ये नदियाँ हमारी बहनें हैं
इन्हें इंग्लिश बियर की तरह गटकना बंद कीजिए
उधर देखिए
बलुआई ढलानों पर काँटों के जंजाल के बीच
बौंखती वह अनाथ लड़की
जनुम१ हटा-हटा कर कब्र देखना चाह रही है
कहीं उसकी माँ तो दफ्न नहीं है वहाँ
वह बार-बार कोशिश कर रही है हड़सारी२ हटाने की
जिसके नीचे पिता की लाश ही नहीं
उसकी अपनी जिंदगी भी दबी हुई है
आपके सिपाहियों के डर से
शेरनी की माँद तक में छिप जाती हैं लड़कियाँ
हमें शांत छोड़ दीजिए अपने जंगल में
हम हरियाली चाहते हैं आग की लपटें नहीं
हम मादल की आवाज सुनना चाहते हैं
गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं
न पर्वतों पर खाउड़ी३ है
न ही नदी किनारे बड़ोवा४
अगली बरसात में
फूस का छन्ना बन जाएँगे हमारे घर
हमें अपना अन्न उगाने दीजिए
अपना छप्पड़ छाने दीजिए
भला आप क्यों बनाना चाहते हैं यहाँ मिलिटरी छावनी
यहाँ तो चारों तरफ अपना ही देश है
देखिए आसमान से बरसने लगी हैं
कोदो के भात जैसी बूँदें
अब तो बंद कीजिए गोलियाँ बरसाना!
(2011)
टिप्पणी
1. जनुम - काँटों का जाल
2. हड़सारी - कब्र पर रखा पत्थर
3. खाउड़ी - लंबी जंगली घासें जो छप्पर छाने के काम
4. बड़ोवा - लंबी जंगली घासें। ये भी छप्पर छाने के काम आती हैं।

पेनड्राइव समय / सन्तोष कुमार चतुर्वेदी

चौदह बरस के किशोर ने एक दिन
उमर में तीन गुने बड़े अपने चाचा से पूछा
क्या होता है पेनड्राइव
रोज रंग बदलती दुनिया में
एक पेचीदा सवाल था उनके लिए यह
इसलिए समाधान के लिए अपने विश्वसनीय
यानी मेरे पास आए वे निःसंकोच

शब्दकोश में इकट्ठा नहीं मिला कहीं यह शब्द
अगर कुछ झलक दिखी
तो टुकडे़-टुकड़े में
कहीं पर 'पेन' तो कहीं पर 'ड्राइव'
और इन अंग्रेजी शब्दों का तर्जुमा
अगर हमारी हिंदी में किया जाय
तो अलग-अलग हिज्जे
और रेघा कर बोलने वाली आदत की वजह से
लगभग एक जैसे उच्चारण वाले 'पेन' के
मोटे तौर पर दो अर्थ निकलते हैं
एक जगह यह कलम
तो दूसरी जगह यह दर्द हो जाता है

अपने परंपरागत एकल अभिप्राय के साथ
'
ड्राइव' दिखाई पड़ रहा था
अपने समय को हाँकते हुए
अध्यायों की दूरियाँ
कुछ कम करते हुए

कलम का दर्द से रिश्ता है क्या कोई
जब यह पूछा मैंने बाबा बाल्मीकि से
तो बाबा ने तसदीक की यह बात कि
आहत क्रौंच की व्याकुलता
एक दिन फूट पड़ी बरबस ही उनके भावों में
जिसे अब कुछ लोग 'आदि छंद' बताते हैं
और हमारे ही एक निकट संबंधी
क्या नाम है उनका ?
(
उफ! अभी से ही स्मृतिभ्रंष होता जा रहा क्यों इस कदर)
जिनकी गोद में पला-बढ़ा
भूलता जा रहा हूँ उनका ही नाम
हाँ याद आया - सुमित्रा नंदन पंत
जो न जाने किस बात से व्यथित हो कर
बुदबुदा रहे थे एक दिन
लगातार यह छंद
'
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान'
और जब मैंने अपने अबोधपने में पूछा उनसे
इन पंक्तियों का मतलब
तो पहले तो टालमटोल करते रहे
फिर मेरे बालसुलभ जिद पर बताया उन्होंने कि
जिस दिन थामोगे कलम
उसी दिन समझ पाओगे
सही-सही मतलब मेरी पंक्ति का
जिंदगी किसी बनी-बनाई लीक पर नहीं चलती
मगर तमाम अवरोधों से गुजर कर
तमाम राहों पर भटक कर भी
गुँथ जाती है जैसे सहज ही किसी कविता में
बहक जाता हूँ मैं भी अक्सर बातों के प्रवाह में
सही करने की सनक में करता जाता हूँ गलतियाँ
अब यहीं पर देखिए इसका उदाहरण
कि पेनड्राइव की गली से भटकते-बहकते
कहाँ से कहाँ पहुँच गया मैं
बहरहाल आते हैं अपनी बातों पर
जैसाकि अक्सर होता है
दो अलग-अलग शब्द जब भी मिलते हैं एक जगह
सुनाने लगते हैं अपनी-अपनी एक-दूसरे को
लिपट जाते हैं भावावेश में परस्पर इस तरह कि
अलग-अलग अभिप्राय वाले उनके अर्थ
खो जाते हैं अतल गहराइयों में कहीं
और उभर आता है क्षितिज पर
एक नया नवेला अर्थ
निकाल लाता है जो अपने लिए
एक निहायत ही ठेठ मतलब
अनुभव की इसी पुरानी दुनिया
शब्द के इसी अनुभवी जमीन से

तकनीकी शब्दकोश में भी
मिल पाने की कोई संभावना नहीं
क्योंकि बिल्कुल टटका था यह शब्द
अभी तो इसका अँखफोर भी नहीं हुआ था
और नाजुक इतना कि
ज्यादा छूने-छाने पर
गिधरोई होने का खतरा था
इसी वजह से नहीं रखा जा सकता था इसे
तुरत-फुरत ही
दुनिया के किसी शब्दकोश में

और 'इनसाइक्लोपीडिया'
जो सनक की हद तक जा कर
बटोरता फिरता था तमाम तरह के शब्दों
और तमाम तरह की जानकारियों को
जगह-जगह से चुन कर
दूर-बहुत दूर निकल गया था कहीं
शब्दों और शब्दों के हरसंभव
अर्थ को जानने की तलाश में

सारी उपलब्धियाँ हासिल करने के बाद भी
कहने के लिए विवश था
इसी दुनिया का एक मशहूर वैज्ञानिक यह बात कि
वह तो एक कदम भी नहीं रख पाया समुंदर में
किनारे के शंख-सीपियों ने लुभाया कुछ ऐसा कि
उन्हें ही बटोरने के फेर में रह गया जीवन भर
तो विद्वानों की लंबी फेहरिस्त वाले इस शहर में
अदना से कवि की भला क्या बिसात
अक्षर और शब्द की दुनिया में ही
हरदम खोया रहने वाला
कहाँ से जान पाता
'
पेनड्राइव' के बारे में

चूँकि मैं भी अनजान था पेनड्राइव से
इसीलिए बदलता रहा लगातार पैंतरा
बहकता-भरमता रहा इधर-उधर
बहरहाल बताया मैंने अपने एक विशेषज्ञ मित्र से
जब अपनी परेशानी कि
क्या होता है 'पेनड्राइव'
तो सहज तरीके से बताया उसने कि
बिल्कुल नई-नवेली तकनीक है यह
अँगुली के पोर बराबर का यंत्र
जिसे रखा जा सकता है
फ्लापी और सी.डी. की वंश-परंपरा में
और एक हद तक माना जा सकता है इसे
कंप्यूटर का ही एक संबंधी

अपनी बात विस्तार से समझाते हुए बताया उसने कि
समाहित हो सकती है इसमें
सैकड़ों गायकों के जीवन भर की तपस्या
छिपा सकता है जो आसानी से
हजारों लेखकों के उम्र भर का लेखन
अपनी खामोशी में चित्रित रख सकता है जो
तमाम चित्रकारों का चित्रमय जीवन

हिफाजत से रख सकता है यह
सफेदपोशों की सारी कारगुजारियाँ
जिसमें हत्यारे बेफिक्र होकर
चिह्नित कर सकते हैं वे सारे नाम
जिनकी मौत का खाका
खींचा गया होता है वहाँ कूटशब्दों में
जो ऐरी-गैरी सारी जानकारियाँ
इकट्ठा रख सकता है अपने पेट में
कुछ इस तरह कि
डकार भी न आए

डकार की बात पर याद आई यह परेशानी कि
तमाम संसाधनों, नई तकनीकों
और इलाज के नए तरीकों के बावजूद
आजकल नहीं मिट पा रही मेरी भूख
ऐसा लगता है कि बदल गया हूँ मैं
अपने ही मुल्क के उन एक-तिहाई लोगों की शक्ल में
जिन्हें मय्यसर नहीं होता
दूसरे वक्त का खाना
अपनी फाकाकशी में फिर भी
दोहराते चलते हैं जो इन पंक्तियों को सहज ही
'
आज खाइ काल्ह को झक्खै
ताकौ गोरख संग न रक्खै'

यह इत्तफाक नहीं था कि ठीक इसी समय
दुनिया के एक बड़े और लोकतांत्रिक देश का
साढ़े तीन हाथ कद वाला मगरूर राष्ट्रपति
दुनिया में अनाज की बढ़ती कीमतों का ठीकरा
हमारे पड़ोसी और हमारे ऊपर
बेशर्मी से फोड़ रहा था
जबकि एक सर्वेक्षण में इसी समय
उजागर हुई थी यह बात कि
उसी राष्ट्रपति के राष्ट्र-राज में
लोग हर रोज फेंक देते हैं
तकरीबन तीस करोड़ लोगों के एक वक्त का खाना
और वह मगरूर राष्ट्रपति
अपने गले में माला की तरह
लटका कर चलता है पेनड्राइव

ठीक इसी समय
हाँ बिल्कुल इसी समय
हमारे देश के बदहाल किसान
रोज-ब-रोज लटक जा रहे हैं
मौत के फंदे से
खुद पेनड्राइव बनकर
और तमाम विशेषज्ञ-देशी, विदेशी
जुटे हैं अभी भी इस गुत्थी का खुलासा करने में
कि किस तरह 'पेनड्राइव' में तब्दील होते जा रहे हैं रोज-ब-रोज
हमारे देश के किसान

माफ करिएगा
अपनी तो आदत बन गई है कुछ इस तरह की
कि घर से सुबह ही निकलता हूँ अखबार पढ़ने
और पड़ जाता हूँ नून-लकड़ी के चक्कर में
नजरें बचा कर चलने के बावजूद
किसी न किसी तरह पकड़ ही लेता है धवलकेशी कर्जदार
तगादा करता है वह रोज की तरह
कर्ज चुकता करो
कर्ज चुकता करो
बेबाक करो मेरा खाता
फिर वह जबरन निकाल लेता है
मेरी जेब के पैसे सूद के एवज में
और प्रतिरोध के लिए सोचता हूँ जिस क्षण
अदृश्य हो जाता है तभी वह
किसी मायावी की तरह

इन्हीं घटनाक्रमों के अंतराल में
आ धमकता है चमकता-चहकता सूर्य
ठीक बीच आसमान में
और अपने कुर्ते की बाँह से
चेहरे और गर्दन के पसीने पोंछता लौट आता हूँ घर
बिल्कुल खाली हाथ
कहता हूँ बीवी से सुनो
आज पढ़ा है मैने अखबार में
'
काली चाय' फायदेमंद होती है सेहत के लिए
और जहाँ तक बच्चों की बात है
माड़ से ज्यादा पौष्टिक
भला और क्या हो सकता है दुनिया में उनके लिए

पूरा घर कुछ नहीं कहता
एक अजीब सा सन्नाटा पसरता जा रहा है चारों ओर
हर दिशा घिरती चली जा रही है धुंध से
सिमटती जा रही है देखने की क्षमता

कहीं से प्रतिरोध का कोई स्वर
फूटता नहीं दिखाई पड़ता
लगता है कि मैं
गुनहगार हूँ अपने ही बीवी-बच्चों का
उनसे नजरें नहीं मिला पाता मैं
हालाँकि जानते-बूझते हैं वे बखूबी मेरी सारी बातें
मेरी हर चतुराइयाँ
कुछ न बोलकर वे सब कुछ कह डालते हैं
व्यक्त कर देते हैं मेरे सामने अपना 'मौन विरोध'
जिसे हम प्रायः 'मौन स्वीकृति' मान लेने का ढोंग
रच लेते हैं

देखिए! फिर वही गड़बड़ी
माफ करिएगा पुनः एक बार
पड़ गई है खराब आदत
कहना - बताना चाहता था आपसे कुछ
और बहक गया नून-लकड़ी के चक्कर में

कविता सुनते-सुनते
कहीं ऊब तो नहीं गए
ऐसी बात है तो रुकिए
मनबहलाव के लिए
कुछ विज्ञापनों का इंतजाम करता हूँ
और फिर ब्रेक के बाद नए अंदाज में
आपके सामने पेश होगी कविता
लेकिन यह तो भूल ही गया कि
कवि अच्छी कविता तो लिख सकता है
मगर एक विज्ञापन जुटा पाना
कवि के बस की बात नहीं
और विज्ञापन में तो
कत्तई तब्दील नहीं हो सकता कवि
वह तो 'प्रोफेशनल्स' के बस की ही बात है
जिनकी जेबों में भरा होता है - 'पेनड्राइव'

बातचीत के क्रम में न चाहते हुए भी
एक बार फिर बहक गया मैं
विचारों के हिलोर में
मुझे लगा ऐसा कि
वैसे भी उदरस्थ किया है पेनड्राइव ने
पहले भी बहुत कुछ
नेस्तनाबूद होते गए
न जाने कितनी पत्तियों, फूलों और फलों वाले पेड़
न जाने किस दिशा में खोती गई
पक्षियों की सुरमयी अनुगूँज
तरह-तरह की युक्तियों से
एक-एक तिनका जुटा कर
घोंसला बनाने का उपक्रम
तिरोहित होता गया धीरे-धीरे वह कोलाज
जिसे जितनी बार देखा
उतनी बार सूझा एक नया बिंब
उतनी बार दिखा एक नया अर्थ
अंत की घोषणा में दिलचस्पी रखने वाले
महत्वाकांक्षी लोगों की कहीं यह साजिश तो नहीं
कविता को खत्म करने की
क्योंकि हमने और हमारे पुरखों ने
लिखीं तमाम कविताएँ इन दरख्तों के तले ही
न जाने कितने कवियों की कविताओं का पाठ हुआ यहीं
और दुनिया की अधिकतर
कहानी-कविताओं की तो
बात ही पूरी नहीं होती थी
दरख्तों, फूलों और पक्षियों बिना

किसी के आबाद होने के पीछे
छुपी होती हैं कितनी बरबादियाँ
यह सवाल ही नहीं उठा कभी
सत्ता के दिलो-दिमाग में
और कभी किसी ने अगर हिमाकत की इस तरह की
तो प्रश्नाकुल आवाजों को
नक्कारखाने वाली तूती की आवाज में
बखूबी बदल देते थे सत्ताधीश

क्यों कि हर आवाज एक संभावना होती है
और हर आवाज का
कोई न कोई मायने हुआ करता है
इसलिए आवाज ही निशाने पर होती है शिकारियों के
लेकिन आवाज का क्या ठिकाना
किस पल बदल ले अपना रूप
किस पल बदल ले अपना रंग
और समय तालियों के साथ करने लगे उसका स्वागत
बहरहाल जब हम उलझे हुए थे
बातों-विचारों और आवाजों की दुनिया में
ठीक उसी समय अपनी आवाज के साथ
कविता में पैठ बनाई पेनड्राइव ने

हमारे बहकाव में हस्तक्षेप किया जब मित्र ने
तो झेंपते हुए पूछा मैंने
क्या कीमत होगी पेनड्राइव की
'
हजार रुपये मात्र'
बताया उसने बिना किसी लाग-लपेट के
मैंने आदतन हिसाब लगाया
एक परिवार का पंद्रह दिनों का खाना-पीना
एक मजदूर के बीस दिनों की मजदूरी
एक बच्चे की पढ़ाई की साल भर की फीस
गुल्लकों में पेट काट-काट कर
जतन से बटोरी गई रेजगारी

माना कि अपने समय की बेहतरीन तकनीक का नमूना है पेनड्राइव
कई परिष्कृत सोचों का नायाब उदाहरण है यह
और जहाँ तक जरूरत की बात है
दूसरे तकनीकी खोजों की तरह ही
शामिल हो जाएगा यह भी
एक दिन हमारी दिनचर्या में
चुपके से इस तरह कि
हमें आभास तक नहीं हो पाएगा इसकी महिमा का
मगर जिस तरह हमें अपनी धरती से जोड़े रखने में
भूमिका निभाता आया है
परदे के पीछे रह कर काम करने वाला गुरुत्व
जिस तरह ओझल रहते हुए भी
मौजूद होता है बिंदु के समान ही सही
कहीं न कहीं एक केंद्र
अपनी गोलाई के बीच घिरा हुआ खामोश
ठीक वैसे ही पेनड्राइव की रौनक के पीछे
जुड़ी है कहीं न कहीं
हमारी तमाम भूखी-प्यासी रातें
इस एक सफलता में ढक गई हैं
हमारी हजार असफलताएँ चुप्पी साध कर

विचार के किन गलियारों से होते हुए
पहुँचा है इस मुकाम तक
किन हाथों ने ढाला है इसे पारस-पत्थर की शक्ल में
किस गीतकार ने बनाई है यह सरगम अद्भुत सी
इन सब के बारे में तो अब
पेनड्राइव को भी कुछ याद नहीं रहा
बहरहाल अपने अजीब से समय का
मुहावरा बनने की तैयारी में
जोर-शोर से जुटा है पेनड्राइव

इस अजीब से समय में
दुख के तमाम धागों के बीच
उलझ कर रह गया है
सुख का आभास देने वाला
एक महीन सा धागा
जो पूरी बुनावट में एक अजीब सी डिजाइन बना रहा है
इसे देखते ही पतिंगों सा डिग जाता है मन
मोल-तोल करने लगता हूँ मैं मोहाविष्ट होकर
फिर बदहाली के बावजूद खरीद लेता हूँ
टूटे हुए एक दाम पर
खुश होकर लाता हूँ चादर घर पर
जिसे कभी रख दिया था कबीर ने जस का तस
आतुर होकर दिखाता हूँ
घर वालों को
पड़ोसियों को
परिचितों को
कितनी सुंदर-सी डिजाइन
लेकिन यह क्या
कहीं पता नहीं चल पा रहा डिजाइन का
घर तक आते ही उड़ गया रंग
मद्धिम पड़ गई चमक चादर की
क्या बुनावट में भी होती है बनावट
सहज ही कौंध जाता है यह सवाल

नायाब तकनीक वाले पेनड्राइव समय में भी
दुख के धागे एक-एक कर
चिपकने लगे चेहरे पर
सब हैरान-परेशान कुछ अचंभित-विस्मित
इसी समय पीठ पर धौल जमाते हुए बोला मेरा मित्र
जानते नहीं 'यूज एंड थ्रो' का जमाना है यह
और जिस भरोसे की रट लगाए रखते हो तुम
वह बीते जमाने की टर्मिनोलॉजी है
अब पेनड्राइव को ही लो
होता यह है कि जिस समय हमें जरूरत होती है
किसी अहम जानकारी की
दगा दे जाता है कमांड
खुलने से मना कर देता है पेनड्राइव
अनसुना कर देता है सारा मान-मनुहार
क्योंकि उसकी मर्जी इस समय आराम फरमाने की है
और हम कुछ नहीं कर पाते
हाथ मलने के सिवाय

काम न करने के अपने फैसले पर
जब अड़ा हुआ था पेनड्राइव
उस वक्त भी बिना थके बिना थमे
दुनिया की तमाम जगहों की
तरह-तरह की घड़ियों में
टिक-टिक की अपनी जानी-पहचानी पदचाप के साथ
अलमस्त चाल में अपनी राह
चलता चला जा रहा था समय
रेलवे की घड़ी में भी वही समय
जगाए हुए था अपनी अलख
जहाँ बारह के बाद तेरह का घंटा बजता है
और यह सिलसिला
फिर तेईस तक लगातार चलता है
हमारी घड़ी बारह बजाने के बाद
फिर एक पर अटक जाती है
चाहे जितनी मशक्कत कर ली जाए
वह नहीं बजा पाती
तेरह..., पंद्रह..., इक्कीस या तेईस
कोई समझाता है इसके लिए एक सहज युक्ति
जब दिन के एक बजे उसे तेरह मानो
जब तीन बजे तब उसे पंद्रह समझो
यह क्या गोलमाल है
झल्लाहट में कहता हूँ मैं
भलेमानुष! एक को एक की पहचान के साथ
तीन को तीन की शान के साथ
क्यों नहीं जीने देते

क्यों खिलवाड़ कर रहे हो
तीन..., पाँच..., सात... के वजूद से
जीने भी नहीं देते इनको चैन से
और एक भला कैसे बदल सकता है तेरह में
तीन कैसे ढल सकता है पंद्रह में
मेरी समझ से परे है यह गणित

लोग कहते हैं कि कवियों की गणित कमजोर होती है प्रायः
और आज के पेनड्राइव समय में
गणित और तिकड़म पर पूरा कब्जा है राजनीति का
तभी तो अबूझ लगते समीकरण
हल हो जाते हैं यहाँ पलक झपकते
तभी तो धरी की धरी रह जाती है सारी गणनाएँ
और जोड़-तोड़ वाला निकाल लेता है
किसी न किसी तरह मनमाफिक उत्तर

इसी समय समाधान की तलाश में पास आए
अपने जरूरतमंद मित्र को बताया मैंने
पेनड्राइव के बारे में
और उसने बताया उमर में तीन गुने छोटे
अपने भतीजे को यह सब जब
व्यंग्य से मुसकुराया वह यह कहते हुए
चचा जान! इतना परेशान होने की
भला क्या जरूरत थी आपको
मैंने तो आपका इम्तहान लेने के लिए
पूछा था यह सवाल
जिसका जवाब मुझे
पहले से ही मालूम है।

तानाशाह / कुमार अनुपम 


इस बार आया

तो पूछा उसने

कि कौन बनेगा करोड़पति

फिर दस सरलतम सवाल पूछे

उदाहरणार्थ एक सवाल तो यही

कि तिरंगे में कितने रंग होते हैं

पूछते हुए इसकी वाणी से इतना परोपकार टपक रहा था

कि हमें हर हाल में जीतने की मोहलत दी उसने

और सही जवाब पर

हमारी पीठ ठोंकी

बढ़कर हाथ मिलाया और कुशलतम बुद्धि की

तारीफ की दिल खोलकर

फिर भला किसकी मजाल

कि पूछे उससे

कि लेकिन तुम क्या मूर्ख हो अव्वल

जो इतने सरलतम सवालों पर

दिए दे रहे हो करोड़ों

यहाँ तक कि संदेह भी नहीं हुआ तनिक

उसकी किसी चतुर चाल पर

हमारी अचानक अमीरी की खुशी में वह इस कदर शरीक हुआ

कि नाचने तक लगा हमारे साथ साथ

बल्कि तब

अपने निम्न-मध्य रहन-सहन पर हमें लाजवाब लज्जा हुई

हम निहाल होकर उसकी सदाशयता पर सहर्ष सब कुछ हार बैठे

इस बार आया

तो अपने साथ लाया

देह-दर्शना विश्वसुंदरियों का हुजूम

वे इतनी नपी-तुली थीं कि खुद एक ब्रांडेड प्रॉडक्ट लगती थीं

उनकी हँसी और देह और अदाएँ इतनी कामुक

कि हर कीमत उनके लायक बनना हमने ठान लिया मन ही मन

तब

गृहस्थी की झुर्रियों और घरेलूपन की मामूलियत

से घिरी अपनी पत्नियों पर

हमें एक कृतघ्न घिन-सी आई

वे शुरू शुरू में किसी लाचारी और आशंका में

अत्यधिक मुलायम शब्दों में प्रार्थना करती हमारे आगे काँपती थीं थरथर

किंतु इस आपातकाल

से उबरने में उन्होंने गँवाया नहीं अधिक समय

और किसी ईर्ष्या के वशीभूत

मन ही मन

उन्होंने कुछ जोड़ा कुछ घटाया

और हम एक विचित्र रंगमहल में कूद पड़े साथ साथ

जीवन की तमाम प्राथमिकताओं और पुरखा-विश्वासों

को स्थगित करते हुए हम

अपनी आउटडेटेड परंपराओं

से निजात पाने के लिए दिखने लगे आमादा

यह मानने के बावजूद कि हमारा सारा किया-धरा

ब्रांडेड बनावट के बरक्स

बहुत फूहड़

और हमारी औकात

क्षेत्रीय फिल्मों के नायक-नायिकाओं से भी गई-गुजरी

फिर भी

एक अजब दंभ में हम

एक आभासी विश्व की पाने के लिए विश्वसनीयता

सब कुछ करने को तत्पर थे फौरन से पेशतर

हमने अपनी अस्मिता से पाया छुटकारा और जींस पैंट्स और शर्ट्स की

एकरंग आइडेंटिटी में गुम हो गए

हमने खुरच खुरच कर छुड़ा डाले

अपने मस्तिष्क से चिपके एक एक विचार

सिवा इस खयाल के कि अब

हमें सोचना ही नहीं है कुछ

कि हमारे लिए सोचनेवाला

ले चुका है इस धराधाम पर अवतार

इस बार आया

तो उसके मुखमंडल पर एक दैवीय दारुण्य था

दहशतगर्दी के खिलाफ

उसने शुरू किया विश्वव्यापी आंदोलन जिसे सब

उसी की पैदाइश मानते रहे थे

अपने पूर्व पापों के पश्चात्ताप में विगलित उसने

एक देश के ऊर्जा संसाधनों

को पूरे विश्व की पूँजी मानने

का सार्वजनीन प्रस्ताव पेश किया

विरुद्धों से भी कीं वार्ताएँ संधियाँ कीं रातोंरात

और प्राचीन सयताओं की गारे-मिट्टी से बनी रहनवारियों

को नेस्तोनाबूद कर डाला

यहाँ तक कि हाथ-पंखों और कोनों-अँतरों में छुपती लिपियों

और भाषाओं और नक्काशीदार पतली गर्दनोंवाली सुराहियों को भी

कि अगली पीढ़ियों

को मिल न सके उनका एक भी सुराग

कि उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े कतई

नए-नवेले उत्तर-आधुनिक विश्व में

उसने कितना तो ध्यान रखा हमारी भावनाओं का

इस बार आया जबकि कहीं गया ही नहीं था

वह यहीं था हमारे ही बीच

पिछले टाइप्ड तानाशाहों के किरदारों से मुक्ति की युक्ति

में इतना मशगूल

इतना अंतर्धान

कि हमें दिखता नहीं था

पूरी तैयारी के साथ आया इस बार तो उसकी कद-काठी और रंग

बहुत आम लगता था और बहुत अपना-सा

उसने

नदी में डगन डालकर धैर्य से मछलियाँ पकड़ीं

उसकी तसवीरें छपती रहीं अखबारों में लगातार

उसने तो

सोप-ऑपेरा की औचित्य-अवधारणा में चमत्कारी चेंज ही ला दिया

टीवी पर कई कई दिनों तक

उसके फुटेज दिखाए जाते रहे जब वह

हमारी ही तरह

अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने गया

और हज्जाम से गाल और गले पर

चलवाता रहा उस्तरा बिना किसी भी आशंका के

उसने कई प्रेम कर डाले और गजब तो यह

कि उसने स्वीकार भी किया सरेआम

महाभियोग झेलकर

उसने पेश किया

प्रेम के प्रति ईमानदार समर्पण का नायाब नमूना

और सबका दिल ही जीत लिया

धीरे धीरे

वह ऐसा सेलिब्रिटी दिखने लगा

कि छा गया पूरे ग्लोब पर अपनी मुस्कुराहट के साथ

राष्ट्रों का सबसे बड़ा संघ घबराकर अंततः

तय करने लगा अपने कार्यक्रम उसके मन-मुताबिक

तमाम धर्म राजनीति साहित्य दर्शन वगैरह

उसकी शैली से प्रभावित दिखने लगे बेतरह

इस तरह तमाम कारनामों के बावजूद

वह इतना शांत और शालीन दिखता था

कि उसकी इसी एक अदा पर रीझकर

दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित शांति पुरस्कार

के लिए उसका नाम

सर्वसम्मति से निर्विरोध चुन लिया गया

अब सिरफिरों का क्या किया जाए

सिरफिरे तो सिरफिरे

जाने किस सिरफिरे ने फेंककर मार दिया उसे जूता

जो खेत की मिट्टी से बुरी तरह लिथड़ा हुआ था

और जिससे

नकार भरे कदमों की एक प्राचीन गंध आती थी।

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