Monday 4 January 2016

अरविन्द कुमार खेड़े का व्यंग्य

‘‘आओ, देवत्व धारण करें’’
.......................................

अपनी-अपनी श्रद्धा, भक्ति, विश्वास और आस्था के अनुसार सभी देवी देवता पूजनीय हैं, सभी आराध्य हैं । समत्व की इस भावना में किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं है । कोई मतभेद नहीं है ।

सोचता हूं, इंसान के मन में इस प्रकार की दुविधा उत्पन्न नहीं हुई होगी कि कौन देवता बड़ा है ? कौन देवता श्रेष्ठ है ? किस देवी-देवता में आस्था रखनी चाहिए ? हो सकता है, इंसानों के पहले इस प्रकार का विचार देवी-देवताओं के मन में आया होगा ? देवताओं को भी यह दुविधा आयी होगी कि, हम करोड़ों में । इंसान किसे पूजे ? किसे न पूजे ? सभी देवी-देवताओं को एक साथ तो नहीं पूजा जा सकता ? इंसान का कोई एक देवी-देवता ही आराध्य हो सकता है ? फिर किसी एक देवी-देवता को पूजा जाए तो दूसरे देवी-देवता नाराज हो जायेगे ? रूष्ट हो जायेगे । और यदि इंसान की श्रद्धा भक्ति और विश्वास से प्रसन्न होकर आराध्य देवी-देवता ने दूधो नहाओ पूतो फलो, खुश रहो, अमर रहो, नेति-नेति तरह के प्रचलित आशीर्वाद दे दिये तो दूसरा देवता अपने को न पूजे जाने पर कुपित होकर श्राप देना चाहे तो यह कैसे संभव होगा ? इससे तो देवी-देवताओं में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी । और इस वैमनस्यता के कारण भक्तों में गलत संदेश जायेगा । तब भला इंसान क्या सोचेगें ? देखा, ये तो इंसानों से भी गये-गुजरे निकले ?

ऐसा विचार आते ही देवी-देवता कांप गये होगें । एक साथ बैठकर मंत्रणा की होगी । और इस प्रकार समाधान निकाला कि, अब चूंकि हम हैं तो करोड़ों में । हमें अपनी लुटिया बचानी है तो हमें एक-दूसरों की बड़ाई करनी होगी, परस्पर मान-सम्मान करना होगा, एक-दूसरे को श्रेष्ठ बताना होगा । एक-दूसरे को महान बनाना होगा । नही तो हम अपना अस्तित्व नहीं बचा पायेगें ।

कहना न होगा कि, देवी-देवताओं की यह मंत्रणा कामयाब हुई । क हमेशा ख की बड़ाई करता, ख हमेशा ग की बड़ाई करता, ग हमेशा......। नतीजा यह हुआ कि, कोई भी देवी-देवता कमतर साबित न हुआ । एक-दूसरे की बड़ाई ने, परस्पर मान-सम्मान ने उन्हें श्रेष्ठ बनाया, महान बनाया । देवताओं की यह देवत्व की भावना आज भी कायम है । जो एक ही भावना और सहअस्तित्व की धारण को लेकर काम कर रहे हो उनका आपस में विरोध कैसा ?

थोड़ा और गहराई से अध्यनन करे तो ज्ञात होगा कि, एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम नीचता की श्रेणी में आता है । इसलिए किसी को नीचा दिखाकर स्वयं को श्रेष्ठ साबित नहीं किया जा सकता । खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए दूसरों को श्रेष्ठ बताना होगा । अर्थात दूसरों की श्रेष्ठता बताने में खुद की श्रेष्ठता स्वतः ही सिद्ध हो जाती है, किसी प्रमाण की आवश्यकता नही पड़ती है ।

भूखा, प्यासा, बदहाल आदमी अपनी श्रेष्ठता के बारे में तब सोचे जब उसके पास अदद जिदंगी हो । उसकी जिदंगी का मूल्य हो । उसकी जिंदगी का तो मोल-भाव होता है । उसकी सारी सोच तो दाल, रोटी और पानी तक आते-आते ही खत्म हो जाती है । शाम को या रात में उसका चूल्हा भी चलता है तो, कुछ पकाने के लिए नहीं भाई, अंधेरा दूर करने के लिए । दिन में अंधेरा किसे दिखता है ? इससे उपर उठे तो सोच आगे बढ़े ।

चूंकि देवता खास थे, आम नहीं । इसलिए देवत्व की यह भावना भी आम नहीं, खास लोगों में ही पायी जाती है । यानी देवत्व की भावना का फायदा खास लोगों को ही मिलता है ।

देखिये इस श्रेष्ठता की एक बानगी । जनता को एक बहुत बड़ी सौगात लाकार्पित करने का अवसर था । मंच पर  वर्तममान श्रेत्रीय, जनपदीय आदि-आदि सहित क्षैत्र के वरिष्ठ प्रतिनिधि जो कि  अब भूतपूर्व जीवी हैं, भी सम्मान विराजित थे । उन्हें उद्बोधन का मौका मिला था । उन्होंने वर्तमान श्रेत्रीय प्रतिनिधि की जमकर तारीफ करते हुए इस सौगात का श्रेय उन्हें दिया । साथ ही यह भी कहा कि, अब तक क्षैत्र में जितने भी विकास हुए हैं, उनके प्रणेता वे ही है । और उम्मीद जताई थी कि, क्षैत्र के चहुंमुखी विकास इनके भागीरथी प्रयासों से ही संभव होगा । पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।

फिर वर्तमान प्रतिनिधि को आमंत्रित किया गया । उन्होंने भूतपूर्व द्वारा बखान किये गये उद्बोधन हृदय से सरमाथे पर लगता हुए उनकी ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इस अवसर मुझे एक भजन याद आ रहा है । उसकी दो पक्तिंया आपको सुनाने का मन कर रहा है । और उन्होंने पहली ही सुनाई थी कि, पूरा पांडाल फिर तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा, ‘‘करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है...........।’’

उन्होंने अपना देवत्व धारण कर एक ही पलटवार में चारों खाने चित भी कर दिया, और वाहवाही भी बटोर ली । निःसंदेह देवत्व की यह भावना इंसान को महान बनाती है । और युगों तक जिंदा रखती है । धारण करके तो देखिये ।

--
अरविन्द कुमार खेड़े  
जन्म- 27 अगस्त सन 1973
शिक्षा-परा स्नातक
सम्प्रति- मध्य प्रदेश शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत प्रशासनिक अधिकारी,
प्रकाशन- भूतपूर्व का भूत-व्यंग्य संग्रह-अयन प्रकाशन नई दिल्ली 2015, पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं/ ब्लाग्स आदि में कविताएं/व्यंग्य/लघुकथाएं प्रकाशित । तीन साझा काव्य संकलनों में कविताएं प्रकाशित । हिन्दी समय डाट काम एवं कविताकोश डाट काम में कविताएं/ व्यंग्य सम्मिलित हैं । 
संपर्क- 203,सरस्वती नगर, गार्डन के सामनेधार, जिला-धार, मध्य प्रदेश - 454001
मोबाईल नंबर- 09926527654
ईमेल- arvind.khede@gmail.com

1 comment:

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...