दीक्षा-मंत्र नियमों के नियामक सिद्धान्तों के रक्षक आमजन हितैषी अर्थात् देश में परदेशी, नये-नये आला अफसर को तब लगा जोर का झटका, जब पी.ए.ने एक माह बाद ही ट्रांसफर-फैक्स टेबल पर लाकर पटका। साहब हैरान, परेशान! मन ही मन बोले- ‘‘वाह रे भगवान! ईमानदारी का यह इनाम...?’’ तभी अनुभवी बूढ़े पी.ए.ने गुरूमंत्र कान में फूंका- ‘‘साहब गाँधीगिरी को छोड़कर फ्रेम-पेटर्न को समझो, आपकी ईमानदारी का फोटो बेईमान तंत्र के फ्रेम में नहीं आ रहा है, फ्रेम में फिट करने के लिए आपको राजधानी भिजवाया जा रहा है। होली-दीवाली तीज-त्यौहार राजनैतिक तांत्रिकों के चरण दबाओगे, तो कुएं में भांग घोलने का मंत्र स्वतः सीख जाओगे...?’’ नेक सलाह थानेदार जी ने चोर को डाँटा, सीधी अँगुली से घी नहीं निकला तो मार दिया चाँटा। गालियों की बरसात करते हुए चीखे- ‘‘अबे, उल्लू के पट्ठे ! तूने थाने के सामने ही चोरी क्यों की थी ?’’ चोर सुबकते हुए बोला- ‘‘सच्ची-सच्ची बताऊँ सर ! यह नेक सलाह मुझे एक पुलिस वाले ने ही दी थी ...?’’
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Tuesday 6 May 2014
हलीम ‘आईना’ की 2 व्यंग्य कविताएँ
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गाँधी होने का अर्थ
गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...
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रघुवीर सहाय की रचनाओं में बीसवीं शताब्दी का भारतीय समाज और राजनीति अपने पूरे विरोधाभाषों के साथ मौजूद है । बीसवीं सदी ऐसी सदी है जिसमे...
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