Monday 21 April 2014

बृजेश नीरज की 3 कवितायेँ


कुछ जरूरी बात

छोड़ो
गेंदे और गुलाब की बातें
बोगंबिलिया के फूलों पर तो
मधुमक्खियाँ भी नहीं बैठतीं

चलो, बात करते हैं
ध्रुवों पर पिघलती बर्फ की
दरकती चट्टानों की
धँसती जमीन की

खोजते हैं कारण कि
क्यों बढ़ती जा रही है
घरों में दीवारों की सीलन;
हल्की से गर्मी में भी
क्यों पिघलती है सड़क

सोचते हैं  
साँसों में बढ़ती खड़खड़ाहट
गले में रुंधती आवाज़
आसमान के बदलते रंग के बारे में  

इस कठिन समय में
जब पेड़ों से पत्ते लगातार झड रहे हैं
सीना कफ़ से  जकड गया है
बाजू कमजोर हो रहे हैं,
कविता को
सुन्दर फ्रेम में मढ़कर
ड्राइंग रूम में सजाने के बजाय
करनी है कुछ जरूरी बात

-

सावधान!

तुम बाँध देना चाहते हो कलम
लेकिन इन शिराओं में बहते रक्त को नहीं बाँध पाओगे
यह बहेगा
शिराओं में नहीं तो बाहर

जब तक बहेगा
तुम्हारे लिए सैलाब लेकर आएगा

-

सम्हलो!

इस तप्त माहौल में भी
तुम
बांसुरी की तान में मग्न हो

यह बांसुरी इस माहौल को ठंडा नहीं करेगी

सुनो,
शिखरों पर जमी बर्फीली चट्टानों के दरकने की
आवाज़
बर्फ पिघल रही है
पिघल रही हैं सड़कें
पिघल रहे हैं शरीर
मोम के पुतले की तरह

सैलाब उमड़ रहा है
इस सैलाब में बहते जा रहे हैं
पेड़, पत्ते, फूल
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर
बाज़ार-महल

अभी यह अट्टालिका भी बहेगी
जिस पर खड़े तुम सुन रहे हो बांसुरी की तान
सम्हलो!

----


बृजेश नीरज का जन्म 19-08-1966  को लखनऊउत्तरप्रदेश में हुआ | इनकी प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ में हुई. लखनऊ के राजकीय जुबिली इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की. विज्ञान स्नातक डी.ए.वी. डिग्री कॉलेज से किया तत्पश्चात एल.टी ट्रेनिंग के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.एड. और विधि स्नातक किया. नीरज बताते है कि- उन्हें साहित्य और संगीत प्रारम्भ से ही आकर्षित करता रहा. इंटर की पढाई के दौरान ही लेखन की शुरुआत हुई. विश्वविद्यालय के जीवन के दौरान सामाजिक कार्यों और छात्र राजनीति में भागीदारी हुई. उसी समय सबसे अधिक अध्ययन हुआ. गांधी से लेकर मार्क्स तक और धूमिल से लेकर गोर्की तक को पढ़ा. गांधीवादी सिद्धांतों ने सबसे अधिक प्रभावित किया. छात्र राजनीति में गाँधी के सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास हुआ. समय के साथ साहित्य मन में बसता चला गया. साहित्य जहाँ मुझे परिष्कृत करता है वहीँ शांति भी प्रदान करता है |
प्रकाशन- एक कविता संग्रह प्रकाशित इसके अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आदि में रचनाएँ प्रकाशित |
सम्प्रति- उ0प्रसरकार के कर्मचारी।
निवास- 65/44, शंकर पुरीछितवापुर रोड,  लखनऊ-226001
मो- 09838878270
ईमेल- brijeshkrsingh19@gmail.com

----------------------------

15 comments:

  1. बेहतरीन और ज़रूरी कविताएँ..बहुत बहुत बधाई ब्रजेश जी को.

    ReplyDelete
    Replies
    1. परमेश्वर जी आपका हार्दिक आभार!

      Delete
  2. जीवन में अनेको वर्जनाओं की कहानी कहती हुई सी बृजेश जी तीनो रचनाएँ , जो उसके सही पहलू को दिखाती हैं..

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुषमा जी बहुत-बहुत आभार आपका!

      Delete
  3. बृजेश नीरज अपनी कविताओं के माध्यम से हमारे समय के बहुत ही सजग व सशक्त कवि के रूप में उभरकर सामने आये हैं | उनकी कविताओं का कथ्य, शिल्प व भाषाई सधापन पाठकों को उनकी कविता से सीधे जोड़ता है | शुभकामनायें कवि को !

    ReplyDelete
    Replies
    1. राहुल भाई आपका हार्दिक आभार!

      Delete
  4. इस ब्लॉग में स्थान देने के लिए राहुल भाई का हार्दिक आभार!

    ReplyDelete
  5. तीनों कवितायें अपनी पक्षधरता को सफलता पूर्वक व्यक्त कर रही हैं। संस्कृति के संवाहक होने के दायित्व को निभाते हुए बृजेश नीरज ने जिस कथ्य का निरूपण किया है वह सराहनीय है। बधाई बृजेश जी -जगदीश पंकज

    ReplyDelete
  6. तीनो रचनाएँ एक से बढ़कर एक ...अभिनन्दन आपका श्री बृजेश जी!

    ReplyDelete
  7. तीनों ही कविताएँ
    " कुछ जरूरी बात, सावधान! सम्हलो! "
    अच्छी हैं | ईश्वर तुम्हारी लेखनी को और ताकत दे ....

    ReplyDelete
  8. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर कवितायें ...सादर बधाई

    ReplyDelete
  10. पकी हुई सौंधी कविताएँ ।

    ReplyDelete

गाँधी होने का अर्थ

गांधी जयंती पर विशेष आज जब सांप्रदायिकता अनेक रूपों में अपना वीभत्स प्रदर्शन कर रही है , आतंकवाद पूरी दुनिया में निरर्थक हत्याएं कर रहा है...